व्यंग्य

वंशपूजन

jf_thumb[3]कांग्रेस पार्टी के लोग आजकल कहने लगे हैं कि उनपर  वंशवाद  का  आरोप  व्यर्थ में  लगाया  जाता है, क्योंकि सभी राजनैतिक  पार्टियों अपने के नेताओं के बेटे बहुओं, बेटियों, दामादों, नाती-पोतों को चुनावी टिकट दे रही हैं। आम आदमी  पार्टी  के अलावा  और कोई पार्टी इस बात से इनकार भी नहीं कर सकती। आम आदमी पार्टी का तो अभी जन्म  ही हुआ है, उनके  अभी बेटे बहुएं कहां से आयेंगे।

हां जी, वंशवाद तो उ.प्र. का समाजवादी पार्टी का भी ग़जब है। सब यादव ही यादव…  बेटा-बहू, भाई, भतीज़े, चाचा,  ताऊ सभी मिलकर उत्तर प्रदेश को  चला  रहे हैं या जला रहे हैं। शिवसेना का वंशवाद भी भरोसे का है। बालठाकरे फिर उद्धव ठाकरे ही… ठाकरे …

जब तक माता या पिता की कुर्सी सीधे सीधे उनके बच्चों को न मिले वंशवाद नहीं होता। यों तो अमिताभ  बच्चन का बेटा  भी फिल्मों में  है, पर अमिताभ  बच्चन की जगह तो नहीं है, उनसे कोसों दूर है। सुनील गवास्कर का बेटा भी क्रिकेट खेलता रहा, पर अपने पिता के आस-पास भी नहीं पंहुचा। ये वंशवाद नहीं है।

कांग्रेस का वंशवाद तो वंशवाद से भी एक क़दम आगे है। ऐसा उदाहरण तो ढूंढने  से  भी  देश  के  इतिहास  में नहीं मिलेगा,  जहां  बिना एक परिवार के सदस्य  की छत्रछाया के पार्टी निरीह और असहाय महसूस करती है। जहां बिना कुर्सी के भी लोग सत्ता में रहते हैं। जहां एक परिवार के व्यक्ति के  मुख से निकला हर  वाक्य ब्रह्मवाक्य होता है, उनकी पूजा होती है। जहां प्रधानमंत्री राजमाता के निर्देश पर फैसले  लेते हैं, जहां राजकुमार कैबिनेट  के लिये फैसले को फाड़कर  रद्दी की टोकरी में फेंक सकता है, जंहां ख़ुफिया सूचना रक्षा मंत्री या प्रधानमंत्री से  पहले राजकुमार के पास पहुंचती हैं और वो  चुनाव रैली में उन्हें जनता के साथ  साझा करने में भी नहीं हिचकिचाते। ऐसे में अगर मोदी जी उन्हें शहज़ादा कहते हैं तो कांग्रेस के नेता बुरा क्यों मानते हैं? उन्हें तो शहज़ादे पर फक्र होना चाहिये। और एक ये पार्टी है आप जिसे एक परिवार के दो लोगों को टिकट देने से परहेज़ है!