रामकथा के द्वारा क्या कांग्रेस अपने 76 वर्षों के हिंदू विरोधी महापाप से छुटकारा पा जाएगी ?

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                    प्रवीण दुबे

रामकथा का आयोजन करके क्या कांग्रेस अपने 76 वर्षों के हिंदू विरोधी महापाप से छुटकारा पा जाएगी ? क्या मध्यप्रदेश की जनता यह भूल जायेगी कि यह वही कांग्रेस है जिसने भगवान राम द्वारा लंका विजय के लिए निर्मित कराए गए रामसेतु को तोड़ने का निर्णय  लिया था,यह वही कांग्रेस है जिसने कभी सुप्रीम कोर्ट में भगवान राम को काल्पनिक बताया था। यह वही कांग्रेस है जिसने 1966 में गो हत्या के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले साधू संतों पर गोली चलवाई जिसमें कई साधु संत हताहत हुए थे, यह वही कांग्रेस है जिसने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का विरोध किया,यह वही कांग्रेस है जिसने साधू संतों में फूट डालने के लिए  नकली साधु संतों से गठजोड़ किया और राम जन्मभूमि आंदोलन सहित हिंदू हितों के लिए संघर्षरत तमाम साधु-संतों पर गलत आरोप लगवाए यह वही कांग्रेस है जिसने मुस्लिम तुष्टीकरण में अंधे होकर सच्चर कमेटी की रिपोर्ट लागू कराई यह वही कांग्रेस है जिसने देश के सभी संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का निरूपित करके हिंदुओं को नीचा दिखाने का काम किया यह वही कांग्रेस है जिसने अयोध्या के राम जन्मभूमि आंदोलन हेतु कार सेवा करने वाले तमाम राम भक्तों पर  गोली चला कर उनके प्राण लेने वाले मुलायम सिंह की पार्टी से गठबंधन किया। यह वही कांग्रेस है जिसने अयोध्या से कार सेवा करके साबरमती एक्सप्रेस से वापस लौट रहे 56 से अधिक रामभक्तों को एक वर्ग विशेष द्वारा जिंदा जला दिए जाने की घटना पर मौन धारण कर लिया था। कश्मीर में मुस्लिम आतंकवाद के दौरान हजारों मंदिरों के तोड़े जाने पर इन्होंने सदैव उन्ही आतंकियों के समर्थन में धारा 370 को आरोपित किए रखा। तमाम सनातन और हिंदू विरोधी कृत्यों को अंजाम देती रही कांग्रेस के पाप इतने लंबे हैं कि यहां अगर उन सबका उल्लेख किया जाएगा तो कई कागज काले हो जाएंगे।

हां कई बार यह देखकर आश्चर्य जरूर होता है कि जिस कांग्रेस ने अपने जीवनकाल में तमाम सनातन और हिंदू विरोधी कृत्यों को अंजाम दिया आज उसी कांग्रेस के आग्रह पर अनेक धर्माचार्य क्यों और कैसे धार्मिक अनुष्ठानों को संपन्न कराने के लिए अपनी स्वीकृति कैसे प्रदान कर देते हैं ? यह लिखते समय 2018 का कांग्रेस से जुड़ा एक घटनाक्रम याद आ जाता है। इस घटनाक्रम में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया। श्रींगेरी  पीठ के शंकराचार्य पूज्य भारती तीर्थ महाराज का आशीर्वाद लेने पहुंचे थे।दूरदर्शन के पत्रकार अशोक श्रीवास्तव ने जगदीशचंद्र बी की पत्रिका के हवाले से बताया की शंकराचार्य जी ने राहुल गाँधी और सिद्धारमैया को आशीर्वाद देने से मना कर दिया था। उन्होंने कहा ‘’आप लोग यहां पर आए इस बात से मैं खुश हूं परन्तु आप लोग जो काम (हिन्दू विरोधी) कर रहे हैं उसके बाद मैं आपको आशीर्वाद नहीं दे सकता। इसके बाद राहुल गांधी और उनके मुख्यमंत्री को निराश होकर वहां से वापस लौटना पड़ा था। कालांतर में रामजन्मभूमि मुक्ति आंदोलन और गौ हत्या विरोधी आंदोलन रामसेतु बचाओ अभियान आदि के समय भी ऐसे कई प्रसंग आए हैं जब अनेक साधु संतों धर्माचार्यों ने कांग्रेस के तमाम हिंदू विरोधी कृत्यों का खुलकर विरोध किया और सारे आमंत्रण प्रलोभन अस्वीकार कर दिए।

जहां तक कमलनाथ द्वारा छिंदवाड़ा में रामकथा कराए जाने और हिंदू वोटरों को लुभाने की बात है तो पिछले चुनाव के दौरान मुस्लिम समाज के बीच बैठकर उनके द्वारा कही बातों को प्रदेश के हिंदू मतदाता अभी भूले नहीं हैं। इतना ही नहीं 1984 के सिक्ख विरोधी दंगों के दौरान गुरुद्वारे के भीतर भीड़ द्वारा दो सिक्खों को जिंदा जलाए जाने की घटना में उनकी भूमिका अभी तक संदिग्ध रही है। यह सारी बातों का ही परिणाम है कि कांग्रेस के दामन पर हिंदू विरोधी होने के दाग बेहद गहरे हैं और वर्तमान में संगठित दिखाई दे रहा हिंदू वोटर कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी समस्या बन गया है।कांग्रेस क्या वास्तव में अपनी बिगड़ती हिंदू और  सनातन विरोधी छवि से परेशान है? छवि वाली बात कांग्रेस के आत्ममंथन से निकली है. पर क्या वह स्वस्थ आत्ममंथन करने की स्थिति में है? आंतरिक रूप से कमज़ोर संगठन का आत्ममंथन उसके संकट को बढ़ा भी सकता है.

अस्वस्थ पार्टी स्वस्थ आत्ममंथन नहीं कर सकती. कांग्रेस लम्बे अरसे से इसकी आदी नहीं है. इसे पार्टी की प्रचार मशीनरी की विफलता भी मान सकते हैं. और यह भी कि वह राजनीति की ‘सोशल इंजीनियरिंग’ में फेल हो रही है।

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