कहाँ गये पखेरू, वीरान पेड़ रोते

आज भी दरवाजा खोलते ही,

मुझे अपने घर से नजर आता है

नीम का पेड़,

जो देवी की मडिया से सटकर खड़ा है।

और कुछ दूरी पर एक विशाल

इमली का पेड़ हुआ करता था

जिसे चंद स्वार्थियों ने जड़ से काटकर

जमीन पर कब्जा कर विशाल भवन खड़ा किया है।

घर के पिछवाड़े की खिड़की

खुलते नजर आता बेरी का पेड़

इमली, नीम के पेड़ पर

कई परिन्दों का बसेरा रहा है

साँझ गये आँगन में खटिया पर लेटे

मैं देखा करता

इन कतारबद्ध पखेरूओं को

भारी कोलाहल कर वापस जंगल से

अपने घोेसलों की ओर लौटते हुए

तब सैकड़ों की संख्या में तोते, गौरैया पक्षी

इमली की शाखों पर पंख खोले पसर जाते

परिन्दे का घर बना

इमली और नीम

सूर्य की पहली किरण के साथ ही

पखेरूओं का स्वर्ग बन जाता ओर

वे खुले आसमान में कलाबाजियां करते

जैसे आकाश को छू लेना चाहते है

तेज आंधियां और ठण्डी बरसाती हवाओं में

एक दूसरे का हाथ थामने का उपक्रम करते

ये सारे पखेरू

एक साथ उड़ जाते आकाश में

जिन पखेरूओं की आँखें नही खुली

और न ही उनके पंख आ पाये

अक्सर तेज अंधड़ के साथ

ओलों की अनचाही बरसात

इनके प्राण हरण कर लेती,

वे पखेरू जो उड़ न सके

वे औंधे मुंह धरती पर गिर जाते।

इस तबाही से पक्षियों के दुख में

शामिल होते तब के सारे लोग

पक्षियों की चहचहाहट सुरों में

खुशी और दुखों को समझने वाले

वे लोग जैसे-जैसे विदा हुए

वैसे-वैसे ही पक्षियों का कलरव

अब सुनाई नहीं देता

क्योकि हमारे लालच ने जहरीली खेती करके

जमीन की कोंख से उजाड़ दिये

मिट्टी के मित्र जीवों को जहर देकर

जिनके साथ ही मिटते गए पखेरू और गिद्ध   

जो किसी पेड़ पर अब नहीं दिखते

गौरैया चिड़िया,तोते और तीतर  

कौवे भी अब गायब हुए,

‘’पीव’’  पेड़ वीरानी में अकेले रोते।

आत्‍माराम यादव पीव

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,866 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress