क्यों असुरक्षित है भारत के बच्चें?

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-ललित गर्ग-


चंडीगढ़ में एक पीजी में रहने वाली दो बहनों की हत्या ने न केवल शहर को बल्कि समूचे राष्ट्र को दहला दिया है। इस खौफनाक एवं त्रासद घटना ने रेखांकित किया है कि अपराधी किसी कानूनी कार्रवाई और पुलिस के भय के बिना अपनी मनमानी एवं अपराधी मानसिकता को अंजाम दे रहे हैं। चिंताजनक बात यह है कि आज हमारे समाज में बात सिर्फ बच्चियों अथवा महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों की नहीं है, बात इस बदलते परिवेश में बच्चों के खिलाफ बढ़ते अपराधों की भी है। हमारे बच्चें आज सुरक्षित नहीं है। 
बच्चे देश का भविष्य होते हैं लेकिन जब बच्चे ही खतरे में हो तो आप खुद सोच सकते है कि उस देश का आने वाला भविष्य कैसा होगा? उस देश का भविष्य अंधकार में ही होगा जहां बच्चों पर भी रहम नहीं किया जाता, उन पर अपराध किये जाते हंै। एक सर्वे के अनुसार भारत जैसे विकासशील देश में हर 15 मिनट में एक बच्चा यौन शोषण का शिकार होता है। बात केवल यौन शोषण की ही नहीं बल्कि हिंसा, उत्पीड़न एवं बाल-श्रम की भी है। ये बेहद ही शर्मसार करने वाली बात है कि हम अपने बच्चों तक को सुरक्षित नहीं रख पा रहे हैं, उनके बचपन को डरावना एवं त्रासद बना रहे हैं। 
भारतीय समाज में बच्चों के खिलाफ अपराध की दर दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। आंकड़े बताते हैं कि 2016 में पोक्सो ऐक्ट के तहत छोटी बच्चियों के साथ बलात्कार के 64138 मामले दर्ज हुए थे। देशभर में बच्चों के खिलाफ कुल अपराध के मामलों में 13.5 फीसदी वृद्धि दर्ज की गई है। इसका कारण है कि वर्तमान समय में नगरीकरण तथा औद्योगिकरण की प्रक्रिया ने एक ऐसे वातावरण का सृजन किया है जिसमें अधिकांश परिवार बच्चों को सुरक्षित परिवेश देने में असफल सिद्ध हो रहे हैं। चंडीगढ़ की घटना के संबंध में जो ब्योरे सामने आए हैं, उनसे साफ है कि हत्यारे के भीतर शायद किसी का भय नहीं था। खबरों के मुताबिक अपराधी युवक पांच बजे के आसपास उस मकान में घुसा और चाकू या धारदार हथियार से दोनों बहनों की हत्या करके आराम से निकल गया। घटनास्थल की जांच से पता चला है कि युवक के हमले का दोनों बहनों ने अंतिम दम तक सामना किया, लेकिन जान बचाने में नाकाम रही। 


पुलिस हर वक्त सभी जगहों पर मौजूद नहीं रह सकती है। लेकिन अगर पुलिस महकमे के कामकाज की शैली ऐसी हो, जिसमें हर मामले में तुरंत कार्रवाई और सख्ती साफ दिखे तो अपराधियों के भीतर एक खौफ काम करेगा और किसी अपराध को अंजाम देने से पहले वे उसके नतीजों पर सोचेंगे। लेकिन विडम्बना है कि हमारे देश में पुलिस एवं अपराधियों की मिलीभगत से कारण पुलिस के लिये जैसा खौफ एवं डर होना चाहिए, वह नहीं है। ऐसी स्थिति में समाज को जागरूक होने की ज्यादा जरूरत है, हमें क्या की मानसिकता एवं संस्कृति के कारण भी ऐसे अपराध बढ़ रहे हैं। क्या अपने स्तर पर भी बच्चों के खिलाफ हो रहे अपराधों को लेकर जागरूकता, सावधानी और आस-पड़ोस को लेकर संवेदनशीलता की जरूरत नहीं है?
चंडीगढ़ की घटना ने बच्चों की सुरक्षा को लेकर अनेक सवाल खड़े कर दिये हैं। जिस कमरे में दो बहनों की हत्या हुई, क्या उस दौरान आसपास कोई और नहीं था? अगर उस इमारत का इस्तेमाल पीजी यानी पेइंग गेस्ट को रखने के तौर पर भी किया जाता था उसमें रहने वालों और खासतौर पर अकेले रहने वाली लड़कियों की सुरक्षा के लिए क्या इंतजाम किए गए थे? सुबह पंाच बजे दोनों बहनों के कमरों में दाखिल होने और हत्या करके आराम से भाग जाने के स्थितियों के लिए क्या वहां सुरक्षा गार्ड का नहीं होना जिम्मेदार नहीं है? हालांकि इस सबसे पुलिस की जवाबदेही कम नहीं हो जाती।
जैसाकि राष्ट्रीय अपराध नियंत्रण ब्यूरों के आंकड़े बता चुके हैं कि दिल्ली और अंडमान के बाद बच्चों के खिलाफ सबसे ज्यादा अपराध चंडीगढ़ में होते हैं। इसके अलावा, महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई थी और इस मामले में चंडीगढ़ ग्यारहवें स्थान पर था। अपहरण, लूट और झपटमारी की घटनाओं में भी बढ़ोतरी हुई है। सवाल है कि अगर वहां कानून-व्यवस्था और पुलिस का तंत्र अपना काम ठीक से कर रहा है तो अपराधों के मामले में यह ंिचंताजनक तस्वीर क्यों है? ऐसे में अपराधी प्रवृत्ति के किसी व्यक्ति ने दोनों बहनों की हत्या कर दी और फरार हो गया तो यह समूचे पुलिस तंत्र की नाकामी है।
बच्चों के साथ हो रहे अपराधों के खिलाफ लगातार केंद्र सरकार सख्त कदम उठा रही है, नये-नये कानून भी बन रहे हैं, लेेकिन प्रश्न है कि कानून बनाने से ही क्या समस्या का समाधान संभव है? अगर ऐसा है तो कानून तो बहुत बन गये और सख्त भी बन गये, फिर क्यों अपराध बढ़ रहे हैं? हमें इस समस्या की जड़ तक जाना होगा, अपराध की मानसिकता क्यों पनप रही है, इसके कारणों का पता लगाना होगा। यह जरूरी हो जाता है कि किसी व्यक्ति के अपराधी व्यवहार के पीछे कारणों पर गहनता से विचार किया जाए। 


