ग्वाल-ग्वाला वंश परंपरा के पूज्य देवी-देवता

        आत्माराम यादव पीव  

       यह ब्रह्मांड एक शक्तिपुंज है जिसमें आदिशक्ति शिव ओर प्रकृतिरूपा शक्ति की अनेक नाम ओर स्वरूप मे  देवियो को पूजने का विधान है। प्राय सभी जाति ओर वर्ग में लोक देवी देवता शक्ति के अवतार माने गए है जिनके उदभव, विकास ओर सुयश के संबंध में अनेक गाथाएँ, किवदंतिया लोक जीवन में आस्था का केंद्र बनी है जिनसे लोग अपनी मनोती, बीमारीओं, समस्याओं के निदान के उपाय के अलावा पशुओ की व्याधिया ओर उनके गुम होने जैसे अनेक मसलों को लेकर उनकी पुजा, अर्चना, अनुष्ठान करते है। कुछ समाजों में पारिवारिक व्यवस्था भिन्नता लिए है जहा मानवों को देवतुल्य माना जाकर उनकी शक्ति से अपने परिवार मे नकारात्मक शक्तियों का निकाल करना परंपरा का एक अंग बन गया है। एक युग के देव राम,कृष्ण, बुद्ध आदि को अवतार मानकर पूजने का चलन शुरू हुआ वही गुरुनानक, संत नामदेव,गोगाजी, करणीमाता, हंसो माता, हरदोल बाबा, नाथुबाबा, गुरुआ बाबा आदि मानवों को देवतुल्य स्थान दिया गया। हर समाज में, हर वर्ग में कुलदेवता ओर कुलदेवी का विशेष महत्व है ओर वे समाज अपने परिवार की हर खुशी में, हर शुभ कार्य में इन देवी देवताओं का सुरक्षाकवच पाने के लिए उन्हे प्रथमस्मरण कर हर धार्मिक काम में उन्हे सबसे पहले पूजते है। बुजुर्गों का विश्वास है कि हमारे पूर्वजों के द्वारा पूज्य ये कुलदेवता ओर देविया हमारे वंश कि रक्षा करती है ओर इससे वंश कि प्रगति भी होती है। जब भी परिवार में कष्ट आते है ओर नकारात्मक शक्तियाँ हावी होती है तब परिवार के बुजुर्ग इन कुल देवता देवी का सुरक्षा चक्र हटने की बात कर इन्हे मनाने कि बात करते है जो आज कि पीढ़ी को हास्यास्पद लगती है।

