दहेज की बलि चढ़ रही हैं महिलाएं

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हम आदिकाल को बहुत पीछे छोड़ आए हैं। रहन-सहन और खान-पान के मामले में भी हम आधुनिक हो गए हैं। यहां तक कि चांद और मंगल ग्रह पर भी पहुंच गए हैं, लेकिन इस सबके बावजूद आदिकाल की बर्बरता को हम आज भी ढो रहे हैं। स्वयं को श्रेष्ठ और शक्तिशाली मानते हुए औरों पर अत्याचार करने की मानसिकता आज भी बरकरार है। महिलाओं और बच्चों पर किए जाने वाले अत्याचार इसी मानसिकता का परिचायक हैं। हम इक्कीसवीं सदी में आगे बढ़ रहे हैं। आधुनिक होने के साथ-साथ हम कितने सभ्य हुए हैं, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि विश्व के अधिकांश देशों की महिलाओं को आज भी किसी न किसी रूप में उत्पीड़न का शिकार होना पड़ रहा है। भारत भी इस मामले में पीछे नहीं है। महिलाओं के दमन और शोषण के लिए यहां अनेक कुप्रथाएं चलाई गईं। कभी नियोग के नाम पर, कभी देवदासी के नाम पर तो कभी सती प्रथा के नाम पर उनका दमन किया गया। आज भी ये कुप्रथाएं किसी न किसी रूप में समाज में मौजूद हैं। कुप्रथाओं की इन्हीं फेहरिस्त में दहेज प्रथा भी शामिल है।

नेशनल क्राइम रिपोर्ट ब्यूरो की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ देश में हर 93वें मिनट पर महिला को आग के हवाले कर दिया जाता है। वर्ष 2005 में देशभर में 492 महिलाओं की दहेज के कारण हत्या कर दी गई, जिनमें 94 मामले दिल्ली के हैं। यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ देश में हर साल पांच हज़ार महिलाओं को कम दहेज लाने के कारण मौत की नींद सुला दिया जाता है और इन्हें हादसा करार देकर दोषी अपना दामन बचा लेते हैं। अनेक मामलों में महिला मरते समय अपना बयान तक नहीं दे पाती या ससुराल वाले उसे ऐसा न करने के लिए मजबूर कर देते हैं। ये घटनाएं सिर्फ वो हैं जो प्रकाश में आ जाती हैं। इनके अलावा कितनी ऐसी घटनाएं हैं जो होती तो हैं, लेकिन सामने नहीं आ पातीं। क्योंकि अधिकांश महिलाएं यह नहीं चाहतीं कि घर की बात बाहर जाए। मामला गंभीर होने पर ही उन्हें अदालत का दरवाज़ा खटखटाना पड़ता है।

एक अनुमान के मुताबिक़ दहेज हत्या के दो से पांच फ़ीसदी मामलों में ही दोषियों को सज़ा होती है, जबकि शेष मामलों में अभियुक्त साफ़ बच निकलते हैं। दोषियों को सज़ा न मिल पाने की वजह से उनके हौंसले बुलंद हो रहे हैं। दहेज से जुड़े अपराधों में बेतहाशा बढ़ोतरी होने के कारण 1961 में दहेज विरोधी क़ानून बना। 1984 और 1986 में इस क़ानून में और ज्यादा संशोधन किए गए। महिला संगठनों की कोशिशों के कारण दहेज हत्या को सीआरपीसी की धारा 304 में भी शामिल किया गया। साथ ही महिलाओं को दहेज के लिए मानसिक यातना के अपराध को सेक्शन 498 ए में शामिल किया गया, लेकिन दहेज के लालची लोगों के कारण ये क़ानून कोई कारगर साबित नहीं हो पाए।

दरअसल, प्राचीनकाल में लड़की को गृहस्थी शुरू करने में सहूलियत देने के मकसद से रोज़मर्रा में काम आने वाला घरेलू सामान दिया जाता था। इसके अलावा दहेज में वो सामान शामिल होता था, जो दुल्हन को उसकी सहेलियों व अन्य रिश्तेदारों से उपहारों के रूप में मिलता था। मगर बीते समय के साथ इसमें भावनाएं कम और लालच ज़्यादा शामिल होता गया, जिससे इसका रूप दिनोदिन खौफनाक होता गया।

