दुनिया और ज़िंदगी का कड़वा सच ‘‘प्रेमधाम आश्रम’’

शादाब जफर ‘‘शादाब’’

आज हमारे समाज में हम देख और पढ रहे है कि रोज़ इंसानी रिश्ते किस प्रकार तार तार हो रहे है, दया ममता की देवी समझी जाने वाली मां आज अपने जिगर के टुक्डो को जन्म देने के बाद किस प्रकार और किस दिल से पन्नी और टाट, बोरी के टुक्डो में लपेट कर सड़को पर, पेड़ो की झाडियो में कुत्तो और जंगली जानवरो से नुचने के लिये छोड देती है। दूसरी ओर जिन बच्चो को मॉ बाप मेहनत मजदूरी कर के डाक्टर, इन्जीनियर, आईएस, पीसीएस बना कर समाज में मान सम्मान देते है। उन्ही बच्चो में से अधिकतर बच्चे आज अपना घर परिवार अलग बसा कर, हाई सोसायटी से जुडकर अपने गरीब मॉ बाप को धीरे धीरे भूलने लगते है। अपना सारा जीवन बच्चो पर निछावर करने वाले लोग बुढापे में खुद को उस वक्त और ठगा सा महसूस करते है। जब औलाद नौकरी के कारण अपने इन बूढे मॉ बाप को पडोसियो अथवा गॉव वालो के सहारे छोड कर शहरो में जा बसते है। और इन लोगो के मॉ बाप गॉवो कस्बो में पडे रोटी के एक एक निवाले को मोहताज हो जाते है हद तो तब हो जाती है जब मरते वक्त कोई अपना इन के मुॅह में पानी डालने वाला भी नही होता। आज के ऐसे समाज में यदि कोई व्यक्ति अथवा संस्था समाज और संपन्न परिवारो से ठुकराये बेसहारा, अनाथ, विकलांग, सामान्य जीवन जीने में असमर्थ शरीर और जिंदगी के नाम पर सिर्फ बोझ उठाये बच्चो, बूढे, नौजवानो को अपने गले से लगाये उन बच्चो को जो संसार को देख तो सकते है पर उस के बारे में बोल नही सकते, इन बच्चो के आंखे भी है और इन में रोशनी भी है पर ये लोग संसार कि खूबसूरती को अपने शब्दो में व्यक्त नही कर सकते क्यो कि ये बच्चे निशब्द है। ये बच्चे फूलो पर तितली को मडराते हुए देख तो सकते है पर दौड़कर उसे पकड़ नही सकते क्यो कि ये बच्चे विकलांग है। ये बच्चे आश्रम में आने जाने वाली रोज सैकडो महिलाओ को अपने पास से गुजरते, खुद को दुलारते देख और महसूस करते है पर मां कहकर उन से लिपट नही सकते क्यो कि ये बच्चे नही जानते कि मां क्या होती है मां की ममता क्या होती है।

अभी पिछले दिनो देश में चार धाम यात्रा का शुभारंभ हुआ। हम लोग चार धाम यात्रा पर निकलते है मन की शांति के लिये, अपने पापो के प्रायशिचत के लिये। भगवान के दर्शन के लियें, पर आज ऐसे कितने लोग है जो ऐसी यात्राओ पर जा पाते है शायद चंद लोग, वजह कुछ पैसे न होने के कारण तो कुछ स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण, वही कुछ लोग समाजी जिम्मेदारियो की वजह से, तो कुछ व्यापार, घरेलू जिम्मेदारियो की वजह से ना चाहकर भी चार धाम यात्रा पर नही जा सकते। पर देश में चार धाम के अलावा भी एक और पांचवा धाम है जहा की यात्रा यकीनन मन को शंाति, पापो से मुक्ती और भगवान को खुश कर सकती है। जी हा ‘‘प्रेमधाम आश्रम’’ उत्तर प्रदेश के छोटे से कस्बे नजीबाबाद (बिजनौर) में कोटद्वार रोड़ स्थित प्रेमधाम आश्रम एक ऐसा स्थान है जहा दीन दुखियो की सेवा कर के जो मन को सकून और शांति मिलती वो अमूल्य और अनमोल होती है। ये आश्रम और इस आश्रम की छत तो बहुत छोटी है पर एक दो तीन नही बल्कि सैकडो विकलांग, मूक, बघिर, बच्चे इस छत की छाव में प्यार दुलार पाते है जिन को खुद इन के अपने माता पिता ने शारीरिक, मानसिक, बौधिक रूप से विकसित न होने की वजह से महत्तवहीन, रिजेक्ट समझकर अपने आप से अलग कर लिये इन बच्चो के सीने में दिल तो धडकता है पर ये मासूम बच्चे उस दिल की आवाज, भावनाओ को नही समझ सकते। आखे खुली होने के बावजूद इन मासूम बच्चो को संसार की सुन्दरता धुधली नजर आती है। मा पापा बोलने को मन करता है पर जबान नही खुलती। भूख प्यास लगती है पर चाह कर भी खाना नही मांग सकते, अपने दिल की बात बता नही सकते। ये दास्तान किसी फिल्म की कहानी या किसी नाविल की दर्द भरी स्टोरी नही बल्कि जनाब ये उन बच्चो की हकीकत है जो नजीबाबाद कोटद्वार रोड स्थित प्रेमधाम आश्रम में प्रवेश करते ही पत्थ्र मन को भी पसीजने के लिये मजबूर कर देती है।

