धर्म-अध्यात्म

तीर्थयात्राएं सुगम क्यों नहीं बन रहीं

नई दिल्ली। हरिद्वार से लेकर अयोध्या तक सेकुलर राज में हिंदुओं की जेबों पर सरकारी मशीनरी दिन-दहाड़े डकैती डाल रही है। दिल्ली से जो कुंभ यात्री किराए की बसों और कारों से हरिद्वार कुंभ नगरी जा रहे हैं, उत्तर प्रदेश पुलिस और परिवहन विभाग दोनों हाथों से उन्हें लूट रहा है। दिल्ली से उत्तर प्रदेश सीमा में प्रवेश करते समय और पुनः उत्तर प्रदेश के मुजफ्फर नगर के आगे उत्तराखण्ड में प्रवेश करते समय परिवहन विभाग और पुलिस के दस्ते वाहनों से मनमानी वसूली कर रहे हैं।

इस मनमानी का जीता-जागता उदाहरण यही है कि जो भी किराए के चार पहिया वाहन हरिद्वार से आगे बढ़ते हैं उनसे उत्तर प्रदेश का परिवहन विभाग 410 रूपये प्रति गाड़ी वसूली कर रहा है जबकि रसीद 210 रूपये की थमाई जा रही है। इसके अतिरिक्त छोटी-मोटी कमी होने पर गाड़ियों को घंटों रोक दिया जाता है और जब तक वसूली नहीं कर ली जाती, गाड़ियों और उन पर बैठे तीर्थ यात्रियों को आगे बढ़ने की अनुमति नहीं दी जाती है।

यही हाल प्रभु श्री राम की जन्मभूमि अयोध्या का है जिसकी सीमा में घुसते ही दक्षिण भारत, मध्य प्रदेश, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, हरियाणा आदि प्रदेशों की गाड़ियों का नंबर प्लेट देखते ही पुलिस कर्मियों की बांछे खिल उठती हैं। सुरक्षा के नाम पर बड़े वाहन तब तक घंटों रोककर रखे जाते हैं जब तक कि पुलिस विभाग को पूरी दक्षिणा नहीं मिल जाती है।

आगे जब दर्शनार्थी पूजा-पाठ के लिए पैदल रामजन्मभूमि की ओर बढ़ने लगते हैं तब रंगमहल बैरीकेटिंग के पास सारा समान छोड़ने पर उन्हें मजबूर कर दिया जाता है, यहां तक कि यदि किसी बुजुर्ग के पास दवा की टिकिया भी है तो उसे लेकर आगे बढने की अनुमति भी नहीं दी जाती है। पूरे दर्शन मार्ग पर प्रत्येक यात्री को कम से कम चार जगहों पर चेकिंग देनी पड़ती है।

और रास्ता ऐसा कि एक बार में एक आदमी ही रामलला के दर्शन के लिए जा सकता है। इस पूरी प्रक्रिया में दर्शनार्थी को लगभग ढाई कि.मी. पैदल चलना पड़ता है। लगभग डेढ़ कि.मी. की यात्रा तो वह रामलला के दर्शनों के लिए बनाए गए लोहे की राड युक्त संकरी गलियों में ही करता है।

इस बीच वर्षा, प्रचण्ड धूप से बचने के लिए प्रशासन द्वारा कोई प्रबंध नहीं किया गया है। किसी यात्री को खड़े-खड़े चक्कर आ जाए तो उसे बेरहमी से पंक्ति से धकेल दिया जाता है। किसी पंक्ति में बुजुर्ग यात्रियों, महिलाओं और बच्चों के लिए सहारे अथवा बैठे-बैठे आगे बढ़ने का कोई प्रबंध नहीं है, छाया का प्रबंध किसी गलियारे में दूर दूर तक देखने को नहीं मिलता है।

इतने कठिन और तनावपूर्ण परिश्रम के बाद जब दर्शनार्थी रामलला के पास दर्शनों के लिए पहुंचता है तो उसे 51 फीट की दूरी से ही दर्शन सुलभ हो पाते हैं। दर्शनार्थी को कुछ सेकेंड में ही दर्शन पूर्ण करने होते हैं और यदि वह किसी मन्नत या पूजन के लिए थोड़ा अधिक समय लेने की कोशिश करे तो उसे पुलिस और अर्धसैनिक बल के जवानों द्वारा बलपूर्वक धक्के देकर हटने के लिए बाध्य कर दिया जाता है।

