आखिर नागपुर जैसी सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं कब और कैसे थमेंगी?

कमलेश पांडेय

लीजिए, एक और साम्प्रदायिक दंगा हो गया। इस बार आरएसएस मुख्यालय के लिए मशहूर नागपुर शहर ही इन दंगों की आग से धधक उठा। टीवी पर जो आग की उठती लपटें दिखीं, घायल लोग व पुलिस वाले दिखे, क्षतिग्रस्त व जले वाहन नजर आए, इसके गम्भीर मायने हैं। सवाल है कि क्या यह आरएसएस और उसके आनुषंगिक  संगठनों को देश-दुनिया में बदनाम करने की सियासी साजिश है? क्या हमारे देश के समुदाय विशेष को आईएसआई लगातार भड़का रही है जिससे वो निरंतर हिंसक होते जा रहे हैं और पाकिस्तान-बंगलादेश से सहानुभूति रखते हुए उन्हीं जैसा व्यवहार करने लगे हैं? 

सुलगता हुआ सवाल यह भी है कि क्या दुनियावी मंचों पर लगातार मजबूत हो रहे भारत को पुनः कमजोर करने की साजिश के तहत अंतरराष्ट्रीय ताकतों के इशारे पर यह सब कुछ हो रहा है जिसके तार हमारे राजनेताओं तक से जुड़े हुए हैं क्योंकि देश की यही बेलगाम ताकत है जो अधिकांश अनैतिक करतूतों की जड़ समझी जा रही है! इसी के साथ यह सवाल भी पुनः प्रासंगिक हो गया कि आखिर ब्रेक के बाद होने वाली नागपुर जैसी सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं कैसे थमेंगी? आखिर इन जैसी घटनाओं को रोकने में प्रथमदृष्टया हमारा पुलिस प्रशासन असहाय क्यों प्रतीत होता है और फिर घटना के बाद सक्रिय होकर स्थिति को काबू में करता है? 

सवाल यह भी है कि आखिर क्यों पुलिस बल की तमाम रणनीति फेल हो जाती है जिसकी कीमत इसके अधिकारियों-जवानों के साथ-साथ उन मेहनतकश लोगों को भी चुकानी पड़ती है जो अपने कार्यवश सड़क पर होते हैं या प्रभावित क्षेत्र से गुजरते हैं? प्रश्न यह भी है कि समय रहते ही पत्थर, ईंट-रोड़े छतों पर जमा होने की सूचना पुलिस को क्यों नहीं मिल पाती है? क्या हमारा खुफिया तंत्र बार बार विफल हो रहा है या उसकी सूचना पर सही प्रशासनिक फैसले नहीं हो पाते हैं? यह सब कुछ प्रशासन को बताना चाहिए क्योंकि ब्रेक के बाद देश में होने वाली सांप्रदायिक/जातीय/क्षेत्रीय हिंसा व आगजनी की खबरें हर किसी को परेशान करती हैं। 

लिहाजा इस बारे में पुलिस जनजागृति कार्यक्रम करती रहे और घटना के पश्चात इतनी कड़ी कार्रवाई करे ताकि फिर कहीं और किसी के सिर उठाने की नौबत ही नहीं आए। वहीं, सिविल प्रशासन, न्यायपालिका, मीडिया, सामाजिक संस्थाओं और सियासी दलों को भी पुलिस कार्रवाई का समर्थन करना चाहिए क्योंकि विधि-व्यवस्था के मामले में समझौता करने का सीधा असर समाज और कारोबार दोनों पर पड़ेगा। इस मामले में बयानबाजी भी सधी होनी चाहिए ताकि यह और नहीं भड़के। सवाल यह भी है कि क्या इस क्षेत्र में नागरिक-पुलिस समन्वय समिति नहीं थी या फिर वह भी विफल साबित हुई? सवाल बहुत हैं और जवाब सिर्फ यही कि चुस्त-दुरुस्त प्रशासन ही ऐसी घटनाओं को रोक सकता है अन्यथा जन-धन की अप्रत्याशित क्षति होती रहेगी।

कहना न होगा कि नागपुर के महल क्षेत्र में दो समुदायों के बीच भड़काए गए दंगे पर कांग्रेस ने जिस तरह से भाजपा सरकार को जिम्मेदार ठहराया है, वह एक ओछी राजनीति का परिचायक है । ऐसे में कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कानून-व्यवस्था बनाए रखने में सरकार की विफलता की जो आलोचना की है, वह उनकी दूषित सियासी मानसिकता का ही परिचायक है। ऐसी विकृत सियासी सोच के चलते ही साम्प्रदायिक दंगे लाइलाज बीमारी बनते जा रहे हैं। 

जानकारों का कहना है कि सियासी विकृति, प्रशासनिक अकर्मण्यता, न्यायिक विवेकशून्यता और मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक में संपादकीय विवेक के अभाव का ही नतीजा है कि ब्रेक के बाद यत्र-तत्र दंगे भड़क जाते हैं जिसके बाद शहर में कर्फ्यू लगा दिया जाता है। इंटरनेट पर पाबंदी इस समस्या का समाधान नहीं है बल्कि उकसाऊ तत्वों का विधि सम्मत तरीके से सफाया करके ही इस समस्या का सार्थक समाधान किया जा सकता है। 

लोगों के मुताबिक, जिस तरह से नागपुर के महल इलाके में हिंसा भड़की, भीड़ का पथराव हुआ, भीड़ द्वारा 8 से 10 वाहनों में आग लगा दी गई और ऐसी ही घटनाएं सामने आई हैं, उससे प्रशासन के एक्टिव रहने पर ही सवाल उठता है क्योंकि उपद्रवियों को देखते ही गोली मारने का आदेश न होना पुलिस को जान पर खेलने के लिए विवश करने जैसा है। इसके लिए संसद और सुप्रीम कोर्ट दोनों की अदूरदर्शी भूमिका भी सभ्य समाज के कठघरे में है क्योंकि राष्ट्र को सुशासन देने की नैतिक जिम्मेदारी इन्हीं दोनों संस्थाओं की है। यदि एक समुचित कानून नहीं बनाने का दोषी है तो दूसरा ऐसे मामलों में स्वतः संज्ञान न लेकर किंकर्तव्यविमूढ़ बने रहने का जो मंचन करता है, वह अस्वीकार्य है।

हैरत की बात है कि नागपुर के महल इलाके में दो समुदायों के बीच भड़की हिंसा पर जो राजनीति शुरू हो गई है, उससे घटिया बात कुछ हो ही नहीं सकती! भले ही कांग्रेस ने इसके लिए भाजपा नीत सरकार को जिम्मेदार ठहराया है लेकिन उसकी सरकारों ने क्या किया है, उसका अतीत कैसा रहा है, इस बारे में वह कभी नहीं सोचती। कांग्रेस ने जिस तरह से कानून-व्यवस्था बनाए रखने में विफलता का आरोप लगाया है, वह एकतरफा आरोप है।

भले ही कांग्रेस नेता ने सवाल उठाया है कि सांप्रदायिक सद्भाव के 300 साल के इतिहास वाले शहर में इस तरह की अशांति कैसे हो सकती है लेकिन इसकी हकीकत उनसे ज्यादा कौन बयां कर सकता है। एक ओर उन्होंने कुछ राजनीतिक दलों पर अपने फायदे के लिए जानबूझकर तनाव भड़काने का आरोप लगाया जबकि दूसरी तरफ सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक 2011 लाकर उनकी पार्टी ने किस तरह एकतरफा नियम बनवाए, वह हैरतअंगेज है। क्या वह अपनी पार्टी की करतूतें भूल चुके हैं?

उनका यह कहना कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के गृहनगर महल में दंगा भड़क गया, एक अस्वीकार्य बयानबाजी है क्योंकि वहां के हालात इस बात की चुगली कर रहे हैं कि यह एक सुनियोजित साजिश थी क्योंकि उपद्रवियों ने हिंदुओं को चुन चुन कर निशाना बनाया है। ऐसे आरोप टीवी व सोशल मीडिया पर दिखाई-सुनाई पड़ रहे हैं। इसलिए मुझे भी इसमें साजिश की बू आती है क्योंकि वाकई नागपुर का इतिहास 300 साल पुराना है और यहां पहले कभी कोई दंगा नहीं हुआ। यह केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और देवेंद्र फडणवीस जैसे सुलझे हुए नेताओं का गृह क्षेत्र भी है, इसलिए यहां शांति की गारंटी होनी चाहिए क्योंकि यथा नेता तथा प्रजा वाली कहावत यहां सटीक बैठती थी, इस घटना से पूर्व तक। इसलिए हम उन जैसों से भी यह पूछना चाहते हैं कि आखिर ऐसी स्थिति क्यों पैदा हुई? 

अब भले ही उन्होंने कहा कि बीजेपी केंद्र और राज्य दोनों जगहों पर सत्ता में है, लेकिन कभी कांग्रेस की भी तो सरकारें ऐसे ही केंद्र व राज्य दोनों जगहों में हुआ करती थीं, फिर भी दंगे भड़कते थे। वैसे में आज यदि विहिप और बजरंग दल ने औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन किया तो सरकार ने कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए जो पर्याप्त इंतजाम किए थे, वो उपद्रवियों की जाहिल मानसिकता के चलते विफल रहे जिससे नागपुर शहर के कोतवाली, गणेशपेठ, लकड़गंज, पचपावली, शांतिनगर, सक्करदरा, नंदनवन, इमामवाड़ा, यशोधरा नगर और कपिल नगर पुलिस थाना क्षेत्रों में कर्फ्यू लगाने की नौबत आई।

बता दें कि मुगल बादशाह औरंगजेब की कब्र को खुल्ताबाद से हटाने की मांग को लेकर सोमवार देर रात मध्य नागपुर में हिंसक झड़पें हुईं। इसमें दर्जनों लोग घायल हो गए। भीड़ ने दो बुलडोजर और पुलिस वैन सहित 40 वाहनों को आग के हवाले कर दिया। इस हिंसा में कम से कम 10 दंगा-रोधी कमांडो, दो वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और दो दमकलकर्मी गंभीर रूप से घायल हो गए जबकि एक कांस्टेबल की हालत गंभीर बनी हुई है।

वहीं पुलिस ने बड़े पैमाने पर कार्रवाई करते हुए 50 दंगाइयों को गिरफ्तार किया। वहीं गृह मंत्रालय ने इस हिंसा पर रिपोर्ट मांगी है। यह घटना प्रधानमंत्री मोदी के नागपुर दौरे से ठीक दो सप्ताह पहले हुई थी। दरअसल यह हिंसा तब भड़की जब यह अफवाह फैली कि एक विशेष समुदाय के प्रदर्शनकारियों ने आरएसएस मुख्यालय से बमुश्किल 2-3 किमी दूर महल गेट पर शिवाजी पुतला स्क्वायर के पास औरंगजेब के पुतले और एक धार्मिक चादर जलाई है।

यूँ तो भारत में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं, विशेषकर धार्मिक त्योहारों और जुलूसों के दौरान, समय-समय पर होती रही हैं, जिनमें 1946 का नोआखली दंगा, 1989 का भागलपुर दंगा, 1992 का बाबरी मस्जिद विध्वंस, और हाल ही में मणिपुर और नूह में हुई हिंसा शामिल हैं। आजादी से अब तक की प्रमुख घटनाएं इस प्रकार है:- 1946 के नोआखली दंगा के तहत बंगाल में सांप्रदायिक हिंसा हुई, जिसमें बड़ी संख्या में लोगों की जान गई। वहीं, 1989 के भागलपुर सांप्रदायिक दंगे के बाद भी कई जगह दंगे हुए जिसने कांग्रेस की सियासी चूलें ऐसी हिलाई, जिससे आजतक वह उबर नहीं पाई है। वहीं, 1992 के विवादास्पद बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद अयोध्या सहित देश भर में सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई। 

जहां तक हाल की घटनाओं की बात है तो मणिपुर और नूंह (हरियाणा) में सांप्रदायिक हिंसा हुई जिससे कई लोगों की जान गई और संपत्ति का नुकसान हुआ। अन्य घटनाओं में 1921 का मोपला विद्रोह, 1947 का भारत विभाजन दंगा, और 1960 के दशक में पूर्वी भारत में हुई घटनाएं भी सांप्रदायिक हिंसा के उदाहरण हैं। 

जहां तक सांप्रदायिक हिंसा के कारण की बात है तो धार्मिक आधार पर लोगों को अलग-अलग करना जिससे समाज में तनाव पैदा होता है, इसका प्रमुख कारण है। वहीं, राजनीतिक लाभ के लिए धार्मिक विभाजन को बढ़ावा दिया जाता है जिससे ऐसी घटनाएं बढ़ती हैं. सोशल मीडिया और मीडिया के माध्यम से नफरत और हिंसा को बढ़ावा देने से भी ऐसी लोमहर्षक घटनाएं घटती हैं। आर्थिक असमानता भी सांप्रदायिक हिंसा का कारण बनती है. अशिक्षित समाज में लोगों को आसानी से भड़काया जाता है।

जहां तक सांप्रदायिक हिंसा के प्रभाव की बात है तो सांप्रदायिक हिंसा से समाज में दरारें पैदा होती हैं और लोग एक-दूसरे पर भरोसा करना बंद कर देते हैं। सांप्रदायिक हिंसा से लोगों की जान जाती है और संपत्ति का नुकसान होता है। सांप्रदायिक हिंसा से लोगों में डर और असुरक्षा की भावना पैदा होती है।


कमलेश पांडेय

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