‘आप’ की नौटंकी आखिर कौन सा स्वराज लाएगी?

जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव की तारीख करीब आ रही है, आम आदमी पार्टी ‘आप’ की नौटंकी बढ़ती जा रही है| ‘आप’ को वन मैन शो बना चुके अरविंद केजरीवाल अब अपनी हदें तोड़ते नज़र आ रहे हैं| यहां तक कि ‘आप’ के जो कार्यकर्ता अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी की टोपी पहन खुद को राजनीतिक भीड़ से अलग प्रस्तुत करते हैं; सर्वाधिक हिंसा पर उतारू हो गए हैं| केजरीवाल का दिवास्वपन कार्यकर्ताओं से उनकी हदें पार करवा रहा है| गुजरात में मोदी के खिलाफ प्रचार में उतरे केजरीवाल को आचार संहिता के उल्लंघन में गुजरात पुलिस ने रोका तो ‘आप’ ने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया| यह प्रचारित किया गया कि भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी ‘आप’ की लोकप्रियता से डर गए हैं और उनके गृहराज्य गुजरात के विकास दावों की पोल सार्वजनिक न हो अतः मोदी ने ही राज्य प्रशासन पर दवाब डलवाकर केजरीवाल का प्रचंड काफिला रुकवाया| जबकि असलियत यह है कि जब केजरीवाल रोड शो केलिये निकले तो उस वक़्त आचार संहिता लागू हो चुकी थी और कायदे से उनके काफिले में ३ वाहनों से ज्यादा नहीं नहीं होने चाहिए थे किन्तु टेलीविजन माध्यमों द्वारा पूरे देश ने केजरीवाल की कथित आदमियतता देख ली थी| जो आदमी आज से १० माह पहले तक आम आदमी की सरकार देने का वादा करते नहीं थकाता था, गुजरात में उसी के काफिले में करोड़ों की गाड़ियां दौड़ रही थीं| केजरीवाल को रोकने की कीमत देश ने दिल्ली और लखनऊ में ‘आप’ कार्यकर्ताओं के हिंसक प्रदर्शनों के रूप में देखी| चुनाव आयोग का भी मानना है कि मामले को लेकर ‘आप’ का रवैया कतई स्वीकार्य नहीं था और उसने ‘आप’ से जवाब-तलब भी किया किन्तु ‘आप’ ने उलटे भाजपा पर ही आरोप जड़ दिए| क्या ‘आप’ देश को अस्थिर करने का प्रयास कर रही है? क्या ‘आप’ लोकतांत्रिक प्रकिया में विश्वास खो चुकी है? ऐसे तमाम सवालों के जवाब ‘आप’ की कार्यशैली को देखकर तो सही ही जान पड़ते हैं| दिल्ली की जनता को झूठे वादों-दावों से भरमाकर सत्तासीन हुई ‘आप’ का भ्रमजाल जब अधिक नहीं चल सका तो उसने लोकपाल मुद्दे पर शहीद होने का स्वांग रचकर देश को भरमाया और अब लोकसभा चुनाव हेतु कमर कसकर तैयार है| किन्तु भानुमति का कुनबा बन चुकी टीम केजरीवाल भारतीय राजनीति के वर्तमान दौर का ऐसा स्याह पक्ष है जो राजनीति को गर्त में धकेलने के सिवा कुछ नहीं कर रही| आम आदमी की राजनीति के नाम पर जो ढोंग का मुखौटा केजरीवाल ने पहन रखा था, अब धीरे-धीरे ही सही मगर उतर रहा है| ‘आप’ के कई कार्यकर्ता केजरीवाल पर पार्टी को बंधक बनाने का आरोप लगाकर पार्टी को छोड़ चुके हैं| इनमें से कई तो पार्टी की स्थापना के समय से इसके साथ थे| सवाल उठता है कि जब केजरीवाल और उनके कुछ ख़ास पार्टी के सभी फैसले बंद कमरों में ले लेते हैं तो जनता को बरगलाने का ढोंग क्यों? केजरीवाल के झूठ लगातार उजागर हो रहे हैं और मीडिया का एक तबका उन्हें अब भी आम आदमी का नायक घोषित किए हुए है। क्या सत्ता का यही चरित्र दिखाने के लिए केजरीवाल ने आम आदमी के नाम को गाली दी? क्या कांग्रेस की बी टीम बनकर केजरीवाल एक तीर से दो निशाने नहीं साध रहे? केजरीवाल राजनीति के जिस कीचड में उतरकर उसकी सफाई करने निकले थे; खुद उसका हिस्सा बनकर आम आदमी की बेबसी पर कुटिल मुस्कान बिखेर रहे हैं| 
