राहुल गांधी का चुनाव आयोग पर हमला क्यों

राजेश कुमार पासी

ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के बाद ऐसा लगता है कि राहुल गांधी बौखला गए हैं । उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि भाजपा का मुकाबला कैसे किया जाए, इसलिए वो उल्टे-सीधे बयान दे रहे हैं । पिछले 11 सालों से वो मोदी से लड़ते-लड़ते थक गए हैं और उन्हें आगे कोई उम्मीद दिखाई नहीं दे रही है । उनकी हालत उस बच्चे जैसी हो गई है जो खिलौना न मिलने पर उसे तोड़ने की हद तक चला जाता है । कुछ ऐसा ही राहुल गांधी करते दिखाई दे रहे हैं । उन्हें न तो अब जनता पर भरोसा रहा है और न ही संविधान पर, बेशक वो संविधान को सिर पर उठाये घूम रहे हों । लगातार हार की हताशा में वो अब संवैधानिक संस्थाओं पर हमले कर रहे हैं । आज जो संस्थाएं पहले से कहीं ज्यादा स्वतंत्र और पारदर्शी तरीके  से काम कर रही हैं, उन पर वो लगातार सवाल  खड़े कर रहे हैं ।

 विपक्षी नेता होने के कारण यह उनका अधिकार है लेकिन भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को बदनाम करने और कमजोर करने का हक किसी को नहीं है । वो केंद्रीय एजेंसियों पर हमला करते हैं जो कि इतना गलत नहीं है क्योंकि वो सीधे सरकार के नियंत्रण में काम करती हैं । सवाल यह है कि संवैधानिक संस्थाओं पर हमला करना कैसे सही कहा जा सकता है । उन्होंने राष्ट्रीय समाचार पत्रों में एक लेख लिखकर चुनाव आयोग पर बड़ा हमला किया है । वैसे वो चुनाव आयोग के खिलाफ बयान देते रहते हैं लेकिन इस लेख के माध्यम से उन्होंने यह बताने की कोशिश की है कि चुनाव आयोग भाजपा के साथ मिलकर उसे फायदा पहुंचा  रहा है । लगातार तीन लोकसभा और दर्जनों विधानसभा चुनाव हारने के बाद वो अपनी राजनीति बदलने को तैयार नहीं हैं ।

कांग्रेस भी यह देखने को तैयार नहीं है कि उनका नेता मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा के सामने कहीं नहीं टिकता है, वो अपना नेता बदलने को तैयार नहीं है । वास्तव में कांग्रेस के पास कोई विकल्प ही नहीं है क्योंकि वो गांधी परिवार से आगे देख नहीं सकती । कांग्रेस को आज भी लगता है कि गांधी परिवार के अलावा उसके पास ऐसा कोई नेता नहीं है जो उसका नेतृत्व कर सके । चुनाव आयोग पर राहुल गांधी ने वही सवाल उठाए हैं जो पिछले कई सालों से दोहराते आ रहे हैं । लेख लिखकर उन्होंने चुनाव आयोग के खिलाफ एक मुहिम चलाने की कोशिश की है । 

             ऐसा  लगता है कि उन्होंने बिहार में अपनी संभावित करारी हार को सूंघ लिया है इसलिए वो महाराष्ट्र चुनाव में चुनाव आयोग की भूमिका को संदेह के घेरे में लेना चाहते हैं । जैसे आरोप उन्होंने लेख में लगाए हैं, उनके आधार पर वो चुनाव आयोग के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जा सकते थे लेकिन वो मीडिया के माध्यम से उसे घेरना चाहते हैं । इसकी मुख्य वजह यह है कि चुनाव आयोग अब कुछ भी कहे लेकिन चुनाव आयोग की निष्पक्षता तो संदेह के घेरे में आ ही गई है । इस देश में आरोपों के पीछे की सच्चाई कोई देखना नहीं चाहता और सिर्फ आरोपों के आधार पर ही आरोपी को अपराधी मान लिया जाता है । कांग्रेस और विपक्ष के ज्यादातर समर्थक राहुल गांधी के लेख के आधार यह मान चुके होंगे कि भाजपा ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में जीत चुनाव आयोग की मदद से हासिल  की है । जिस चुनाव आयोग और संविधान के रहते कांग्रेस 55 साल तक शासन करती रही, अब उसे लगता है कि इसके गलत इस्तेमाल से भाजपा  चुनाव जीत रही है जबकि इस बार लोकसभा चुनाव में भाजपा को बहुमत भी नहीं मिला है ।  इस सवाल का जवाब कांग्रेस और उसके समर्थकों को देना चाहिए कि भाजपा अभी तक बंगाल, केरल और तमिलनाडु में जीत हासिल क्यों नहीं कर पाई है । 

