समाज

शर्मसार करने वाली घटनाओं का ज़िम्मेदार कौन?

 


निर्मल रानी
देश की राजधानी दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 को अंजाम दी गई सामूहिक बलात्कार एवं बलात्कारियों द्वारा मृतका दामिनीके साथ की गई अकल्पनीय वहशियाना हरकतों को अभी देश भुला भी नहीं पाया था कि पिछले दिनों एक और पांच वर्षीय बच्ची उसी मानसिकता के दरिंदों की हवस का शिकार हो गई। ज़ाहिर है देश में ऐसी वर्णित न की जा सकने वाली वीभत्स घटना को लेकर अवाम में एक बार फिर गुस्से की लहर दौड़ गई है। दिल्ली में विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला जारी है। जनता के रोष प्रदर्शनों के बीच राजनैतिक दलों द्वारा अपने-अपने राजनैतिक निशाने साधने की कवायद भी साथ-साथ चल रही है। विपक्षी दल इन घटनाओं के लिए सत्ता पक्ष तथा प्रशासन पर ऐसे निशाना साध रहे हैं गोया ऐसी वहशियाना हरकतों के लिए सत्ता पक्ष, प्रशासन अथवा दिल्ली पुलिस ही अपराधियों को प्रोत्साहित कर रहे हों। उधर एक बार फिर प्रदर्शनकारियों द्वारा वहशी बलात्कारियों को फांसी के फंदे पर तत्काल लटकाए जाने की मांग भी तेज़ हो गई है। यूपीए अध्यक्षा सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह,दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित आदि सभी ने दिल्ली में घटित इस ताज़ातरीन हादसे पर संज्ञान लिया है। हालांकि दिल्ली में बलात्कार की घटनाएं पहले भी होती रही हैं परंतु पिछली दो वहशियाना किस्म की बलात्कार की घटनाओं ने तो देश की राजधानी दिल्ली की अपनी प्रतिष्ठा व सम्मान को भी कठघरे में ला खड़ा कर दिया है। जिस दिल्ली प्रदेश को-दिल्ली दिलवालों की  कहकर संबोधित किया जाता था अब उसी दिल्ली को दरिंदों की दिल्ली, रेप कैपिटल,और दागदार दिल्ली जैसे अफसोसनाक नामों से संबोधित किया जा रहा है।
सवाल यह है कि बलात्कार तथा इसमें अपनाई जाने वाली दरिंदगी व वहशियाना हरकतों के लिए क्या वास्तव में सरकार, शासन व्यवस्था, पुलिस और स्वयं राजधानी दिल्ली दोषी है? या इस प्रकार के आरोप महज़ जनआक्रोश के परिणामस्वरूप सामने आते हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि इस प्रकार के आरोप लगाकर या ऐसे शोर-शराबे से हम ऐसी घटनाओं के मूल कारणों से अपना ध्यान भटकाने का प्रयास कर रहे हों? सर्वप्रथम तो यदि हम बात दिल्ली की करें तो यह कहना सरासर गलत है कि केवल दिल्ली ही ऐसे हादसों का शिकार होती है। दिल्ली को बलात्कार की राजधानी, रेप कैपिटल, दरिंदों की दिल्ली,या ऐसे दूसरे नकारात्मक अलंकरणों से नवाज़ना’  वास्तव में अपने देश की राजधानी की तौहीन करने के सिवा और कुछ नहीं है। दिल्ली की घटनाएं केवल इसलिए पूरे देश में चर्चा का विषय बन जाती हैं क्योंकि एक तो यह घटनाएं देश की राजधानी में घटित होती हैं। और देश की राजधानी होने के कारण सत्ता तथा मीडिया का मुख्य केंद्र व नियंत्रण भी दिल्ली में ही है। अत: जहां घटनाओं का विरोध करने के लिए प्रदर्शनकारियों को चंद कदमों की दूरी पर प्रधानमंत्रीमुख्यमंत्री, राज्यपाल, जंतरमंतर, इंडिया गेट सब कुछ उपलब्ध हो जाता है वहीं फिल्मसिटी नोएडा में बैठे टीवी के पत्रकारों को कुछ ही मिनटों में ऐसी खबरों व इससे जुड़े विरोध प्रदर्शन को कवर करने का सस्ता व आसान मौका उपलब्ध हो जाता है। लिहाज़ा दिल्ली की घटना की पल-पल की पूरी खबर तथा उसके फालोअप पूरे देश में चंद मिनटों में जंगल की आग की तरह फैल जाते हैं। अन्यथा बलात्कार तथा दरिंदगी के ऐसे कारनामे दिल्ली के अतिरिक्त देश के दूसरे भागों में भी होते रहते हैं। अंतर केवल इतना है कि हमारे देश का मीडिया दिल्ली की घटनाओं को तो यथाशीघ्र देख लेता है जबकि दूरस्थ की घटनाएं मीडिया में उतनी शीघ्रता से उतना स्थान नहीं बना पातीं।
