पर्यावरण

दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण के मौलिक कारणों को समझे बिना निदान बेहद मुश्किल, समझिए हुजूर!

कमलेश पाण्डेय

दिल्ली-एनसीआर में बढ़ता वायु प्रदूषण अब केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के गले ही हड्डी बन चुकी है क्योंकि उनके मातहत कार्यरत प्रशासन निरंतर अदूरदर्शिता केरल का घाव निर्णय लेने का आदी बन चुका है। लिहाजा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की चिंताएं स्वाभाविक हैं, लेकिन इन्हें भी प्रदूषण की बुनियादी बातों को समझना पड़ेगा और सर्वमान्य हल देने पड़ेंगे अन्यथा बात का बतंगड़ बनते देर नहीं लगेगी। 

इसलिए सबको पहले दिल्ली-एनसीआर के बढ़ते प्रदूषण के मौलिक कारणों को समझना होगा, फिर उसका माकूल वैज्ञानिक हल निकालने का माकूल प्रयास करना होगा, अन्यथा इसका निदान बेहद मुश्किल प्रतीत होता रहेगा। आखिर बीते कई दशकों से ‘सांप निकल जाने के बाद लाठी पीटने’ की जो प्रशासनिक कवायद जारी है, उससे किसी का भी भला होने वाला नहीं है। खासकर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के प्रबुद्ध नागरिकों का तो कतई नहीं क्योंकि दिल्ली का न तो मौसम अपना है, न पानी। बस ‘दलाली’ की जिंदगानी से गुजर बसर चल रहा है।

यही वजह है कि प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) ने दिल्ली-एनसीआर में बिगड़ती वायु गुणवत्ता पर एक उच्चस्तरीय बैठक बुलाई जिसमें प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों (जैसे BS3) के खिलाफ जांच और कड़ी कार्रवाई तेज करने तथा इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया। वाकई ये चिंताएं वाहनों से निकलने वाले उत्सर्जन को प्रमुख प्रदूषण स्रोत मानती हैं। 

वहीं, सर्वोच्च न्यायालय के नए मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत ने 26 नवंबर 2025 को दिल्ली-एनसीआर प्रदूषण पर सुनवाई के दौरान गंभीर चिंता जताई और दो टूक शब्दों में कहा कि न्यायिक मंच के पास कोई “जादू की छड़ी” नहीं है जो समस्या तुरंत हल कर दे। उन्होंने इसे स्वास्थ्य आपातकाल बताया और तत्काल निर्देश मांगे ताकि लोगों को साफ हवा मिले। अपनी प्रमुख टिप्पणियां देते हुए सीजेआई ने कहा कि प्रदूषण के कारण एकल नहीं बल्कि बहुआयामी हैं, इसलिए सभी कारणों की पहचान कर विशेषज्ञों से क्षेत्र-विशेष समाधान निकालने होंगे। 

चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने प्रदूषण की नियमित निगरानी और सुनवाई पर जोर दिया, क्योंकि दिवाली के बाद मामले गायब हो जाते हैं। इसलिए उन्होंने सरकार की समितियों की समीक्षा का आदेश दिया। साथ ही अगली सुनवाई के लिए 1 दिसंबर 2025 की तिथि मुकर्रर कर दी, जब व्यापक सुनवाई होगी। वहीं, व्यक्तिगत प्रभाव को स्पष्ट करते हुए सीजेआई ने स्वयं बताया कि प्रदूषण से सुबह की सैर बंद कर दी है क्योंकि टहलने के बाद सांस लेने में दिक्कत होती है और शाम को हवा अपेक्षाकृत बेहतर रहती है। कोर्ट वर्चुअल सुनवाई पर विचार कर रहा है। ये बयान समस्या की गंभीरता रेखांकित करते हैं। 

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर वायु प्रदूषण के समाधान के लिए निम्न सिफारिशें मांगी हैं: पहला, प्रदूषण के सभी कारणों की व्यापक पहचान करने और विशेषज्ञों तथा वैज्ञानिकों को शामिल करते हुए क्षेत्र-विशेष समाधान निकालने की आवश्यकता पर जोर दिया है। दूसरा, सरकार द्वारा बनाई गई कमेटियों और उनसे मिली रिपोर्टों की समीक्षा करना ताकि उनके कामकाज और प्रभावकारिता को परखा जा सके। तीसरा, प्रदूषण की निरंतर मॉनिटरिंग और एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) की नियमित निगरानी को मजबूत करना। चतुर्थ, तत्काल और दीर्घकालिक उपायों पर ध्यान देना जिससे लोगों को तुरंत और स्थायी रूप से साफ हवा मिले। पांचवां, आगामी सुनवाई में इन उपायों की प्रगति और प्रभाव का आकलन करना। देखा जाए तो यह सिफारिशें प्रदूषण की जटिलता और उसकी बहुदूरी प्रकृति को ध्यान में रखते हुए दी गई हैं, जिनका उद्देश्य तुरंत राहत देना और दीर्घकालिक सुधार सुनिश्चित करना है।

याद दिला दें कि निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट ने भी प्रदूषण रोकने के लिए एजेंसियों से पहले से तैयारी करने को कहा था, न कि स्थिति बिगड़ने पर प्रतिक्रिया देने को। तब कोर्ट ने निर्माण कार्यों पर पूर्ण रोक खारिज कर दीर्घकालिक समाधान, जैसे हितधारकों की संयुक्त बैठकें, पर जोर दिया ताकि पर्यावरण और विकास का संतुलन बने। वहीं, चिंताओं की वैधताये को स्पष्ट करते हुए कहा था कि कुछ चिंताएं अत्यधिक वैध हैं क्योंकि वाहन उत्सर्जन दिल्ली-एनसीआर प्रदूषण का प्रमुख कारण (लगभग 30-40%) है और पूर्व-कार्ययोजना की कमी से हर साल GRAP चरण लागू होते हैं। इसलिए कोर्ट का दीर्घकालिक फोकस व्यावहारिक है, क्योंकि अस्थायी उपाय जैसे पराली जलाना या निर्माण रोक असरदार साबित नहीं हुए, जबकि EV प्रोत्साहन और समन्वित प्रयास वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित हैं। 

समझिए, दिल्ली में प्रदूषण की मौलिक वजह क्या है?

उल्लेखनीय है कि दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण की मौलिक वजह मुख्यतः औद्योगिक धुआं, वाहनों से निकलने वाला धुआं, कचरा जलाना, निर्माण कार्य और सड़कों की धूल है। इसके अलावा, उत्तर भारत के निकटवर्ती जिलों से आने वाला प्रदूषण भी दिल्ली की हवा की गुणवत्ता को बेहद प्रभावित करता है। पराली जलाना इस बार दिल्ली के प्रदूषण में अपेक्षाकृत कम योगदान देता है। मुख्य प्रदूषण स्रोत निम्नलिखित हैं- 

पहला, औद्योगिक उत्सर्जन और अवैध कचरा जलाना दिल्ली में प्रदूषण का बड़ा कारण हैं। कई बार औद्योगिक और घरेलू कचरे की अवैध जलाने की घटनाएं घनी धुंध बनाने में सहायक होती हैं।  

दूसरा, वाहनों से निकलने वाला धुआं प्रदूषण में सबसे अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। दिल्ली में भारी ट्रैफिक जाम और धीमी गति के कारण वाहन ईंधन अधिक जलाते हैं, जिससे जहरीली गैसों का उत्सर्जन बढ़ता है।  

तीसरा, निर्माण स्थलों से निकलने वाली धूल और टूटी सड़कों की धूल भी वायु प्रदूषण में एक बड़ा योगदान देती हैं।  

चतुर्थ, आस-पास के एनसीआर इलाकों से आने वाला प्रदूषण भी दिल्ली की हवा को जहरीला बनाता है।

पंचम, पराली और अन्य स्रोतों का योगदान सम्बन्धी हाल की रिपोर्टों के अनुसार, पराली जलाने का दिल्ली के कुल प्रदूषण में केवल लगभग 2% का योगदान है, जो पहले के वर्षों के मुकाबले कम माना गया है।  

छठा, दिल्ली में खुले में कचरा जलाना, बायोमास जलाना, व गर्मी के मौसम में खाना पकाने से निकलने वाले धुएं का प्रदूषण में बड़ा हिस्सा होता है। 

इस प्रकार, दिल्ली में प्रदूषण का समाधान औद्योगिकीकरण, वाहनों पर नियंत्रण, कचरा प्रबंधन, निर्माण कार्यों की निगरानी, और एनसीआर क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण के संयुक्त प्रयासों से ही संभव हो सकता है।