 दूसरा सवाल यह है कि क्या कांग्रेस 55 साल तक चुनाव आयोग की मदद से ही चुनाव जीत रही थी। नेहरू, इंदिरा, राजीव और मनमोहन सिंह इसलिये देश के प्रधानमंत्री बने क्योंकि उन्होंने चुनाव आयोग की मदद ली थी । कांग्रेस क्या अभी तक देश को मूर्ख बनाकर शासन करती आ रही है। इसका दूसरा मतलब यह भी है कि आज तक जो भी सरकारें बनी हैं उन्हें जनता ने नहीं चुना था, वो इसलिए बनी क्योंकि चुनाव आयोग ने मदद की थी । ऐसी बातें राहुल गांधी विदेशों में भी करते हैं जिससे पूरी दुनिया मे संदेश जा रहा है कि भारत में लोकतंत्र नाम का है, जो कुछ है चुनाव आयोग है । वो जिसे चाहे जीता सकता है। ईवीएम से भी चुनाव जीता जा सकता है और भाजपा ईवीएम में छेड़छाड़ करके लगातार शासन कर रही है।   

              राहुल गांधी ने अपने लेख को शीर्षक दिया है, ये मैच फिक्स है और चुनाव की चोरी का खेल समझिए । उन्होंने चुनाव आयुक्त के सरकार के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री द्वारा 2-1 के बहुमत से चुने जाने पर सवाल उठाया है । उनका कहना है कि ऐसे विपक्ष के नेता के वोट को अप्रभावी बना दिया गया है । उनका कहना है कि जिन लोगों ने चुनाव लड़ना है, वही अंपायर तय कर रहे हैं । सवाल यह है कि जो प्रक्रिया 77 सालों तक ठीक थी वो अब कैसे गलत हो गई । 2014 से पहले तो कोई प्रक्रिया ही नहीं थी, जिसे प्रधानमंत्री चाहे चुनाव आयुक्त बना देते थे । सिर्फ प्रधानमंत्री तय करता था कि चुनाव आयुक्त कौन होगा और घोषणा हो जाती थी । राहुल गांधी को बताना होगा कि नेहरू, इंदिरा, राजीव और मनमोहन सिंह जी ने चुनाव आयुक्त चुना तो वो निष्पक्ष कैसे था और अब मोदी सरकार चुन रही है तो वो पक्षपाती कैसे हो गया। तब वो  लोकतांत्रिक तरीका था, अब वो अलोकतांत्रिक कैसे हो गया । उन्होंने चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची तैयार करने में गड़बड़ी का आरोप लगाया है । सच्चाई यह है कि मतदाता सूची तैयार करने की प्रक्रिया में सभी पार्टियों के कार्यकर्ता शामिल होते हैं । अगर सूची बनाते समय गड़बड़ी की गई तो उनके कार्यकर्ताओं ने शिकायत क्यों नहीं की और अगर की तो उसे देश के सामने क्यों नहीं रखा गया ।

दूसरी बात यह है कि यह सूची चुनाव के समय सभी पार्टियों को उपलब्ध करवाई जाती है । अगर उसमें फर्जी वोटर थे तो कांग्रेस पार्टी ने उनके खिलाफ शिकायत क्यों नहीं की । उन्होंने मतदान प्रक्रिया में गड़बड़ी का आरोप लगाया है । अब सवाल उठता है कि जब मतदान के समय गड़बड़ी की जा रही थी तो कांग्रेस और उनके सहयोगी दलों के चुनावी एजेंट क्या कर रहे थे । चुनावी एजेंट तो मतदान की प्रक्रिया पूरी होने तक वही रहता है । मतदान प्रक्रिया खत्म होने के बाद एजेंटों ने फॉर्म सी पर हस्ताक्षर क्यों किये । बड़ा सवाल यह है कि मतदान केन्द्र पर सारा दिन बैठने वाले एजेंट कुछ नहीं देख पाये लेकिन राहुल गांधी ने घर बैठे सब कुछ देख लिया । उन्होंने फर्जी वोटिंग का मुद्दा उठाया है लेकिन सवाल फिर यह है कि उनके एजेंटों के सामने फर्जी वोटिंग कैसे हो गई जबकि एजेंट अपने इलाके के लोगों को पहचानते हैं । मतदान केंद्र पर गड़बड़ी होने पर एजेंट की शिकायत पर चुनाव आयोग कार्यवाही करता है । एजेंट चुप हैं लेकिन राहुल गांधी बोल रहे हैं । क्या राहुल गांधी को अपने कार्यकर्ताओं पर भरोसा नहीं है या उनका मानना है कि वो भाजपा के साथ मिल गए हैं ।  

