स्वाधीनता दिवस विशेष :
डॉ घनश्याम बादल
15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ भारत आज 2025 में आजादी के 78 साल बाद एक दूसरी आजादी के जंग में खड़ा है । बेशक हम एक संप्रभु राष्ट्र हैं, राजनीतिक रूप से हमारा एक अलग देश है और हम स्वतंत्र राष्ट्र हैं लेकिन पिछले कुछ दिनों से दुनिया भर में जिस तरह अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ‘ट्रंप टैरिफ’ लागू किया है, उसकी छाया हम पर भी पड़ी है बल्कि कहें कि यदि किसी पर इस तथाकथित ट्रंप टैरिफ की मार पड़ी है तो वह भारत ही है।
हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी बार-बार कहते रहे हैं कि यह समय युद्ध का नहीं बल्कि शांति एवं समृद्धि की राह पर चलने का है लेकिन आज दुनिया भर में युद्ध के बादल छाए हुए हैं। यूक्रेन और रूस का युद्ध पिछले करीब 3 साल से जारी है, इसराइल और फिलिस्तीन में भारी संघर्ष हुआ और गाजा पट्टी का इलाका लगभग तबाह हो गया। इस बीच अमेरिका ने ईरान पर भी हमला किया, 22 अप्रैल को हुए पहलगाम हमले के बाद भारत और पाकिस्तान में भी तीखा संघर्ष हुआ जिसमें पस्त हो रहे पाकिस्तान ने त्राहिमाम त्राहिमाम करते हुए युद्ध विराम की प्रार्थना की और भारत मान गया।
शायद यही बहुत बड़ी ग़लती हुई और इस युद्ध विराम का श्रेय लूटने के लिए नोबेल शांति पुरस्कार पर निगाह गड़ाए बैठे डोनाल्ड ट्रंप मैदान में कूद पड़े। यह बड़ी अजीब स्थिति थी। यदि भारत यह स्वीकार करता कि डोनाल्ड ट्रंप ने ही यह युद्ध विराम कराया है, तब सरकार और देश दोनों की भद्द पिटती।
राजनीतिक दूर दृष्टि एवं अंदरूनी सियासत दोनों पर निगाह रखते हुए प्रधानमंत्री ने यह बात न स्वीकार की और न ही इस पर टिप्पणी की। इससे देश के अंदर भी माहौल गर्माया. शायद प्रधानमंत्री की इसी चुप्पी से डोनाल्ड ट्रंप चिढ़ गए और उन्होंने व्यापार घाटे की आड़ में भारत पर पहले 25% का टैरिफ लगाया और फिर भारत द्वारा यह कहने पर कि किसी भी देश ने भारत से युद्ध विराम की बात ही नहीं की, वह और भी ख़फ़ा हो गए और उन्होंने 25% का अतिरिक्त टैरिफ भी 27 अगस्त 2025 से भारत पर थोपने की घोषणा कर दी।
प्रश्न यह उठता है कि आज स्वाधीनता दिवस के अवसर पर इस घटना का जिक्र क्यों किया जा रहा है। तो इसका सीधा सा जवाब यह है कि हम राजनीतिक रूप से तो आज स्वतंत्र हैं, स्वाधीन है और आज़ादी की हवा में सांस ले रहे हैं लेकिन आर्थिक रूप से हम आज भी इतने मज़बूत नहीं हैं कि आर्थिक मार को झेल सकें। टैरिफ प्रकरण की वजह से एक बार फिर से देश के सामने आर्थिक आजादी पाने का संघर्ष मुंह बाए खड़ा है।
हमने सैन्य संघर्ष में तो पाकिस्तान के घुटने टिकवा दिए लेकिन आर्थिक युद्ध में हम आज चारों तरफ से घिरे हुए हैं। हमारी अर्थव्यवस्था भले ही विश्व की चौथी अर्थव्यवस्था बन गई हो लेकिन हम आज भी अमेरिका, चीन रूस और जापान जैसे देशों से बहुत पीछे हैं। हमने विकास तो किया है ‘चार कदम सूरज की ओर’ बढ़ाए भी हैं और ‘उभरते हुए भारत’ यानी ‘इमर्जिंग इंडिया’ की बातें भी जोर-जोर से उछलीं है लेकिन असली बात यही है कि आज भी आर्थिक रूप से हम आत्मनिर्भर देश के रूप में नहीं जाने जाते हैं।
जीवन के कई क्षेत्रों में हम दूसरे देशों पर निर्भर हैं और व्यापार घाटे का सामना भी कर रहे हैं । हमारे निर्यात पर अकेले अमेरिका द्वारा टैरिफ लगा दिए जाने से भारी आशंकाएं उभर कर सामने आई है और विशेषज्ञ मान रहे हैं कि इससे हमारी विकास दर एवं अर्थव्यवस्था को भारी झटका लग सकता है तो इस दृष्टि से देखें तो आज भी आर्थिक आज़ादी हमसे बहुत दूर है।
रक्षा उपकरण, विमान, हथियार और तकनीकी विकास के मामले में हम बहुत हद तक विदेशों पर निर्भर हैं । डॉलर, पौंड, युआन और रूबल तथा यूरो आदि के मुकाबले आज भी रुपए की हालत बहुत खराब है और लगातार यह है स्थिति बद से बदतर होती दिखती है । यदि हम आर्थिक रूप से सबल राष्ट्र के रूप में खड़े नहीं हो पाते हैं तो फिर राजनीतिक स्वाधीनता भी बेमानी हो जाती है।
यदि आर्थिक रूप से हमें स्वाधीनता प्राप्त करनी है तो ऊर्जा, खनिज पदार्थ, तेल, तकनीकी और रक्षा उपकरणों के मामले में हमें बहुत दूर तक जाना होगा । अपने बल पर अंतरिक्ष तक जाने लायक बनना होगा और निर्यात की दृष्टि से भी पूरे विश्व पर कड़ी दृष्टि रखनी होगी । विश्व भर के बाजार में अपने आयात निर्यात का इस प्रकार से विस्तार करना होगा कि आने वाले समय में हम किसी एक राष्ट्र या गुट पर निर्भर न रहें जिससे अपनी आयात निर्यात की नीति और राजनीतिक तथा आर्थिक स्थिति के हिसाब से अपने निर्णय बेख़ौफ़ होकर लेने की सामर्थ्य जुटा सकें।
उत्तरी भारत के गांवों में एक बड़ी मशहूर कहावत है ‘एक पैसा -एक अकल और चार पैसे- दस अकल’, यानी आप जितने समृद्ध होंगे, जितने आत्मनिर्भर होंगे और अपनी रक्षा करने में समर्थ होंगे ,आपकी आजादी उतनी ही यथार्थ परक होगी तथा ठोस धरातल पर खड़े होकर आप पूरी दुनिया को अपने अनुसार चलने के लिए राज़ी कर पाएंगे तथा ज़रूरत पड़ी तो झुकने के बजाय झुकाने का सामर्थ्य भी तब आप में होगा।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक रूप से स्वावलंबी और सफल होने के लिए देश को अंदरुनी स्तर पर भी उत्पादन का स्तर एवं गुणवत्ता दोनों पर ध्यान देना होगा। कृषि क्षेत्र के साथ-साथ उद्योग तथा स्वदेशी वस्तुओं के निर्माण के साथ-साथ तकनीकी तथा हस्त कौशल को बहुत आगे ले जाना होगा। स्वदेशी के प्रचार प्रसार और प्रयोग से ही सचमुच में ‘सबका साथ, सबका विकास’ के नारे को यथार्थ के धरातल पर उतर जा सकता है।
आंतरिक स्तर पर भी आय का वितरण समान करने पर काफी कार्य करना पड़ेगा । खासतौर पर कृषि को केवल वर्षा या प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर नहीं छोड़ा जा सकता है । साथ ही साथ अचानक आने वाली प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने के लिए भी एक ‘प्रोएक्टिव सिस्टम’ तो तैयार करना ही होगा किसी प्राकृतिक आपदा के आ जाने पर उससे निपटने के त्वरित उपाय एवं संसाधन भी जुटाने होंगे।
यदि हमें सचमुच में एक विश्वगुरु व आत्मनिर्भर, उभरता हुआ भारत बनाना है तो फिर आर्थिक स्थिति को मजबूत करना ही पड़ेगा लेकिन साथ ही साथ हमें अपनी परंपरा संस्कृति एवं विरासत को भी अक्षुण्ण रखते हुए उसे समृद्ध भी करना पड़ेगा । विकास के लिए किसी का भी अंधानुकरण करना लंबे समय तक कभी सार्थक नहीं हो सकता है । यदि हमें एक समर्थ और महाशक्तिवान भारत बनाना है तो आर्थिक एवं सामरिक दृष्टि से भी सशक्त,समर्थ, सक्षम एवं ठोस भारत का निर्माण करना होगा।
डॉ घनश्याम बादल