डॉ घनश्याम बादल
कांग्रेस के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी ने प्रेस कांफ्रेंस करके जिस तरह के आरोप चुनाव आयोग पर लगाए हैं, वे काफी सनसनीखेज हैं।
इन आरोपों के माध्यम से राहुल गांधी ने अपना तथा कथित ‘एटमबम’ फोड़ा है जिसके बारे में उन्होंने कहा था कि इस बम के फटते ही चुनाव आयोग उड़ जाएगा।
2024 के लोकसभा के चुनावों से ही राहुल गांधी काफी ‘लाउड पॉलिटिक्स’ कर रहे हैं । वे लगातार भाजपा मोदी एवं चुनाव आयोग तथा सरकार के खिलाफ बोल रहे हैं । एक तरह से उन्होंने आरोपों की झड़ी लगा रखी है और चुनाव आयोग तथा सरकार के प्रति जनता में वे एक अविश्वास की भावना पैदा करने में लगे हुए हैं। विपक्षी नेता होने के नाते यह बहुत स्वाभाविक है और यह भी सच है कि सत्ता पक्ष के नेता भी राहुल गांधी को उकसाने, कोसने व खिझाने में कोई कमी नहीं छोड़ रहे हैं। उनके जाल में फंस राहुल गांधी अति उत्साह में भी कुछ ऐसी बातें कह जाते हैं कि हंसी के पात्र बन जाते हैं।
54 साल के राहुल की ऐसी बड़बोलेपन की टिप्पणियां उन्हें मीडिया में उपहास का पात्र भी बनवा देती हैं । इसके कई उदाहरण पिछले समय में देखने को मिले हैं जैसे लोकसभा में अपने भाषण के तुरंत बाद अपने ही एक साथी की तरफ देखकर अति उत्साह में संसद में आंख मारना, मैं संसद में बोलूंगा तो मोदी टिक नहीं पाएंगे, चौकीदार चोर है, नरेंद्र सरेंडर और ऐसे ही दूसरे वक्तव्यों से राहुल गांधी को फायदा कम और नुकसान ज्यादा हुआ है लेकिन इस बार जब बिहार में सरकार ने वोटर लिस्ट में संशोधन (SIR) का बीड़ा उठाया, तब राहुल गांधी व विपक्षी दलों ने इस पर यह कहते हुए एतराज़ किया कि यह सब वोटों की चोरी के लिए किया जा रहा है । उनका आरोप है कि ऐसा इंडिया के समर्थक वोटरों को वोटर लिस्ट से हटाने एवं एनडीए समर्थकों को वोटर लिस्ट में जोड़ने के लिए यह सब ड्रामा किया जा रहा है जबकि इतिहास बताता है कि चुनावों से पूर्व इस प्रकार की प्रक्रिया पहले भी होती रही है। राहुल और तेजस्वी यादव दोनों मिलकर बिहार की मतदाता सूची में न केवल कटने जा रहे 65 लाख मतदाताओं की और इशारा करते हुए इस पर आपत्ति कर रहे हैं अपितु वोटर लिस्ट की अंतिम कमियां भी गिना रहे हैं. यहां एक बड़ा प्रश्न उठता है कि एक ओर आप महाराष्ट्र मध्य प्रदेश हरियाणा आदि राज्यों में वोटर लिस्ट की कमियों को वोटो की चोरी बताते हैं तो वहीं बिहार में जब मतदाता सूचियों में सुधार की बात आती है, तब आप उसका विरोध करते हैं।
राहुल लगातार ही चुनाव आयोग को घेर रहे हैं और सरकार पर भी गंभीर आरोप लगा रहे हैं। मध्यप्रदेश, कर्नाटक एवं महाराष्ट्र तथा हरियाणा में आशा के विपरीत परिणाम आए तो वह और भी मुखर होकर बोले। उनके अनुसार कर्नाटक एवं महाराष्ट्र के चुनावों पर छह महीने उनकी टीम ने कार्य किया और पाया कि अचानक ही वोटर लिस्ट में एक करोड़ नए नाम जोड़ दिए गए हैं । इतना ही नहीं, प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने डुप्लीकेट वोटर , गलत पते वाले वोटर एवं बहुत छोटे फोटो वाले वोटर्स के साथ-साथ एक ही छोटे से घर में अप्रत्याशित रूप से अत्यधिक वोटर होने का प्रमाण देने वाली वोटर लिस्ट दिखाई । उन्होंने अपने पॉवर पॉइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से यह भी बताया कि किस तरह फॉर्म सिक्स का दुरुपयोग करते हुए उसमें 70 वर्षीय मतदाताओं के नाम भी वोटर लिस्ट में जोड़ने का खेल खेला गया जबकि इस फार्म के माध्यम से केवल उन्हीं मतदाताओं के नाम जोड़े जा सकते हैं जो आने वाले चुनाव के समय ही 18 वर्ष की आयु के हुए हैं, यानी इस बार राहुल जो बात कर कर रहे हैं, प्रमाण के साथ कर रहे हैं। यदि राहुल गांधी पर विश्वास करें तो लगता है कि वोटर लिस्ट में कमियां हैं और एक ही व्यक्ति के नाम अनेक जगहों पर भी अक्सर पाए जाते रहे हैं यानी माना जा सकता है कि इस विषय में उनके प्रमाण काफी पुख्ता हैं लेकिन वे जिस तरह चुनाव आयोग को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं वह बहुत ख़तरनाक है और यदि जैसा कि राहुल कहते हैं न्यायालय एवं चुनाव आयोग तथा सरकार एवं उनकी एजेंसियां मिलकर लोकतंत्र को चुरा रहे हैं तो फिर यह और भी चिंताजनक बात है तथा भारत में सच्चे लोकतंत्र की उपस्थिति पर गहरा सवालिया निशान खड़ा करते हैं।
