राष्ट्रीय समस्या बनती कुत्ता काटने की खूनी घटनाएं?

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डॉ. रमेश ठाकुर


पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं भाजपा के वरिष्ठतम नेता विजय गोयल ने कटखने कुत्तों से उत्पन्न हुई समस्याओं पर अंकुश लगवाने के लिए न सिर्फ अभियान छेड़ा हुआ है, बल्कि कुछ महीने पहले जंतर-मंतर पर धरना भी दिया था। आवारा और कटखने कुत्तों का आतंक पिछले कुछ समय से समूचे देश में तेजी से फैला है। रोजाना कुत्तों के हमले से जुड़े सैकड़ों मामले सामने आ रहे हैं। पिछले सप्ताह में दिल्ली-एनसीआर में दर्जनों ऐसी घटनाएं घटी जहां राह चलते लोगों पर कुत्तों ने जानलेवा हमला किया. दिल्ली में ऐसे दो हजार कटखने कुत्तों को नगर निगम ने चिन्हित किया है। देश भर में ऐसे कुत्तों का आंकड़ा 32 लाख से भी ज्यादा बताया गया है।

 वर्ष 2016 में कटखने कुत्तों के आतंक से निजात के लिए केंद्र सरकार से लेकर तमाम राज्यों की सरकारों ने ‘स्ट्रीट डॉग्स शेल्टर’ बनाए जाने की योजना बनाई थी। कुछके राज्य इस दिशा में आगे बढ़े, बाकी राज्य निल बटे सन्नाटा रहे। कुल मिलाकर कागजी प्रयासों मात्र से विकराल रूप धारण कर चुकी यह समस्या नहीं सुलझेगी. इस गंभीर मुद्दे को संसद सत्र जैसे मंचों पर रखकर कोई कारगर
कानून बनाए जाने की जरूरत है। अंकुश लगाने के लिए व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें जागरूकता, जिम्मेदार पालतू पशुपालन, नसबंदी और टीकाकरण कार्यक्रम और पशु नियंत्रण शामिल हैं।

 
डॉग्स नसबंदी और एंटी रैबीज वैक्सीनेशन की भी कोई कमी नहीं है, बावजूद इसके आवारा कुत्तों की संख्या लगातार बढ़ रही है। कुत्तों के काटने की घटनाओं ने लोगों को खासा भयभीत किया हुआ है। यही कारण है कि डर से लोगों ने सुबह की सैर करना और बच्चों ने पार्क में खेलना तक बंद कर दिया है। बीते सोमवार की ही घटना है जब गुरूग्राम में सुबह पार्क में टहल रही महिला पर एक पालतू कुत्ते ने जानलेवा हमला कर गंभीर रूप से घायल कर दिया। ऐसी घटनाएं अब आम हो गई हैं। पूरे देश में रोजाना करीब 8 हजार मामले दर्ज होते हैं जिनमें दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब राज्य प्रमुख हैं।

ये खबर निश्चित रूप सुखद कही जाएगी कि पूर्व केंद्रीय मंत्री विजय गोयल आवारा कुत्तों की बढ़ती समस्याओं को लेकर अपनी ही सरकार को आईना दिखा रहे हैं। ऐसा कदम अन्य दलों के नेताओं को भी उठाना चाहिए ताकि समस्या का निजात जल्द निकल सके। उन्होंने अपनी सरकार को चेतावनी भी दी है कि अगर कोई कदम नहीं उठाया गया तो वो जनआंदोलन भी छेडेंगे।


पशु-अधिनियम कानूनों में बदलाव की अब सख्त जरूरत है। पुरानी चरमराती व्यवस्था में बदलाव करना होगा। कटखने और आवारा पशुओं को पकड़कर कर एकांत शहरों से कहीं दूर-दराज क्षेत्रों में ले जाकर सुरक्षित ढंग से रखने की व्यवस्था बनाई जाए जहां उन्हें एंटी रैबीज इंजेक्शन दिया जाए जिससे उनके भीतर विष को नष्ट किया जाए। और सबसे जरूरी कदम, शहरों में नॉन वेज की दुकानों के आसपास से कुत्तों को हटाया जाए जिससे वह ज्यादा हिंसक होते हैं क्योंकि लोग मांस की हड्डिया इधर-उधर फेंकते हैं जिसको लेकर कुत्ते आपस में लड़ते हैं जो इनके हिंसक होने का बड़ा कारण है। भय इस कदर व्याप्त है कि कुत्ता पकड़ने जैसे काम में कोई हाथ तक नहीं डालना चाहता। कुत्तों को पकड़ने का जिम्मा नगर निगम के पशुधन विभाग का होता है जहां कर्मचारियों का हमेशा टोटा रहता है। कोई भी कर्मचारी इस विभाग में अपनी सेवाएं देने को राजी नहीं है. जो आते भी हैं तो वह ज्यादा रुचि नहीं लेते?


