
—विनय कुमार विनायक
कृष्ण के जीवन में राधा तू आई कहां से?
आत्मा से, देह से या कवि की कल्पना से!
सुदर्शन चक्रधारी को प्रेम पुजारी बनाने को,
राधा तू आई गोकुल बोलो किसके स्नेह से?
कृष्ण के बचपन में रास रचाने आई कहां से?
भक्ति या आशक्ति की ठांव बरसाने गांव से!
बेड़ी बंधी कोख से बेड़ी को तोड़कर आए जो,
उनको प्रेम हथकड़ी पहनाने तू आई कहा से?
कृष्ण के छुटपन में, तुम युवती हो आई कैसे?
वेद पुराण या जयदेव, विद्यापति के गान से!
राजाओं के आश्रित बंदी भाट,चारण कवियों से,
भक्ति, श्रृंगार,पांथिक साम्प्रदायिक ऊहापोह से!
वेद व्यास ने देखा नहीं, भागवत ने वांचा नहीं,
जयदेव, विद्यापति के कंठ निकली हो सूर से!
अनायास ही तू राधा बालकृष्ण की हो गई कैसे?
ब्याहता हो किसी की, केली की कृष्ण से कैसे?
संदीपनी आश्रमवासी,अरिष्टनेमी के श्रमण को,
शस्त्र-शास्त्र अनुसंधानी को गंवार बनायी कैसे?
गीता के वाणी को,वेद उपनिषद के ब्रहंज्ञानी को,
अध्ययनशील प्राणी को, लांछन लगाई तू कैसे?
उम्र में छोटे थे, योद्धा वो बड़े थे मल्लयुद्ध में,
चानूर-मुस्टिक हारे,कंस संहारे बिना गुरु के कैसे!
मातृ कोख पे पहरा था, शिशुहंता कंश के कहर से
निजात दिलाने जो प्रकट हुए थे काल कोठरी से!
धरती के धर्म को,नारी के मान को दु:शासन से
मुक्ति दिलानेवाले योगी को प्रेमरोगी बनाई कैसे?
तू वृषभानु वैश्य की कन्या,रायाण की ब्याहता हो,
मां यशोदा की भाभी कृष्ण की प्रेमिका बनी कैसे?
रुक्मिणी, सत्यभामा सी अष्ट पटरानी के रहते,
तू राधा कृष्ण की वामांगी हो गई कब से कैसे?
कृष्ण नहीं रसिया थे, वे मर्यादित धर्म के रक्षक थे,
सौ गालियां सुनी भाई से, बात आई ज्यों बहन पे!
चला चक्र सुदर्शन,कट गई थी बुआ पुत्र का गर्दन,
द्रौपदी सुभद्रा सी बहन थी मान ना हो पाया मर्दन!
नरकासुर की बंदी सोलह हजार एक सौ नारियों को,
सम्मान की जिंदगी दी सुहागदान की मांग मानके!
सोलह हजार एक सौ आठ रानियों के बीच हे गोपी,
बताओ तुम कहा हो एक वैधानिक धर्मपत्नी जैसी!
कृष्ण धर्म मर्म सत्कर्म के मंगल मूर्ति न्यायप्रिय थे
मुक्त कराया बंदी राजाओं को नरमेधी जरासंध से!!
मित्र से मित्रता निभाई,शत्रु को नारायणी सेना दी थी,
विश्वरूप दिखाया,वे सम्मानित वयोवृद्ध पितामह के!
तुम्हें वसुदेव देवकी ने नहीं देखा, सुभद्रा से अनजानी,
राधा बोलो योग क्षेम के ईश्वर से कैसे की मनमानी?
कथा कहानी की तुम राधारानी हो जब तुम बारह की
तब कृष्ण सात के तुमसे मिले, उम्र ग्यारह में बिछुड़े!
बचपन की धमाचौकड़ी को रसिकों ने रास लीला कही,
ना इसमें कोई दोष तेरा है ना कृष्ण कोई छिछोरा है!
दुनिया की रीत है चरित्र हनन की, अपवाह उड़ाने की,
भक्ति के नाम, अंधभक्ति जगाने की,भ्रम फैलाने की!
—विनय कुमार विनायक,