लेकिन उनकी प्रेस कांफ्रेंस के बाद चुनाव आयोग ने उन्हें एफिडेविट देकर प्रक्रिया के अनुसार अपनी बात रखने को कहा तो राहुल इसके लिए तैयार नहीं होते।
अब क्या सही है और क्या ग़लत, यह मीडिया में तो तय नहीं हो सकता बल्कि इसके लिए तो संविधान सम्मत तरीके से ही फैसला हो पाएगा लेकिन राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, तेजस्वी यादव अखिलेश यादव और कांग्रेस व विपक्ष के दूसरे दलों के नेता यह कहकर चुनाव आयोग की एक तरह से खिल्ली उड़ा रहे हैं कि ग़लती चुनाव आयोग की है तो फिर वह शपथ पत्र क्यों दें। यदि आप सही हैं तो फिर आगे बढ़िए और अपनी बात को सिद्ध कीजिए। इसमें डरना क्या और यदि आप यह सिद्ध कर पाए तो आपकी यह बहुत बड़ी सफलता होगी
दूसरी तरफ सत्ताधारी दल राहुल गांधी की प्रेस कॉन्फ्रेंस एवं चुनाव आयोग को दी गई चुनौती को राहुल गांधी पर बिहार में हार सामने खड़ी देखकर बहाने ढूंढने का तंज कस रहे हैं तो राहुल गांधी चुनाव आयोग से पांच सवाल पूछ कर पलटवार कर रहे हैं ।
राहुल का एक यह सवाल भी वाजिब है कि यदि चुनाव आयोग सही है तो फिर उसने वेबसाइट से हरियाणा, उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश जैसे राज्यों के आंकड़े क्यों हटा लिए हैं और वह केवल 45 दिन में ही सीसीटीवी की फुटेज क्यों नष्ट कर देने पर अड़ा हुआ है । इधर चुनाव आयोग का भी कहना है कि इतने विशाल आंकड़े का विश्लेषण करना बहुत दुष्कर कार्य है और चुनाव आयोग के अनुसार इसमें यदि वह जी जान से भी जुटे तो 273 वर्ष का समय लग सकता है जबकि राहुल गांधी का कहना है कि यदि वोटर लिस्ट उपलब्ध करा दी जाए तो यह पांच सात दिन का ही कार्य होगा. अब इसमें समय लगे या ना लगे लेकिन यदि ऐसी लिस्ट मांगी जाती है तो इसे उपलब्ध कराना चुनाव आयोग का दायित्व है।
अब प्रमाणिक तौर पर यह कहना कि कौन कितना सही है, बहुत मुश्किल कार्य है। क्या राहुल गांधी के प्रमाण पुख्ता हैं ? या चुनाव आयोग का जवाब सही है अथवा सत्ताधारी दल सही है ? इस पर देश को मंथन करने की ज़रूरत है ।
यदि सचमुच पिछले कुछ चुनावों में ई वी एम में तथाकथित खेला हुआ है या वोट चोरी जैसी बातें हुई है तो फिर यह बहुत ही ख़तरनाक और चिंताजनक है लेकिन यदि राहुल केवल सत्ता और राजनीतिक लक्ष्य हासिल करने के लिए आरोप लगा रहे हैं तो इससे लोकतांत्रिक भारत की छवि और संविधानिक संस्थाओं की विश्वसनीयता एवं उनकी छवि पर आघात करने का खेल उससे भी ज़्यादा ख़तरनाक है।
अब इन आरोपों प्रत्यारोपों का सच क्या है, इसके लिए निष्पक्ष एवं तीव्रगामी जांच का होना ज़रूरी है । साथ ही साथ राजनीतिक सत्ता का खेल, विपक्ष के आरोपों का तमाशा इन सबके लिए भी एक उत्तरदायित्व तय करने वाली प्रणाली का विकास बहुत जरूरी हो गया है ।
आज जिस तरह मीडिया ट्रायल करके छवि निर्माण या ध्वस्त करने का खेल हो रहा है, उस पर लगाम कसने की आवश्यकता है अन्यथा दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र माने जाने वाला भारत दुनिया भर में हंसी का पात्र बन जाएगा। अब एक ही तरीका है कि चुनाव प्रणाली को एकदम इतना सटीक बनाया जाए कि उसमें किसी तरह के घाल मेल की गुंजाइश न रहे और साथ ही साथ निराधार आरोप लगाने वह विश्वास पैदा करने तथा देश की छवि खराब करने के अपराध के लिए भी कड़ी सजा का प्रावधान किया जाए।
डॉ घनश्याम बादल