आज़ादी के 78 साल का हासिल: थोड़ा है, थोड़े की जरूरत है

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राजेश जैन

15 अगस्त 1947 को जब देश ने आज़ादी की सांस ली तो करोड़ों लोगों की आंखों में ऐसे देश का सपना था जो अपने पैरों पर खड़ा हो, जहां वैज्ञानिक सोच और सामाजिक समरसता को बढ़ावा मिले, हर इंसान को बराबरी का दर्जा और हर गांव-गली को शिक्षा की रौशनी हासिल हो । अब जब 15 अगस्त, 2025 को देश अपना 79वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है, सवाल यह है—क्या वो सपना हकीकत बना या अधूरा ही रह गया।

आजादी के बाद 78 वर्ष में हमने बहुत कुछ हासिल किया है। लोकतंत्र की नींव मजबूत हुई है। हम हर पांच साल में अपनी सरकार चुनते हैं। 1950 में बना हमारा संविधान आज भी जीवित और गतिशील है। आज हम दुनिया की टॉप 4 अर्थव्यवस्थों में हैं। साक्षरता दर 1951 के 18% से बढ़कर 77% के पार पहुंच गई है। हमारे पास आईआईटीज, एम्स, इसरो, डीआरडीओ जैसी संस्थाएं हैं। परमाणु बम के साथ एक मजबूत रक्षातंत्र है। देश ने अंतरिक्ष तक उड़ान भरी है-मंगलयान, चंद्रयान, गगनयान, एआई, मोबाइल, इंटरनेट, डिजिटल पेमेंट…ये सब दिखाते हैं कि हमारे वैज्ञानिकों में दम है। स्टार्टअप्स का जलवा है, ग्लोबल कंपनियों में भारतीय सीईओ बने हुए हैं। स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी कई सुधार हुए हैं।

लेकिन कहानी का दूसरा पन्ना भी है, जो उतना ही सच्चा है जितना पहला। आज भी लाखों बच्चे स्कूल नहीं जा पाते। जो जाते हैं, उनको सिर्फ डिग्री मिलती है, स्किल नहीं। हमारे लाखों पढ़े-लिखे युवाओं को नौकरी नहीं मिलती और करोड़ों को उनकी योग्यता के मुताबिक तनख्वाह नहीं मिलती है। जात-पात, धर्म के नाम पर झगड़े, विवाद अब भी जारी हैं। सोशल मीडिया पर नफरत फैलाना, फेक न्यूज़ से लोगों को भड़काना आम हो गया है। आज भी कई दलित, आदिवासी हक से वंचित हैं। गांवों में सही अस्पताल नहीं हैं। जलवायु परिवर्तन अब कोई किताबों की बात नहीं रही, ये ज़मीन की सच्चाई है और हम अब भी इसे नजरअंदाज़ कर रहे हैं। पर्यावरण की हालत खस्ता है। नदियाँ सूख रही हैं, हवा में ज़हर है। जंगल कट रहे हैं और ग्लेशियर पिघल रहे हैं।

तो फिर सवाल उठता है—अब क्या करें? क्या हम बस शिकायत करते रहें? नहीं। अगर हम वाकई अपने पुरखों के त्याग-बलिदान की क़द्र करते हैं, तो हमें कुछ करना होगा।

सबसे पहले, शिक्षा को सुधारना होगा । सिर्फ किताबी नहीं, जिंदगी के लिए पढ़ाई होनी चाहिए। हमारे बच्चों को सोचने की ताकत, सवाल पूछने की हिम्मत और दुनिया को बेहतर बनाने की समझ देनी होगी।

दूसरा, रोजगार पैदा करना होगा और वो सिर्फ सरकारी नौकरी ही नहीं बल्कि ऐसा माहौल जहां युवा खुद का कुछ शुरू कर सकें—स्टार्टअप, कृषि आधारित उद्योग, डिजिटल इनोवेशन।

तीसरा, सामाजिक बराबरी लानी होगी। इंसानियत सर्वोपरि है। जात-पात, धर्म के झगड़े हमें तोड़ते हैं। हर बच्चा, चाहे किसी भी जाति, धर्म या वर्ग का हो, उसे वही मौके मिलने चाहिए जो किसी बड़े शहर के अमीर बच्चे को मिलते हैं।

चौथा, पर्यावरण के साथ अब और खिलवाड़ नहीं चलेगा। हर योजना में ‘ग्रीन सोच’ होनी चाहिए—सोलर एनर्जी, रेन वॉटर हार्वेस्टिंग, साइकिल ट्रैक, प्लास्टिक बैन… अब बातें नहीं, काम चाहिए।

पांचवा, हमें न्याय व्यवस्था और प्रशासन को भी इंसानियत के करीब लाना होगा। लोगों को पुलिस से डर नहीं, भरोसा होना चाहिए। कोर्ट में एक केस सालों-साल लटका रहे, ये सिस्टम सही नहीं है। टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके हमें न्याय और सुविधा दोनों जल्दी पहुंचानी होगी।

हमारे पुरखों ने हमें राजनीतिक आज़ादी दी थी। अब हमारी बारी है कि हम देश को आर्थिक, सामाजिक और मानसिक गुलामी से भी आज़ाद करें और ये काम कोई नेता नहीं, कोई पार्टी नहीं—हम सब मिलकर करेंगे। आइए, आज़ादी के इस आठवें दशक में मिलकर एक नया भारत गढ़ें, जहां हर सपना उड़ान भरे, और हर नागरिक कहे—हां, अब मेरा भारत वाकई महान है।

राजेश जैन

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