                अगर राहुल गांधी मानते हैं कि उन्होंने सच लिखा है तो मामला बहुत गंभीर है, सवाल यह है कि क्या राहुल गांधी और कांग्रेस इसे सच मानते हैं। अगर उन्हें पता है कि यह सच है तो उनके पास सबूत और गवाह भी होंगे तो वो अब तक चुप क्यों है, चुनाव आयोग या सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं गए। चुनाव परिणाम  घोषित होने से पहले  ही कांग्रेस शोर मचा सकती थी । अगर चुनाव परिणाम घोषित होने तक कांग्रेस सो रही थी तो वो सुप्रीम कोर्ट जा सकती थी और चुनावी गड़बड़ी के सारे सबूत वहां प्रस्तुत कर सकती थी । चुनाव आयोग ने कहा है कि वो तभी कार्यवाही करेगा जब इसकी लिखित में राहुल गांधी, उनकी पार्टी या कार्यकर्ता शिकायत करेंगे। वैसे भी परिणाम घोषित होने के बाद चुनाव आयोग कुछ नहीं कर सकता, तब अदालत ही कुछ कर सकती है ।

अगर राहुल गांधी और कांग्रेस कुछ करना नहीं चाहते तो दो बातें हो सकती है। पहली तो उनके पास कोई सबूत और तर्क नहीं है दूसरी कि जब उनके पास कोई तर्क और तथ्य नही है तो मुद्दे को गर्माते रहो और शोर मचाओ ताकि जनता को लगे कि चुनाव आयोग गड़बड़ कर रहा है । चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है, उस पर राजनीति के लिए आरोप लगाना मतलब संविधान और लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ करना है। चुनाव आयोग की विश्वसनीयता को खत्म करना है। ऐसा लगता है कि राहुल गांधी का मकसद जनादेश को अस्वीकार करना और चुनाव आयोग की विश्वसनीयता को खत्म करना है ।  राहुल  गांधी समझ चुके हैं कि राजनीति करना उनके बस की बात नहीं है इसलिए वो अराजकता पैदा करना, संविधान को खत्म करना, लोकतंत्र को कमजोर करना और देश को बर्बाद करना चाहते हैं । अगर जनता में लोकतंत्र से आस्था खत्म हो गई तो देश बर्बाद हो जायेगा, राहुल गांधी उसी राह पर जाते दिखाई दे  रहे हैं ।  अपने शासनकाल में कांग्रेस ने संविधान को कई बार कुचला है, लोकतंत्र का मजाक बनाया है । आपातकाल लगाने वाली कांग्रेस से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है ।  

भाजपा और मोदी पर बेतुके आरोप लगाना एक अलग मुद्दा है लेकिन चुनाव आयोग पर आरोप लगाना अलग मुद्दा है । अगर कांग्रेस साबित नही कर सकती तो आरोप नहीं लगाना चाहिए, आपको सुप्रीम कोर्ट और देश की सेना पर भरोसा नहीं है। यहां तक कि आपको तो अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं पर भी भरोसा नहीं है। कांग्रेस को बताना चाहिए कि अगर संवैधानिक संस्थाओं की विश्वसनीयता खत्म हो जायेगी तो संविधान और लोकतंत्र कैसे बचेंगे । मेरा मानना है कि राहुल खिलौना तोड़ने की जिद्द छोड़कर उसे पाने के लिए मेहनत करें । उनके पूर्वजों ने तो उन्हें खिलौना लाकर  दे दिया था लेकिन वो उसे संभाल नहीं पाए तो ये उनकी गलती है लेकिन अपनी गलती की सजा वो देश को न दें । 

राजेश कुमार पासी

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