क्या सूफी फकीर वास्तव में धर्म निरपेक्ष थे ?

sufiभारतीय इतिहास में हमें पढ़ाया जाता है कि मुस्लिम सूफी फकीर बड़े दयालू

प्रजा से प्रेम करने वाले और एक हिन्दू मुस्लिम समन्वयवादी दृष्टिकोण के प्रणेता थे |

मध्यकालीन मुस्लिम इतिहासकार जिन्होंने भारत के इतिहास को चाटुकारिता की सीमाएं

लांघ कर झूठ का पुलिन्दा बनाने का पुनीत कार्य किया है ने भी, इन फकीरों जिन्हें संत

की संज्ञा देकर महिमामंण्डित किया जाता है का बड़ा गुणगान किया है किन्तु कहीं-कहीं

सत्य आवरण हटा कर छलक ही पड़ता है |

प्रारम्भिक काल में मुस्लिम आक्रमणों की बर्बरता और धर्मान्धता के कारण

हिन्दू-मुस्लिम विद्वेषता चरम पर थी | मुस्लिम आक्रान्ता लुटेरे और बलात धर्मपरिवर्तन

में विश्वास रखते थे | उन्हें यह भी मालूम था कि हिन्दू धार्मिक दृष्टिकोण से, बहुत सं-

कुचित विचारधारा के लोग हैं एक बार जो धर्म से निकला सदा के लिये त्याज्य | इस

आत्मप्रवंचना का विधर्मियों ने सदैव फायदा उठाया और हिन्दुओं ने बहुत नुकसान और

इसी भावना का पूरा-पूरा लाभ लिया सूफी फकीरों ने हर तरह के दांव पेंच चलकर | वैसे

भी वे भारत में आए तो इस्लाम परिवर्धन के लिए ही कोई प्याउ लगाने तो आए नहीं

थे सबसे पहले ईरान में प्रकाश में आया |

कारण भौतिक संस्कृति का चरम था | इस्लामीकरण के बाद जब उनपर प्रतिबन्ध लगे तो

उनका रुझान ब्रह्मवाद और वैराग्य की ओर बढ़ा | बन्धनों से मुक्ति सरल साधन उन्हें यही

लगा | फलतः खुरासान के शहरों मर्व, हरात, बावर्द, समरकंद, बस्ताम, नखुश्ब, नेशापोर नर्स,

तरमज़, हिना और फरगाना में इसके केन्द्र स्थापित हो गये | इस मत के विशेष केन्द्र –

खुरासान और मावरा-उन्नहर थे |

यह अनुमान किया जाता है कि सूफीमत का प्रधानकेन्द्र

बुखारा शहर था जो बौद्ध धर्मानुयायियों का महत्वपूर्ण केन्द्र था | दूसरे सूफी संतों का संबध

शीराज,इस्फहान,वरी,कर्मानिशान,कर्मान,शोस्तर,निहावंद और अलबरूबीजा केन्द्रों से था |

ग्यारहवीं शताब्दी में सूफी मीर मुहम्मद और अबुल कासिम कलंदर सकी ने ‘योग वशिष्ट’

का फारसी में अनुवाद किया | जिसने सूफीमत में ज्ञान को द्विगुंणित कर दिय़ा | य़ूं तो

भारत में इस्लाम व्यापारियों के साथ पूर्व में ही आ चुका था किन्तु प्रसारित तलवार के बल

पर महमूद गजनवी और मुहम्मद गौरी के समय में ही हुआ |

मुहम्मद गौरी के सन्दर्भ में यह बताना आवश्यक है कि भारत पर आक्रमण

के लिये आमंत्रित किये जाने के संदर्भ में यह विश्वास दिलाया जाता है कि गौरी को भारत

पर आक्रमण के लिये कन्नोज के राजा जयचन्द्र ने संयोगिता स्वंयबर की घटना से क्षुब्ध

होकर बुलाया था | किन्तु बताने वाले यह भूल जाते हैं कि पृथ्वीराज चौहान एंव जयचन्द्र

