
—विनय कुमार विनायक
मनुष्य क्यों इतना अधिक हिंसक होता है?
आजीवन मनुष्य के मनुष्य बने होने पर भी,
मनुष्य को इतना अधिक क्यों शक होता है?
मानव, मानव के बीच मतभेद, धर्मभेद होता है,
सांप्रदायिक और वैचारिक अंतर बेशक होता हैं,
पर यहां किसे जान से मारने का हक होता है?
मनुष्य मनुष्य के साथ सृष्टि के आरम्भ से ही,
किसी ना किसी बहाने सर्वदा लड़ते ही रहता है,
जाने क्यों मानव को बड़प्पन का झख होता है?
सच पूछो तो नही चाहकर भी कहना ही पड़ता है,
पढ़े लिखे इंसान को भी ज्ञान विवेक नहीं होता है,
अज्ञानी से अधिक ज्ञानी में क्यों बकझक होता है?
मानव में मानवता कम होती, शत्रुता अधिक होती,
तुच्छ जातीय अहं में मानव पल में बहक जाता है,
जाने क्यों सद्गुण तुरंत क्रोधानल में दहक जाता है?
जन्म से सब जीव जगत, प्रकृति जीवन शाश्वत,
आनुवांशिक विरासती गुणसूत्र धर्म धारक होता है,
पर मानव ही क्यों मनुर्भव होने से बहक जाता है?
आदमी को हमेशा आदमियत का पैगाम मिलता है,
विद्यालय विश्वविद्यालय में शिक्षा दान मिलता है,
पर जाने क्यों मानव मानव का विध्वंसक होता है?
मानव जाति में वसुधैव कुटुंबकम् भाव भरी गई है,
लेकिन जाने कैसे अलगाव की दुर्नीति उभरी हुई है,
विधर्मी के नाश हेतु स्वदेह में विस्फोटक भरता है!