कविता

क्यों सुने समाज के ताने?

श्रुति
कन्यालीकोट, उत्तराखंड

क्यों सुने समाज के ताने?
लड़ झगड़ कर बढ़ते आगे,
जहां लड़के भी कुछ न पाएं,
लड़कियां बढ़ती जाएं आगे,
शिक्षा है उम्मीद की चाह,
जिसने दिखाई एक नई राह,
काम न आते घर के ताने,
शिक्षा बने अनमोल तराने,


लड़कों से कम मत आंको,
लड़की की महत्ता को जानो,
संघर्ष कर पढ़ाया खुद को,
जीवन में आगे बढ़ाया खुद को,
अंत में दुनिया उसकी लोहा माने,फिर क्यों सुने वह समाज के ताने?