गांधी का भारत कहां है ?

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
महात्मा गांधी के जन्म का डेढ़ सौवां साल अब शुरु होनेवाला है। उन्हें गए हुए भी सत्तर साल हो गए लेकिन मन में सवाल उठता है कि भला गांधी का भारत कहां है ? ऐसा नहीं है कि पिछले 70-71 वर्षाों में भारत ने कोई प्रगति नहीं की है। प्रगति तो की है और कई क्षेत्रों में की है लेकिन किसी नकलची या पिछलग्गू की तरह की है। इस प्रगति में भारत की अपनी मौलिकता कहां है ? भारत ने शिक्षा, स्वास्थ्य, खान-पान, रहन-सहन, रख-रखाव, निजी और सामाजिक बर्ताव में या तो साम्यवाद की नकल की है या पूंजीवाद की ! नेहरु-काल में हमारे नेताओं पर रुस का नशा सवार था और उसके बाद अमेरिकी पद्धति के पूंजीवाद ने भारतीय मन-मस्तिष्क पर कब्जा जमा लिया है। गांधी के संपनों का भारत अब तो किताबों में बंद है और किताबें अल्मारियों में बंद हैं। देश में अब कोई गांधी तो क्या, विनोबा, लोहिया और जयप्रकाश-जैसा भी दिखाई नहीं पड़ता। हां, फर्जी गांधियों की बल्ले-बल्ले है। हमारी अदालतें समलैंगिकता और व्यभिचार पर प्रश्न-चिन्ह लगाने की बजाए उन्हें खुली छूट दे रही हैं। हमारी संसद थोक वोटों के लालच में पीड़ितों को ऐसे अधिकार बांट रही है कि वे परपीड़क बन जाए। दलितों को अनंत-काल तक दलित बनाए रखने में ही उनका स्वार्थ सिद्ध होता है। देश में आज नेता कौन है ? नेता का अर्थ होता है, जो नयन करे याने जिसका आचरण अनुकरण के योग्य हो। क्या कोई नेता है, ऐसा, आज हमारे पास ? नोट और वोट के लिए लड़ मरनेवाले लोग हमारे नेता हैं। गांधी की तरह सत्य के लिए मर मिटना तो दूर, सत्य के लिए लड़नेवाले तो क्या, सत्य बोलनेवाले नेता भी हमारे पास नहीं हैं। सारे दक्षिण एशिया के देशों याने प्राचीन आर्यावर्त्त को जोड़ने की कोशिश तो उनकी बुद्धि के परे हैं लेकिन वर्तमान खंडित भारत के मन को भी उन्होंने खंड-खंड कर दिया है। वे जातिवाद, सांप्रदायिकता, आर्थिक विषमता, नशाखोरी और अंग्रेजी की गुलामी को दूर करने के प्रति भी सचेष्ट दिखाई नहीं पड़ते। अगर, ईश्वर न करे, गांधी आज भारत में पैदा हो जाएं तो क्या वे अपना माथा नहीं कूट लेंगे ?

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