        देवी लोक गाथाओं की उत्पत्ति के संबंध में सैद्धांतिक चर्चा में किसी भी लोक देव,देवता या देवी का उल्लेख विशेष जातिवाद में प्रगट होता है जहा सामुदायिक रूप से उन्हे स्थान दिया गया है। यादव, ग्वाल,ग्वाला जाति ओर उसके समस्त गौत्र के लोग कार्तिक के महीने में कन्हैया, चैत्र ओर क्वार की नवरात्रि में देवी जस ओर भादों मास में कारसदेव की गाथाओं के साथ उन्हे पूजने ओर भोग लगाने का प्रचलन आज भी चलाये हुये है जो होशंगाबाद, बेतूल,सीहोर, शाजापुर, रतलाम, मंदसौर, उज्जैन,आगरमालवा, नीमच, शिवपुरी, सागर, बीना, छतरपुर, झाँसी, ग्वालियर, दतिया जैसे कई जिलों में ग्वाल छावनियों में दिखाई देती है। जहा ग्वाल समाज के लोग खंजड़ी, मजीरे ओर टुमकी बजाकर अपने देवों ओर देवियो को प्रसन्न करते है। लोक विश्वास में प्राय हर जाति वर्ग के रीति रिवाज ,गीत गाथाएँ  मानव स्वभाव से भिन्न नहीं है ओर लोग जादू टोना, सम्मोहन,वशीकरण, ताबीज गंडा,भाग्य, शकुन,रोग तथा मृत्यु के संबंध में अपने कुल देवता-देवी की पुजा पर पूर्ण विश्वास में जीते है ओर उनके अनुष्ठान से उनके दूर होने के विश्वास को मानते है। अपने कुल में जिस कूल देवी देवता को पूजने या मानने का रिवाज है उसके लिए पूरे कुटुंबियो, गोत्र बंधुओ के साथ परिवार के चबूतरे पर मढ़िया एकत्र होते है जिसमें कही कही पढ़िहार के शीश में इन देवी देवता की छाया आकार सभी की समस्याओं ओर पीड़ाओ को सुनकर उसका समाधान करती है ओर लोगों को सुरक्षा के लिए गेहु के दाने पढ़कर आहुती देने वाले अंगार की भभूति के साथ खाने, अपने पास रखने जैसे अनेक उपाय बताकर शांत हो जाती है फिर सभी एकत्र कुल के कुटुंबी चबूतरे के सामने प्रजाल्वित दीप को अपने देव देवता का स्वरूप मानकर कंडे के अंगार में धूप छोडने, अंगार में दीपक से उंगली से तेल छिड़ककर अग्नि को आहुती देने ओर अंगार मे अग्नि के उत्पन्न होने को उनका आगमन मानकर चलते है। इसके पूर्व दीपक के चारों ओर कोई पाँच, कोई सात, कोई नौ पूरिओ के जोड़े रखकर उसमे खीर,हलवा रखकर उसे खोटना बताकर प्रत्येक जोड़े से थोड़ा थोड़ा भोग लगाकर आरती कर प्रसादी पाते है ओर घर की महिलायों में सबसे पहले बुजुर्ग दादी, माँ भाभी आदि से शुरू कर बहुओ को जोड़े का प्रसाद बांटकर पुजा पूरी समझी जाती है। यहा देखने को मिलता है कि परंपरा धर्म को पोषित करती है,पर धर्म जैसा कुछ आभास नही होता। कुछ चमत्कारिक घटनाए बाद में पुजा का स्थान पा लेती है तो कुछ पौराणिक महत्व के प्रसंग परिवार के पूजा के लिए सभी को कुटुंब सहित एक स्थान पर जोड़ता है।

