यूनेस्को की सूची में भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र : सनातन की गौरवगाथा

· डॉ ब्रजेश कुमार मिश्र

भारत सनातन संस्कृति का केंद्र है। इसकी गौरवशाली परम्परा तर्क, वैज्ञानिकता, विश्वास, आस्था, जीवन-शैली, आराधना, अर्चना तथा सांस्कृतिक विरासत को स्वयं में समेटे हुए है। वस्तुतः वैदिक वाङ्मय से लेकर जैन-बौद्ध ग्रंथों, महाकाव्यों, पुराणों और स्मृतियों तक फैली समृद्ध साहित्यिक परम्परा में इसका स्पष्ट दिग्दर्शन होता है। संयुक्त राष्ट्र के द्वारा जब 21 जून को ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ घोषित किया गया तो सनातन की छवि को वैश्विक स्तर पर एक अलग पहचान मिली। इसी कड़ी में, विगत 18 अप्रैल को अर्थात वर्ल्ड हेरिटेज डे के दिन भगवद्गीता और भरतमुनि के नाट्यशास्त्र की पांडुलिपियों को यूनेस्को के ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर’ में सम्मिलित किया जाना हमारी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहचान को वैश्विक मंच पर नवीन मान्यता प्रदान करता है। यूनेस्को द्वारा इस वर्ष ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर’ में 74 नई प्रविष्टियों को सम्मिलित किए जाने की घोषणा की गई है जिनमें 14 प्रविष्टियाँ वैज्ञानिक दस्तावेजी विरासत से संबंधित हैं। इसके अतिरिक्त दासता की स्मृति से जुड़े संग्रहों तथा प्रमुख ऐतिहासिक महिलाओं से संबंधित अभिलेखागारों को भी इस सूची में स्थान मिला है। भारत की दो प्रविष्टियाँ — भगवद्गीता और भरतमुनि का नाट्यशास्त्र — इस वर्ष सूची में शामिल की गई हैं। इसके पूर्व ऋग्वेद (2007), मैत्रेय व्याकरण (2017) एवं अभिनवगुप्त की पांडुलिपियों का संग्रह (2023) को पहले ही इस सूची में स्थान मिल गया है। इस प्रकार अब भारत की कुल 14 पांडुलिपियाँ इस वैश्विक सूची का हिस्सा बन चुकी हैं, साथ ही, अब इस सूची में सम्मिलित दस्तावेजों की कुल संख्या 570 हो गई है।

इस अवसर पर महानिदेशक ऑड्रे अज़ोले ने कहा कि वस्तुतः यह दस्तावेजी विरासत, मानव सभ्यता की स्मृति का एक अनिवार्य, किंतु नाजुक घटक है। यही कारण है कि यूनेस्को न केवल मॉरिटानिया के ‘चिंगुएट्टी’ स्थित प्राचीन पुस्तकालयों या कोटे डी आइवर में ‘अमादौ हंपते बा’ के अभिलेखागारों के संरक्षण में निवेश करता है बल्कि वह संरक्षण की श्रेष्ठ विधियों को साझा करता है और एक ऐसे पंजी का संधारण भी करता है, जो मानव इतिहास की विविध और बहुआयामी परम्पराओं को सुरक्षित रखने का कार्य करता है। यह प्रयास न केवल अतीत को सहेजने का माध्यम है बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए सांस्कृतिक और बौद्धिक धरोहर को संजोए रखने का एक वैश्विक संकल्प भी है।

यूनेस्को अर्थात ‘यूनाइटेड नेशंस एजुकेशनल, साइंटिफिक एंड कल्चरल ऑर्गनाइजेशन’ वास्तव में संयुक्त राष्ट्र संघ की एक विशेषीकृत एजेंसी है। जैसा कि इसके नाम से ही विदित है, यह एजेंसी शिक्षा, विज्ञान और संस्कृति के माध्यम से वैश्विक शांति और सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से स्थापित की गई है। यूनेस्को के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का एक प्रमुख उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्राचीन धरोहरों का संरक्षण करना भी है। इसी संदर्भ में, दस्तावेजी धरोहरों के संरक्षण की आवश्यकता को समझते हुए एक विशेष रजिस्टर—”मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड”—तैयार किया गया है। इस रजिस्टर के अंतर्गत उन संग्रहों को चिन्हित किया जाता है जो अंतरराष्ट्रीय, क्षेत्रीय या राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण माने जाते हैं।

इस पहल का उद्देश्य महत्त्वपूर्ण कलाओं और दस्तावेजों का बिना किसी भेदभाव के संरक्षण करना तथा आमजन की इन तक पहुंच सुनिश्चित करना है। इसके अतिरिक्त, यह रजिस्टर सरकारों, आम जनता, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों और वाणिज्यिक संस्थानों को दस्तावेजी धरोहरों के संरक्षण और इसके लिए आवश्यक वित्तीय सहायता की जरूरत के प्रति जागरूक भी करता है। यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में किसी दस्तावेज या संग्रह का नाम दर्ज होना उस देश की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत की महत्ता को दर्शाता है। यह न केवल उस धरोहर को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाता है बल्कि उससे संबंधित अनुसंधान, शिक्षा, मनोरंजन और संरक्षण गतिविधियों को भी समय-समय पर प्रोत्साहित करता है।

भगवद्गीता तथा नाट्यशास्त्र क्रमशः शाश्वत आध्यात्मिक एवं प्रदर्शन कलाओं पर आधारित एक मूलभूत ग्रंथ हैं जो भारत की सांस्कृतिक एवं बौद्धिक विरासत को शताब्दियों से नवीनतम आयाम प्रदान करने का प्रयास करते रहें हैं। भगवद्गीता भारतीय जीवन, अध्यात्म और संस्कृति की आधारशिला है। यह महाभारत के भीष्म पर्व में संगृहीत वह दिव्य संवाद है, जो श्रीकृष्ण ने युद्धभूमि में अर्जुन को दिया। जब अर्जुन मोह और शोक से विचलित हुए, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें आत्मा की अमरता, कर्म का महत्व, और धर्म का गूढ़ तत्त्व समझाया। गीता में 18 अध्यायों और 700 श्लोकों के माध्यम से जीवन का सार प्रस्तुत है। इसमें ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग के माध्यम से आत्मोन्नति का मार्ग बताया गया है। गीता भारतीय संस्कृति की उस चेतना का स्वर है, जो जीवन को केवल भौतिक नहीं, आत्मिक यात्रा मानती है। नाट्यशास्त्र भरतमुनि द्वारा रचित एक प्राचीन भारतीय संस्कृत ग्रंथ है

जिसे भारतीय नाट्यकला, नृत्य, संगीत और सौंदर्यशास्त्र का आधार माना जाता है। इसकी रचना दूसरी शताब्दी ईसा-पूर्व से दूसरी शताब्दी ईस्वी के बीच मानी जाती है। इस ग्रंथ में मूलतः 12,000 पद्य तथा कुछ गद्य अंश भी सम्मिलित थे, जिसके कारण इसे ‘द्वादशसाहस्री संहिता’ कहा गया किंतु कालान्तर में इसका संक्षिप्त संस्करण अधिक प्रचलित हो गया जिसमें लगभग 6,000 पद्य रह गए। यह संक्षिप्त रूप ‘षटसाहस्री संहिता’ के नाम से विख्यात हुआ। जिनमें रस, भाव, अभिनय, मंच व्यवस्था, वेशभूषा आदि का वर्णन है। भरतमुनि ने नाट्य को लोकमंगल का साधन माना। अभिनवगुप्त की टीका “अभिनवभारती” इसकी प्रसिद्ध व्याख्या है। यह ग्रंथ आज भी भारतीय रंगमंच और सौंदर्यशास्त्र पर प्रभाव डालता है।

इस प्रकार इन ग्रंथों को ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर’ में सम्मिलित करना भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने में कारगर होगा। इससे भारतीय ज्ञान, कला, दर्शन, साहित्य और संस्कृति को समझने में मदद मिलेगी। यह जुड़ाव ऐसे समय में हुआ है जब भारत सरकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत भारतीय ज्ञान परम्परा को पाठ्यक्रम का अभिन्न हिस्सा बनाने के लिए उद्यमशील है तो निःसंदेह इससे भारत में ही नही वरन वैश्विक स्तर पर भी भारतीय ज्ञान परंपरा को एक नवीन पहचान मिलेगी।

भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र को यूनेस्को की विश्व स्मृति सूची में शामिल किया जाना मात्र औपचारिक मान्यता नहीं बल्कि भारत की शाश्वत सांस्कृतिक चेतना और कलात्मक उत्कृष्टता की वैश्विक विजय है। यह न केवल संरक्षण और शोध की दिशा में नवदिशा खोलेगा बल्कि भारत की ज्ञान परंपरा को वैश्विक विमर्श का हिस्सा भी बनाएगा। यह अवसर हमें अन्य प्राचीन ग्रंथों उपनिषद, आयुर्वेद, जैन-बौद्ध ग्रंथों, वास्तुशास्त्र, महाकाव्य एवं स्मृतियों आदि को भी संरक्षित कर विश्व मंच पर प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित करता है। यह उपलब्धि भारत की सांस्कृतिक पुनर्जागरण यात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है और उन महान मनीषियों के प्रति श्रद्धांजलि भी जिन्होंने इस अमूल्य धरोहर को रचा, संजोया और आगे बढ़ाया।

डॉ ब्रजेश कुमार मिश्र

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