क्या होगा पाटलीपुत्र में ?

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-आलोक कुमार- misa bharti, lalu's daughter
इस बार पाटलीपुत्र संसदीय सीट पर राजनीतिक दृष्टिकोण से एक रोचक मुक़ाबला होने जा रहा है l इस मुक़ाबले में आमने-सामने हैं लालू यादव की पुत्री मीसा भारती और चंद दिनों पहले तक लालू जी के सबसे विश्वस्त सिपहसलार रहे रामकृपाल यादव (वर्तमान में भाजपा में)l जनता दल (यू) की तरफ से अपनी दावेदारी के साथ फिर से मैदान में जूटे हैं। वर्तमान सांसद डॉ. रंजन प्रसाद यादवl वैसे तो लोग त्रिकोणीय संघर्ष की बातें करते भी दिख रहे हैं लेकिन हकीकत में मुक़ाबला मीसा और रामकृपाल के बीच ही हैl
इस संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत छह विधानसभा क्षेत्र आते हैं : दानापुर (यह यादव बहुल्य क्षेत्र है और वर्तमान में यहां से भाजपा की श्रीमती आभा सिन्हा (यादव जाति की ही ) विधायिका हैं), मनेर ( यहां भी यादव मतदाताओं की संख्या निर्णायक है और वर्तमान में राजद के भाई वीरेंद्र यहां से विधायक हैं), पालीगंज (यहां से वर्तमान में भाजपा की उषा विद्यार्थी विधायिका हैं और यहां चुनावों में भूमिहार जाति के लोग अहम भूमिका निभाते हैं), फुलवारी शरीफ (सुरक्षित) (यहां से वर्तमान में जनता दल (यू) के श्याम रजक विधायक हैं और इस क्षेत्र में दलित एवं मुस्लिम मतदाताओं की बहुतायत है), मसौढ़ी (सुरक्षित) (यहां से वर्तमान में जनता दल (यू) के अरुण मांझी वर्तमान में विधायक हैं, इस क्षेत्र में नीतीश जी के स्वजातीय मतदाता चुनावों में अहम भूमिका अदा करते हैं), बिक्रम विधानसभा क्षेत्र में भी भूमिहारों की बहुलता है और यहां से वर्तमान में भाजपा के अनिल कुमार विधायक हैंl