       बचपन से देख रहा हूँ कि होशंगाबाद नगर की ग्वालटोली हो, बघबाड़ा-जोशीपुर,बुदनी, सीहोर आदि कई स्थानों पर ग्वाल- ग्वाला, यादव परिवारों के घरों में, मोहल्लों में कारसदेव, हीरामन, नाथुबाबा, बनवारी बाबा, जोधा बाबा, चोखेबाबा, नगरसेन/ नगरा बाबा, हरदोलबाबा, नटनी मैया,हंसों मैया, भैरों बाबा,  माटू बाबा,सफा बाबा, ग्वाल बाबा, गुरुआ बाबा, पटेल बाबा आदि कि पूजा-अर्चना की जाती है। पिछले चार दसक पूर्व के सबसे बुजुर्ग ओर पढ़िहारी करने वाले पंडो ओर रजालयों से मेरा संपर्क रहा है ओर ग्वालटोली में श्रीवास मोहल्ले में देवीप्रसाद गुजेलेपढ़िहार के ऊपर कई देवी देवताओं का शक्तिपात देखा है जो जोदा बाबा सहित कई देवियो ओर देवों के शीश आने के लिए मशहूर थे। ऐसे ही चोधरी हरीराम रियार डंडावाले, गिरधारी कछवाए, कुमिया दादा, कन्दोला सागर, दौलत हिन्नवार, केवल हिन्न्वार, जगदीश रररा, गणेश कछवाए जैसे तीन दर्जन से अधिक पढ़िहारों ओर महिला पढ़िहारों के संपर्क में रहा ओर मरई मैया,हिंगलाज मैया, विजयासन मैया कौसल कालिका ,रक्त कालिका,नगरा बाबा, ग्वाल बाबा, जोदा बाबा, हरदोल बाबा, नाथु बाबा, हीरामन-कारसदेव जैसे कुल देव ओर देवियो की जयकारे लगाकर खुद के शीश में उतरने पर चबूतरे पर खेलते ओर उनकी पुजाए करवा कर सामान्य बोलचाल में बाते करने ओर सुख दुख पूछने,निदान करने के बाद लौट जाते। मैंने अनेक बार पर इन सभी कुल के पूज्य देवी देवताओ के जीवन चरित्र, गाथा, या कहानी जो भी उनका इतिहास है, के विषय में तत्समय के बुजुर्गों सहित इन पढ़िहारों से जानना चाहा तो इनके द्वारा कभी भी कोई निश्चित परिपक्व जानकारी नही मिल सकी ओर इतना ही जबाव मिला की हम तुम्हारे देवता है, तुम्हारे कुल के है। अलबत्ता कुल के इन देवी देवताओं के जन्म लेने ओर जीवन के विषय में जो भी बाते होती है वे प्रमाणित न रहकर कल्पना की उड़ाने भर है इसमे सत्य दिखाई नहीं देता है। समाज में एक ओर सुख शांति ओर सौहाद्र होते है तो दूसरी ओर संघर्ष ओर कलह होते है,सुख शांति ओर सौहाद्र वालों की अपनी मौज है जबकि संघर्ष ओर कलह में जीने वाले पूजा पाठ पर जीना पसंद करते है । जो लोग अपने कुल के देवी देवता को भूलते है, आधुनिकता के दौर में अपने परिवार,कुटुंब कुल की जड़ों से कट जाते है दुख भोगते है, जबकि बुजुर्गों का कहना रहा है की हमारे कुल के इन देवी देवताओं से हमे बहुत आशीर्वाद मिलता है जिससे जीवन बाधा के सभी कंटक हट जाते है।

       आज भी ग्वाल- ग्वाला समाज में 28 गौत्र भाटों से मिलते है किन्तु इन सभी 28 गौत्रों में किस गौत्र का कौन ऋषि है? किस गौत्र का वंश वृक्ष कहाँ से शुरू हुआ ओर किस गौत्र का कुल देव ओर कुल देवी कौन है इसका प्रमाण संग्रहित नहीं है ओर न ही वेद पुराणों-शास्त्रो में इसका उल्लेख मिलता है । भाटों के माध्यम से यह जानकारी जरूर मिल जाएगी की कौन गौत्र का प्रथम खेड़ा क्या है ,किस स्थान से वे निकल कर यहा आए ओर कहा कहा उनके पूर्वज निवास करते आए है। किसी भी समाज का इतिहास, भूगोल, जहा निवास कर रहे है वहाँ उनके स्वभाव- व्यवहार, व्यक्तित्व ओर उनके जीवनानुभाव का संरक्षण होना चाहिए लेकिन यादवों में ग्वाल-ग्वाला समाज इसमें पिछड़ा है ओर उनका उल्लेख नही मिलता है। सभी समाज आदिमयुग से आए है जिनके जीने के लिए काम धंधे के अलावा धर्म, मनोरंजन का समावेश उन्होने किया है इसलिए सभी नृत्य-गीतों वाद्यन्त्रो में स्वंय के सुखदूख के अलावा अपने देवी देवता के गीत-कथा उन्होने साहित्य में सम्मिलित कर अपना लिए है।