कुछ ऐसी ही समस्याएं ऋषिकेश से 35 कि.मी. दूर पहाड़ की ऊंचाई पर स्थित नीलकंठ महादेव के दर्शनों के समय तीर्थ यात्रियों को झेलनी पड़ रही है। जो लोग स्थानीय गाड़ियों की बजाए अपने निजी वाहनों से नीलकंठ महादेव के दर्शनों के लिए जाते हैं उन्हें मंदिर से दो कि.मी. पहले ही गाड़ियों को जबरन पार्क करने के लिए बाध्य किया जाता है। जो लोग स्थानीय गाड़ियों से दर्शन के लिए जाते हैं, उन्हें मंदिर के गेट पर उतरने की सुविधा प्रदान की गई है। इस बाबत पूछने पर एक स्थानीय टैक्सी चालक ने कहा कि पुलिस प्रशासन का आदेश है। यहां स्टैंड और पार्किंग की समस्या थी, सरकार ने समाधान नहीं किया तो स्थानीय व्यावसायिक वाहनचालकों ने स्वयं चंदा करके मंदिर के गेट पर पार्किंग के लिए जगह का प्रबंध किया। अब ऊंचे पहाड़ पर पार्किंग तो समस्या है ही, हम अपनी गाड़ियां मंदिर के पास खड़ी करते हैं और जाहिर हैं कि बाहरी गाड़ियों को हम इस सुविधा का लाभ क्यों दें।

मंदिर के अंदर तो गजब अफरा-तफरी का माहौल दिखाई दिया। दिनांक 7 अप्रैल को यह संवाददाता जब मंदिर प्रांगण में दर्शनों के लिए घुसा तो यह देखकर अवाक् रह गया कि एक ओर पुलिस का एक वरिष्ठ अधिकारी पैसे लेकर स्वयं ही एक अलग दरवाजे से दर्शनार्थियों को मंदिर में प्रवेश करा रहा था. जबकि शेष साधारण दर्शनार्थी दड़बेनुमा गलियारों में चक्कर काटने के लिए आगे बढ़ा दिए जाते थे। मंदिर के अंदर पुजारियों की जगह पुलिस वाले स्वयं ही दर्शन-पूजन का काम संम्पन्न कराने में जुटे थे। छोटे से मंदिर में दर्शनार्थी के घुसते ही पुलिस वाले हाथ पकड़कर उसे बाहर धकिया देते। चारों ओर घोर अव्यवस्था का राज वहां पसरा पड़ा था।

विगत नवरात्रों में कुछ ऐसा ही हाल विश्व विख्यात विंध्याचल देवी के प्रांगण में दिखाई पड़ा। दर्शनार्थियों के अनुसार, विंध्याचल धाम में तो पुलिस की जेब गरम करते ही दर्शनों के सम्यक प्रबंध हो जाते हैं। माता की एक झलक पाने के लिए जहां लोगों को घंटों लाइनों में लगना पड़ता है वह काम चंद मिनटों में हो जाता है।

विंध्याचल देवी के प्रांगण में बैठने वाले एक पंडित आचार्य महेश वर्धन से जब हमने इस अव्यवस्था पर टिप्पणी चाही तो उन्होंने कही कि ‘ मालिक माई क दर्शन करा आउर आगे बढ़ा, इस सब ना सुधरल हव आऊर ना सुधरी।’ किंचित् आग्रह करने पर वह कहने लगे कि हमें मंदिरों की सुव्यवस्था का काम अपने हाथों में लेना पड़ेगा, पण्डा समाज चाहे तो सब ठीक हो जाए लेकिन क्या करे, सभी को अपने जजमानों को दर्शन कराने की जल्दी रहती है। उन्होंने सुझाव देते हुए कहा कि हम हिंदुओं को चाहिए कि हम मंदिर के वास्तु को इस हिसाब से पुनर्निर्मित करें कि दूर से भी कोई मां के दर्शन कर सके। मां के पूजित और प्राण प्रतिष्ठित चरण चार कोनों में रख दिए जाएं, उन्ही पर पंक्तिबद्ध होकर लोग दर्शन करें, अपना चढ़ावा, पूजन-प्रसाद आदि रखें।

आचार्य महेश वर्धन ने सुझाव अच्छा दिया था। लेकिन क्या इस पर कोई विचार करेगा कि एक साथ हजारों लोग कैसे अपने ईष्ट के दर्शन सुगमतापूर्वक कर सकें। खासतौर पर उन मंदिरों में ऐसी व्यवस्था किस प्रकार बन सकती है जहां वर्ष में अनेक अवसरों पर लाखों भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है, इस पर हिंदू भक्तों को कुछ तो विचार करना पड़ेगा।

अयोध्या स्थित रामजन्मभूमि में रामलला के सहज दर्शन के लिए जो याचिका डॉ. सुब्रम्ण्यम स्वामी ने सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत की है, संभव है उससे कोई मार्ग निकले। आखिर सेकुलर पुलिस और जनता को लूटने मे मशगूल राज्य प्रशासन के भरोसे तो सब कुछ नहीं छोड़ा जा सकता। हिंदू समाज को इस दिशा में गंभीर पहल करनी होगी ताकि उसकी आस्था और श्रद्धा के तीर्थ केंद्र अपने प्रखर स्वरूप में लोककल्याण का मंगलकारी पथ सदा प्रशस्त करते रहें।

-राकेश उपाध्‍याय