पिछले लोकसभा चुनाव में इस क्षेत्र में मुक़ाबला राजद प्रमुख श्री लालू यादव और उनकी ही पार्टी से निष्कासित जनता दल (यू) के डॉ. रंजन प्रसाद यादव (लालू के शासनकाल में रंजन जी को “डी-फैक्टो सी.एम.” की संज्ञा से भी नवाजा जाता था) के बीच था, लेकिन उस समय बदलाव की बह रही बयार के सहारे रंजन जी ने २३५४१ वोटों से बाजी अपने नाम कर लीl
लेकिन इस बार चुनावों में परिस्थितियां भिन्न हैं l रामकृपाल अपनी स्वच्छ-छवि, संगठन व कार्यकर्ताओं पर अपनी अच्छी पकड़ एवं लगभग हरेक जाति में मौजूद अपने समर्थक मतदाताओं की बदौलत बढ़त लेते दिख रहे हैं l इस क्षेत्र के यादव मतदाताओं में जिस प्रकार से लालू के द्वारा रामकृपाल की अनदेखी की गई उसका भी रोष है l इस क्षेत्र के ही जानीपुर इलाके में रामकृपाल की सुसराल भी है और उस इलाके के मतदाता रामकृपाल के पक्ष में गोलबंद दिख रहे हैंl भूमिहार बहुल विधानसभा क्षेत्रों के मतदाता स्वाभाविक तौर पर भारतीय जनता पार्टी के कारण रामकृपाल के साथ हैं l मनेर इलाके के भूतपूर्व विधायक श्रीकान्त निराला भी रामकृपाल के पक्ष में हैं और जल्द ही भारतीय जनता पार्टी में जाने की तैयारी में हैं (ज्ञातव्य है कि पिछले विधानसभा चुनावों में भी श्री निराला ने वर्तमान विधायक भाई वीरेंद्र को कड़ी टक्कर दी थी) l दानापुर दियारा के यादव मतदाताओं का पूर्व के चुनावों में (जब–जब रामकृपाल प्रत्याशी रहे हैं) भी समर्थन रामकृपाल को मिलता रहा है l
अब बात राजद की हाईप्रोफाइल प्रत्याशी लालू जी की सुपुत्री मीसा भारती की l मीसा इस क्षेत्र के लिए बिलकुल नयी हैं और उनका एक ही “यूएसपी” है कि उनके साथ लालू परिवार का नाम जुड़ा है l लेकिन यही ““यूएसपी” उनकी संभावनाओं पर ‘नीगेटिव –प्रभाव’ भी डालता दिख रहा है , इस क्षेत्र के राजद के समर्पित नेताओं एवं कार्यकर्ताओं में लालू के परिवारवाद की प्रोत्साहन की नीति के खिलाफ सुगबुगाहट भी दिखाई दे रही है l पूरे बिहार में राजद की नैया लालू के ही भरोसे है और अपनी पार्टी के वो एकमात्र स्टार प्रचारक हैं और इसी कारणवश लालू अपना पूरा ध्यान अपनी सुपुत्री के क्षेत्र की ओर ना दे पाने के लिए मजबूर हैं l मीसा भारती की राजनीतिक अपरिपक्वता उनके चुनाव प्रचार के तौर- तरीके से ही झलक रही है l हाल ही में अपने ‘रोड-शो’ के दौरान मीसा ज्यादातर यादव एवं मुस्लिम बहुल गावों में ही गयीं, जिसका जबर्दस्त रोष अन्य मतदाता –समूहों में है l मीसा भारती के साथ यादव जाति से सिर्फ रामानन्द यादव के रूप थोड़ी –बहुत पकड़ रखने वाला नेता ही खड़ा नजर आता है l
क्षेत्र के मतदाताओं का मिजाज भांपने के बाद ये मैं कह सकने की स्थिति में हूं कि मुस्लिम मतों का विभाजन तीनों खेमों (रामकृपाल, मीसा व रंजन ) में होगाl यहां ये बताना काफी अहम है कि भाजपा में रहने के बावजूद रामकृपाल की व्यक्तिगत पैठ मुस्लिम समुदाय में काफी अच्छी है l सुरक्षित क्षेत्रों के मतों का विभाजन भी मीसा, रामकृपाल, रंजन एवं भाकपा (माले) के बीच होने की संभावना दिख रही हैl

अब बात इस रेस में अब तक सबसे पीछे दिख रहे इस क्षेत्र के वर्तमान सांसद रंजन यादव जी कीl आज के परिदृश्य में रंजन यादव का सबसे बड़ा सहारा नीतीश जी का स्वजातीय वोट बैंक ही दिख रहा है लेकिन यहां भी रंजन जी पूरी तरह से आश्वस्त नहीं दिख रहे हैं, इसका सबसे बड़ा कारण रंजन जी के द्वारा अपने कार्य-काल में कुर्मी-कोयरी बहुल क्षेत्रों की की गयी अनदेखी है l अपने सांसद बनने के बाद रंजन जी ने अपने आप को सिर्फ और सिर्फ दानापुर एवं मनेर तक ही सीमित कर लिया जिसका खामियाजा इस चुनाव में उन्हें भुगतना पड़ रहा है l मसौढी अनुमंडल के कुर्मी बहुल क्षेत्र लवाईच पंचायत के पूर्व-मुखिया श्री विद्यानन्द जी ने साक्षात्कार के क्रम में कहा कि “ रंजन के वोट देवे से त अच्छा रहतईअ कि मोदीये (नरेन्द्र मोदी) के नाम पर वोट देबल जायेअ l” रही बात रंजन जी को मिलने वाली यादवों के समर्थन की तो यादव जाति की प्राथमिकताओं में रामकृपाल और मीसा भारती के बाद ही रंजन जी का नंबर आता है l वैसे भी यादव – जाति में रंजन जी की अपनी कोई विशेष पहचान व पैठ नहीं है, पहले लालू से नज़दीकियों के कारण और बाद में लालू विरोधी होने के कारण ही रंजन जी जाने जाते रहे हैं l पिछले चुनाव में भाजपा के साथ रहने के कारण जो सवर्ण – मत रंजन जी को हासिल हुए थे उसकी भी इस बार कोई संभावना नहीं दिखती l
तो चुनावों के मद्देनजर सारे मायने रखने वाले समीकरणों के विश्लेषण एवं क्षेत्र के मतदाताओं से रू-ब-रू होने के पश्चात आज की तारीख में मेरे हिसाब से पाटलीपुत्र के चुनावी खेल में “एडवांटेज रामकृपाल“ है l

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