वकालत की शुरुआत ओर वकील की पैदाइश कब हुई ? 

                        आत्माराम यादव पीव

        जगत के सभी धर्म शास्त्र, पुराण ओर वेद उपनिषद आदि में कही भी लेशमात्र अधिवक्ता,वकील, एडवोकट, बैरिस्टरनाम नाम के किसी भी प्राणी का उल्लेख नहीं है। देववाणी संस्कृत, देवनागरी लिपि हिन्दी व उनकी वर्णमाला के स्वरों-व्यंजनों ओर व्याकरण में भी इस विचित्र प्राणी का उल्लेख नहीं है। अपने पूर्व जन्म के कुकर्मों से ओर आप सभी के दुर्भाग्य से मैं पत्रकार लेखक बन बैठा हूँ, इसलिए पत्रकार लेखक कि परंपरा का निर्वाह करते हुये में तांकाझांकी कर गड़े हुए मुर्दे ही नहीं उखड़ता हूँ बल्कि जिस सत्य को रामनाम सत्य कहकर आप अग्नि के हवाले कर आए हो उसकी राख़ का सूक्ष्म निरीक्षण तब करता हूँ जब कपालक्रिया के बाद आप इतमीनान से घर जा चुके होते हो। आप मुझे निकृष्ट योनि का मान सकते है, मानिए पर मैं आप सभी कि जीवन के सूक्ष्मतम संदर्भ को पकड़ने हेतु अपने सूत्रों का जाल बिछाना तब तक बंद नही करूंगा जब तक में उसके परिणाम तक न पहुच जाऊ, अगर मेरे सामने समाज के काले कोटधारी अधिवक्ता के भारत जैसे देश मे प्रथमबार अस्तित्व में आने का पता लगाना है कि यहा वकील कब पैदा हुए तो मैं यह पता करूंगा जरूर भले ही देशभर के सारे फुयुज से लेकर 444 वोल्टेज रखने वाले ये अधिवक्ता-वकील मिलकर मेरे दिमाग की बत्ती गुल करने पर आमादा हो जाये मैं सब सहने को तैयार हूँ।

            सतयुग, त्रेता  ओर द्वापर युग कि आयु लाखों साल है यानि इन तीनों युगो में लाखों साल तक कई चक्रवर्ती सम्राट हुए जिनका एकछत्र राज्य पूरी पृथ्वी पर रहा है किन्तु उनके राजदरवारों में न्यायालयों में कभी कोई अधिवक्ता, वकील, या एडवोकट के पैरवी करने का एक भी उदाहरण नही है। रामराज में एक भी व्यक्ति न तो अन्याय का शिकार हुआ ओर न ही प्रताड़ित हुआ। परिणामस्वरूप राम कि अदालत में अयोध्या राज्य के एक भी व्यक्ति का मामला दर्ज नही हुआ। रघुकुल के जितने राजा हुए राम तक उनके आगे पीछे सभी के राज दरबार या न्यायालय में न तो कमवक्ता न ही अधिकवक्ता कि जरूरत पडी जिससे स्पष्ट है कि इन युगों में अधिवक्ता नही थे। हा वाल्मीक जी ने रामराज में उनकी अदालत में दो मामले आने का जिक्र किया है किन्तु वह मामला प्रजा का नहीं बल्कि प्रजा से दुखी एक कुत्ते का रहा है वही एक गीध ओर कबूतर का रहा है, जिनकी भाषा किसी अधिवक्ता को पता नहीं थी जिसमें राम ने उनकी भाषा को समझा ओर सुनकर निर्णय दिया जो आज कि न्यायपालिका के लिए संभव नही। इन युगों में सम्राटों , चक्रवर्ती सम्राटों ओर छुटपुट राजाओं के राजे रजवाडों के दरबार में वादी प्रतिवादी के वादानुवाद के साक्षों में आज की तरह तर्क कुतर्क कि जलेबी ओर चांसनी का रस बनाने बिगाड़ने वाले अधिवक्ताओं का कोई सरोकार नही था।