जहां तक ऐसी घटनाओं के लिए दोषी ठहराने का प्रश्र है तो इसके लिए सरकार या प्रशासन अथवा पुलिस को दोषी ठहराने से कुछ हासिल नहीं होने वाला। बलात्कार या बलात्कार के दौरान दरिंदगी की हरकतें करना अथवा छोटे व मासूम बच्चियों को अपनी हवस का निशाना बनाना न तो किसी सरकार, शासन-प्रशासन अथवा पुलिस के एजेंडे में शामिल होता है न ही ऐसी घिनौनी हरकतों को कोई संस्था, संस्थान अथवा विभाग अपना संरक्षण दे सकता है। दरअसल ऐसी हरकतें रुग्ण एवं बीमार मानसिकता रखने वाले लोगों द्वारा अंजाम दी जाने वाली हरकतें हैं। इन घटनाओं का सीधा संबंध ऐसे अपराध में शामिल लोगों के व्यक्तिगत जीवन,उनके पारिवारिक, सामाजिक तथा बाहरी परिवेश एवं संस्कारों से है। ऐसा व्यक्ति कोई साधारण, अनपढ़ व्यक्ति भी हो सकता है तथा कोई शिक्षित व जि़म्मेदार व्यक्ति भी। पूर्वोत्तर में भारतीय सेना के कई जवानों ने मिलकर एक महिला के शरीर में पत्थर ठूंसने जैसी जो घिनौनी कार्रवाई की थी उस घटना को भी देश कभी भुला नहीं पाएगा। यदि यह घटना दिल्ली में घटी होती तो विरोध प्रदर्शन की सीमा न जाने कहां समाप्त होती और देश के हालात न जाने क्या हो जाते। क्या चंद सैन्यकर्मियों द्वारा अंजाम दी जाने वाली ऐसी वहशियाना हरकतों के चलते हम पूरी भारतीय सेना को उसी नज़र से देख सकते हैं? कश्मीर तथा देश के दूसरे भागों से भी बलात्कार के ऐसे समाचार सुनाई देते हैं जिसमें भारतीय सेना या पुलिस के जवान शामिल होते हैं।
हमारे देश में बलात्कार या रज़ामंदी के साथ अथवा बहला-फुसला कर, लालच देकर या धोखा देकर, छलकपट कर अनैतिक रूप से महिलाओं को अपनी हवस का शिकार बनाने में सेना,पुलिस, नेता, धर्मगुरु, डॉक्टर,इंजीनियर, शिक्षक, वकील, व्यापारी, छात्र तथा किसान आदि सभी वर्ग के लोगों को शामिल होते हुए देखा गया है। ज़ाहिर है अगर इस प्रकार शिक्षित व जि़म्मेदार वर्ग के लोग यदि अपने पद, ज्ञान व गरिमा का ध्यान रखें या उसका मान-सम्मान करें तो ऐसे लोगों से किसी प्रकार की अमानवीय व अनैतिक हरकतों की उम्मीद नहीं की जा सकती। परंतु इसके बावजूद इन वर्गों के लोगों से जुड़ी हुई तमाम ऐसी खबरें दुर्भाग्यवश आती ही रहती हैं। इसका सीधा सा अर्थ यही है कि इसके लिए किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत मानसिकता ही उसे किसी अपराध अथवा अनैतिक कार्य या दरिंदगी की हदें पार कर जाने वाली किसी घटना को अंजाम देने के लिए जि़म्मेदार होती है। अब यह शोध का विषय है कि किसी व्यक्ति की मानसिकता आखिर उस हद तक कैसे पहुंच जाती है? क्या यह अपराधी के पारिवारिक हालात के कारण संभव होता है? टेलीविज़न तथा कंप्यूटर के माध्यम से फैलने वाला नंगापन तथा पोर्न कल्चर कहीं इसके लिए जि़म्मेदार तो नहीं? क्या यह सेक्स शिक्षा की कमी के कारण होता है? या फिर महिलाओं के पर्दे में रहने अथवा आधुनिक फैशन अपनाने के चलते ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं?
