
रिपोर्टर कैमरामैन को लेकर रिपोर्टिंग करने निकला।वो कुछ डिफरेंट दिखाना चाहता था डिफरेंट एंगल से ।उसे सबसे पहले एक बच्चा मिला ।रिपोर्टर ,बच्चे से-“बेटा आपका इस कानून के बारे में क्या कहना है”?बच्चा हँसते हुये-“अच्छा है,अंकल इस ठण्ड में सुबह सुबह उठकर स्कूल नहीं जाना पड़ता “।रिपोर्टर -आपकी सरकार से क्या डिमांड है ?बच्चा -सरकार पहले बता देती तो हम टूर्नामेंट एक साथ ही खेल लेते ,इतनी सारी छुट्टियों में “।
रिपोर्टर -“आपको कोई दिक्कत है इस कानून से “।बच्चा -“स्कूल तो बन्द है,स्कूल अचानक बन्द हुआ तो स्कूल वाले ठूंस ठूंस कर होमवर्क भी नहीं दे पाए ।ठीक ही है “।रिपोर्टर-“क्या आपको और आपके दोस्तों को इस कानून से कोई खतरा है “?बच्चा-“अंकल ,खतरा तो नहीं है मगर एक बात अच्छी नहीं लगती ।जब स्कूल बंद है ,तब टयूशन क्यों नहीं बन्द है।सब बच्चे परेशान हैं ।सबका टाइम उलट पलट गया है ,पहले सब स्कूल से आने के बाद सभी के टयूशन,कोचिंग का टाइम लगभग एक ही होता था और हम सबको खेलने का मौका मिल जाता था ।अब स्कूल बंद हो गए तो कोचिंग वालों ने अपना कोर्स बढ़ा लिया कि जो स्कूल में छूटा है ,वो कोचिंग में कवर कर लेंगे ,अब किसी लड़के की कोचिंग सुबह होती है,किसी की दोपहर में तो किसी की शाम को ।हमारी टीमें ही पूरी नहीं हो पाती ,सो मैच ही नहीं हो पाते”।रिपोर्टर -“इसका मतलब आप ये कहना चाहते हैं कि इस कानून से आपके मैच खेलने के मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है “।कैमरे की तरफ देखते हुए रिपोर्टर कहता है ,”जैसा कि आप देख पा रहे हैं कि इस कानून के आने से छोटे -छोटे बच्चों के मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है ।सरकार को इस मामले में तैयारी करनी चाहिए थी और सम्वेदनशील होना चाहिये था”रिपोर्टर एक वहाँ से ये कहने के बाद दूसरी जगह जाकर एक बच्ची से मिलता है ।रिपोर्टर, बच्ची से-“बेटी क्या नाम है आपका ,और धूप खिली है फिर आपने स्कार्फ क्यों लगा रखा है “।बच्ची शर्माते हुए -“कोमल नाम है मेरा ,और अंकल आपको नहीं पता ,प्रोटेस्ट करने के लिये यही ड्रेस ट्रेन्डिंग है”।रिपोर्टर- “ड्रेस ट्रेंडिंग है मतलब ,आपको किसने बताया “?बच्ची -सब जानते हैं ,आप नहीं जानते क्या।मेरी शेली दीदी कहती हैं कि अब जीन्स,लॉन्ग जैकेट और स्कार्फ प्रोटेस्ट का सिंबल है ,इसको पहन कर पोस्टर गर्ल बन गया है कोई ।रिपोर्टर -कौन बन गया है ,और आपकी शेली दीदी क्या करती हैं ।लड़की -अरे अंकल वो सब मुझे पता नहीं कौन बन गया है ,दीदी कुछ कह तो रही थीं कि कपड़ों से क्या हो जाता है ऐसा कुछ।उन्होंने टीवी पर कुछ देखकर अमेज़न से आर्डर करके अपने लिये कुछ ड्रेसेज मंगवाई थी ,मगर दंगा हो गया तो कुरियर वाला ड्रेस लाया नहीं ।जब ड्रेस आ जायेगी दीदी तभी कुछ करेगी “।रिपोर्टर कैमरे पर चीखते हुए -अब कपड़ों का ट्रेंड हुआ प्रोटेस्ट पर हावी,नामी फैशन डिज़ाइनर देख रहे हैं संभावनाएं ,पलट कर बच्ची से पूछता है -“तो आपकी दीदी भी प्रोटेस्ट करती हैं ,वो किस कालेज में पढ़ती हैं ?बच्ची -“दीदी पढ़ती नहीं हैं।वो ब्यूटी पार्लर में काम करती हैं । और कहती हैं कि प्रोटेस्ट करना स्टेटस सिंबल है ,फेसबुक पर कुछ बढ़ जाता है”।रिपोर्टर -फिर आप प्रोटेस्ट क्यों कर रही हैं ,आपको क्या नुकसान है इस कानून से ।बच्ची -टीवी नहीं देखने पाती ,पापा का ऑफिस बन्द है ,दिन भर टीवी में ना जाने क्या लोकसभा,राज्यसभा टीवी में देखते रहते हैं ,मुझे डांस और रियलिटी शो देखने रहते हैं ,सिंगिंग ,डांसिंग की प्रैक्टिस करनी रहती है ,लेकिन रिमोट मिले तब ना ,सो इसीलिये मैं प्रोटेस्ट कर रही हूँ “।रिपोर्टर -जैसा कि आप देख पा रहे हैं कि इस कानून से देश में लोगों की रॉय क्या है ,सरकार को कानून बनाते समय इन बातों का ख्याल रखना चाहिये।रिपोर्टर वहां से दूसरी जगह जाता है । एक दूसरी जगह पर रिपोर्टर ठेले पर सब्ज़ी खरीद रही है कुछ महिलाओं से मिलता है और पूछता है – “इस कानून से आपको क्या क्या फर्क पड़ा है ।कोई तकलीफ हुई है आपको ?”पहली महिला -“दिन भर क्रिकेट,डिस्कवरी चैनल चलता है मैं नागिन का ना तो रात का एपिसोड देख पाती हूँ और ना अगले दिन रिपीट टेलीकास्ट”।दूसरी महिला -“मेरे पति हिंदी मीडियम से पढ़े हैं और हिंदी का ही अख़बार पढ़ते हैं ।लेकिन आजकल उनको ना जाने क्यों अंग्रेजी के कुछ शब्दों का फुल फॉर्म बताने का दौरा पड़ता रहता है ।सबको ना जाने क्या क्या अंग्रेजी में पकड़ पकड़ कर समझाते रहते हैं।पहले अंग्रेजी पीने के बाद अंग्रेजी बोलते थे ,अब तो अंग्रेजी बोलकर अंग्रेजी पीते हैं”।तीसरी महिला – “हमें इस कानून से ये दिक्कत है कि सब्ज़ियां महंगी होती जा रही हैं ।ये ठेले वाले भैया कहते हैं कि शहर में दंगा फसाद की वजह से मंडी में माल समय पर नहीं आ पाता इसलिये ये हमको महंगा बेचते हैं साग -सब्ज़ी “।चौथी महिला -“इस चिल्ल पों में हमें एक फायदा ये हुआ है कि ,,फायदा शब्द सुनते ही रिपोर्टर कैमरामैन से कैमरा बन्द करने का इशारा करता है ।कैमरामैन कैमरा बन्द कर देता है । इस सबसे अंजान चौथी महिला पुनः बोलना शुरू करती है -“तो इस ठंडी में रोज हमारे पति कभी चिकन,कभी मटन,कभी फिश लाकर रख देते थे और खूब फरमाइश करते थे ,हमको देर रात तक बनाना पड़ता है ।अब शाम को वो मंडी नहीं जाते एक हफ्ते से लौकी बनाकर खिला रहे हैं ।हमें तो फ़िलहाल आराम ही आराम है “।रिपोर्टर फिर चीखता है कैमरे पर “जैसा कि आप देख पा रहे हैं कि महिलाएं भी तकलीफ में हैं इस कानून से । उनके भी अपने लॉजिक हैं। रिपोर्टर एक झुग्गियों की बस्ती में पहुंच जाता है फिर।रिपोर्टर एक शराबी से मिलता है जो कि हाथ में विरोध की तख्ती लिए है ।रिपोर्टर -आपको इस कानून से क्या तकलीफ है ।शराबी -भाऊ, तू मला सांगा ,(रिपोर्टर टोकते हुए -आप नेशनल टीवी पर हैं ,पूरा देश आपको देख रहा है ।