सुनील कुमार महला
आज हम इक्कीसवीं सदी में सांस ले रहे हैं और इस सदी की आवश्यकताओं के मद्देनजर हमारे देश में नई शिक्षा नीति-2025 भी लागू की गई है, जो कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 का ही एक उन्नत रूप या संस्करण है, लेकिन इसमें भारतीय शिक्षा प्रणाली को अधिक समावेशी, लचीला और कौशल आधारित(स्किल बेस्ड) बनाने पर जोर दिया गया है।नई शिक्षा नीति (एनईपी) 2025 की प्रमुख विशेषताओं की यदि हम यहां पर बात करें तो इसमें क्रमशः संरचनात्मक बदलाव(5+3+3+4 मॉडल) किया गया है। वहीं पर दूसरी ओर इसमें कक्षा 5 तक की शिक्षा मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में दिए जाने, व्यावसायिक व कौशल शिक्षा(आलोचनात्मक सोच, रचनात्मकता, संचार और सहयोग जैसे कौशल), बहु-विषयक शिक्षा जैसे कि विज्ञान, कला, वाणिज्य के पारंपरिक सीमाओं से हटकर, छात्र अपने रुचि के अनुसार विषय चुनना (उदाहरण के तौर पर गणित के साथ संगीत, भौतिकी के साथ इतिहास आदि), परीक्षा और मूल्यांकन प्रणाली में सुधार, डिजिटल और तकनीकी शिक्षा, उच्च शिक्षा में सुधार (विश्वविद्यालयों को स्वायत्तता, अधिक अनुसंधान और वैश्विक सहयोग का अवसर प्रदान करना), तथा समावेशी और समरस शिक्षा को भी शामिल किया गया है।इसी क्रम में हाल ही में, सीबीएसई ने एक साहसिक निर्णय लिया है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार अगले शैक्षणिक सत्र 2026-27 से कक्षा 9 के विद्यार्थियों को ‘ओपन बुक असेसमेंट’ (ओबीए) के तहत प्रमुख विषयों में खुली किताब लेकर परीक्षा देने की अनुमति होगी। दूसरे शब्दों में कहें तो साल में दो बार परीक्षा के साथ-साथ अब 9वीं की परीक्षा को ओपन बुक कर दिया गया है।राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा के अनुसार, ओपन बुक असेसमेंट वह परीक्षा है जिसमें छात्र प्रश्नों के उत्तर देते समय पाठ्यपुस्तक, कक्षा नोट्स, पुस्तकालय की पुस्तकें जैसी संदर्भ सामग्री का उपयोग कर सकते हैं। वास्तव में सीबीएसई इस पहल का मुख्य उद्देश्य छात्रों में रटने की प्रवृत्ति को कम करना(टू रिड्यूस टेंडेंसी आफ क्रेमिंग इन स्टूडेंट्स) और योग्यता-आधारित शिक्षा को बढ़ावा देना है। दरअसल, इस संबंध में बोर्ड का यह मानना है कि इससे बच्चों में परीक्षा के प्रति तनाव घटेगा, छात्रों की वैचारिक समझ मजबूत होगी और ज्ञान का व्यावहारिक उपयोग बढ़ेगा। यहां पाठकों को बताता चलूं कि यह प्रस्ताव दिसंबर 2023 में स्वीकृत एक पायलट प्रोजेक्ट के बाद आया है, जिसमें कक्षा 9 से 12 तक ओपन-बुक परीक्षाओं का परीक्षण किया गया था, जिसमें छात्रों का प्रदर्शन 12 प्रतिशत से 47 प्रतिशत के बीच रहा। वास्तव में यह संसाधनों के प्रभावी उपयोग और विषय अवधारणाओं को समझने में चुनौतियों का संकेत देता है। गौरतलब है कि सीबीएसई का यह ओपन-बुक असेसमेंट फॉर्मेट भाषा, गणित, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान जैसे मुख्य विषयों को कवर करेगा। एग्जाम के दौरान छात्र टेक्स्ट बुक, क्लास नोट्स और अन्य स्वीकृत रिसोर्सेज का संदर्भ ले सकते हैं। सीबीएसई ने कहा है कि ये स्कूलों पर निर्भर करता है कि इस फॉर्मेट को अपनाना है नहीं, ये बिल्कुल ऑप्शन होगा।असेसमेंट हर शैक्षणिक सत्र में होने वाली तीन पेन-पेपर टेस्ट का हिस्सा होगा।इस संबंध में सीबीएसई ने बताया है कि ये परीक्षा दूसरी बार वाली परीक्षा स्टूडेंट्स के लिए ऑप्शनल होगी। दूसरे चरण की परीक्षाएं विशेष रूप से सुधार के लिए होंगी। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि सीबीएसई के इस फैसले के दूरगामी प्रभावों पर शिक्षा जगत में एक गंभीर बहस छिड़ गई है। सवाल यह उठता है कि क्या सीबीएसई यह प्रयोग वास्तव में हमारे बच्चों को सशक्त बनाएगा या उन्हें आत्मनिर्भरता और स्मरण शक्ति से दूर ले जाएगा ? हाल फिलहाल, सीबीएसई का यह मानना है कि यह बदलाव छात्रों के मानसिक दबाव को कम करेगा, खासकर उन विषयों में जहां तथ्यों की मात्रा या संख्या अधिक है। सीबीएसई के इस बदलाव से छात्रों में समस्या समाधान कौशल विकसित हो सकेगा। बोर्ड का यह दावा है कि सैंपल पेपर और प्रशिक्षण सत्रों के माध्यम से छात्रों को संदर्भ सामग्री का सही उपयोग सिखाया जाएगा। साथ ही, स्कूलों को इस पद्धति को लागू करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा, हालांकि इसे अनिवार्य नहीं किया गया है, जैसा कि इस संदर्भ में ऊपर जानकारी दी जा चुकी है।हाल फिलहाल,देखा जाए तो इस पद्धति के खतरे भी कुछ कम नहीं हैं। इससे आत्मनिर्भरता में कमी आएगी। कहना ग़लत नहीं होगा कि नौवीं कक्षा वह आधारभूत स्तर है, जहां छात्रों को विषयों की गहराई में जाने, तथ्यों को याद रखने और तर्कशक्ति विकसित करने की आदत डाली जानी चाहिए। यह नई व्यवस्था बोर्ड परीक्षा की तैयारी पर अवश्य ही असर डालेगी, जैसा कि कक्षा 10 की बोर्ड परीक्षा में यह सुविधा उपलब्ध नहीं होगी। कहना ग़लत नहीं होगा कि सीबीएसई के कक्षा नौवीं में इस बदलाव से छात्र ‘ओपन बुक असेसमेंट'(ओबीए) के आदी हो जाएंगे और अगली कक्षा यानी कि बोर्ड की दसवीं की परीक्षा में कहीं न कहीं कठिनाइयों को महसूस करेंगे। शिक्षा की गुणवत्ता पर भी इससे व्यापक असर पड़ेगा। परिणामस्वरूप, बोर्ड परीक्षाओं का औसत परिणाम गिर सकता है, जो सीधे देश की शिक्षा गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा। यहां पाठकों को बताता चलूं कि अमेरिका और यूरोप के कुछ हिस्सों में ओपन बुक परीक्षा पद्धति पहले से प्रचलित है, लेकिन वहां यह केवल उच्च शिक्षा स्तर (कॉलेज और यूनिवर्सिटी) में ही लागू होती है, जहां छात्र परिपक्व, शोधोन्मुख और विश्लेषणात्मक सोच में दक्ष होते हैं। नीदरलैंड की ज्यादातर यूनिवर्सिटीज, सिंगापुर और हांगकांग के कई संस्थान, और कनाडा के कुछ राज्यों में हाईस्कूल स्तर तक यह सिस्टम अपनाया जाता रहा है।कहना ग़लत नहीं होगा कि स्कूली स्तर पर, खासकर 14-15 साल के किशोरों में, यह पद्धति(ओबीए) अनुशासन और स्मरण शक्ति के विकास में बाधा डाल सकती है। यह ठीक है कि आज भारत में स्कूली स्तर पर बच्चों में रटने की प्रवृत्ति कहीं अधिक है लेकिन इस प्रवृत्ति को कम करने के लिए समझ पर ध्यान केंद्रित करना, विभिन्न शिक्षण विधियों का उपयोग करना, और एक संरचित अध्ययन कार्यक्रम बनाना बहुत महत्वपूर्ण है। यदि वास्तव में सीबीएसई का उद्देश्य रटने की प्रवृत्ति को कम करना है, तो इसे धीरे-धीरे और वैकल्पिक रूप में लागू किया जाना चाहिए। अमेरिका और यूरोप की भांति इसे देश में पहले उच्च कक्षाओं में प्रयोगात्मक तौर पर शुरू किया जाए।कक्षा 9 में ओबीए के बजाय प्रोजेक्ट-आधारित मूल्यांकन, केस स्टडी और मौखिक परीक्षा जैसे तरीकों को बढ़ावा दिया जा सकता है।सच तो यह है कि व्यावहारिक गतिविधियाँ, समस्या-समाधान अभ्यास, और इंटरैक्टिव शिक्षण अनुभव, 9 वीं कक्षा के छात्रों के उपयोगी और महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं। वास्तव में, आज जरूरत इस बात की है कि हम छात्रों में संदर्भ सामग्री का सही इस्तेमाल सिखाने के साथ-साथ बिना किताब के उत्तर देने की क्षमताएं भी विकसित करें। सच तो यह है कि छात्र-छात्राएं मानसिक रूप से सशक्त होने चाहिए। शिक्षा की गुणवत्ता और स्तर को बनाए रखने के लिए संतुलित, चरणबद्ध और परीक्षण-आधारित दृष्टिकोण को अपनाया जाना बहुत ही महत्वपूर्ण और आवश्यक है। बहरहाल, पाठकों को यहां बताता चलूं कि परीक्षा प्रणाली में ऐसा नवाचार सीबीएसई ने पहली बार नहीं किया है। करीब आठ-दस साल पहले भी ओपन टेक्स्ट बेस्ड असेसमेंट (ओटीबीए) भी कमोबेश इसी तरह का था, जिसमें नौवीं व ग्यारहवीं कक्षा के कुछ विषयों में विद्यार्थियों को संदर्भ सामग्री चार माह पहले ही दे दी जाती थी। लेकिन, दो-तीन साल बाद ही इसे हटा दिया गया था। ओपन बुक असेसमेंट का नुक़सान यह है कि बिना तैयारी के किताब साथ होने का कोई फायदा नहीं है। साथ ही, किताब से जवाब ढूंढना और फिर समझकर लिखना काफी समय ले सकता है। इतना ही नहीं, अलग-अलग छात्रों की भाषा और प्रस्तुति अलग होगी, जिससे मार्किंग में भी चुनौती आ सकती है। वास्तव में, ओपन बुक परीक्षा को एक के बाद आगे की दूसरी कक्षा में साल-दर-साल लागू किया जाना चाहिए। होना तो यह भी चाहिए कि भले ही शिक्षा प्रणाली में कोई भी प्रकार की व्यवस्थाएं की जाएं, लेकिन उनको लागू करने से पहले उस प्रणाली के गुण-दोषों के बारे में भली प्रकार आकलन करके ही उन्हें लागू किया जाना चाहिए।देश की शिक्षा के नीति नियंताओं को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि ओपन बुक एसेसमेंट का नवाचार पुराने कई प्रयोगों की तरह फाइलों में बंद होकर नहीं रह जाए। सीबीएसई ही नहीं, राज्यों के शैक्षिक मंडलों के भी कई प्रयोग विफल हुए हैं। कभी पांचवी आठवीं में परीक्षा बोर्ड बन जाता है, तो कभी हट जाता है। ऐसी चिंता व विफलता की आशंका नए मॉडल में न रहे, यह सुनिश्चित करना होगा।
सुनील कुमार महला