अफसोस की बात यह भी है कि दहेज लेन-देन के मामले में शिक्षित वर्ग सबसे आगे है। लड़का जितना ज़्यादा पढ़ा-लिखा होगा, दहेज की मांग भी उतनी ही दरअसल, प्राचीनकाल में लड़की को गृहस्थी शुरू करने में सहूलियत देने के मकसद से रोज़मर्रा में काम आने वाला घरेलू सामान दिया जाता था। इसके अलावा दहेज में वो सामान शामिल होता था, जो दुल्हन को उसकी सहेलियों व अन्य रिश्तेदारों से उपहारों के रूप में मिलता था। मगर बीते समय के साथ इसमें भावनाएं कम और लालच ज़्यादा शामिल होता गया, जिससे इसका रूप दिनोदिन खौफनाक होता गया। होगी।

लोग टेलिविज़न पर दिखाए जा रहे सुख-सुविधा के नित-नए साधनों को देखकर रातो-रात इन्हें पा लेने की ख्वाहिश करते हैं और सीमित साधनों के कारण अपनी इच्छा पूरी न होने पर मायके से ये सब लाने के लिए लड़की पर दबाव डालते हैं। ऐसा न करने पर उसे तरह-तरह की मानसिक और शारीरिक यातनाएं दी जाती हैं। निम्न और मध्यम वर्ग के साथ-साथ समाज का उच्च तबका भी दहेज उत्पीड़न और दहेज हत्याओं के मामले में काफ़ी आगे है।

यह भी देखने में आया है कि उत्तर भारत की तुलना में दक्षिण भारत में दहेज हत्या की घटनाएं कम होती हैं। इसकी एक अहम वजह यह भी है कि दक्षिण भारत के हिन्दू परिवारों में चचेरे-ममेरे भाई-बहनों के बीच विवाह कर दिए जाते हैं। इससे पैतृक अन्य परिवार में जाने की बजाय एक ही परिवार में रह जाती है। दोनों परिवारों में पहले से ही संबंध होने के कारण शादी के बाद भी सामंजस्य बना रहता है और दहेज जैसा कोई विवाद नहीं उठता। गांवों के मुकाबले शहरों में दहेज हत्या की घटनाएं ज्यादा होती हैं। इसके कई कारण हैं, मसलन गांवों में आज भी लोग बुजुर्गों का आदर करते हैं और उन्हें डर रहता है कि अगर उन्होंने दहेज मांगने जैसी मांग उठाई तो उनका घर में ही सख्त विरोध किया जाएगा। गांवों में संयुक्त परिवार होने तथा पूरे गांव को एक ही परिवार के रूप में देखने की प्रवत्ति के कारण इस तरह के अपराध कम पाए जाते हैं। इसके अलावा गांवों में पैसे कमाने की होड भी इतनी नहीं होती जितनी शहरों में देखने को मिलती है। गांव के लोग अपनी सीमित आमदनी और सीमित साधनों में ही संतुष्ट रहते हैं।

दहेज उत्पीड़न के लिए पुरुष प्रधान समाज को ज़िम्मेदार ठहराकर इस ज्वलंत मुद्दे से दामन नहीं बचाया जा सकता, क्योंकि इसके लिए महिलाएं भी कम कुसूरवार नहीं हैं। अमूमन सास, ननद, जेठानी और देवरानी ही वधू पर दहेज लाने के लिए दबाव डालती है और कम दहेज लाने पर उसके मायका का नाम लेकर उसे बार-बार प्रताड़ित किया जाता है। यह एक कड़वी सच्चाई है कि कठोर दहेज कानून बनने के बाद भी दहेज उत्पीड़न से जुड़े अपराधों की तादाद दिनोदिन बढ़ती जा रही है। सर्वोच्च न्यायालय ने दहेज हत्या के एक मामले का फैसला सुनाते हुए इस पर गहरी चिंता प्रकट की और कहा ‘हमारे देश में सामने आने वाला यह तथ्य दुर्भाग्यपूर्ण और चिंताजनक है कि वधू-हत्या की घटनाएं खतरनाक रूप से बढ़ रही हैं। अगर समाज से यह बुराई दूर करनी है तो यह बहुत जरूरी है कि जब कभी इस प्रकार के कायरतापूर्ण अपराधों का पता लगे और मुजरिम पर अपराध साबित हो जाए तो अदालतों को ऐसे अपराधियों के साथ कठोरता से पेश आना चाहिए और ऐसा दंड देना चाहिए के दूसरे लोग सबक लें।’

दहेज संबंधी अपराधों से निबटने में क़ानून उतने कारगर साबित नहीं हो पाए हैं जितने होने चाहिए थे। इसके लिए निरक्षरता और अज्ञानता भी काफ़ी हद तक ज़िम्मेदर है। अधिकांश लोगों को कानूनों के बारे में जानकारी न के बराबर है। महिलाएं भी अपने अधिकारों से अनजान हैं। सामाजिक और महिला संगठनों की कोशिशों के बाद भी महिलाओं की दशा में कोई विशेष सुधार नहीं हो पा रहा है। यह चिंता का विषय है। दहेज हत्या और दहेज उत्पीड़न की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए समाज में जागरूकता लाने की ज़रूरत है। इसके लिए महिलाओं को स्वयं आगे आना होगा। लड़कियों को शिक्षित और आत्मनिर्भर बनाए जाने पर विशेष ध्यान दिया जाए, क्योंकि समाज में अपनी स्वतंत्र पहचान और स्वतंत्र अस्तित्व बनाए बगैर महिलाओं को इस समस्या से निजात मिलना मुश्किल है। अदालती स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार और लचर क़ानून व्यवस्था को भी दुरुस्त करने की ज़रूरत है, ताकि पीड़ितों को इंसाफ़ मिल सके और दोषियों को सज़ा। इसके अलावा आम नागरिकों को भी इस सामाजिक आंदोलन में शामिल होकर दहेज के लिए महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए आवाज़ उठानी होगी।

फ़िरदौस ख़ान

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फ़िरदौस ख़ान
फ़िरदौस ख़ान युवा पत्रकार, शायरा और कहानीकार हैं. आपने दूरदर्शन केन्द्र और देश के प्रतिष्ठित समाचार-पत्रों दैनिक भास्कर, अमर उजाला और हरिभूमि में कई वर्षों तक सेवाएं दीं हैं. अनेक साप्ताहिक समाचार-पत्रों का सम्पादन भी किया है. ऑल इंडिया रेडियो, दूरदर्शन केन्द्र से समय-समय पर कार्यक्रमों का प्रसारण होता रहता है. आपने ऑल इंडिया रेडियो और न्यूज़ चैनल के लिए एंकरिंग भी की है. देश-विदेश के विभिन्न समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं के लिए लेखन भी जारी है. आपकी 'गंगा-जमुनी संस्कृति के अग्रदूत' नामक एक किताब प्रकाशित हो चुकी है, जिसे काफ़ी सराहा गया है. इसके अलावा डिस्कवरी चैनल सहित अन्य टेलीविज़न चैनलों के लिए स्क्रिप्ट लेखन भी कर रही हैं. उत्कृष्ट पत्रकारिता, कुशल संपादन और लेखन के लिए आपको कई पुरस्कारों ने नवाज़ा जा चुका है. इसके अलावा कवि सम्मेलनों और मुशायरों में भी शिरकत करती रही हैं. कई बरसों तक हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की तालीम भी ली है. आप कई भाषों में लिखती हैं. उर्दू, पंजाबी, अंग्रेज़ी और रशियन अदब (साहित्य) में ख़ास दिलचस्पी रखती हैं. फ़िलहाल एक न्यूज़ और फ़ीचर्स एजेंसी में महत्वपूर्ण पद पर कार्यरत हैं.

5 COMMENTS

  1. Sir/maM meri Shadi 7feb2015 ko Nitin thakur se hui thi..Unhone duplicate marksheet dikha Kar interior designer+1 lakh monthly income btakar 8-10 lakh Shadi m lagwaya..M m.sc.,B.ed.,PhD scholar hu..abhi 4 months pregnant b hu..abhi 5 lakh ki demand or ki..& physically & mentally torture krk…mere husband or meri sasu maa underground ho Gaye h…aaj 10 din se bhooki pyasi apni sasural m Apne husband ka wait Kar rahi hu…mam plz help

  2. श्रीमान विशेष जी
    आपकी टिपण्णी विशेष है
    आप ने टिपण्णी बिना सोचे समझे सिर्फ यह जानकर करदी है की लेखिका एक मुस्लमान है और विरोधी मानसिकता के चलते आपने लिख दिया मुझे लेख मैं सिर्फ सामाजिक सरोकार नज़र आया. हालाकि मैं मुस्लिम के बारे मैं ज्यादा नहीं जानता, पर हे प्रबुद्ध प्राणी! आपकी जानकारी के लिए बता दूं के दहेज़ की शुरुआत हिन्दू धर्म से हुई है. आपने मनुस्मृति का एक गौरवगाथा वाला श्लोक सुना होगा,
    ”यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
    यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्त फलाः क्रिया”॥
    अर्थात् जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं जहां ऐसा नहीं होता वहाँ समस्त यज्ञार्थ क्रियाएं व्यर्थ होती है।
    यह मनुस्मृति का 56 वा श्लोक है lekin agar आप 54 और 55 वा श्लोक milakar padhenge to pata chalega की ye naar i की पूजा की nahi balki naaridhan arthat दहेज़ की पूजा की बात करता है .
    rahi बात 3 बीबी की शर्मनाक परम्परा की तो वो तो राजा दशरथ के भी थी और श्रीकृष्ण के १६००८ बीवियां थी.
    ज्यादा दहेज़ मांगना बुरा है| इस सामाजिक आंदोलन में शामिल होकर दहेज के लिए महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए आवाज़ उठानी होगी।