सगे मौसेरे भाई थे | क्या कोई भारतीय अपने सगे मौसेरे भाई की लड़्की से विवाह करेगा |

अब जो इतिहासानुसंधान हुए हैं उनसे यह तथ्य उभर कर सामने आए हैं कि गौरी को एक

सूफी संत ने ही हमला करने का निमंत्रण दिया था |

अरब,फिलिस्तीन और मिस्र से भारत के व्यापारिक सम्बन्ध थे |यूनानी लोग

भारत का चावल खाते थे | इस व्यापार में अरब व्यापारियों का बहुत बड़ा अंश था |अरब

सौदागरों का पहला जहाजी बेड़ा भारतीय तट पर सन ६३६ में लगा | इन लोगो ने स्थानीय

मोपला लोगों को इस्लाम में दीक्षित किया | सन ७१२ में मुहम्मद बिन कासिम ने भारत

पर हमला किया | नवीं शताब्दी समाप्त होने से पूर्व ही मालाबार का राजा चेरामन पेरुमल

इस्लाम ग्रहण कर चुका था | उसने सपने में चन्द्रमा को फटते देखा था दूसरे दिन जब

उसने दरबार में इस सपने को सुनाया तो उसके दरबार में मौजूद मुस्लिम धर्म गुरू उसे

यह विश्वास दिलाने में सफल हो गये कि यह इस्लाम का ही चमत्कार था | पेरूमल इस

से बहुत प्रभावित हुआ और उसने इस्लाम ग्रहण कर उन्हे इस्लाम फैलाने की अनुमति दे

दी | अरबों को अपना धर्म फैलाने की यह भारत में पहली अनुमति थी | जमोरिन का

राज्याभिषेक स्वतंत्रता के पश्चात राज्यों के विलय तक मुस्लिम गणवेश में किया जाता था

और त्रावणकोर का राजा सिंहासन पर बैठते समय यह शपथ लेता था कि मैं इस तलवार

को तब तक रखूंगा जब तक मेरा चाचा मक्का से लौट नहीं आता | उत्तर के राजा भी

इस नये धर्म को उदारता से लेते रहे | काम्बे के हिन्दुओं ने एक बार मुस्लिम सौदागरों

पर आक्रमण कर उनकी बस्ती उजाड़ दी | राजा सिद्धराज (१०९४-११४३) को शिकायत की

गई तो उसने जांच करा कर न केवल दोषियों को दण्ड दिया अपितु शासकीय खर्चे पर –

उनकी मस्जिदें भी बनवा कर दी | हिन्दुओं के मन में मुस्लिमों से घ्रणा तब जागी जब

महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण के समय हिन्दुओं से बर्बरतापूर्ण व्यवहार कर –

मन्दिरों का सर्वनाश किया | हिन्दू-मुस्लिम संबन्धों के परिप्रेक्ष्य में इन अत्याचारी मह्-

मूद और गौरी के साथ आने वाला इस्लाम वह नहीं था जो अरब में पैदा हुआ था यह तो

अत्याचारी तुर्कों (जो हूणों से इस्लामी मत में दीक्षित हुए थे) का इस्लाम था |

हजरत मुहम्मद ने जो उपदेश दिया उसमे खुदा मालिक और बन्दा दास था,

मगर नए विचारकों ने नए विचारों का आरोपण कर उसमें खुदा को पूर्ण सौन्दर्य का प्रतीक

और बन्दे को उस अप्रतिम सौन्दर्य का दास बना दिया | इन विचारों में सूफी मतप्रणेताओं

ने परिमार्जन कर बन्दे के दास्यभाव को समाप्त कर उसमें प्रेम और मदन(रति)भाव का –

समावेश करा दिया | सूफीमत के उदगम बिन्दु चाहे जो भी रहे हों किन्तु सम्प्रदाय के रूप