प्रेमधाम आश्रम दुनिया और इस ज़िंदगी का वो कडवा सच है जिसे दुनिया के सामने एक किताब की तरह रखा है फादर शिबू थॉमस और फादर बेनी ने जो इस आश्रम के सूत्रधार भी है और सेवक भी, बच्चो के मा भी है और बाप भी ये लोग आश्रम में रह रहे बच्चो को नाश्ता, खाना देने के साथ ही उन्हे स्नान कराने के साथ ही उन का मल मूत्र साफ करने के अलावा आश्रम की साफ सफाई, रसोई का काम अपने हाथो से करना इन इंसानी रूपी फरिश्तो की जिंदगी का मकसद बनने के साथ ही इन की रोज मर्रा की जिंदगी में शुमार हो गया है। आज के दौर में ऐसे लोग कहा किसे नसीब होते है पर ये हकीकत है कि खुद को बदनसीब समझने वाले इन बेसहारो लोगो को सहारा आज कल फादर शिबू फादर बैनी और प्रेमधाम आश्रम बना है। ये लोग इन बेसहारा, अनाथ, विकलांग व सामान्य जीवन जीने में असमर्थ बच्चो, बूढे, नौजवानो को जिंदगी जीने की कला सीखे रहे है। इस आश्रम में बच्चे ही नही कबूतर, खरगोश, तोते और न जाने कितने प्रकार के पशु पंक्षी भी रहते है।

नजीबाबाद क्यो कि प्रेम भाईचारे एकता का मरकज है शायद इसी लिये खुदा ने यहा के लोगो को इन बेसहारा, अनाथ, विकलांग व सामान्य जीवन जीने में असमर्थ बच्चो, बूढे, नौजवानो की खिदमत के लिये चुना। कुछ पत्रकार साथियो ने इसे मिशन के रूप में लिये नतीजा आज शहर और आसपास के न जाने कितने लोग डीएम, एसडीएम, समाजसेवी, बिजनैस मेन, शिक्षक, साहित्यकार रोज इस आश्रम में अपने बच्चो का जन्मदिन इन लोगो के बीच मनाने आते है और फल, कपडे, मिठाईया आश्रम के बच्चो बूऐ लोगो के लिये लेकर आते है। कुछ लोग दिन भर इन लोगो की सेवा करते है तो कुछ अपनी जिंदगी के सारी टेंशन इन बच्चो की एक मुस्कान के आगे भूल जाते है। प्रेमधाम आश्रम एक ऐसा आश्रम है जिसे किसी प्रकार की कोई सरकारी मदद नही मिलती खुदा का करम है कि आज इस आश्रम में कोई भी भूखे पेट नही सोता और उस के शरीर कपडे भी अच्छे से अच्छे रहते है। फादर शिबू और फादर बैनी का इन बच्चो से कोई इंसानी रिश्ता नही है, हा बस एक रिश्ता है वो है मानवता का जिसे ये लोग इन दीन दुखियो की मदद कर अपना फर्ज पूरी मेहनत लगन से निभा रहे है। हम सब के परिवारो में बच्चो के बर्थ डे, विवाह शादिया होती है यदि हम भी आने वाले समय में प्रेमधाम आश्रम और इन बेसहारा, अनाथ, विकलांग व सामान्य जीवन जीने में असमर्थ बच्चो, बूढे, नौजवानो को याद रखेगे तो यकीनन समाज में ये बच्चे और बूढे लोग भी बोझ बन चुकी जिंदगी और संघर्श बन चुके अपने जीवन को हॅसी खुशी, हमारे कारण बेहतर सप से जी सकेगे।

1 COMMENT

  1. सच दुनिया के रंग भी अजीब है। कही घर आगन बच्चो की किलकारियो से गूंज रहे है और कही सब कुछ है पर मां कहने वाला कोई बच्चा नही। ये सब उस का करिश्मा है वो दुनिया का निजाम खुद बनाता है। आज ये मासूम बच्चे जो आश्रमो में पल रहे है दूसरो की भीख दया पर निर्भर है कल कही न कही इन के पैदा होने से पहले खूब खुशिया मनाई गई होगी। इन के भी मां बाप, दादा दादी भाई बहन होगे पर आज इन का कोई नही क्यो ये बच्चे विकृत नही बल्कि हमारा समाज और इस की सोच विकृत है। खूबसूरत लेख के लिये लेखक को बधाई

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress