विविधा

एक खुला पत्र नीतिश कुमार के नाम

 माननीय नीतिश कुमार जी, मुख्यमंत्री बिहार ,

नमस्कार ,

आपके कथन कि “ प्रधानमन्त्री पद पर कोई हिन्दुत्ववादी व्यक्ति आसीन नहीं हो सकता “ को पढ़ने सुनने के बाद ह्रदय को ठेस लगी और आपसे खुला पत्र व्यवहार करने का मन हुआ अतः लिख रहा हूँ —

आपने कहा है कि कोई हिन्दुत्ववादी -साथ साथ साम्प्रदायिक भी जोड़ा था -इस देश का प्रधानमन्त्री नहीं हो सकता है. मुझे आश्चर्य है कि एक महत्वपूर्ण संवैधानिक दायित्व का निर्वहन कर रहा व्यक्ति इस प्रकार का दुस्साहसी, एकपक्षीय और असावधान व्यक्तव्य कैसे दे सकता है ? क्या आप इस प्रकार का व्यक्तव्य भी देने की “तथाकथित राजनैतिक जवाबदारी ” निभा सकते है कि ” कोई मुस्लिमवादी या इसाईवादी इस देश का प्रधानमन्त्री नहीं बन सकता है “?? किसी व्यक्ति को साम्प्रदायिक कहने या संकेत करने के पहले आपको अपने संवैधानिक पद की गरिमा की चिंता भी करनी चाहिए थी. प्रधानमन्त्री बनने की शीघ्रता करने का आपको अधिकार है किन्तु इस कुचक्र में आप हिंदुओं के मौलिक अधिकारों के हनन का प्रयत्न न करें. आपको यह भी सोचना चाहिए था कि आपके इस व्यक्तव्य से किसी हिन्दुमना को क्या कष्ट और पीड़ा होगी. हिन्दुधर्मी होने के नाते हिन्दुत्ववादी होने का धर्म निभाना ही चाहिए किन्तु आपके कथन के बाद मुझे लगता है कि हिन्दुत्ववादी होना कोई अपराध हो गया है !! मुझे यह भी लगने लगा है कि – आपका बस चला तो -हिन्दुत्ववादी होने से मुझे या मेरी संततियों को किसी संवैधानिक ,राजनैतिक पद पर आसीन होने का अवसर नहीं मिल पायेगा!!! मुझे इस देश में पचासी प्रतिशत की संख्या वाले समूह की एक इकाई होने का जो पिता प्रदत्त गौरव और अभिमान है उसमे आपके ऐसा कहने से कोई ह्रास नहीं हुआ है किन्तु मुझे आशंका है कि आपके या आपके जैसे तथाकथित धर्म निरपेक्ष नेताओं के ऐसे विध्वंसक विभाजनकारी व्यक्तव्य के बाद सामान्य हिन्दुजन अपने धर्म में आस्था और विश्वास पर प्रहार और आघात का आभास कर रहे है. इस राष्ट्र के एक निर्वाचित मुख्यमंत्री द्वारा पवित्र हिंदू मानसिकता पर इस प्रकार के अनावश्यक आघात और प्रहार से -कि कोई हिन्दुत्ववादी इस देश का प्रधानमन्त्री नहीं बन सकता है – भारतीय संविधान की आत्मा व भावना , इस देश की आत्मा व भावना और करोडो भोले भाले हिदुओं की आत्मा और भावना कितनी छलनी, आहत और चोटिल हुई है ; संभवतः इस तथ्य की कल्पना भी आप जैसा असंवेदनशील, शुद्ध राजनैतिक, विशुद्ध महत्वाकांक्षी और प्रधानमन्त्री पद की दौड़ में लगा व्यक्ति नहीं कर पायेगा. इस देश में कई करोड़ या लगभग एक अरब हिन्दुत्ववादी व्यक्ति है जो भारत में पिछली कई पीढ़ियों और कई सदियों से रहने वाले मेरे हिंदू (परम) पिता की संतान है, और जहां तक मेरा ज्ञान है कि ठीक इसी तरह की ही स्थिति आप की भी है. आप भी अपने घर परिवाए में हिन्दुत्ववादी आचरण करते है और अपने परिवार जनो से ऐसी ही अपेक्षा भी करते है. फिर इस प्रकार का कथन करते हुए आप की जिव्हा कम्पित क्यों नहीं हुई ?? क्या आपको अपने स्वयं के हिन्दुत्ववादी होने का आभास किसी अन्य को कराना पडेगा ???

नीतिश जी, एक मुख्यमंत्री होंने के नाते आपको यह बताने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए थी कि – संविधान निर्माताओं ने इस बात को स्पष्ट रूप से समझा था कि इस देश की और इसके रहवासियों की आत्मा हिंदुत्व में बसती है. संविधान की रूपरेखा भी विभिन्न प्रकार से इस तथ्य को सम्पुष्ट करती है. संविधान समिति ने हिंदुत्व को स्पष्टतः एक धर्म या सम्प्रदाय नहीं बल्कि एक जीवन शैली माना. इसीलिए धर्म की स्वतन्त्रता के मौलिक अधिकारों की गारंटी देते हुए अनुक्छेद 25 में स्पष्ट कर दिया गया है कि खंड (2) के उपखंड (ख) में हिंदू के अंतर्गत अन्य बहुत से धर्मावलंबी भी समावेशित व समाहित होते है. कालान्तर में कई ऐसे न्यायलीन आदेश हुए जिनमें हिंदुत्व को एक जीवन पद्धति के रूप में माना गया. महात्मा गांधी से लेकर, महामना मदनमोहन, लोकमान्य और अनेकों नेताओं ने इस पुनीत तथ्य में प्रारम्भ में ही प्राण प्रतिष्ठित कर दिए थे.

आदरणीय मुख्यमंत्रीजी, खेदपूर्वक कहना पड़ रहा है कि आप जैसे नेताओं के कारण ही इस देश में ऐसा वातावरण बन गया है कि हिंदत्व को कोसने, आलोचना करने का फैशन भारतीय राजनीति में आ गया है.आज स्थिति यह हो गई है कि यदि आपको बुद्धिजीवी, प्रगतिशील राजनीतिज्ञ या सामाजिक कार्यकर्ता कहलाना है तो प्रत्येक हिंदू त्यौहार, उत्सव, मेले, यात्रा आदि के सबंध में विरोधी व्यक्तव्य देना शुरू कर दो; तब आप प्रगतिशील मान लिये जायेंगे. अपने धर्म, प्रतीकचिन्हों, मानबिन्दुओं,धर्मावलंबियों के प्रति चिंता करने और आदर प्रकट करने को सांप्रदायिकता का नाम आप जैसे नेता ही देते है. भले ही आपने यह कथन अनजाने या अनचाहे कह दिया हो किन्तु अब आप चाह कर भी उस हिंदुत्व को हुई हानि को नहीं भर पायेंगे जिस हिंदुत्व में आप भी संस्कारित व दीक्षित हुए है.

श्रीमान जी, मैं आपको बता दूँ कि यदि धर्म निरपेक्षता का व्यवहारिक, व्यापक अर्थ वाला,सटीक पर्यायवाची शब्द यदि कोई है है तो वह हिंदुत्व ही है जिसमे इस राष्ट्र का कण कण समाहित हो सकता है. हिंदुत्व शब्द के इस अर्थ से संभवतः आपको आपके कथन के अर्थ अनर्थ समझ में आ जायेंगे —हिन्सायाम दुस्य्ते या सा हिंदू – अर्थात जो अपने मन, वचन, कर्मणा से हिंसा से दूर रहे वह हिंदू है. यहाँ हिंसा की परिभाषा को भी समझे – जो कर्म अपने हितों के लिये दूसरों को कष्ट दे वह हिंसा है. इतने व्यापक, ब्रह्माण्ड सदृश शब्द “हिंदू” को आपने केवल स्वयं के प्रधानमंत्री बनने न बनने आदि की उलझन में उलझा दिया है !! प्रधान मंत्री आप या मोदी या कोई और बने इससे निश्चित ही इस राष्ट्र को फर्क पड़ता है किन्तु इस बात से तो प्रलय हो जायेगी कि कोई हिन्दुत्ववादी इस देश का प्रधानमन्त्री नहीं बनना चाहिए.कृपया लोकमान्य तिलक द्वारा दी गई हिंदुत्व की परिभाषा को भी आप समझे इससे संभवतः आपको आपके व्यक्तव्य की विभीषिका का ध्यान हो जाएगा. लोकमान्य ने कहा है – असिंधो सिन्धुपर्यंत यस्य भारत भूमिका | पितृभू, पुण्यभूश्चेव स वै हिंदू रीति स्मृतः -अर्थात जो सिंधु नदी के उद्गम से लेकर हिंद महासागर तक रहते है व इसकी सम्पूर्ण भूमि को अपनी मात्र भूमि, पितृभूमि, पुण्यभूमि, मोक्षभूमि मानते है वे हिंदू है. हिंदू शब्द के इस अर्थ और भारतीय विधि में समय समय पर दी गई हिंदुत्व की व्याख्या को पढ़ने के बाद आपको भी यह मानना ही होगा कि इस देश का प्रधानमन्त्री कोई भी बने उसका आचरण शुद्ध हिन्दुत्ववादी ही होना चाहिए.

नीतीशजी, आप इस देश के संविधान की जिन व्यवस्थाओं से मुख्यमंत्री रूप में कार्यरत होकर प्रतिष्ठा, मान,गरिमा व अधिकार संपन्न हुए है उन्ही व्यवस्थाओं से मुझे भी कुछ अधिकार प्राप्त है. आप कृपया मेरे संविधान प्रदत्त अधिकारों को चुनौती न दे व साथ ही साथ इस प्रकार की बे-तुकी चर्चा कर इस राष्ट्र के वातावारण में सांप्रदायिक जहर न घोले व सामाजिक समरसता को बनाए रखने में सहयोग प्रदान करें. मैं आपसे इस पत्र में इस तथाकथित छदम धर्म निरपेक्ष राजनीति (PSEUDO SECULARISM) के विषय में भी कुछ चिंताएं व सरोकारों को सांझा करना चाहता था किन्तु आज के लिये इतना पर्याप्त है.

आशा है आप मेरी किसी भी बात को अन्यथा न लेंगे व स्नेह बनाए रखेंगे.

आपका

एक भारतीय नागरिक