       देश में अंग्रेजों के आने के पहले तक भारत देश की आत्मा के भीतर शिशु रूप में यह विचित्र बाहुवली प्राणी जिसे बाद में अधिवक्ता वकील एडवोकट आदि संबोधित किया गया है कुलबुला रहा था। अंग्रेज़ आए तो पहले अँग्रेजी लाये, अँग्रेजी में यहा के राजाओं के सामने प्रार्थना लाये, राजाओं से प्रार्थना कर व्यापार की अनुमति ली ओर राजाओ को आपस में लड़ाकर खुद सरकार बन गए। देश हमारा, धरती हमारी पर राज्यों की कमजोरी से हम अंग्रेजों के गुलाम हो गए। गुलामों पर अँग्रेजी कानून थोप दिया गया। कानून की पैरवी एडवोकट कर सकता है, पीड़ितों का पक्ष रख सकता है, गुलाम देश के अनेक लोग बैरिस्टर यानि एडवोकट की पढ़ाई करने इंगलेंड व अन्य देश  गए , डिग्री ली ओर देश में अंगेजी में बैरिस्टर, उर्दू में वकील ओर हिन्दी में अधिवक्ता का जन्म हुआ। गुलाम देश में मी लार्ड  का कक्ष तैयार हो गया, कोर्टरूम तैयार हो गया मी लार्ड ऊंचे आसान पर बैरिस्टर उसके नीचे खड़े, दोनों ओर कटघरे में एक ओर फरियादी, गवाह, एक ओर आरोपी तथा मी लार्ड की टीम कक्ष में सुसज्जित हो गई। अँग्रेजी शासन में वकालत एक पेशे के रूप में स्वच्छंद व्यवसाय के रूप मे विकसित हुआ ओर अपनी बुद्धि के दम पर जीत हासिल कर उन्नति करने वालों की एक नई पौध तैयार होती गई जो अब भी इसी परंपरा पर चल रही है। ये लोग असल में कोई भी मुद्दा हो, किसी भी प्रकार का जटिल मामला हो, उसमे उलझाने ओर सुलझाने में चाणक्य के समान माने गए है।

       मनुष्य चार पैरों वाला पशु है जिसने पीछे के दो पैरो से चलना सीख लिया है ओर आगे के दो पैरों को वह हाथ कहने लगा है यह ज्ञान मुझे एक वकील से मिला जिससे मैं बिलकुल भी क्न्फ़ुज नहीं हुआ ओर अपने मस्तिष्क को आदेश दिया कि इस तार्किक विषमताओ में समता की भी विविधताओं से ओत प्रोत सिर्फ एक वकील ही हो सकता है किसी भी मनोदशा मे हो उसकी बुद्धि से नहीं टकराया जा सकता है। देश की प्रथम महिला वकील कॉर्नेलिया सोराबजी का जिक्र करना चाहूँगा जिसने 1899 में मुंबई ओर इलाहाबाद से एलएलबी प्ररीक्षा उत्तीर्ण की किन्तु फारसी समुदाय से आने वाली इस प्रथम महिला वकील के साथ भेदभाव कर बैरिस्टर की मान्यता नही दी गई। उल्टे गुजरात के पंचमहल अदालत में पैरवी करने पहुंची तब झूले पर बैठे वहाँ के सनकी राजा ने घोषणा की कि उसने केस जीत लिया है, इस आधार पर कि उसका कुत्ता उस महिला वकील को पसंद करता है. यह सब अँग्रेजी हुकूमत के गुलाम राजा के कान उमेढ़्कर करना देश की सारी नारी जाति का अपमान था किन्तु समूचे देश की महिलाए इस अपमान को पी गई । फारसी समुदाय न के बराबर था इसलिए इस अन्याय को दमित कर दिया गया।

सच को झूठ ओर झूठ को सच सावित कर विजयश्री हासिल करने वाले बेबाकी अधिक,अनुचित  बोलने वाले तथा शब्दों को नाप तौलकर मतलब के ही सार्थक कम शब्दों को बोलने वाले शब्दस्पेशलिष्ट वकीलों की खोज खबर ली जाए तब यह मामला शर्मनाक रहा था जिसका पालन नही किए जाने से देश की प्रथम अधिवक्ता को प्रतिबंध के साथ अपमान झेलना पड़ा, परिणामस्वरूप उन्होने अपने कर्तव्य का पालन करते हुये 600 से अधिक महिलाओं को न्याय दिलाकर उनके अधिकारों की लड़ाई लड़ी ओर बाल विवाह और सती प्रथा के उन्मूलन की भी इकलौती वकील के रूप में ख्याति पाई। यह अलग बात थी की उन्हे देश में सदैव सम्मान से वंचित होना पड़ता था तब वे विदेश में बस गई ओर वही वकालत करते हुये और 6 जुलाई 1954 को मैनर हाउस के नॉर्थम्बरलैंड हाउस में उनकी मृत्यु हो गई।

आत्माराम यादव पीव

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