यही वजह है कि दिल्ली में वाहनों से निकलने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) को बढ़ावा देना, पुराने वाहनों पर सख्ती, रेट्रोफिटिंग डिवाइस लगाना और GRAP उपायों का कड़ाई से पालन मुख्य उपाय हैं, जो इसप्रकार हैं:- 

पहला, सरकारी नीतियां और पहल: EV नीति 2.0: अगस्त 2026 से नए पेट्रोल, डीजल और CNG दोपहिया वाहनों की रजिस्ट्रेशन पर पूर्ण प्रतिबंध लगेगा। CNG ऑटो रिक्शा को EV से बदलने का लक्ष्य है, साथ ही चार्जिंग स्टेशन बढ़ाए जाएंगे।

दूसरा, पुराने वाहनों पर कार्रवाई: BS-I और BS-III वाहनों (लगभग 37% कुल वाहन) के खिलाफ PMO ने रियल-टाइम ट्रैकिंग, AI-आधारित मॉनिटरिंग और सख्त जुर्माना लगाने के निर्देश दिए हैं।

तीसरा, रेट्रोफिटिंग: DPCC द्वारा BS-III/IV वाहनों में कैटेलिटिक कन्वर्टर डिवाइस लगाने का पायलट प्रोजेक्ट शुरू, जो PM10/PM2.5 को 70% तक कम कर सकता है। IIT दिल्ली और ICAT टेस्टिंग करेंगे।

चतुर्थ, GRAP और अन्य उपाय: GRAP चरण-1/2 में सख्ती बढ़ाई गई है, जिसमें पुराने डीजल/पेट्रोल वाहनों पर पाबंदी, कंस्ट्रक्शन रोक और डीजल जनरेटर सीमित करना शामिल है।

पंचम, CNG का उपयोग बढ़ाएं, क्योंकि यह डीजल से बेहतर जलता है और प्रदूषण कम करता है।

छठा, कम सल्फर ईंधन, कैटेलिटिक कन्वर्टर और सख्त उत्सर्जन मानक (जैसे BS-VI) लागू करें।

सातवां, व्यक्तिगत कदमसार्वजनिक परिवहन या कारपूलिंग अपनाएं, पुराने वाहन स्क्रैप करें।EV खरीदने पर सब्सिडी लें और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर का उपयोग करें।

यही वजह है कि दिल्ली में वाहनों से प्रदूषण कम करने वाली पॉलिसी में सबसे जल्दी प्रभाव पुराने वाहनों पर सख्त प्रतिबंध, GRAP के तत्काल उपाय और बॉर्डर पर BS-VI/CNG/EV-only एंट्री दिखाएंगे।

पहला, त्वरित प्रभाव वाली नीतियां: पुराने वाहनों पर तत्काल कार्रवाई: BS-III/BS-I वाहनों पर PMO के निर्देश से रियल-टाइम ट्रैकिंग, AI मॉनिटरिंग और जुर्माना लगाना। ये 37% वाहनों को लक्षित कर तुरंत उत्सर्जन घटाएगा।

दूसरा, GRAP चरण-1/2 सख्ती: पुराने डीजल वाहनों की पाबंदी, डीजल जनरेटर सीमित करना और कंस्ट्रक्शन रोक। हाल ही में GRAP-3 हटने पर भी ये उपाय जारी रहेंगे, जो AQI में तेज सुधार लाते हैं।

तीसरा, बॉर्डर एंट्री प्रतिबंध: नवंबर 2025 से केवल BS-VI, CNG या EV वाहनों को दिल्ली में प्रवेश, ANPR कैमरों से लागू। इससे बाहरी प्रदूषण स्रोत 30-40% कम हो सकते हैं।

चतुर्थ, अन्य तेज उपाय: रेट्रोफिटिंग डिवाइस: BS-III/IV वाहनों में कैटेलिटिक कन्वर्टर लगाना, जो PM को 70% तक घटाए। पायलट प्रोजेक्ट तुरंत शुरू हो चुका है।

पंचम, पीयूसीसी सेंटर ऑडिट और ट्रैफिक सिस्टम: द्विमासिक जांच से अनुपालन बढ़ेगा, स्मार्ट ट्रैफिक सिस्टम जाम कम कर उत्सर्जन घटाएगा।

निःसन्देह, ये बदलाव 1-4 सप्ताह में AQI में 20-50 अंकों का सुधार दिखा सकते हैं, बशर्ते कड़ाई से लागू हों।

कमलेश पाण्डेय