
सुशील कुमार ‘नवीन’
चलिये आज की शुरुआत हल्की-फुल्की बात से करते हैं। यदि घर में कोई चाय-कॉफी न पीता हो तो क्या हम इन्हें घर में रखना पसंद नहीं करते हैं। मुझे यदि बैंगन का भरता और अरबी की सब्जी पसन्द नहीं है तो क्या शेष घरवाले भी इन्हें खाना छोड़ दें। मुझे इत्र लगाना रुचिकर नहीं तो जमाना मेरे लिए इसे प्रयोग करना छोड़ दे। कोई पारले फेब बर्बन का दीवाना है तो मुझ जैसे को 5 रुपये वाले ‘स्वाद भरे शक्ति भरे पारले जी ‘ से बेहतर दुनिया में कोई बिस्किट ही नहीं लगता। जरूरी नहीं मुझे जो अच्छा लगता हो वो किसी और को अच्छा लगता हो। लोहे को लोहार की चोट जरूरी है तो सोने को स्वर्णकार की थपकी वाला दुलार।
आप सोचते होंगे आज व्यंग्य में यथार्थवादिता की बातें कैसे आ गई। जाने माने यूट्यूबर संदीप माहेश्वरी सोशल मीडिया पर पिछले 5-6 दिन से बुरी तरह से ट्रोल हो रहे हैं। उन्होंने एक वीडियो में देवभाषा संस्कृत का मजाक उड़ाने का प्रयास किया है। जो संस्कृत विद्वानों को बुरा लगा है। मधुमक्खियों के छाते को छेड़ने के बाद इंसान की जो हालत होती है , वो संदीप माहेश्वरी की हो रही है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर पर संदीप माहेश्वरी टॉप पर ट्रेंड कर रहे हैं. ट्विटर के जरिए संस्कृत प्रेमी उनके संस्कृत भाषा को लेकर की गई टिप्पणी पर काफी नाराज हैं। #क्षमा_मांगो_संदीप_माहेश्वरी पर हजारों ट्वीट्स हो चुके हैं।इसी का परिणाम यह रहा कि उन्हें न केवल इस बारे में क्षमा मांगनी पड़ी, साथ ही वह वीडियो भी डिलीट करना पड़ा।
चलिये उन्हीं की भाषा में आज इस विषय पर बात करते है। उन्होंने कहा कि ”मुझे संस्कृत में किसी से बात ही नहीं करनी तो मैं इसे क्यों पढ़ूं। जायज बात है जो उपयोगी न हो उसे वो क्यों पढ़ें। पर पहले वो संस्कृत को अनुपयोगी प्रमाणित तो करें। जिस मोटिवेशनल स्पीकर के रूप में वे प्रसिद्ध है। उस मोटिवेशन की जड़ तो संस्कृत ही है। शिक्षा शास्त्र, नीति शास्त्र, धर्म शास्त्र, दर्शन शास्त्र आदि पढ़कर देखें। जो दूसरों को ये अपनी वाकपटुता से प्रभावित कर लाखों कमा रहे हैं। उनका मूल इन्हीं शास्त्रों में है। संस्कृत के प्रसिद्ध ग्रन्थ पंचतंत्र, हितोपदेश तो मोटिवेशन के सबसे बड़े ग्रन्थ है। शायद ही कोई ऐसा मोटिवेशनल स्पीकर होगा जो इन ग्रन्थों की कहानियों को अपने प्रसंगों में शामिल न करता हो। कमजोर बुद्धि वाले बच्चों को महाकवि कालिदास का उदाहरण देकर प्रेरित किया जाता है। वही कालिदास जो अपनी पत्नी विधोतमा की उपहास भरी प्रेरणा से संसार का प्रसिद्ध लेखक बन गया। मेघदूत, अभिज्ञान शाकुन्तलम आदि कालजयी ग्रन्थों की रचना की।
दूसरी बात, जरूरी नहीं कि जिस विषय को आप पढ़ें उसमें बात करना जरूरी हो। प्यास लगने पर पानी ही मांगते होंगे, वाटर तो नहीं। कितने ही बड़े अंग्रेज क्यों न बन जाये, भोजन को ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर का नाम दे दो। सब्जी, सब्जी के नाम से पुकारी जाएगी और रोटी, रोटी के नाम से। चाय पीने में जो स्वाद है वो टी में नहीं।
फिर आपने कहा कि पहले जो भी किताबें संस्कृत में लिखी गई थीं, वो सभी आज के समय में हिंदी और इंग्लिश दोनों में उपलब्ध हैं. अगर मुझे संस्कृत का कुछ पढ़ना भी होगा तो मैं उसका हिंदी या इंग्लिश वर्जन पढ़ लूंगा. जबरदस्ती क्यों पढ़ा रहे हो?
