डॉ. सतीश कुमार
तुमने बुझते दीयों को ,
फिर से जला,
उन्हें गर्विला बना,
इठलाना सिखा दिया।
निराशा को आशा में,
दुख को सुख में,
कल्पना को हकीकत में,
परिवर्तित कर,
उखड़ती हुई सांसों को,
संयत होना सीखा दिया।
रखा जो कंधे पर हाथ
पस्त हौंसले को,
नयी उमंग, नया जोश भर,
आंखों में नयी चमक वाला बना दिया।
तुम्हारा है साथ ,
तो मैं,
कुछ का कुछ हो जाता हूं, सारी दुनिया का ,
सीना तान ,सामना कर,
असम्भव को सम्भव
कर जाता हूँ।