जो चलता अपने पैरों पर‌

walkभर्र भर्र कर बस चलती है,

टर टर टर करता स्क्रूटर|

ढर्र ढर्र कर चले टेंपो,

ट्रेन चला करती है सर‌ सर|

तीन चके का होता रिक्शा,

दौड़े सड़कों पर फर फर फर|

किन्तु सायकिल हाय बेचारी,

दो पहियों पर चलती छर छर|

जहाँ ट्रेक्टर और बुल्डोज़र,

करते रहते घर्र घर्र घर|

वहीं लक्ज़री कारें च‌लतीं,

जैसे नदिया बहती हर हर‌|

किन्तु आदमी नामक प्राणी,

जो चलता अपने पैरों पर|

तन तंदुरुस्त रहा करता है,

रहता स्वस्थ सदा जीवन भ‌र|

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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