हमारे समाज के लिए इस प्रकार की दरिंदगीपूर्ण बलात्कार की घटनाओं को लेकर चिंता का एक विषय यह भी है कि ऐसे वहशी दरिंदे एक नहीं बल्कि कई अपराधी एक साथ मिलकर ऐसी घटनाओं को अंजाम देते हैं और उनमें से एक भी व्यक्ति इनका विरोध नहीं करता। उदाहरण के तौर पर पिछले दिनों दिल्ली में घटी मासूम बच्ची के साथ हैवानियत की घटना में भी दो अपराधी शामिल थे जबकि 16 दिसंबर की घटना में भी 6 दुष्ट प्रवृति के लोग एक साथ शामिल थे। कितने आश्चर्य का विषय है कि राक्षसों से बदतर हरकतें अंजाम देने वाली 16 दिसंबर व पिछले दिनों हुई घटना में शामिल अपराधियों में शामिल सारे के सारे अपराधी एकमत थे तथा इनमें कोई एक व्यक्ति ऐसा नहीं था जिसने अपने साथियों की दरिंदगी का विरोध किया हो। यानी अगर इनमें कोई एक या दो अपराधी भी इंसानी सोच रखने वाले होते तो अपने दूसरे साथियों की वहशियाना हरकतों का विरोध करते। परंतु ऐसा नहीं हुआ। सवाल यह है कि ऐसे लोगों की परवरिश किस वातावरण में, किस परिवार में तथा कैसे समाज में हो रही है? दिल्ली की ताज़ातरीन घटना को लेकर एक समाचार यह भी है कि किसी पुलिसकर्मी ने पीडि़त बच्ची के माता-पिता को दो हज़ार रुपये की रिश्वत देकर मामले को रफा-दफा करने की कोशिश की। निश्चित रूप से यह उस पुलिसकर्मी का बहुत बड़ा अपराध है जो निहायत गैरजि़म्मेदाराना व पुलिस की छवि को कलंकित करने वाला है। परंतु इसके लिए दिल्ली पुलिस के पुलिस कमिश्रर से त्याग पत्र मांगने का आखिर क्या औचित्य है?
यदि हमें ऐसी घटनाओं पर नियंत्रण पाना है तो हमें अपने बच्चों को सही रास्ते पर चलने की शिक्षा देनी होगी। बचपन से ही लड़कों को लड़कियों के प्रति इज़्ज़त व आदर से पेश आने का पाठ पढ़ाना होगा। बच्चों के माता-पिता, धर्मगुरुओं, अध्यात्मवादियों तथा समाज के जि़म्मेदार लोगों को इसमें अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करनी होगी। इसके अतिरिक्त जो भी लोग चाहे वे किसी भी पद, विभाग अथवा समाज के क्यों न हों यदि उनपर अपराध साबित हो जाता है तो उन्हें कड़ी से कड़ी सज़ा यहां तक फांसी की सज़ा भी दी जानी चाहिए। सज़ा का मकसद दूसरों को सबक सिखाना तथा अपराध के अंजाम से डराना होना चाहिए अपराध का बदला नहीं। केवल किसी को जि़म्मेदार ठहराकर या किसी से त्यागपत्र लेकर ऐसी समस्याओं से निपटा नहीं जा सकता