  3. Vishvesh sahab agar dahej itna hi zaroori hai to sirf ladki ke mata pita hi kyon bali ka bakra banein? ladke ke maan baap ko bhi dahej dene main hissedar banna chahiye..
    aur aap kripya mujhe bataiye ki hinduon aur musalmanon main kitne pratishat purush ek se zyada shadiyan karte hain?
    Quran aur hadees bahupatni pratha ki bohot hi khas halaat main ijazat dete hain aur saath hi is pratha ko purzor tareeke se discourage bhi karte hain..
    lekin hamein hindu musalmaan ki bahas main na ja kar ye sweekar karna chahiye ki bhartiya samaaj main stri ki halat dukhad hai..aur is stithi ko badalne ke liye main aur aap kya kar sakte hain ye chintan karne ki aavashyakta hai..
    Is ko hindu muslim issue na banaya jaaye to behtar hoga..balki hamare desh ki kisi bhi samasya ko sampradayic rang dena hi ghalat hain..ham sab bharatwaasi hain..aur hame bharat ke baare main sochna hai .Dharm jaati ke jaal main har baat ko uljhana theek nahi hai.

  4. Mehar ladki ko diya jaata hai mehar ladki ka utpeedan nahi balki uska haq hai.. aur mehar dekar sirf char shadiyan hi jayaz hain..wo bhi agar insaaf ho sake.agar insaf na ho sake to phir sirf ek hi patni ki ijazat hai ..aisa Quran main saaf likha hai. Aur dahej musalmaan bhi lete hain lekin gahe bagahe iske haram hone ke fatwe bhi aate rehte hain..isle alawa bahupatni pratha hindu samaj main musalmano se zyada hi payi jaati hai.. lekin ye baat sau fisadi sach hai ki bhartiya nari chahe kisi bhi dharm ya samaj se ho dabi kuchli hi hai..

  5. दहेज़ का विरोध जायज है किन्तु आपकी सोच हिन्दू विरोधी लगती है, क्योंकि दहेज़ सिर्फ हिन्दू समाज मैं दिया जाता है, और आपके यंहा मेहर लेकिन उसका जिक्र आपने नहीं किया| मेहर देकर आप कितनी भी शादियाँ करो ये कुप्रथा नहीं है क्या? कुरीतियाँ किसी भी समाज मैं हो उसको उजागर करना चाहिए किन्तु आप हिन्दू महिलाओं को ही शायद ये बताना चाहती हैं की दहेज़ की वेदी पर सिर्फ वो ही यानी हिन्दू महिलाए ही पीड़ित हैं. आपके यंहा तीन तीन बीबियाँ रखने की जो शर्मनाक परंपरा है उसे भी उजागर कीजिये वो भी मानसिक अत्याचार है |
    इन सब कुरीतियों मैं महिलाओं का पूरा समर्थन रहता है एक पुरुष से भी ज्यादा एक महिला ही दहेज़ के लिए दबाब बनती है, आपको इसका भी अध्यन करना चाहिए| एक महिला ही महिला की दुश्मन है| आप अपने लेख से हिन्दू पुरुष को निशाना बना रही हैं और हिन्दू महिलाओं मैं उनके प्रति नफरत फैलाना चाहती हैं|
    जबकि ऐसी कुरीति को सबसे ज्यादा हवा बाजारवाद ने ही दी है| ये अपने भी माना है की टेलीविज़न पर दिखाई जानेवाली चीजों को लोग पाना चाहते हैं. तो मूल दोषी कोन है समाज या बाजारवाद| आपको समस्याओं की जड़ तक जाकर लेख लिखना चाहिए न की किसी समाज विशेष को निशाना बनाना चाहिए|
    और हाँ दहेज़ को बुरा नहीं कहा जा सकता ज्यादा दहेज़ मांगना और उसके लिए जबर्दासी करना बुरा है| क्योंकि दहेज़ दो नवदम्पतियों को अपनी विवाहित जीवन शुरू करने मैं काफी सहोग देता है| क्योंकि बिना दहेज़ के उन्हें अपनी गृहस्ती बसने मैं काफी दिक्कत आती हैं|

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