विविधा

क्या फिर से पढ़ाए जाएंगे नैतिकता के पाठ?

लोकेन्‍द्र सिंह राजपूत

भ्रष्टाचार, अत्याचार, यौनाचार, अवमानना जैसी बुराइयों की लम्बी सूची है, जो आज देश में चहुंओर अपने बलवति रूप में दिख रही हैं। इन बुराइयों में लिप्त लोगों को सब दण्ड देना चाह रहे हैं। घोटाले-भ्रष्टाचार रोकने के लिए सिस्टम (जैसे लोकपाल) बनाने की मांग कर रहे हैं। अपराध को कम करने के लिए कानून के हाथ और लम्बे करने पर विमर्श चल रहा है। यह चाहत, मांग और विमर्श अपनी जगह सही है। दुष्टों को दण्ड मिलना ही चाहिए, भ्रष्टाचार रोकने सिस्टम जरूरी है और बेलगाम भाग रहे अपराध पर लगाम कसने के लिए कानून के हाथ मजबूत करना ही चाहिए। लेकिन, इसके बाद भी ये बुराइयां कम होंगी क्या? इस बात को लेकर सबको शंका है।

ऐसे में विचार आता है कि भारत जैसे सांस्कृतिक राष्ट्र में ये टुच्ची बुराइयां इतनी विकराल कैसे होती जा रही हैं? यही नहीं घोटाले और भ्रष्टाचार व्यक्ति के बड़े होने की पहचान बन गए हैं। हाल ही में यूपीए सरकार के मंत्री सलमान खुर्शीद के ट्रस्ट पर विकलांगों का पैसा खाने का आरोप लगा। मामला पूरे ७१ लाख के घोटाले का था। लेकिन, खुर्शीद के बचाव में एक कांग्रेसी नेता कहते हैं कि ७१ लाख का घोटाला कोई घोटाला है। खुर्शीद मंत्री हैं वे महज ७१ लाख का घोटाला करेंगे ये माना ही नहीं जा सकता। हां, अगर ये ७१ लाख की जगह ७१ करोड़ होते तो सोचना भी पड़ता कि खुर्शीद ने गबन किया है। कांग्रेस नेता के बयान से साफ झलकता है कि बड़ा घोटाला यानी बड़ा मंत्री। खैर जाने दीजिए। कमी कहां हो रही है कि समाज की यह स्थिति बनी है। दरअसल, इसका मूल कारण नैतिक मूल्यों का पतन होना है। जब मनुष्य की आत्मा यह पुकारना ही भूल जाए कि तुम जो कर रहे हो वह गलत है तो मनुष्य किसकी सुनेगा। नैतिक मूल्यों की कमी तो आएगी ही शिक्षा व्यवस्था ही ऐसी कर रखी है कि मनुष्य को मनुष्य नहीं पैसा कमाने वाला रोबोट बनाया जा रहा है। रोबोट तो रोबोट होता है। उसे क्या भले-बुरे का ज्ञान। स्कूल के समय से उसके मन में एक बात बिठाई जाती है कि बड़ा होकर अमीर बनना है, पैसा कमाना है, अरबों-खरबों में खेलना है। बड़ा होकर वह इसी काम में जुट जाता है। जो जिस स्तर पर है उस स्तर का घोटाला कर रहा है।