       वर्ष 1975 से 1995 के दौर का मैं साक्षी रहा हूँ जहा रोग,शोक,दुख,चिंता के अलावा भूत,प्रेत, चूड़ेल तथा अकाल मौत मरने वालों की आत्माओ की प्रताड़ना को लेकर हर सप्ताह चबूतरे पर पढ़िहार/पंडा के शरीर में इन लोक देवी देवता के अलावा पूर्वजों के भाव आते ओर उनके शरीर में एक अलग ही तरंग देखने को मिलती ओर वे अपनी चोकी से समस्याओ का निराकरण करते। आज भी यह क्रम जारी है लेकिन मेरा जुड़ाव इन चोकियों से नहीं है। तब मैं देखा करता की किस तरह उनके द्वारा मनोरथो को पूरा करने के लिए भेंटे ली जाती थी। कुछ देव शराब के शौकीन थे, तब मैं पहली बार 30 पैसे लेकर शराब दुकान से उनके लिए एक अद्धी लेकर आया ओर यह क्रम 1 रुपए 60 पैसे तक शराब की अद्धी लाने तक जारी रहा। देवता के लहर पढ़िहार में उतरते ही वे प्रसाद मांगते ओर उन्हे पीने को अद्धी मिल जाती, वे सामान्य बोलचाल में बाते करते ओर समस्या सुन निराकरण करते लेकिन कई गंभीर मसले होते तो बोलते में दीदी को भेज रहा हूँ उन्हे बताना, ओर उसके शरीर से देवता विदा हो जाता ओर वे सामान्य होने के बाद फिर घूमने लगते ओर देवी आई है बोलकर जयकारे लगवाते। तब मेरे सुलभ मन में प्रश्न हुआ करता की जिसने अभी देवता के रूप में शराब का सेवन किया है उसके शरीर में विजयासन देवी,कालका देवी, रक्त कालका जैसी अनेक पूज्य देविया क्योकर आ जाती, मैं घूमने वाले पढ़िहारों से प्रश्न करता वे डपट देते ओर  वहाँ दूसरे मौजूद लोग कहते ऐसा पूंछकर अपने देवी देवता का अपमान नही करते। यह क्रम नवरात्रि पर विशेष जस होने पर ज्यादा दिखता तब अनेकों के शरीर से शक्तिपात के साथ हुक,किलकारी सुनने को मिलती। परम्पराओं से चली आ रही यह लोक देवी देवता के पूजित ओर चबूतरों में प्रतिष्ठित उनके स्वरूपों पर पुर्णिमा, अमावस्या, चौदस, पंचमी, सप्तमी ओर नवमी को घर की महिला ओर पुरुष के शरीर में लाल पीले, नीले एवं हरे व अन्य रंग के आकर्षक वस्त्रों को धारण कर उझलते –कुदद्ते देखना , चबूतरे के मदिर में रिवाजनुसार समाज के साथ प्रसाद चढ़ाने ,बांटने , झण्डा चढ़ाने, आदि के अवसरों पर कुटुंब परिवार के आलवा हलुआ का प्रसाद बांटने का यह सिलसिला जारी है जो पीढ़ी दर पीढ़ी देखने को मिल रहा है। 

1 COMMENT

  1. सर,नमस्ते! मै रूपेश मेटकर अमरावती,महाराष्ट्र से हूुं. हमारी जाती गवलान है.पहले हमे गौलान,या गोलान कहते थे.यह जाती मध्य प्र.के बैतुल,होशंगाबाद,हरदा, और महाराष्ट्र के अमरावती जिले के तीन तहसिल-चिखलदरा,धारणी,और अचलपूर मे मुख्य रुपसे स्थित है.हम खुदको ग्वालवंशी मानते है.और पांरपरिक व्यवसाय गोपालन एंव खेती का है.फिरभी हमारा समावेश ओबीसी लिस्ट मे एक नंबर के बजाय 71 नंबर पर है(म.प्र.) केंद्र में तो उल्लेख ही नही.जबकी महाराष्ट्र मे गवळी की पोटजाती के रुप मे हमे स्वीक्रुत किया है.आपके पास इस इलाके के भाट का पता या फोन नं. हो तो क्रीपया मेल करें.या फोन करे. मेरां नं.8317283307

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress