प्रोफेसर मनोज कुमार
साल 2014 के पहले किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि देश की सत्ता में गैर-कांग्रेसी दल लगातार तीन बार सत्ता में बनी रह सकती है और अभी संभावना विपुल है. यह सोच स्वाभाविक भी थी कि जिस देश में एक वोट से केन्द्र की गैर-कांग्रेसी सरकार गिर जाए. खैर, यह चमत्कार है लोकतंत्र का तो यह कमाल है मोदी मैजिक का. प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी ने भारतीय समाज की नब्ज को थामा, जाँचा और उनकी जरूरतों के मुताबिक फैसले किए. यह कहना भी सर्वथा उचित नहीं है कि उनके सारे फैसले सार्थक साबित हुए लेकिन यह कहना उचित है कि उनके ज्यादतर फैसले जनता के हक में था. गाँव से लेकर सात समुंदर पार तक मोदी की आवाज गूँजती है. हालिया ऑपरेशन सिंदूर ने मोदी सरकार की लोकप्रियता को हजारों गुना बढ़ा दिया है. जैसा कि होता है विपक्ष सत्तासीन दल को निशाने पर लेती है लेकिन यह सब एक रिवाज है. मोदी मैजिक यूँ ही नहीं चलता है. वह जानते हैं कि कब क्या कहा जाए और कब क्या फैसला किया जाए. उन्हें इस बात का भी अहसास है कि मीडिया जनता का मन बदलने की ताकत रखती है तो वे ऐसी जुगत बिठाते हैं कि मीडिया खुद उनकी मुरीद हो जाती है.
11 वर्ष पहले जाकर कुछ पलट कर देखना होगा. तब मोदी गैर-कांग्रेसी सरकार के पहले दमदार प्रधानमंत्री होते हैं पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने वाले. स्वाभाविक है कि दशकों से सत्ता में काबिज लोगों के लिए यह सदमा सा था और मोदी को कमजोर करने के लिए वे रणनीति बनाते लेकिन वे मोदी मैजिक को समझ ही नहीं पाए. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं होकर अपने दस लाख के लिबास को चर्चा में ला दिया. मोदी विरोधी उनके लिबास की कीमत में उलझ गए और जनता को संदेश चला गया कि विरोधी मोदी को कमजोर करना चाहते हैं. भव्यता की यह रणनीति कारगर साबित हुई और विपक्ष का कीमती समय व्यर्थ के विवाद में आज भी जाया हो रहा है. मोदी मैजिक भारतीय मन को जानता है और चुपके से वे भव्यता से दिव्यता की ओर चल पड़े. उन्होंने पारम्परिक भारतीय परिधान को अपनी जीवनशैली में शामिल कर लिया. अब वे पायजामा कुरता के साथ जैकेट पहन कर सादगी के प्रतीक हो गए. यहाँ भी कमाल हो गया कि नेहरू जैकेट को रिप्लेस कर मोदी जैकेट ने युवाओं को मोह लिया. यही मोदी मैजिक है जो लोगों को बार-बार लुभाता है और वे पूरी ताकत के साथ सत्ता में वापसी करते हैं.
मोदी भारतीय मन को बेहतर ढंग से जानते हैं लेकिन मोदी को समझना किसी पहेली को हल करने जैसा है. 11 वर्षों के उनके कार्यकाल की समीक्षा की जाए तो देश में अपवाद स्वरूप कोई मिल जाएगा जिसे मोदी के अगले कदम के बारे में कुछ पता हो या वह यह बता पाए कि मोदी क्या करने वाले हैं. थोड़ा पीछे चलें तो देखेंगे कि वे गुजरात राज्य के सबसे लम्बे कार्यकाल वाले मुख्यमंत्री थे जिन्हें भाजपा और संघ ने 2014 के चुनाव में प्रधानमंत्री का चेहरा बनाया था. तब की सरकार को कटघरे में खड़ा कर युवाओंं के बीच एक नायक की तरह उभरे थे. यह वह वर्ग था जिसे राजनीति की समझ बहुत नहीं थी लेकिन देश में बदलाव की चाहत थी. चाय पर चर्चा से लेकर वे तूफानी गति से देश के दिल में जगह बना रहे थे. और भारतीय राजनीति में ऐसा कायापलट हुआ कि भारतीय जनता पार्टी नरेन्द्र मोदी को कैश कर केन्द्र की सत्ता पर काबिज हो गई. नरेन्द्र मोदी से लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बखूबी यह जानते थे कि जिस तेजी से उनकी लोकप्रियता आम भारतीय के मन में बनी है, उसे लम्बे समय तक बनाये रखना एक चुनौती है. जो आम आदमी के झटके में कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों को जमीन दिखा सकता है, वह मोदी के साथ भी ऐसा कर सकता है. और खांटी राजनीतिक दल और राजनेता मोदी को कटघरे में खड़ा करेंगे. मोदी का मीडिया मैनेजमेंट इतना सधा हुआ था कि खांटी राजनेता भी मात खा गए. विरोधी ही नहीं, उनके अपनी पार्टी के लोगों की समझ से भी बाहर रहे मोदी. मोदी जानते थे कि विरोधियों से लेकर मीडिया तक को भटकाना है तो कुछ ऐसा किया जाए कि उनकी चर्चा और आलोचना के केन्द्र मेें मोदी की राजनीति नहीं, बल्कि उनके दूसरे पक्ष को लेकर वे चर्चा में बने रहे.