हमें स्वयं भी जागरूक होना होगा, पुलिस की निर्भरता से बच्चों के प्रति हो रहे अपराधों पर काबू नहीं पाया जा सकता। मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था ‘वल्र्ड विजन इंडिया’ ने भारत में 45,844 के बीच एक सर्वेक्षण किया जिसमें खुलासा हुआ कि हर दूसरा बच्चा यौन उत्पीड़न का शिकार हुआ है। हर पांच में से एक बच्चा यौन उत्पीड़न के खौफ से खुद को असुरक्षित महसूस करता है। हर चार में से एक परिवार ने बच्चे के साथ हुए यौन शोषण की शिकायत तक नहीं की। पीड़ितों में लड़के-लड़कियों की संख्या करीब-करीब बराबर बताई गई है। बच्चो के साथ दुव्र्यवहार और हिंसा अब इस देश में बड़ी समस्या के रूप में उभर रहा है। औद्योगिकीकरण, उदारीकरण, अंतरराज्यीय और ग्रामीण और शहर से पलायन, आर्थिक गरीबी, परिवार का टूटना इत्यादि की वजह से भी बच्चे अपराध का शिकार बन रहे हैं। इन स्थितियों एवं घटनाओं से बच्चों में भय एवं असुरक्षा का भाव घर कर रही है। भय से अधिक खतरनाक कुछ भी नहीं। सोचिए आज हमारे बच्चे उसी खौफ के साथ जी रहे हैं और कहीं ना कहीं ये खौफ उन्हें खोखला कर रहा है। केंद्रीय महिला बाल विकास मंत्रालय की राष्ट्रीय उत्पीडन रिपोर्ट 2007 के अनुसार भारत में हर तीन में से एक बच्चा शारीरिक हिंसा का शिकार होता है जिसमे 73 फीसदी लड़के और 65 फीसदी लड़कियां है।
भारत में बच्चों की संख्या 47 करोड़ से अधिक है, जो दुनिया के अन्य किसी भी देश में बच्चांे की तुलना में सबसे ज्यादा है। यह दुःख की बात है की इनमें से अनेक बच्चे सामाजिक-आर्थिक तथा ऐतिहासिक कारणों से अनेक प्रकार के अभावों से ग्रस्त है और ये भेदभाव, उपेक्षा, और शोषण के सहज शिकार हो जाते है। इनमंे से बहुत से बच्चांे के मातापिता के पास आजीविका के बहुत कम साधन है और जिसके चलते इन बच्चों को बुनियादी सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं है। ऐसी परिस्थितियों में कई बार माता-पिता को बच्चों को छोड़कर काम पर जाना पड़ता है ऐसे में बच्चे देखभाल के अभाव में हिंसा, उपेक्षा और शोषण के शिकार हो जाते है। सभी बच्चों को सुरक्षा और गरिमा के साथ जीने के लिए सुरक्षित माहौल मिले एवं यह सुनिश्चित हो कि सभी बच्चे स्कूल जायें, बच्चों के लिए बनाये गए कानूनों पर अमल ठीक तरह से हो, नीति निर्धारक बच्चों के मुद्दों को प्राथमिकता दें। परन्तु दुखद यह है कि ऐसा न होने की वजह से बच्चों के ऊपर होने वाले अपराध के आंकड़ों में लगातार वृद्धि दर्ज की जा रही है।
प्रेषकः

(ललित गर्ग)
ई-253, सरस्वती कंुज अपार्टमेंट
25 आई॰ पी॰ एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दि

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