कविता

मजदूर

international labours day

international labours day1 मई मजदूर दिवस पर विशेष

भले ही तन पर कपडे कम हैं

नगे पैर, न भूख की चिंता ,न प्यास की

फिर भी कमर ताने खडे हैं

सुबह से शाम कर रहे काम

इन्हे कहाॅ चैन है , ये तो मस्त हैं काम में ब्यस्त हैं

दो -जून की रोटी के लिए बचपन से अभ्यस्त हैं

इन्हे कहाॅ खबर दिन – रात की ,ये तो बचपन से ही बोझ तले पले हैं

भारत माॅ के ये नन्हे सपूत , अपने ही भूमि पर आज भी कर्ज से पस्त हैं

इनकी मेहनत का हिस्सा मालदार मजे से चाट जाते हैं

फिर भी मजदूर

अपने मेहनत के बल पर

अपनी आॅगन की तरह हर खलिहान में सोना उगाते हैं

अपना खून पसीना सींच कर

रेगिस्तान में भी लहलहाती फसल उगाते हैं

ऐसे हैं ये भारत के सपूत ,हर -पल काम में ब्यस्त हैं

देश , दूनियाॅ से दूर अपने छोटे से परिवार में ब्यस्त हैं

लक्ष्मी नारायण लहरे