विपक्षी नेताओं को तो समझ ही नहीं आया तो उनके अपने ही विरोधी धड़ा भी शांत बैठ गया. परिणामत: पाँच वर्ष बाद केन्द्र में वापस मोदी सरकार की वापसी होती है. यही नहीं, अनेक राज्यों में भी भाजपा की सरकार सत्तासीन होती है बल्कि रिकार्ड कार्यकाल बनाती है. छत्तीसगढ़ में 15 साल तो मध्यप्रदेश में 18 महीने के छोटे से ब्रेक के बाद 20 वर्षों से अधिक समय से वह सत्तासीन है. इसके अलावा अनेक राज्यों में भाजपा सत्तासीन है. महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य में भी भाजपा की सत्ता कायम है. आलम यह है कि मीडिया कभी सटीक रूप से यह नहीं बता पाया कि मोदीजी का अगला कदम क्या होगा? मीडिया अनुमानों को ही हेडलाइन बनाते रहे और हर बार गच्चा खाते रहे. कई बार तो मोदीजी के फैसलों से यह भी पता नहीं चलता कि उन्हें स्वयं को पता होता है कि नहीं कि उनका अगला कदम क्या होगा? उनके लिए फैसले का दूरगामी परिणाम क्या होगा, इसकी मीमांसा की जाती है लेकिन फौरीतौर पर मीडिया और आम आदमी को वे चमत्कृत कर जाते हैं.
वे भारतीय मानस की नब्ज को बेहतर ढंग से पकड़ते हंै और उसी के अनुरूप वे फैसला करते हैं. भारत एक विशाल देश है और इस बहुसंख्य आबादी जिसमें बहु भाषा-भाषायी लोगों तक पहुँचना सरल नहीं होता है. ऐसे में उन्होंने आकाशवाणी पर प्रत्येक माह ‘मन की बात’ कार्यक्रम की शुरूआत की. ‘मन की बात’ कार्यक्रम के जो तथ्य और आँकड़ें को समझने की कोशिश की गई तो इसके लिए बकायदा एक रणनीति के तहत देशभर के अनाम से गाँव और ग्रामीणों को ‘मन की बात’ कार्यक्रम के लिए जोड़ा गया. देश का प्रधानमंत्री जब अपने कार्यक्रम में सुदूर आदिवासी गाँव की किसी महिला अथवा कोई उपलब्धि का उल्लेख करते हैं तो वह क्या, एक बड़ी आबादी उनकी मुरीद हो जाती है. लोग इस प्रयास में लग जाते हैं कि अगली बार ‘मन की बात’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री उनकी या उनके गाँव की कामयाबी का उल्लेख करें. आँकड़ों को जाँचें तो पता चलेगा कि घाटे में जा रहे आकाशवाणी की आय में बेशुमार वृद्धि हुई है. मोदीजी की तर्ज पर पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमनसिंह और शिवराजसिंह ने भी रेडियो को माध्यम बनाया था लेकिन उन्हें वह सफलता नहीं मिली, जो मोदीजी के कार्यक्रम को मिल रही है. यही नहीं, ‘मन की बात’ कार्यक्रम की निरंतरता भी अपने आप में मिसाल कायम करती है. मोदीजी के पहले महात्मा गाँधी और इंदिरा गाँधी ने रेडियो के महत्व को समझा था लेकिन ‘मन की बात’ कार्यक्रम की तरह वे ऐसा कोई कार्यक्रम शुरू नहीं कर पाए थे.
11 साल के मोदी सरकार के कार्यकाल की समीक्षा की जाए तो सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि समूचे भारतीय समाज की सोच और उनकी कार्यवाही को डिजीलाइटेशन कर दिया. अब हर सौदा-सुलह ऑनलाइन होगा. सरकारी दफ्तरों सेे कार्य के लिए भटकने की जरूरत नहीं है क्योंकि एक क्लिक पर आपका काम हो जाता है. इससे रिश्तवखोरी पर नियंत्रण पाया जा सका है. जन्म प्रमाण पत्र बनाने से लेकर पासपोर्ट बनाने तक के लिए अब दफ्तरों के चक्कर काटने की जरूरत नहीं है. मोदीजी बतौर प्रधानमंत्री सोशल मीडिया की ताकत भी जानते हैं सो वह अपनी बात एक्स से लेकर रील्स और इंटस्टा तक लेकर जाते हैं. यह पूरी कवायद करने के लिए उनकी टीम है लेकिन इसका मॉडल ऐसा बना हुआ है कि हर आम आदमी को महसूस होता है कि मोदीजी सीधे उनसे रूबरू हो रहे हैं. यही मोदीजी की ताकत बनती है और यही उनकी लोकप्रियता का कारण भी है.