में इनका संगठन इस्लामी देशों में ही हुआ | सूफी मत में ईसाईमत,हिन्दुत्व,बौद्धमत ,

इस्लाम और ईरानी जर्थुस्त्रवाद के अंशों का सम्मिलन भी था | बहुतकुछ इसमे योग का

आंशिक प्रभाव तो था ही | इस मत ने इस्लाम से इतर पैर फैलाने प्रारम्भ किये उससे

नबी और कुरान की अवज्ञा हुई,इस्लाम ने संगीत को कभी अच्छा नहीं माना सूफी फकीरों

ने उसे आधार ही बना दिया | लगभग सारे सूफी कवि ही होते थे जबकि कुरान में कवि

को अच्छा स्थान नहीं दिया गया है | फलस्वरूप मुल्लाओं और काजियों की नजर में सूफी

काफिर हो गए | और उन्हे प्राणदण्ड देने का रिवाज सा हो गया | इस अवधारणा के –

कारण शहीद होने वाले सूफियों में मन्सूर्- अल- हल्लाज का नाम और वाक्या बहुप्रसिद्ध

रहा है | मौज में आकर उन्होंने ‘अनलहक'(अहं ब्रह्मास्मि) का नारा दे दिया | फलस्वरूप

सुन्नी सल्तनत ने उनकी गरदन ही उड़ा दी | इसी प्रकार सरमद नामक एक सूफी फकीर

को उसके ईश्वर में एकाकार कह देने के कारण मरवा दिया था |भारत में सूफी मत का –

व्यापक प्रचार एंव प्रसार हुआ | भारत में मुख्यतः चार सूफी सम्प्रदाय प्रसिद्ध हुए |पहला

पूर्वी बंगाल का सुहरावर्दी सम्प्रदाय जिसका प्रवर्तक जिया उद्दीन था,दूसरा अजमेर का –

चिश्तिया सम्प्रदाय जिसके प्रवर्तक हजरत अदब अब्दुल्ला चिश्ती थे | इस सम्प्रदाय में

निजामुद्दीन औलिया, अमीर खुसरू और मलिक मुहम्मद जायसी जैसे विश्व प्रसिद्ध संत

हुए | तीसरा शेख अब्दुल कादिर जीलानी का कादिरिया और चौथा नक्शबन्दी जिसके –

प्रवर्तक ख्वाजा बहाउद्दीन नक्शबन्द थे | बिहार में सूफी मत का प्रचार करने वाले फकीर

मखदूम शाह इसी सम्प्रदाय के थे |

13 COMMENTS

  1. सोचनीय बात ये है की अगर आप इस्लाम या उस से जुड़े गलत लोगों का पर्दाफ़ाश करते हैं तो आपके विरोध में हिन्दू ही होते हैं कोई मुस्लिम नहीं,,ऐसा ही यहाँ दिख रहा है…सरकारें तो वोटों के लालच में इनकी हर गलत सही मांग मान रही हैं,,पर हमारे बंधू भी पीछे नहीं…”जय श्री राम”

      • सरजी…

        नाम पर न जाओ, यहाँ काम देखो सरजी…

        हिन्दू नाम के साथ कोई मुस्लिम घुसपैठिया भी हो सकता है…क्योंकि व्यक्ति के आचरण और वाणी येही दर्शाते हैं ..

        जय श्री राम

  2. Dear Sr. Raaj,
    you have very correctly said that the nehru’s secularism and that of communists. Our history which we have ready is false because the earlier courtiers are subservient to the Kings and wrote what their kings desired. It was prevalent till the last Mughal rulers in India. After that the indian Historians took over and which were mostly Bengalis and had soft corner for Nehru and communism. They twisted the actual hisitory to the prevailing situatins and desire of the Govt. like Indira Gandhi had a capsule hidden in Red Fort court yard which was dug up by Janta Party and this capsule contained all farlse history with little truth in it. You are right sir. Keep it up. Regards

  3. डाक्टर सक्सेना, आपने लिखा है कि
    “मुहम्मद गौरी के सन्दर्भ में यह बताना आवश्यक है कि भारत पर आक्रमण