बहरहाल, आवारा कुत्ते ही नहीं, छुट्टा पशुओं के चलते भी नई किस्म की इस आफत ने आतंक मचाया हुआ है। पशु हिंसक क्यों हो रहे हैं? ये एक अनसुलझी पहेली बन गई है। हालांकि, ये भी तथ्य है कि पशु जब तक खूंटे से बंधे होते हैं या मालिकों के कैद में होते हैं, अ-हिंसक रहते हैं पर जैसे ही छूटते हैं, एकाएक खूंखार हो जाते हैं। हिंसक कुत्ते अब बाकायदा झुंड में रहते हैं। सड़कों और मोहल्ले की गलियों में चलना तक दूभर हो गया है। गली, चौक-चौराहों पर अक्सर देखने को मिलता है कि कुत्तों का झुंड रास्ता घेरे बैठे हैं। बच्चों पर कुत्ते ज्यादा अटैक करने लगे हैं। पिछले वर्ष दिल्ली की घटना ने सबको झकझोर दिया था जहां एक मासूम को दिनदहाड़े दो कुत्तों ने मिलकर चबा दिया था। बचाव में दौड़े उसके बड़े भाई को लहूलुहान कर दिया था।

अक्सर, दिन ढलने के बाद कुत्ते और भी खूंखार हो जाते हैं। स्कूटी व अन्य गाड़ियों के पीछे कुत्तों का दौड़ लगाना भी आम हो गया है। कुछ समय की घटना है जब जयपुर में टयूशन पढकर स्कूटी से वापस घर लौट रही 10वीं की छात्रा के पीछे आवारा कुत्ते दौड़ पड़ते हैं जिससे उसकी स्कूटी सामने आ रही कार से जा टकराई। घटना में उसकी एक टांग और रीड की हड्डी टूट गई। ऐसी घटनाओं को देखकर भी नगर निगम के अधिकारियों की नींद नहीं टूटती?

हिंसक जानवरों पर नकेल कसने की दरकार अब ज्यादा होने लगी है। चाहें इसके लिए कानून बनाना पड़े, या कोई और आधुनिक व्यवस्था करनी हो, गंभीरता से विमर्श किया जाना चाहिए। घटनाएं कोई एकाध जगहों पर नहीं, देशभर में घट रही हैं। हाल में दिल्ली, हैदराबाद, बठिडा, बरेली, देहरादून जैसे जगहों पर कुत्तों द्वारा मासूम बच्चों पर हमले और उन्हें मारने की घटनाओं ने सबको झकझोरा है। कभी छिटपुट घटनाएं आम हुआ करती थी जिस पर रेबीज के टीके या घरेलू उपचारों से मरीज ठीक हो जाया करते थे पर अब ऑन स्पॉट कुत्ते जान लेने लगे हैं।

 
तात्कालिक रूप से हुकूमत या प्रशासनिक स्तर पर कोई हल निकले, इसकी भी संभावनाएं नहीं दिखती?  घटनाओं पर अगर उदासीनता ऐसी ही रही तो ना जाने कितने लोग आवारा कुत्तों का निवाला बन जाएंगे। मरीजों की संख्याओं का इजाफा अस्पतालों में एकाएक बढ़ा है। कई बार तो रैबीज के इंजेक्शन अस्पतालों में मिलते भी नहीं? उस स्थिति में मरीज औने-पौने दामों में निजी अस्पतालों से रेबीज का टीका लगवाते हैं। बिना रेबीज टीका लगे मरीज बेमौत मर भी जाते हैं। कटखने कुत्तों के संबंध में जब पीड़ित नगर निगम के कार्यालयों में संपर्क करते हैं तो वहां से संतुष्टिपूर्ण जवाब नहीं मिलता। प्रेसर डालने पर वो प्राइवेट कुत्ता पकड़ने वाली एजेंसियों से बात करने की सलाह दे देते हैं। उनसे बात होती है तो वह मोटा चार्ज करते हैं। पैसे लेने के बाद वह कुत्ते को पकड़कर नसबंदी करके एकाध दिनों में फिर वहीं छोड़ जाते हैं। ये विकराल समस्या है जिसका बिना देर किए निदान होना चाहिए।


डॉ. रमेश ठाकुर

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