शराबी – “अभी ये कानून से हमको तकलीफ है।हमको जो कच्ची दारु मिलती है ,वो बाहर गांव से आये लोगों की बस्ती में सस्ती मिलती है।उधारी की भी मिलती है।वो बस्ती का दारु बनाने वाले मेरे को बोला कि उसको बाहर गांव जाना पड़ेगा ।अभी मेरे को बताओ कि अपन कच्ची दारु पीने के वास्ते क्या दूसरे मुलुक जायेगा।इसलिये मैं विरोध करता “।रिपोर्टर – “तो सरकार से क्या मांग है आपकी कि इन लोगों को ना हटाया जाए या अगर हटाया जाए तो आपको दूसरे देश में पीने जाने के लिये वीजा पासपोर्ट दिया जाए ?”शराबी -वो मेरे को नहीं मालूम कि सरकार इनको इधर से हटाये या मेरे को उधर जाकर पीने का खर्चा पानी देगी।पन अपुन का एक डिमांड है जैसे सरकार सस्ता गल्ला,घासलेट कोटे से देती है ,तो मेरे को दारु कोटे की दुकान से क्यों नहीं दे सकती ।सरकार मेरी ये बात नहीं सुनेगी तो मैं मोर्चा निकालेगा।”रिपोर्टर कैमरे पर चीख कर बोल रहा है “जैसा कि आप देख पा रहे हैं कि इस कानून से बच्चे ,शराबी सब परेशान हैं ।रिपोर्टर एक युवक को पकड़ता है जो बैग लिये कहीं जा रहा है ।रिपोर्टर -“आप कौन हैं ,कहाँ जा रहे हैं” ?युवक -“मैं एक कॉलेज स्टूडेंट हूँ ,कालेज बन्द हो गया है तो घर जा रहा हूँ “।रिपोर्टर -“आपको इस कानून से कोई तकलीफ है क्या ?”युवक मायूसी से -“प्रोटेस्ट्स की वजह से कॉलेज बन्द हो गए ।मेरी गर्लफ्रेंड ,मेरी हनी अपने घर चली गयी दूसरे शहर ।नो हनी,नो लाइफ ।अब मेरा यहां दिल नही लग रहा है सो मैं भी घर जा रहा हूँ ।कैमरे की तरफ देखकर लड़का बोलता है -“हनी जिसकी वजह से तुम मुझसे दूर गयी ,मैं उसको अपोज करता हूँ “।रिपोर्टर उत्साह में बोलते हुए कहता है “जैसा कि आप देख पा रहे हैं कि बच्चे ,बूढ़े ,औरतें,युवा सभी को इस कानून से कुछ ना कुछ तकलीफ है ।सरकार को ,,,,,’तब तक भीड़ से एक पत्थर सनसनाते हुए आता है और रिपोर्टर के हाथ में लगता है ।वो नीचे बैठ कर हाथ को सहलाने लगता है ।कैमरामैन ने कैमरा रख दिया है और और रिपोर्टर की मदद करने लगा।एक राहगीर ने रिपोर्टर से पूछा ‘आपको क्या तकलीफ है “?
Funny! परन्तु आपत्काल में इंदिरा गाँधी ने 18 जनवरी १९७७ के दिन लोकसभा भंग करते हुए घोषणा की कि मार्च में लोकसभा के लिए आम चुनाव होंगे तो वह दृश्य कतई हास्य-कर नहीं था जब सैकड़ों लोग टोलियों में उनके निवास स्थान पर उन्हें अपना समर्थन देने पहुंचे| भीड़ में से एक टोली ने जब उनके समीप पहुँच उन्हें बताया कि वे लोग दिल्ली के ग्रीन पार्क से हैं तो वहां खड़े एक अधिकारी ने जोर से बोलते घोषणा की कि ये समर्थक जमुना के पार से आये हैं| तब तक कोई भी जमुना के उस पार से नहीं आया था! इस पर टोली में से किसी ने अधिकारी से फिर कहा हम ग्रीन पार्क से हैं तो अधिकारी तपाक से बोला हमें मालूम है आप कहाँ से हैं और वहां उपस्थित संवाद-दाताओं की ओर संबोधन करते चिल्लाया, “ये समर्थक जमुना के पार से आये हैं!”