परिचर्चा

वैदिक जी! आपको राष्ट्रधर्म निभाना चाहिए

-सुरेश हिन्दुस्थानी-
VAIDIK SAYEED

हमने बचपन में एक कहानी सुनी थी, एक बार जापान में एक अध्यापक ने छात्रों ने पूछा कि कि आप सभी बढ़े होकर क्या बनोगे? आश्चर्य की बात यह है कि सभी छात्रों ने उत्तर दिया, हम सबसे पहले राष्ट्रभक्त बनेंगे, बाद में कुछ और। इसी प्रकार एक और कहानी है, संयोग से वह भी जापान की ही है। एक बार एक भारतीय संत जापान में रेलगाड़ी से यात्रा कर रहे थे, सन्त जी का उस दिन उपवास होने के कारण हर रेल स्थानक पर यह देखते कि कहीं आहार लेने के लिए फल मिल जाएं तो अच्छा होगा। सन्त जी को निराशा ही हाथ लगी। एकाएक मुंह से निकला हे भगवान! यह कैसा देश है जहां फल ही नहीं मिलते। इतना सुनकर सामने बैठा एक युवक उठा और बाहर निकल गया। थोड़ी देर बाद सन्त जी के पास आकर बोला, यह लीजिए फलों की टोकरी। सन्त जी ने फल ले लिए, पैसे देने को हुए तो युवक बोला- पैसे नहीं चाहिए, केवल एक बात कहना चाहता हूं कि आप अपने देश में जाकर यह नहीं कहना जापान में फल नहीं मिलते। यह देशभक्ति का सुंदर उदाहरण कहा जा सकता है। विश्व के बहुत सारे देशों में इस बात के कई उदाहरण भरे पड़े हैं कि देश की रक्षा की खातिर अपने स्वयं के हित का त्याग तक कर दिया। वास्तव में हम जिस देश में रहते हैं उसके लिए हमारे दिल और दिमाग में प्रथम स्थान होना चाहिए, लेकिन हमारा वर्तमान जिस दशा का प्रदर्शन कर रहा है, उससे तो ऐसा ही लगता है कि हमारे देश के मूर्धन्य लोग केवल अपने स्वार्थ के लिए ही सब कुछ करते हैं। उनके लिए राष्ट्रहित कोसों दूर हो जाता है।

हम बात कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार वेद प्रताप वैदिक के हाफिज सईद से मिलने के मुद्दे की। तो इसमें प्रथम दृष्टया जो समझ में आता है, वह यही प्रदर्शित करता है कि उन्होंने अपने कर्म को प्रधान माना, और उसी की ख्याति के लिए काम किया, जबकि उनका राष्ट्रीय भाव शून्यता की ओर चला गया। हमने गदर फिल्म देखी होगी, जिसमें सनी देवल ने सब धर्मों का सम्मान तो किया, लेकिन जब अपने देश की बात आई तो सनी ने देश भक्ति का जैसा प्रदर्शन किया। ऐसे ही भाव सबके मन में होना चाहिए।

कांग्रेस के नेता जिस प्रकार से वैदिक के मामले को नरेन्द्र मोदी की तरफ मोड़ रहे हैं, उससे तो ऐसा ही लगता है कि कांग्रेस के नेता फिजूल की बयानबाजी कर रहे हैं। जबकि वैदिक यह साफ कर चुके हैं कि मैं किसी का दूत बनकर नहीं गया, मैं तो स्वयं का दूत हूं। इसी प्रकार कांग्रेस के राहुल गांधी ने कहा कि वैदिक संघ के आदमी हैं, इस बारे में भी उन्होंने साफ कर दिया है कि मेरा संघ से कोई संबंध नहीं है। इसके अलावा कांग्रेस के कई नेताओं से मेरे नजदीकी संबंध जरूर रहे हैं। वैदिक ने यह भी साफ कहा कि नरसिंहराव के प्रधानमंत्रित्वकाल के दौरान कांग्रेस मुझे उपप्रधानमंत्री तक मानती थी। इससे यह तो साफ है कि वैदिक कांग्रेस के नेता हैं, फिर भी कांग्रेस झूठ बोलकर मामले को गुमराह करने की कोशिश कर रही है। हो सकता है इस पूरे मामले में कांग्रेस ही दोषी हो।

वैदिक और हाफिज सईद के मिलने के मामले में जहां भारत में राष्ट्रघाती राजनीति की जा रही है, वहीं वैदिक के बोलने के बाद कश्मीर में आतंकियों की सक्रियता बढ़ती ही जा रही है। उल्लेखनीय है कि वैदिक ने कहा था कि दोनों कश्मीर अगर चाहते हैं तो एक हो सकते हैं। बिलकुल ऐसा ही पाकिस्तान और आतंकवादी चाहते हैं। वैदिक और आतंकियों की सोच में समानता का यह प्रदर्शन, क्या उनके ऊपर सवाल खड़े नहीं करती। वैदिक ने यह भाषा क्यों बोली, यह गहन मंथन का विषय हो सकता है।

हाफिज के बारे में अब यह बताने की जरूरत नहीं है कि राष्ट्र का दुश्मन है। भारत माता की छाती पर आक्रमण करके उसने उन राष्ट्रभक्तों को सीधे तौर पर चेतावनी दी थी, जो भारत माता से प्यार करते हैं। ऐसे व्यक्ति से कोई भी नागरिक प्यार से बात करके किस राष्ट्रीयता का परिचय देते हैं। दूसरी बात यह है कि सबसे पहले हमें यह जानना जरूरी है कि राष्ट्र क्या है? राष्ट्र कोई भूमि का टुकड़ा नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक क्षेत्र है, जिसमें उस क्षेत्र की जनता भी शामिल होती है। अगर कोई व्यक्ति भारत का दुश्मन है तो वह भूमि के टुकड़े का दुश्मन नहीं बल्कि उस देश के नागरिकों का दुश्मन ही कहा जाएगा। चूंकि वैदिक इस देश के नागरिक हैं तो जाहिर तौर पर वह अपने दुश्मन से मिलकर ही आए हैं। सवाल यह उठता है कि अगर दुश्मन से हम अच्छे भाव से मिलते हैं तो हमारी राष्ट्र के प्रति निष्ठा कहां रही। वरिष्ठ पत्रकार वैदिक ने अपनी राष्ट्रीय निष्ठाओं को पूरी तरह से भुला ही दिया। वास्तव में वैदिक को पहली बार में ही हाफिज से मिलने से सख्त रूप से मना करना चाहिए था। लेकिन आपने राष्ट्रधर्म नहीं निभाया, पाकिस्तान में आपको सबसे पहले राष्ट्रधर्म निभाना चाहिए था।