भारतीय राजनीतिक इतिहास में गैर-कांग्रेसी दल से तीसरी बार केन्द्र में सत्तासीन होने वाले मोदी हैं. मोदीजी का सबसे प्रबल पक्ष है कम्युनिकेशन का. कम्युनिकेशन की थ्योरी कहती है कि वही कामयाब कम्युनिकेटर है जो लोगों तक अपनी बात प्रभावी ढंग से पहुँचा सके. इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस दौर के सबसे बड़े संचारक के रूप में स्वयं को स्थापित किया है. वे जनसभा में लोगों को मोहित कर लेते हैं. आम आदमी से सीधे संवाद से मोदी सरकार के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ता है. मोदी जी कई बार जानते हुए भी ऐसे बयान देते हैं कि विरोधी उनकी आलोचना पर उतर आते हैं. मोदीजी आम आदमी के सायक्लोलॉजी को भी बेहतर ढंग से समझते हैं. अनेक बार स्थिति-परिस्थितियों के चलते आम आदमी निराशा में डूब जाता है तब यह देश के मुखिया की जवाबदारी होती है कि कैसे उसे उबारे और उसमें उत्साह का संचार करे. भारत ही नहीं, समूचे वैश्विक परिदृश्य में देखें तो महँगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दे मुंहबाये खड़े हैं. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नौकरी करना नहीं, नौकरी देना सीखो के मंत्र के साथ नवउद्यमी बनाने के लिए स्र्टाटअप के लिए प्रोत्साहित किया. डेढ़ सौ करोड़ की आबादी को कम लागत वाले काम करने के लिए प्रोत्साहित किया. तब उनकी आलोचना इस बात को लेकर हुई कि भारत का युवा अब पकौड़े तलेगा लेकिन आलोचना करने वालों का तब मुँह बंद हो गया जब एक पानीपुरी बेचने वाले को आइटी ने पकड़ा तो वह करोड़पति निकला. मोदीजी आईटी से जुडऩे के लिए भारतीय युवाओं को प्रोत्साहित करते रहे हैं. एआई और चैटजीपीटी आने के बाद रोजगार के अवसर घट रहे हैं लेकिन एआई और चैटजीपीटी सीख लेते हैं तो रोजगार के नए विकल्प आपका इंतजार कर रहा है.
निश्वित रूप से 11 वर्ष के कार्यकाल में सबकुछ भला-भला हुआ हो, यह तय नहीं है. एक मनुष्य के नाते अनेक अच्छी पहल हुई तो कुछ गलतियाँ भी हुई होंगी. वे क्या, पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री भी इसी श्रेणी में आते हैं. कई बार उनकी पार्टी के नेताओं के कदाचार पर उनसे प्रतिक्रिया माँगी जाती है तो यह बेमानी लगता है क्योंकि इस पर बोलने और कार्यवाही करने की जवाबदारी पार्टी की है ना कि प्रधानमंत्री की हैसियत से सरकार की. वे भारतीय और भारतीयता के लिए लोगों में जज्बा पैदा करते हैं और सनातन युग की ओर वापसी का संकेत देते हैं. डिग्री वाली शिक्षा से बाहर लाकर स्किलबेस्ड शिक्षा भारत को गुरुकुल की ओर ले जाता है. मानना चाहें तो मोदीजी का कार्यकाल आपको देशहित में लग सकता है और न मानना चाहें तो खामियाँ गिनाते रहिए.
अपनी लम्बी राजनीतिक पारी और केन्द्र में 11 वर्ष के अपने कार्यकाल में मोदीजी युवा नेता नहीं रहे लेकिन वे एक जिम्मेदार बुर्जुग की भूमिका में आ गए हैं. यकिन ना हो तो अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस की पत्नी उषा वेंस के अनुभव और उनकी बातों से समझ लें. इसी साल बीते अप्रैल में भारत दौरे को उपराष्ट्रपति जेडी वेंस का परिवार आया था. वेंस की पत्नी ने यह भी कहा कि उनके तीन छोटे बच्चों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में उनके दादाजी की झलक दिखी. उन्होंने पीएम मोदी से मिलते ही उन्हें दादा जी माना लिया और वे उनसे लडिय़ाते रहे. उपराष्ट्रपति जेडी वेंस के साथ उषा वेंस और उनके तीन छोटे बच्चे इवान, विवेक और मीराबेल भी थे. दादा जी बन जाने की यह छवि भारतीय मन को जोड़ता है. यही भारत है, यही श्रेष्ठ है.