मृत्युंजय दीक्षित
बिहार विधानसभा चुनावो से पूर्व आरंभ हुआ मतदाता सूची का शुद्धीकरण ( एसआईआर ) अभियान अब पश्चिम बंगाल तथा उत्तर प्रदेश सहित कुछ अन्य राज्यों में चल रहा है। देश के तमाम विरोधी राजनैतिक दलों ने मतदाता सूची शुद्धीकरण अभियान के विरुद्ध आक्रामक राजनीति भी कर रहे हैं । मतदाता सूची के शुद्धीकरण अभियान के अंतर्गत जिन लोगों की मृत्यु हो चुकी है या जो लोग कहीं अन्यत्र चले गए हैं, या जिनके पास एक से अधिक मतदाता क्रमांक हैं उनकी पहचान करके उनको मतदाता सूची से बाहर किया जा रहा है। निर्वाचन आयोग कई बार स्पष्ट कर चुका है कि एसआईआर की इस प्रक्रिया में कोई भी योग्य मतदाता छूटेगा नहीं और कोई भी विदेशी घुसपैठिया सूची में रहेगा नहीं।
चुनाव आयोग के इस अभियान में लाखों कर्मचारी व अधिकारी दिन रात कठोर परिश्रम कर रहे हैं। जिस समय देश के समस्त राजनैतिक दलों को चुनाव आयोग के इस अभियान में सम्पूर्ण सहयोग सहयोग करना चाहिए उस समय विरोधी दल इसका विरोध कर रहे हैं और इसे पटरी से उतारने के लिए तरह- तरह की पैतरेंबाजी कर रहे हैं। एसआईआर की प्रक्रिया के विरुद्ध कांग्रेस पार्टी सहित केरल, तमिलनाडु और बंगाल कि राज्य सरकारें सुप्रीम कोर्ट तक चली गयीं । झारखंड सरकार के एक मंत्री ने बयान दिया कि अगर बीएलओ किसी मतदाता का नाम काटता है तो उस बीएलओ को एक कमरे में बंद करके आग लगा दो। जो लोग संविधान की किताब हाथ में लेकर घूमते हैं वही लोग लोकतांत्रिक प्रक्रिया व संवैधानिक काम में बाधा डालने का घृणित प्रयास कर रहे हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी जहां एक ओर वोट चोरी का आरोप लगाते हुए शुद्ध मतदाता सूची की मांग कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर इस अभियान का विरोध कर रहे हैं। राहुल को पता ही नहीं कि वो क्या चाहते हैं?
बंगाल में तीखा विरोध- एसआईआर का सबसे तीखा विरोध बंगाल, केरल, तमिलनाडु में सरकारी स्तर पर देखने को मिल रहा है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के नेतृत्व में जातिवाद व मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले सभी दल इसका पुरजोर विरोध कर रहे हैं। बंगाल में जब से मतदाता सूची शुद्धीकरण का अभियान प्रारंभ हुआ है तभी से बांग्लादेशी घुसपैठिए स्वतः बंगाल छोड़ रहे हैं और सीमा पार जाने के लिए एकत्र हो रहे हैं। अनेक बांग्लादेशी घुसपैठियों ने कैमरे के सामने आकर स्वीकारा है कि वह कई वर्षो से बंगाल में रह रहे हैं, उनका आधार कार्ड व राशन कार्ड तक बना हुआ है।
एसआईआर प्रक्रिया से बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी घुसपैठियों के मुद्दे पर पूरी तरह से बेनकाब हो रही हैं। एक समय में ममता बनर्जी ने बंगाल में बढ़ रही घुसपैठ के खिलाफ संसद से सड़क तक आवाज बुलंद की थी और वर्ष 2002 में एसआईआ का समर्थन किया था। उस समय ममता दीदी को बंगाल का मुख्यमंत्री बनना था लेकिन अब वो मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीती के कारण घुसपैठियों के हितों को सर्वोपरि रखते हुए, भारत और भारतियों के हितो को दरकिनार करते हुए मतदाता शुद्धीकरण अभियान का विरोध कर रही हैं। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस अभियान के विरोध में पूरे भारत में आग लगाने की धमकी दे रही हैं। ममता बनर्जी ने एसआईआर के विरोध के नाम पर आगामी छह दिसंबर को एक रैली करने का निर्णय लिया है जिसका नाम उन्होंने सद्भावना रैली रखा है । रैली का नाम और तिथि दोनों ही उनकी मंशा पर संदेह अगर उन्हें उत्पन्न कर रहे हैं । बंगाल में एसआईआर के कार्य में लगे कर्मचरियों को धमकियां दी जा रही हैं।
विरोधी दलों ने एसआईआर पर दोहरे मापदंड वाली रणनीति अपनाई है। एक तरफ यह एसआईआर की प्रक्रिया में शामिल हो रहे हैं और दूसरी और न्यायपालिका की शरण में भी जा रहे हैं और समाज में व्यापक पैमाने पर झूठ और भ्रम फैलाने वाले बयान भी दे रहे हैं।अभी टीएमसी नेताओं की चुनाव आयोग के साथ एक बैठक भी हुई जिसमें उन्होंने चुनाव आयोग से पांच सवाल पूछे। उसके बाद चुनाव आयोग ने अत्यंत कड़ा रुख अपनाते हुए बंगाल के डीजीपी को पत्र लिखकर मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण के कार्य में लगे सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को पूरी सुरक्षा देने को कहा है।
उत्तर प्रदेश में समाजवादी विरोध- एसआईआर पर यूपी में मुस्लिम तुष्टिकरण और पीडीए की राजनीति करने वाले सपा मुखिया अखिलेश यादव ने भी दोहरा मापदंड अपनाते हुए अपना एसआईआर का फार्म तो भर कर दे दिया किंतु विरोध के लिए एक नया शिगूफा छोड़ दिया है कि एसआईआर की इस प्रक्रिया के कारण आरक्षण समाप्त हो जाएगा। आपकी जमीन खेत और नौकरी आदि सब कुछ छीन लिया जाएगा । वह यह भी दावा कर रहे हैं कि इसके कारण कम से कम एक करोड़ से ढाई करोड़ तक मतदाताओं के नाम कट जाएंगे । जब उनकी भ्रम पैदा करने वाली बयानबाजी कम पड़ जाती है तब वह चुनाव आयोग को लठैत आयोग बताने लगते हैं।
वास्तविकता यह हे कि एसआईआर की यह प्रक्रिया मतदाता सूची को व्यापक ढंग से शुद्ध कर रही है। विचार करने कि बात है क्या लोकतान्त्रिक व्यवस्था की परिष्कृति के लिए जिस मतदाता की 2003 से 2025 के मध्य मृत्यु हो चुकी है या जो मतदाता अन्यत्र चला गया है या जो भारत का नागरिक ही नहीं है क्या उसका नाम हटना नहीं चाहिए। वो कौन लोग हैं जो मृत्यु के बाद भी मतदान कर रहे हैं? मतदाता सूची शुद्धिकरण लोकतंत्र की शुचिता के लिए आवश्यक है। तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले स्वार्थी नेता इस बात को समझें या न समझें मतदाता इस बात को अच्छी तरह समझ रहा है और प्रक्रिया को पर्याप्त समर्थन व सहयोग दे रहा है ।
प्रेषक – मृत्युंजय दीक्षित