ये भी सही है। पर फार्मूला नम्बर एक यहां भी लागू है। जड़ को आप नजरअंदाज नहीं कर सकते। यदि संस्कृत ग्रर्न्थो की उपयोगिता नहीं है तो डॉक्टरी की पढ़ाई करने वाले चरक संहिता और शुश्रुत संहिता का मूल रूप से अध्ययन क्यों करते हैं। सर्जरी स्पेशलिस्ट के लिए शुश्रुत संहिता और मेडिशिन स्पेशलिस्ट के लिए चरक संहिता देवग्रन्थ से कम नहीं हैं। और भी बहुत उदाहरण है। ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जिसमें संस्कृत की उपादेयता न हो। आपने वाक्पटुता से संस्कृत का उपहास भी उड़ाया, जो पूर्णतः गलत है। संदीप माहेश्वरी जी जिस विषय की जानकारी पूर्ण रूप से ना हो उस विषय के बारे में टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। अधूरे ज्ञान के साथ बोलना विदूषक की तरह ही होता है। इसमें आप अपनी विद्वता से प्रभावित करने का प्रयास करते है और सुनने वाले उसे न समझकर भी मात्र मनोरंजन मान हंसने का काम करते हैं। आप विदूषक मत बनें विश्लेषक बनें। अर्श से फर्श की दूरी को जानें। जो आपके प्रशंसक हैं वो आपकी इस तरह की हरकतों से विरोधी भी जल्द बन जाएंगे।
‘ संस्कृते सकलं शास्त्रं,संस्कृते सकला कला |
संस्कृते सकलं ज्ञानं, संस्कृते किन्न विद्यते ||’
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संस्कृत भाषा देवभाषा है और देवभाषा का अपमान सम्पूर्ण भारत वासियों का अपमान है। कहा भी गया है- “भारतस्य प्रतिष्ठे द्वे संस्कृतं संस्कृतिस्तथा” अर्थात हमारे भारतवर्ष की आन, बान, व शान संस्कृत भाषा से है। भारत में जो भी ज्ञान है, संस्कार है, विविध संस्कृति है वह सारा का सारा ज्ञान संस्कृत भाषा में ही निहित है। चाहे वह वेद हों, पुराण हों, उपनिषद हों, धर्मशास्त्र हो, भाषा का विज्ञान व्याकरण शास्त्र हो, खगोल शास्त्र हो, ज्योतिष शास्त्र हो, वास्तुशास्त्र हो, योग हो, आयुर्वेद हो, नाट्यशास्त्र आदि हो सभी संस्कृत भाषा में ही हैं और इन सब की वैज्ञानिकता और ज्ञान से सारा विश्व परिचित ही है। श्रीमद्भगवद्गीता के सिद्धांत तो सभी प्रयोग करते ही है। संस्कृत सभी भाषाओं की जननी अर्थात माँ है और माँ का अपमान कभी भी उचित नहीं ठहराया जा सकता।
PEOPLE WITH SLAVE MENTALITY CARRY A SPECIAL DNA AFTER READING BOOKS WRITTEN BY THEIR MASTERS . THEY LEARN TO JUSTIFY ALL THEY DO WITH ANY STUPID LOGIC .