क्या कभी आपने संघ के पथ-संचलन का राष्ट्रीय मीडिया कवरेज देखा है?

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सुरेश चिपलूनकर

संघ की परम्परा में “भगवा ध्वज” ही सर्वोच्च है, कोई व्यक्ति, कोई पद अथवा कोई अन्य संस्था महत्वपूर्ण नहीं है। प्रतिवर्ष के अनुसार इस वर्ष भी यह बात रेखांकित हुई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा उज्जैन में विजयादशमी उत्सव के पथसंचलन समारोह में भाजपा के पार्षद, निगम अध्यक्ष, वर्तमान एवं पूर्व विधायक, सांसद एवं राज्य मंत्री सभी के सभी सामान्य स्वयंसेवकों की तरह पूर्ण गणवेश में कदमताल करते नज़र आए। जिन गलियों से यह संचलन गुज़रा, निवासियों ने अपने घरों एवं बालकनियों से इस पर पुष्प-वर्षा की।

अन्त में सभा के रूप में परिवर्तित, स्वयंसेवकों के विशाल समूह को सम्बोधित किया संघ के युवा एवं ऊर्जावान प्रवक्ता राम माधव जी ने, इस समय सभी “सो कॉल्ड” वीआईपी भी सामान्य स्वयंसेवकों की तरह ज़मीन पर ही बैठे, उनके लिए मंच पर कोई विशेष जगह नहीं बनाई गई थी…। मुख्य संचलन हेतु विभिन्न क्षेत्रों से आने वाले स्वयंसेवकों के उप-संचलनों को जो समय दिया गया था, वे पूर्ण समयबद्धता के साथ ठीक उसी समय पर मुख्य संचलन में जा मिले। कांग्रेस (यानी एक परिवार) के “चरणचुम्बन” एवं “तेल-मालिश” संस्कृति को करीब से देखने वाले, संघ के आलोचकों के लिए, यह “संस्कृति” नई है, परन्तु एक आम स्वयंसेवक के लिए नई नहीं है।

“परिवारिक चमचागिरी” से ग्रस्त, यही दुरावस्था हमारे मुख्य मीडिया की भी है…। ज़रा दिमाग पर ज़ोर लगाकर बताएं कि क्या आपने कभी किसी मुख्य चैनल पर वर्षों से विशाल स्तर पर निकलने वाले संघ के पथसंचलन का अच्छा कवरेज तो दूर, कोई खबर भी सुनी हो? कभी नहीं…। हर साल की तरह प्रत्येक चैनल रावण के पुतला दहन की बासी खबरें दिखाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेता है। कल तो हद कर दी गई… भाण्ड-भड़ैती चैनलों ने दिल्ली के रामलीला मैदान में राहुल गाँधी ने चाट खाई, उसमें मिर्ची कितनी थी, उसमें चटनी कितनी थी… तथा लालू यादव ने कहाँ तंत्र क्रिया की, कौन सी क्रिया की, क्या इस तंत्र क्रिया से लालू को कांग्रेस के नजदीक जाने (यानी चमचागिरी) में कोई फ़ायदा होगा या नहीं?, जैसी मूर्खतापूर्ण और बकवास खबरें “विजयादशमी” के अवसर पर दिखाई गईं, परन्तु हजारों शहरों में निकलने वाले लाखों स्वयंसेवकों के पथ-संचलन का एक भी कवरेज नहीं…।

असल में मीडिया को यही काम दिया गया है कि किस प्रकार हिन्दू परम्पराओं, हिन्दू संस्कृति, हिन्दू मन्दिरों, हिन्दू संतों की छवि मलिन की जाए, क्योंकि चर्च के पैसे पर पलने वाले मीडिया को डर है कि अनुशासित, पूर्ण गणवेशधारी, शस्त्रधारी स्वयंसेवकों के पथ संचलन को प्रमुखता से दिखाया तो “हिन्दू गौरव” जागृत हो सकता है।

ज़ाहिर है कि मीडिया की समस्या भी कांग्रेस और वामपंथ से मिलती-जुलती ही है… अर्थात “भगवा ध्वज” देखते ही “सेकुलर दस्त” लगना।

4 COMMENTS

  1. श्री सुरेश चिपलूनकरजी को इतने सुन्दर आलेख के लिए साधुवाद संघ के स्वयंसेवकों के लिए विजयादशमी का पथ्संचालन एक आदत बन चूका है. ये ऐसे ही है जैसे नवरात्रों में उपवास रखना. हाँ बाकि समाज के लिए इस प्रकार के पथ सञ्चालन आदि के प्रसारण प्रेरनादायी हो सकते हैं. संघ के स्वयं सेवक रक्षाबंधन पर भी समाज में प्रचलित रिवाज से हटकर आपस में एक दुसरे को राखी बांध कर देश के रक्षा का संकल्प लेते हैं लेकिन मिडिया को कभी इस पर कुछ लिखने या प्रसारित करने में कोई दिलचस्पी कभी नहीं रही. पूरे देश में मकरसंक्रांति का पर्व भिन्न भिन्न नामों से मान्य जाता है संघ के स्वयंसेवक भी इसे पूरे उत्साह से मानते हैं लेकिन ये भी मिडिया को नहीं दिखाई देता है. सही लिखा है की मिडिया को केवल हिंदुत्व विरोधी समाचारों की ही सुपारी अपने देशी विदेशी आकाओं से मिली है.

  2. मिडिया ने कांग्रस से विज्ञापन की सुपारी जो ले रक्खी है. इन भांडों को तो अपने आका की चाट उ कारिता में ही अपना भविष्य नज़र आता है.
    पत्रकारिता को वाच डाग से विच्च हंटिंग व्यसन बना दिया है इन भांडों ने …सेकुलर शैतानों उनकी औकात बताने के लिए साधुवाद .

  3. चिपलूनकर जी पैनी चोट करते हैं आप. सब सामने है, बस आप सरीखे पैनी नज़र वालों को सच दिखाने के लिए सतत प्रयास करते रहने होंगे. भोली जनता इन दुष्ट और कुटिल मदारियों के चुंगल में बार-बार फंस जाती है. पर इस बार तो नहीं लगता की ऐसा हो पायेगा. ख़तरा है तो बस एक ही कि ”ई.वी.एम्” में फिर से कोई भारी घपला न हो जाए.

  4. ऐरावत हिंदुत्व का,
    निकल पड़ा है;
    भरे बाज़ार,
    तो क्या करो?
    जाओ!
    कांग्रेसी कुत्तोंको
    इकठ्ठा करके
    भूंकवा दो|

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