
तुम तो ऐसे न थे ,
ऐसे कैसे हो गए हो ,
तड़प रहे हैं हम ,
तुम कुछ नहीं कर ,
कह रहे हो।
तुम सोच तो रहे हो,
कुछ करना भी चाह रहे हो,
पर, ऐसा कुछ,
जिसमें तुम ही तुम हो,
हम कहीं नहीं हैं।
कभी-कभी हम,
आत्म पीड़ा में भी,
परपीड़ा का सुख पाते हैं,
अंर्तमुखी हो,
अपने परिवार, समाज से
दूर बहुत हो जाते हैं।
औरों ने क्या किया,
जानने से पहले ,
जरूरी है जानना यह,
हमने औरों के लिए,
क्या किया।
बदलने चले हैं जहां सारा पर खुद बदलना
चाहते ही नहीं।
चाहते हैं सुने दुनिया हमारी, हम किसी की बातों पर कान देते ही नहीं।
सुनना, बदलना ,
नहीं होता एक तरफा ,
सुन कर तो देखो ,
बदल कर तो देखो ,
सुनेगी दुनिया ,
बदलेगी दुनिया।।