आज हालात ये हैं कि व्यक्ति महिलाओं के बदसलूकी करते वक्त भूल जाता है कि उसके घर में भी मां-बहन है। अपने बूढ़े मां-पिता को सताते समय उसे यह ज्ञान नहीं रहता कि आने वाले समय में वह भी बूढ़ा होगा। दूसरों को ठगते समय वह यह नहीं देखता कि बेईमानी की कमाई नरक की ओर ले जाती है। किसी की मेहनत की कमाई चोरी करते वक्त वह सोचता है कि उसे कौन पकड़ेगा, वह भूल जाता है कि आत्मा है, परमात्मा है जो सबको देख रहा है और पकड़ रहा है। यह सब उसे भान नहीं है क्योंकि उसका नैतिक शिक्षण नहीं हुआ। वह नैतिक रूप से पतित है। बेचारा सीखता कहां से? हमारी शिक्षा व्यवस्था में नैतिक मूल्यों को विकसित करने की व्यवस्था ही खत्म कर दी गई। परिवार भी एकल हो गए। दादा-दादी से महापुरुषों का चरित्र सुनकर नहीं सोते आजकल का नौनिहाल बल्कि उनका चारित्रिक विकास तो टीवी, कम्प्यूटर, मोबाइल और इंटरनेट कर रहा है। मैकाले का उदाहरण अकसर सभी देते हैं। उसने ब्रिटेन पत्र लिखकर बताया कि भारत को गुलाम बनाना मुश्किल है क्योंकि यहां की शिक्षा व्यवस्था लोगों के नैतिक पक्ष को मजबूत बनाती है। वे देश और समाज के लिए जीने-मरने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। यदि भारत को गुलाम बनाना है तो सबसे पहले यहां की शिक्षा व्यवस्था ध्वस्त करनी होगी। बाद में उसने यही किया। भारत में गुरुकुल और ग्राम-नगर की पाठशालाएं खत्म कर मिशनरीज के स्कूल खुलवा दिया। अभी तक हम मैकाले के हिसाब से पढ़ रहे हैं, अपना नैतिक पतन करने के लिए। आजाद होने के बाद सबसे पहला सुधार शिक्षा व्यवस्था में होना चाहिए था लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। अब जाकर भाजपा या अन्य राष्ट्रवादी पार्टियां/संगठन शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन की बात करती हैं तो भगवाकरण कहकर उसका विरोध किया जाता है।

भारत में गैरसरकारी स्तर पर अतुलनीय योगदान देने वाले महान शिक्षाविद् गिजुभाई बधेका भी इस बात को कई बार कहते थे कि भारत की शिक्षा व्यवस्था का कबाड़ा कर दिया गया है। शिक्षा से नैतिक मूल्य हटाने से बच्चे स्कूल-कॉलेजों से स्वार्थी, स्पर्धालु, आलसी, आराम-तलबी और धर्महीन मनुष्य बनकर निकल रहे हैं। उनका शिक्षा की दशा-दिशा तय करने वालों से आग्रह था कि शिक्षा पद्धति में धार्मिक-नैतिक जीवन को, गुरु-परंपरा और आदर्श शिक्षक को स्थान दें। लेकिन, इस दिशा में अभी तक कुछ हुआ नहीं। उल्टा जितना था उसे भी निकाल बाहर किया। हां, रामायण के कुपाठ पढ़ाने के जरूर इस बीच प्रयास हुए, भरपूर हुए। खैर, जब बात हाथ से निकलती दिखने लगी है। समाज एकदम विकृत होता दिखने लगा तब जाकर सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की आंख खुली है। अब ये कितनी खुलीं हैं और किस ओर खुलीं हैं, ये देखने की बात है। खबर है कि एनसीईआरटी प्राथमिक स्तर पर नैतिक और मूल्य आधारित शिक्षा शुरू करेगा। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने बड़े होते बच्चों को नैतिक शिक्षा के सकारात्मक पक्ष के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए एनसीईआरटी को इसकी संभावना तलाशने को कहा है। मंत्रालय ने राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) के एक प्रतिनिधि मंडल को अगले महीने इस मुद्दे पर विचार-विमर्श के लिए आमंत्रित किया है। नैतिक शिक्षा का विषय प्राथमिक शिक्षा का एक हिस्सा होगा। इसके अलावा मूल्य आधारित विषय जैसे बड़ों का आदर और उनके प्रति संवेदनशीलता इस विषय और उनके प्रति संवेदनशीलता इस विषय का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होगा। अब यहां यह देखना है कि एनसीईआरटी और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय नैतिक मूल्य भारत की संस्कृति की जड़ों में तलाश करेंगे या फिर बाहर से आयातित करेंगे। भारत की आने वाली युवा पीढ़ी को संभालकर रखना है और उन्हें जिम्मेदार नागरिक बनाना है तो उसे शिक्षित करने के लिए भारतीय संस्कृति की जड़ों में ही लौटना होगा। पश्चिम में तो वैसे ही नैतिक मूल्यों के नाम पर कुछ है नहीं। वहां के नैतिक मूल्य ही तो मैकाले हमारी शिक्षा में ठूंस गया जिसके दुष्परिणाम हम आज भुगत रहे हैं।