हम रिश्वत न खायेंगे

‘ पापा अगर आज आप ,रिश्वत के रुपये लायेंगे,

तो निश्चित ही आज शाम का ,खाना हम न खायेंगे|

यदि गरीब निर्बलों से न,रिश्वत लेना बंद किया,

भ्रष्टाचार विरोधी जन‌,आंदोलन से जुड़ जायेंगे|

कापी कलम किताबॆं यदि, रिश्वत के धन से आयेंगीं,

तब तो यह तय है पापाजी,हम पढ़ लिख न पढ़ पायेंगे|

रिश्वत का कालाधन इतना ,शापित और प्रदूषित है,

इस घर में पापाजी अब हम ,ज्यादा न रह पायेंगे|

कड़ा परिश्रम समय लगाकर ,धन जब लोग कमाते हैं,

उस धन का तिनका भी लेकर ,अब हम जी न पायेंगे’|

बेटे की बातों को सुनकर, पापा पर यह असर हुआ,

बोले ‘बेटा कभी आज से ,हम रिश्वत न‌ खायेंगे’|

 

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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