    के लिये आमंत्रित किये जाने के संदर्भ में यह विश्वास दिलाया जाता है कि गौरी को भारत

    पर आक्रमण के लिये कन्नोज के राजा जयचन्द्र ने संयोगिता स्वंयबर की घटना से क्षुब्ध

    होकर बुलाया था | किन्तु बताने वाले यह भूल जाते हैं कि पृथ्वीराज चौहान एंव जयचन्द्र

    सगे मौसेरे भाई थे | क्या कोई भारतीय अपने सगे मौसेरे भाई की लड़्की से विवाह करेगा |

    अब जो इतिहासानुसंधान हुए हैं उनसे यह तथ्य उभर कर सामने आए हैं कि गौरी को एक

    सूफी संत ने ही हमला करने का निमंत्रण दिया था |”
    यह आपका तर्क है या कोई ऐतिहासिक प्रमाण भी है आपके पास?ऐसे भी जयचंद को देश द्रोही कहने वाले इस तथ्य को भूल जाते हैं कि पृथ्वीराज ने अपने मौसेरे भाई की बेटी को स्वयंबर से उठा लिया था और उसीका बदला लेने के लिए उसे एक शक्ति शाली राजा के विरुद्ध मुहम्मद गोरी को बुलाना पड़ा था. अगर यह सत्य भी होतो उस जमाने में राष्ट्र नामक कोइ चीज़ तो थी नहीं. एक दूसरे के राज्य पर लोग कब्जा कर लिया करते थे.जय्चन्द का दोष इतना ही था कि उसने एक दूसरे धर्म वाले का सहारा लिया था,पर अब आपके तर्क से जयचंद ने गोरी को बुलाया ही नहीं था, बल्कि तथ्य कुछ और था.

  4. The Indian history in general and history of Sufis and Sufism is nothing but full of inaccuracies and lies , lies and more lies because of Nehru and Nehruvian secularism imposed on us .
    Truly speaking the Sufis were to help and support the invading Muslims army ,kings and Sultans to shed crocodile tears and catalyst for conversion of Hindus to Islam.
    They are still doing the same but Hindus and Hindu leaders are helpless because of secularism and pseudo secularism of present India.

  5. Extremely honest,important & critical article on Sufism & Islam in Bharat.
    This is the greatest need of the hour to ‘call a spade a spade’ & not cater to any community for devious reasons.
    Dhanyavaad Shri Raj Ji.
    Please continue to use the power of your knowledge & pen & spread the word!
    A great article that needs to be circulated for wider publicity of the real history of Bharat.Our history needs to be re-written – we must not follow historians of the likes of Romilla Thapar who propagate only lies & falsify truth for personal reasons to gain name,fame & other types of perks in the international arena.

  6. बिलकुल ठीक कहा अपने रावत जी .कुछ लोग ऐसे होते है जिनका अध्यन तो सामान्य से भी नीचे होता है , पर बघारने से वे बाज नहीं आते
    बिपिन कुमार सिन्हा

      • क्या बात है राज साहब आपसे एक छोटी सी बात जाननी चाही थी कि इस्लाम का धर्मग्रंथ कौन सा है और आपने कोई रिप्लाई नहीं किया। कम से कम इतना ही बता दीजिए कि आपने अपने लेख में लिखा है कि सूफी मत ने इस्लाम से इतर पैर फैलाने प्रारम्भ किये उससे नबी और कुरान की अवज्ञा हुई, इस्लाम ने संगीत को कभी अच्छा नहीं माना सूफी फकीरों ने उसे आधार ही बना दिया | लगभग सारे सूफी कवि ही होते थे जबकि कुरान में कवि को अच्छा स्थान नहीं दिया गया है| क्या आप बताने का कष्ट करेंगे कि कुरान के किसी सूरे की किस आयत में संगीत और कवि/कविता (शायर/शायरी) को गलत (हराम) माना गया है… जवाब के इंतजार में।

    • ???… किसका अध्ययन और संस्कार…. सामान्य से नीचे है.. नज़र आ रहा है

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