दरअसल केजरीवाल ने तयशुदा स्क्रिप्ट के जरिए खुद को राजनीति के मैदान में उतारा है| इसमें उनका खुद ब्यूरोक्रेसी में होना और राजनेताओं के दावं-प्रपंचों से नजदीक से जानना अब उनकी मदद कर रहा है| केजरीवाल जितने भावनापूर्ण संबोधन देते हैं वे सुनने में तो अच्छे हैं किन्तु उनका यथार्थ के धरातल पर उतर पाना असम्भव ही है| मैं राजनीति में स्वच्छता का विरोधी नहीं हूं| राजनीति में साफ़-सुथरे आम आदमी का आना अब अवश्यम्भावी हो गया है किन्तु आम आदमी को भरमाकर या उसकी भावुकता को हथियार बनाकर राजनीति करना आम आदमी की राजनीति नहीं हो सकती| केजरीवाल की कथित सादगी और उसका प्रचार-प्रसार आम आदमी की राजनीति में नहीं आता| ‘आप’ के कई नेताओं की कथित सादगी सवालों के घेरे में है| एनजीओ के कई सर्वेसर्वाओं को लोकसभा का टिकट देकर यदि ‘आप’ यह सोच रही है कि उसने आम आदमी के बीच टिकट बांटे हैं तो वह गलत है| स्थापित नाम आपको एक्सपोजर दे सकते हैं किन्तु वोट नहीं दिलवा सकते| ‘आप’ को लोकसभा चुनाव मैदान में उतरने से पहले एक बार देश के राजनीतिक इतिहास की पृष्ठभूमि को खंगाल लेना चाहिए था| जिस साफगोई से केजरीवाल पार्टी सफ़ेद झूठ बोलती है उसका वर्तमान राजनीति में कोई सानी नहीं है| दिल्ली की सत्ता से देश की सत्ता पर काबिज होने का उनका सपना एक ऐसे भारत निर्माण का खाका पेश कर रहा है जहां सिर्फ और सिर्फ धोखा है| आम आदमी परेशान है लेकिन ‘आप’ को जनसमर्थन उसे दूरगामी परिणामों के रूप में सिर्फ तकलीफ ही देगा| लोकसभा चुनाव के बाद यदि ‘आप’ के चुनिंदा सांसद भाजपा या कांग्रेस में चल दें तो इस पार्टी का क्या अस्तित्व बचेगा? फिर ऐसा भी नहीं है कि ४०० लोकसभा सीटों पर लड़कर ‘आप’ केंद्र में सत्तासीन हो ले? कुल मिलाकर ‘आप’ को मिलने वाले वोट कांग्रेस-भाजपा का खेल तो बिगाड़ सकते हैं मगर उसे सत्ता के शीर्ष तक नहीं पहुंचा सकते| और यह तथ्य देश का आम आदमी भी भली-भांति जानता है| तब एनजीओ रुपी संगठन से राजनीतिक पार्टी बनी ‘आप’ को इतना सर क्यों चढ़ाना? जब उनके पितामह अण्णा हज़ारे ने केजरीवाल एंड कंपनी पर भरोसा नहीं जताया तब आप और हम क्यों उनके झांसे में आएं? जो कॉर्पोरेट दिग्गज आज ‘आप’ से जुड़ रहे हैं उन्हें एनजीओ की कमाई नज़र आ रही है वरना कलयुग में ऐसा कौन सरफिरा होगा जो लाखों-करोड़ों की कमाई छोड़कर सिर्फ आम आदमी के लिए राजनीति में आए? आम आदमी अपनी भावुकता पर लगाम लगाए और ‘आप’ जैसे संगठनों के झांसे में आए| यदि दिल्ली में कुछ समय बाद पुनः चुनाव होते हैं तो उस प्रक्रिया में लगने वाला धन आम आदमी का होगा| ऐसे में ‘आप’ को मिश्रित जनादेश सौंपकर आम आदमी आखिर क्या साबित करना चाहता है? चूचू का मुरब्बा बन चुकी ‘आप’ में मुझे तो कोई भविष्य नज़र नहीं आता और न ही देशहित की व्यापक सोच ही लक्षित होती है| हां, ‘आप’ को कितना सर-माथे बिठाना है यह अब उस आम आदमी को तय करना है जिसकी दम पर ‘आप’ सत्तासीन होते ही उसे भूल गई| वैसे केजरीवाल जिन्हें दूसरों से सवाल पूछने का काफी शौक है, उनसे पूछा जाना चाहिए कि ‘आप’ की नौटंकी आखिर देश में कौन सा स्वराज लाना चाहती है?
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सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

6 COMMENTS

  1. पहले मैं भी इस तर्क कुतर्क का हिस्सा हुआ करता था,पर कुछ दिनों से लगने लगा है की यह सब बेमानी है. पर अब आख़िरी तमाशा कल बारह मार्च से आरंभ होने वाला है,जब राजनीति से अलिप्त गुरु ममता बनर्जी ,जया ललिता और मायावती के गत बंधन के लिए काम करना आरम्भ करेंगे.

  2. देश में केजरीवाल और आप जिस तरह से राजनीति का खेल खेल रहे हैं उससे शंका होती है कि किसी की शतरंज के मोहरे बने वे भारत में अस्थिरता उत्पन्न करने की चल चल रहे हैं. भ्रष्टाचार उन्मूलन का नारा देकर जनता का समर्थन प्राप्त करके अव्यवस्था और अराजकता का माहौल उत्पन्न करना और देश की दशा और दिशा को बिगाड़ना यही उद्देश्य दिख रहा है. बिना किसी ठोस नीति और योजना के झूठे नारों और वादों से जनसामान्य को मूर्ख बनाने के काम में जुटे हैं. दूसरों से प्रश्न पूछने में व्यस्त केजरीवालखुद पर लगाए जा रहे भ्रष्टाचार के आरोपों के उत्तर क्यों नहीं दे रहे? कहाँ से आ रहा धन उनके पास निजी विमान के इस्तेमाल और अपने साथ मोटर काफिले लेकर चलने के लिए? लेखक ने अपने विचारोत्तेजक लेख में केजरीवाल और आप की नीतिविहीन राजनीति का सटीक विश्लेषण प्रस्तुत किया है. देश की जनता को सतर्क रहने की आवश्यकता है.

  3. कुछ लोग दूसरो के काँच के शिशो पर पत्थर मारने का काम करते है। ऐसे शोर अधिक कार्य केवल वो ही कर सकते है। लेकिन जब उनको वो कार्य दिया जाये तो गैरजुमेवारी से वहा से भाग खड़े हॉटe है। मचाते है की ये कर देंगे ऐसा कर देंगे .बोलते ऐसे है जैसे सारी दुनिया उनकी जेब में है और सभी गोपनिया बाते और केजरीवाल जो भी कार्य हाथ मे लेंगे वो एक खतरनाक मोड पर आकर भयंकर परिणाम मे बदल जायेगा।

  4. असल मुद्दा उन सुधारों का है, जिन्हें लागू करने की उम्मीद यूपीए दो से की जा रही थी और यूपीए ने देश की खस्ता आर्थिक हालात और यूरोपीय देशों में, अमेरिका सहित, मंदी के चलते लागू नहीं किया| नतीजा यह है की भारत सहित विश्व का पूरा कारपोरेट जगत कांग्रेस के खिलाफ है और उसे उम्मीद है की भाजपा मोदी की अगुवाई में इसे पूरा करेगी| पर, भारत सहित विश्व कारपोरेट को यह भी मालूम है की भारत में भाजपा या मोदी की राजनीतिक स्वीकृति नहीं है| इसलिए एनजीओ की सहायता से कांग्रेस को हटाने का काम साधने की कोशिश हो रही है| अन्ना से लेकर केजरीवाल तक इस पूरे खेल में मोहरा हैं| लाखों करोड़ विदेशों से पाने वाले एनजीओ आखिर अमेरिका के निर्देशों पर ही चलेंगे| यही कारण है की दिल्ली में एफडीआई को मना करने के बाद केजरीवाल को तुरंत सीआईआई की बैठक में सफाई देनी पड़ी| दुखद तो यह है की इस पूरे खेल में आम आदमी सिर्फ मूर्ख बनाने वाला है| मोदी जिस तरह देश के इतिहास, आर्थिक हालातों के बारे में भाषणों में बोलते समय अज्ञानता का प्रदर्शन कर रहे हैं और भाजपा के पढ़े लिखे लोग उन मूर्खताओं को मंच पर बैठकर झेल रहे हैं, ये देश के लिए अच्छा संकेत तो नहीं है| भाजपा योजनाबद्ध तरीके से इस बात को प्रचारित करने की कोशिश कर रही है कि ‘आप’ का जन्म कांग्रेस की मदद के लिए हुआ है, जबकि वास्तविकता यह है कि अन्ना के आन्दोलन से लेकर ‘आप’के जन्म तक सारी भूमिका भाजपा ने ही निभाई है| अन्ना के आन्दोलन में खाने के स्ताल विश्वहिंदू परिषद ने चलाये| एक समय केजरीवाल से जुड़े सभी लोग आज भाजपा में क्यों जा रहे हैं? मोदी के खिलाफ केजरीवाल की मुहीम अलगाव में नहीं है बल्कि राहुल गांधी के साथ है| रामदेव, सेनाध्यक्ष सिंह, सभी एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं| गंभीरता पूर्वक विचार तो इस बात पर होना चाहिए कि क्या एक कुछ नहीं बोलने वाले प्रधानमंत्री का विकल्प गलत , झूठ और अज्ञानता भरी बातें बोलने वाला व्यक्ति हो सकता है?

    • “भाजपा योजनाबद्ध तरीके से इस बात को प्रचारित करने की कोशिश कर रही है कि ‘आप’ का जन्म कांग्रेस की मदद के लिए हुआ है, जबकि वास्तविकता यह है कि अन्ना के आन्दोलन से लेकर ‘आप’के जन्म तक सारी भूमिका भाजपा ने ही निभाई है| अन्ना के आन्दोलन में खाने के स्ताल विश्वहिंदू परिषद ने चलाये| एक समय केजरीवाल से जुड़े सभी लोग आज भाजपा में क्यों जा रहे हैं? ”

      एक घुटे हुए उस्ताद की माफ़िक बातचीत मुंह दूसरी तरफ घुमा दो. झूठ दर झूठ, आप लोग तो तथा कथित “गायबोल्स” के भी बाप हैं. “आप” का जन्म कैसे और किन परिस्थितियों में हुआ ये सारी दुनिआ जानती है. गुरु की पीठ में छुरा मार कर चेले ने पूरे आंदोलन को हाई जैक कर लिया और नक्सल पृष्ठभूमि के लोगों के साथ कांग्रेस के बहकावे में नई पार्टी का सृजन हुआ। रही बात कि “केजरीवाल से जुड़े लोग भाजपा में क्यों जा रहे हैं”? ​जिनकी पृष्ठभूमि देशभक्ति कि रही है जिनकी संविधान में आस्था रही है वही भाजपा के साथ जा रहे हैं और साथ ही साथ ये भी तो पूछा जाना चाहिए कि कट्टर नक्सल, कम्युनिस्ट आंदोलन से जुड़े लोग और दंगा फ़ैलाने वाले जिनकी संविधान में आस्था नहीं है “आप” में क्यूँ जा रहे हैं ?

    • M K Gndhi ko mara, is admi ko to jut.. sai marna chayiya tha, koi ban gay mahatma koi chacha or BHARAT MAHAN KA KAR DIYA SATYANASH ????????????

      AJADI DILAI BHAGAT SINGH JI & KRANTIKARIO NAI & OR M K Gandhi chup raha un ki HATYAO PER, ANGREJ TABHI BHAGE, yai mk g…. to BAKRI ka dudh pite hue chup raha, DIKHAR HAI IS mk gandhi per, THU ….THU………THU …….?

      AJJ TAK BHUGAT RAHE HAI OR HAMESHA BHUGTAIGAI

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