स्नानघर एवं शौचालय संबंधी वास्तु सिद्धांत

स्नानघर एवं शौचालय- साधारणतः स्नानघर एवं शौचालय तीन प्रकार से बनाए जाते हैं- घर के सोने के कमरे के साथ संयुक्त स्नानघर एवं शौचालय, घर के अंदर सबके लिए संयुक्त स्नानघर एवं शौचालय तथा अलग-अलग स्नानघर एवं शौचालय।
वास्तुशास्त्र के अनुसार घर के अंदर स्नानघर उत्तर या पूर्व दिशा में बनवाया जा सकता है जबकि शौचालय पश्चिम, वायव्य कोण से हटकर उत्तर दिशा की ओर या दक्षिण दिशा में बनवाया जा सकता है। संयुक्त स्नानघर एवं शौचालय के लिए पश्चिम वायव्य कोण एवं पूर्वी आग्नेय कोण अच्छे माने जाते हैं।
वास्तु सिद्धांत के अनुसार बेडरूम से सटे स्नानघर बेडरूम के ऊपर या पूर्व दिशा में जहां दो समांतर बेडरूम हों, वहीं बीच में बनवाएं जाते हैं। इस स्थिति में बीच वाला स्नानघर दक्षिण दिशा के बेडरूम के उत्तर में तथा उत्तरी बेडरूम के दक्षिण में पड़ेगा। वास्तु के अनुसार इस स्थिति को बहुत अच्छा माना जाता है। इसी प्रकार दक्षिण में बने दो समांनतर बेडरूम के बीच में एक स्नानघर बनवाया जा सकता है। इसमें पश्चिम दिशा के बेडरूम के पूर् में तथा पूर्वी बेडरूम के पश्चिम दिशा में स्नानघर पड़ेगा। आजकल शौचालय स्नानघर के साथ ही बनाए जाते हैं। शौचालय की सीट (डब्ल्यू. सी.) इस प्रकार रखें कि बैठने वाले का मुख दक्षिण, पश्चिम की ओर मुख रखना भी ठीक नहीं मानते क्योंकि पूर्व-पश्चिम सूर्योदय और सूर्यास्त से संबंधित हैं अतः यह सूर्य का अपमान करना माना गया है, रामायण में भी इसका वर्णन मिलता है। ईशान कोण में शौचालय नहीं बनवाना चाहिए क्योंकि यह हानिप्रद हैं। नैऋत्य कोण में शौचालय बनवाएं तो गड्ढा न खुदवाएं, चबूतरा बनवाकर संडास लगवाएं तथा सैप्टिक टैंक मध्य उत्तर या मध्यपूर्व में ही रखें।

स्नानघर संबंधी वास्तु सिद्धांत–
1. यदि मकान का मुख्यद्वार उत्तर दिशा की ओर हो तो भी स्नानघर पूर्व या पूर्वी आग्नेय कोण में बनाना चाहिए।
2. स्नानघर दक्षिण या पश्चिम नैऋत्य कोण में भी बनवाया जा सकता है।
3. यदि मकान का मुख्यद्वार पूर्व दिशा की ओर हो तो स्नानघर पूर्व-आग्नेय कोण में बनवाना चाहिए।
4. यदि मकान का मुख्यद्वार पश्चिम दिशा की ओर हो तो वे स्नानघर पश्चिम नैऋत्य कोण में बनाना चाहिए।
5. स्नानघर के लिए सर्वाधिक उपयुक्त दिशा पूर्व होती है।
6. स्नानघर में गीजर, हीटर एवं अन्य विद्युत उपकरण दक्षिण-पूर्व आग्नेय कोण में लगाए जाने चाहिए।
7. वैसे तो शौचालय स्नानघर में बनाना नहीं चाहिए परंतु यदि बनाना आवश्यक ही हो तो यह स्नानघर में पश्चिम या वायव्य कोण की ओर बनाया जाना चाहिए।
8. स्नानघर की दीवारों का रंग हल्का होना चाहिए जैसे सफेद, हल्का नीला, आसमानी आदि।
9. स्नानघर से सटा हुआ, रसोई के पास एक कपड़े एवं बर्तन होने का स्थान होना सुविधाजनक है।
10. स्नानघर का द्वार रसोईघर के द्वार के ठीक सामने नहीं होना चाहिए।
11. यदि स्नानघर बड़ा हो और उसी में वाशिंग मशीन भी रखी हो तो मशीन को दक्षिण या आग्नेय कोण में रखा जा सकता है।
12. स्नानघर का द्वार पूर्व या उत्तर में होना चाहिए।
13. स्नानघर में बाथटब पूर्व, उत्तर या ईशान कोण से रखा जाना चाहिए।
14. स्नानघर के फर्श का ढाल पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए।
15. स्नानघर में शॉवर ईशान कोण, उत्तर या पूर्व दिशा में होना चाहिए।

ानघर संबंधी वास्तु सिद्धांत–
1. यदि मकान का मुख्यद्वार उत्तर दिशा की ओर हो तो भी स्नानघर पूर्व या पूर्वी आग्नेय कोण में बनाना चाहिए।
2. स्नानघर दक्षिण या पश्चिम नैऋत्य कोण में भी बनवाया जा सकता है।
3. यदि मकान का मुख्यद्वार पूर्व दिशा की ओर हो तो स्नानघर पूर्व-आग्नेय कोण में बनवाना चाहिए।
4. यदि मकान का मुख्यद्वार पश्चिम दिशा की ओर हो तो वे स्नानघर पश्चिम नैऋत्य कोण में बनाना चाहिए।
5. स्नानघर के लिए सर्वाधिक उपयुक्त दिशा पूर्व होती है।
6. स्नानघर में गीजर, हीटर एवं अन्य विद्युत उपकरण दक्षिण-पूर्व आग्नेय कोण में लगाए जाने चाहिए।
7. वैसे तो शौचालय स्नानघर में बनाना नहीं चाहिए परंतु यदि बनाना आवश्यक ही हो तो यह स्नानघर में पश्चिम या वायव्य कोण की ओर बनाया जाना चाहिए।
8. स्नानघर की दीवारों का रंग हल्का होना चाहिए जैसे सफेद, हल्का नीला, आसमानी आदि।
9. स्नानघर से सटा हुआ, रसोई के पास एक कपड़े एवं बर्तन होने का स्थान होना सुविधाजनक है।
10. स्नानघर का द्वार रसोईघर के द्वार के ठीक सामने नहीं होना चाहिए।
11. यदि स्नानघर बड़ा हो और उसी में वाशिंग मशीन भी रखी हो तो मशीन को दक्षिण या आग्नेय कोण में रखा जा सकता है।
12. स्नानघर का द्वार पूर्व या उत्तर में होना चाहिए।
13. स्नानघर में बाथटब पूर्व, उत्तर या ईशान कोण से रखा जाना चाहिए।
14. स्नानघर के फर्श का ढाल पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए।
15. स्नानघर में शॉवर ईशान कोण, उत्तर या पूर्व दिशा में होना चाहिए।


शौचालय संबंधी वास्तु सिद्धांत-1. शौचालय का दरवाजा पूर्व दिशा या आग्नेय कोण की तरफ खुलने वाला होना चाहिए।
2. शौचालय में संगमरमर की टाइल्स का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।
3. यदि आपके निर्मित मकान में त्रुटि या अज्ञानवश ईशान कोण में शौचालय का निर्माण हो गया हो तो इसके बाहर एक बड़ा दर्पण इस प्रकार लगाना चाहिए कि नैऋत्य कोण से देखने पर आईना बिल्कुल सामने दिखाई दे या यहां पर शिकार करते हुए शेर या मुंह फाड़े हुए एक शेर का बड़ा चित्र भी लगाया जा सकता है।
4. जिन भूखण्डों के पूर्व या उत्तर दिशा में रास्ते हो उन पर निर्मित मकानों में ईशान कोण में शौचालय नहीं बनवाने चाहिए। मानसिक व पारिवारिक अशांति, असाध्य रोग अनैतिक कामों से पतन होता है।
5. मकान में शौचालय पश्चिम, वायव्य कोण से हटकर उत्तर की ओर या दक्षिण में होना चाहिए।
6. शौचालय का निर्माण इस प्रकार होना चाहिए कि शौचालय में बैठते समय मुंह उत्तर एवं पूर्व दिशा की ओर कभी न हो। शौचालय में सीट इस प्रकार लगी होनी चाहिए कि बैठते समय आपका मुंह दक्षिण दिशा या पश्चिम दिशा की ओर रहे।
7. शौचालय का फर्श मकान के फर्श से एक या दो फीट ऊंचा होना चाहिए।
8. शौचालय में एक खिड़की उत्तर, पश्चिम या पूर्व दिशा में होनी चाहिए।
9. शौचालय में पानी की टोटी पूर्व या उत्तर दिशा में होनी चाहिए।


आदर्श संयुक्त स्नानघर एवं शौचालय के लिए वास्तु सिद्धांत-

1. संयुक्त स्नानघर एवं शौचालय का दरवाजा मध्य पूर्व में रखा जा सकता है।

2. संयुक्त स्नानघर एंव शौचालय में वाश बेसिन पश्चिम की दीवार में भी लगाया जा सकता है।

3. यदि संयुक्त स्नानघर एवं शौचालय का दरवाजा वायव्य कोण में हो तो भी शावर ईशान कोण में ही रखना चाहिए।

4. संयुक्त स्नानघर एवं शौचालय पश्चिम वायव्य कोण या पूर्व आग्नेय कोण में बनाना चाहिए।

5. संयुक्त स्नानघर एवं शौचालय में शौचालय पश्चिम या वायव्य कोण की ओर बनाया जाना चाहिए।6. संयुक्त स्नानघर एवं शौचालय को रसोईघर के सामने नहीं बनवाना चाहिए।

7. संयुक्त स्नानघर एवं शौचालय में शावर एवं नल ईशान कोण में लगाया जा सकता है।

1 COMMENT

  1. पंडितजी मेरे घर का द्वार पूर्व की ओर है और संयुक्त स्नानागार व शौचालय का द्वार भी पूर्व की ओर है और घर के दशिण दिशा में है क्या यह सही है

Leave a Reply to OM PRAKASH Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here