राजनीति शख्सियत

बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे हम निकले

सिद्धार्थ मिश्र”स्‍वतंत्र”

निकलना खुंद से आदम का सुनते आए हैं लेकिन,बहोत बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले  । मरहूम शायर गालिब ने ये शेर ना जाने किन मनोभावों में  डूबते इतराते हुए हुए ये शेर रचा होगा । उनका ये शेर आज डा मनमोहन सिंह पर बखूबी जंचता है । अर्थशास्‍त्र के दिग्‍गज विद्वान और हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन जी वाकई आज कभी खुद पर तो कभी अपने हालातों पर आंसू बहाने को विवश होंगे । ऐसा होना जायज भी है बीते वक्‍त में अपनी ईमानदारी के लिए चर्चित रहने वाले मनमोहन जी आज बेईमानों की रहनुमाई के लिए कुख्‍यात होते जाते हैं । हमेशा खामोशी की पैरोकारी करने वाले मनमोहन जी के पास आज वाकई कहने को कुछ भी नहीं बचा है । उनकी विद्वता और ईमानदारी के लबादे की चिंदियां उड़ती देखकर ये शेर याद आ रहा है –

 

अब तो दरवाजे से अपने नाम की तख्‍ती उतार,

शब्‍द नंगे हो गये शोहरत भी गाली हो गयी ।

प्रथम परिवार के प्रति वफादारी ने वाकई उन्‍हे एक खलनायक के तौर पर पेश किया है । कभी उनकी ईमानदारी पर इतराने वाले उनके प्रशंसक भी आज उनसे दूर होते जा रहे हैं । इस बात को समझने के लिए दस वर्षों के उनके कार्यकाल की प्रमुख घटनाओं को समझना होगा । सारी बातें स्‍पष्‍ट हो जाएंगी कि आज वो इस दशा तक कैसे पहुंचे । बहरहाल अपने प्रथम कार्यकाल के दौरान अनधिकृत कोल ब्‍लॉक आवंटनों का पाप आज वाकई उनके सिर चढ़कर बोल रहा है । यदि ऐसा नहीं है तो एक झूठ को दबाने के लिए हजार झूठ बोलने की उनकी विवशता क्‍या है ?

खैर जो भी हो इस तमाम पशोपेश एक बात दोबारा स्‍पष्‍ट होती जाती जा रही है । जैसा कि पूर्व में हमारे माननीय प्रधानमंत्री पर डमी होने के आरोप लगते रहे हैं । इस बात को समझने के लिए हमें सरकार के प्रत्‍येक निर्णय में प्रथम परिवार के दखल को समझना होगा । किंवदंतियों के अनुसार यदि मनमोहन जी वाकई ईमानदार होते तो क्‍या वे वाकई अपने दरबार के दागी रत्‍नों का ओछा बचाव करते नजर आते ? प्रधानमंत्री की कुर्सी की गरिमा की दुहाई देकर अपने इस्तिफे की मांगों को ठुकराकर वो निश्चित तौर पर आमजन के कोप का भाजन बनते जा रहे हैं । हालिया कोलगेट मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारियों की लीपापोती हो या रेल मंत्री पवन बंसल के भांजे का मामला दोनो ही मामले आईने की तरह साफ हैं । ऐसे में गुनहगारों की पैरवी कर माननीय मनमोहन जी ने अपनी थुक्‍का फजीहत को न्‍यौता दे दिया है । बहरहाल पूर्व में भी इस तरह के भी मामलों में उनकी संलिप्‍तता अब किसी शुबहे की बात नहीं हैं । अब चाहे वो दागी थामस के चुनाव की बात हो अथवा क्‍वात्रोच्चि की पैरोकारी या अपने दरबारी ए राजा को क्‍लीन चिट देना । ये सारी एक के बाद एक घटी घटनाएं विपक्ष की साजिश तो नहीं  हो सकती । ऐसे में यदि मनमोहन जी वाकई ईमानदार होते इन सभी अभियुक्‍तों को कब की सजा मिलनी चाहीए थी । इस फेहरिस्‍त में एक और दिग्‍गज शामिल है, वाक् धुरंधर शिंदे जी । स्‍मरण रहे कि वर्तमान में गृह मंत्रालय की मिट्टी पलीद कर रहे ये माननीय वहीं है जिन्‍होने अपने एक पूर्व मंत्रालय में तुच्‍छ मति का परिचय देते हुए देश को ब्‍लैक डे मनाने पर विवश कर दिया । इस अभू‍तपूर्व उपलब्धि के लिए उन्‍हे शाबासी के साथ गृह मंत्रालय सौपना क्‍या एक प्रधानमंत्री का निर्णय हो सकता है । इस बात को शिंदे के बयान से  समझा जा सकता है । अपने एक बयान में उन्‍होने कहा था कि वे यहां सोनिया गांधी की कृपा से पहुंचे हैं । कांग्रेस की परंपरा में ये कोई नयी बात नहीं है । प्रथम परिवार के चाटुकार सदैव से सत्‍ता की मलाई काटते रहे हैं । इतना सब होने के बाद भी मनमोहन जी को ईमानदार कहना क्‍या ईमानदारी को  गाली देने सरीखा नहीं है ।

इस पूरे परिप्रेक्ष्‍य में देखें तो वास्‍तव में वे विगत दस वर्षों से प्रधानमंत्री के स्‍थान पर कुछ निजी हाथों की कठपुतली ज्‍यादा लगते हैं । कांग्रेस की किचेन कैबिनेट ने उनका बखूबी इस्‍तेमाल किया है । उनकी छवि को भुनाकर दोबार सत्‍ता सुख लूटने के बाद उनकी छवि का गिरना आवश्‍यक था । अन्‍यथा युवराज की दावेदारी विवादित हो जाती । यहां मेरा अर्थ उन्‍हे क्‍लीनचिट देना नहीं है । मेरे कहने का आशय मात्र इतना कांग्रेस ने उनकी कमजोरी का पूरा फायदा उठा लिया है । उनकी कमजोरी अर्थात देश की सर्वोच्‍च कुर्सी की लिप्‍सा ने उन्‍हे कहीं का नहीं छोड़ा । आगामी चुनावों के बाद उनका दूध की मक्‍खी की तरह बाहर निकलना भी लगभग तय है । इस सब के बीच वाकई उनकी विदाई का स्‍वरूप विभत्‍स अवश्‍य होगा । अंत में उनके अंजाम को देखकर तो यही कह जा सकता है कि बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले ।