राहुल गांधी के बयान के बाद कांग्रेस में मंथन शुरू

प्रदीप कुमार वर्मा

डेढ़ सौ साल पुरानी देश की इकलौती पार्टी कांग्रेस में इन दिनों संगठन की मजबूती के लिहाज से “सर्जरी” का दौर चल रहा है। पार्टी के शीर्ष नेता राहुल गांधी के गुजरात में दिए बयान के बाद  निष्क्रिय कार्यकर्ताओं को पार्टी से बाहर करने की कवायद शुरू हो गई है। अपने ही कार्यकर्ताओं की निष्ठा एवं समर्पण पर सवाल तथा भाजपा से कथित सांठ-गाँठ  के आरोप के बाद अब कांग्रेस कार्यकर्ताओं की राजनीतिक विचारधारा के “डीएनए” की जांच पर पार्टी में अंदरखाने घमासान है। इसके साथ ही देश के लगभग सभी सूबों में कांग्रेस संगठन में बदलाव कर निष्क्रिय कार्यकर्ताओं को बाहर कर नए कार्यकर्ता को जिम्मेदारी देने का काम शुरू हो गया है। उधर, भाजपा ने राहुल गांधी के बयान तो लेकर कटाक्ष करते हुए उनकी अगुवाई में कांग्रेस के सबसे खराब प्रदर्शन की बात कहकर एक नया राजनीतिक विमर्श भी सेट कर दिया है।

      दरअसल, बीते दिनों गुजरात दौरे पर गए राहुल गांधी ने अहमदाबाद में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि पार्टी में दो तरह के नेता है। एक वो, जो जनता के साथ खड़े होते हैं, उनके लिए लड़ते हैं और उनका सम्मान करते हैं क्योंकि उनके दिल में कांग्रेस है। दूसरे, जो अलग-थलग बैठते हैं, लोगों का सम्मान नहीं करते और भाजपा के साथ सांठ-गांठ करते हैं। कांग्रेस में शेर तो हैं लेकिन वे चेन से बंधे हैं। अगर जरूरत हुया,तो तीस चालीस प्रतिशत लोगों को कांग्रेस से बाहर निकाला जा सकता है। पार्टी फोरम पर अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ताओं और पदाधिकारी के विरुद्ध दिए गए इस बयान के बाद कांग्रेस में चिंतन और मंथन का दौर शुरू हो गया है। पार्टी पदाधिकारी इस बयान को राहुल गांधी द्वारा पार्टी को मजबूती प्रदान करने की एक “सच्ची” कोशिश मान रहे हैं। वहीं, कुछ लोग गुप-चुप रूप से ही सही यह भी कहने से नहीं चूक रहे कि कार्यकर्ताओं के विरुद्ध इस कथित टिप्पणी से उनका मनोबल काम होगा और भाजपा के साथ लड़ाई में कांग्रेस एक बार फिर से कमजोर होगी।

               हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन के बाद एक बार फिर से यह सवाल खड़े हुए कि आखिरकार कांग्रेस की हार के कारण क्या हैं? हार के मंथन के दौरान इंडिया गठबंधन के साथ पार्टी के तालमेल सहित कांग्रेस कार्यकर्ताओं की सक्रियता और पार्टी के प्रति उनके समर्पण पर भी सवाल उठे। इसके बाद रही-सही कसर दिल्ली विधानसभा के चुनाव में पूरी हो गई। जब कांग्रेस के साथ इंडिया गठबंधन में मुख्य दल आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के साथ तालमेल नहीं किया। कांग्रेस को राजनीतिक रूप से एक और झटका तब लगा, जब इंडिया गठबंधन के अन्य साथी दलों ने दिल्ली में आकर आम आदमी पार्टी का साथ दिया और आम आदमी पार्टी के पक्ष में प्रचार किया। नटीजतन इस चुनाव में इंडिया गठबंधन के प्रमुख घटक कांग्रेस पार्टी को भाजपा के साथ-साथ अपने ही साथी दलों के साथ चुनावी समर लड़ना पड़ा। इससे कांग्रेस के चुनावी प्रदर्शन के साथ-साथ इंडिया गठबंधन में उसकी साख को भी धक्का लगा है।

           दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुमान के अनुरूप ही आए और कांग्रेस को करारी हार मिली। लोकसभा और विधानसभा चुनाव में सीटों के प्रदर्शन के हिसाब से कांग्रेस को एक बार फिर से “शून्य” से ही संतुष्ट होना पड़ा। दिल्ली की हार के बाद ही संभव है कि कांग्रेस में कार्यकर्ताओं की निष्ठा को लेकर यह नया विमर्श शुरू हुआ है,जिसकी शुरुआत भाजपा के गढ़ गुजरात से हुई है। गुजरात के अहमदाबाद में दिए राहुल गांधी के बयान के बाद राजस्थान सहित अन्य राज्यों में भी संगठन की सर्जरी को लेकर कवायद शुरू हो गई है। कांग्रेस की राज्य यूनिटों ने आगामी निकाय और पंचायत चुनाव में बेहतर प्रदर्शन के लिए राहुल गांधी की मंशा के अनुरूप ही संगठन में जान फूंकने की खातिर एक फॉर्मूला तैयार किया है। इसके तहत निष्क्रिय पदाधिकायों को संगठन से बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा। संगठन की बैठकों और कार्यक्रमों से नदारद रहने वाले पदाधिकायों की छुट्टी की जाएगी।

            इस संबंध में कांग्रेस के वरिष्ठ पदाधिकारी का कहना है कि कांग्रेस संगठन से निष्क्रिय पदाधिकारियों को बाहर का रास्ता दिखाए जाने के बाद नए पदाधिकारियों की एंट्री होगी। नए ऊर्जावान कार्यकर्ताओं को संगठन की जिम्मेदारी मिलने से वे ज्यादा एक्टिव होकर कार्य करेंगे। वरिष्ठ कांग्रेसियों का मानना है कि राहुल गांधी का यह कदम पार्टी की मजबूती के लिए जरूरी है तथा इस प्रकार का आंतरिक अनुशासन और यह कवायद संजीवनी के समान उपयोगी साबित होगा और कांग्रेस पार्टी के चुनावी प्रदर्शन में सुधार होगा। वहीं, इसके उलट पार्टी के एक धड़े में इस बात को भी लेकर मंथन है कि अपने ही कार्यकर्ताओं की पार्टी के प्रति निष्ठा और समर्पण पर इस प्रकार सार्वजनिक तौर पर सवाल उठाना सही नहीं है। इस कदम से पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल कम होगा, जिसका असर सत्ता में बैठी भाजपा के साथ लड़ाई में पार्टी को नुकसान के रूप में होगा। 

            उधर, कांग्रेस नेता राहुल गांधी के इस बयान पर भारतीय जनता पार्टी ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उन्हें पहले यह समझना चाहिए कि चुनाव में उनकी पार्टी की हार के लिए वह स्वयं जिम्मेदार हैं। इसलिए उन्हें अपनी ‘विफलताओं’ के लिए दूसरों को दोष देना बंद कर देना चाहिए। राज्यसभा संसद और भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि जब से राहुल गांधी और उनकी मां सोनिया गांधी ने पार्टी की कमान संभाली है, तब से कांग्रेस की स्थिति खराब हो गई है। कांग्रेस के विरोधी दलों का यह भी मानना है कि कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के निष्ठा और पार्टी के प्रति समर्पण के कथित राजनीतिक “डीएनए” की जांच की बजाय खुद राहुल गांधी को आत्म मंथन करना चाहिए तथा पार्टी के समर्पित नेताओं को पार्टी की कमान सौंप देनी चाहिए। जिससे आजादी की कोख से निकली देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस  के “राजनीतिक प्रदर्शन” में अपेक्षित सुधार हो सके।

प्रदीप कुमार वर्मा

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