दोनों नेता तो मिले, लेकिन दिल भी मिलें, तो बात बने!

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अशोक गहलोत और सचिन पायलट की गर्मजोशी वाली मुलाकात की तस्वीरें और वीडियो लोग जम कर देख रहे हैं। दोनों धुर विरोधी नेताओं की इस मुलाकात को राजस्थान में, और खास तौर पर कांग्रेस की राजनीति में बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। कांग्रेसी चाहते हैं कि नेता तो मिल गए, मगर दिल भी मिले, तो कोई बात। वरना, ऐसी मुलाकातों के कोई खास मायने नहीं है। 

वैसे तो दो नेताओं का मिलना बहुत आम बात है, लेकिन अशोक गहलोत और सचिन पायलट जैसे दो दमदार और धुर विरोधी कांग्रेस नेताओं की मुलाकात से सियासी हलकों में हलचल है। राजस्थान की राजनीति में इस मुलाकात के मायने तलाशे जा रहे हैं। दोनों नेताओं के रिश्ते बेहद तनावपूर्ण रहे हैं। राजस्थान में दिसंबर 2018 में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद जब पायलट मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी प्रबल दावेदारी जता रहे थे, तब कांग्रेस आलाकमान ने अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री और पायलट को उपमुख्यमंत्री बनाया था। इसके बाद से ही पायलट लगातार नाराज रहे और महज डेढ़ साल में ही दोनों नेताओं के बीच मतभेद गहरे हो गए। पायलट ने जब उप मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष पद पर रहते हुए, मानेसर से अपनी ही पार्टी की सरकार पलटने की कोशिश की थी, और गहलोत ने बाद में पायलट को ‘निकम्मा’ और ‘नकारा’ तक कहा था। इस ताजा मुलाकात को कोई गहलोत की जादूगरी बताता है, तो कोई विमान को उड़ाने के लिए रनवे पर आने की पायलट की मजबूरी। हालांकि पायलट का गहलोत से मिलने जाना और दोनों के द्वारा इस मुलाकात को सार्वजनिक करना, यह दर्शाता है कि दोनों व्यक्तिगत मतभेदों को पीछे छोड़कर नए सिरे से कांग्रेस को मजबूत करने की सोच रहे हैं। लेकिन इसके वास्तविक परिणामों के लिए अभी लंबी प्रतीक्षा करनी होगी, क्योंकि राजनीति में नेता तो आसानी से मिल लेते हैं, मगर दिल आसानी से नहीं मिलते।  

गहलोत और पायलट, दोनों ने 7 जून की अपनी इस मुलाकात तो सोशल मीडिया पर सार्वजनिक करके एक सकारात्मक छवि बनाने की कोशिश की। गहलोत ने सोशल मीडिया हैंडल ‘एक्स’ पर लिखा – अखिल भरतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव श्री सचिन पायलट ने आवास पर पूर्व केन्द्रीय मंत्री स्व. श्री राजेश पायलट की 25वीं पुण्यतिथि पर आयोजित कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया। मैं और राजेश पायलट जी 1980 में पहली बार एक साथ ही लोकसभा पहुंचे एवं लगभग 18 साल तक साथ में सांसद रहे। उनके आकस्मिक निधन का दुख हमें आज भी बना हुआ है। उनके जाने से पार्टी को भी गहरा आघात लगा। दूसरी तरफ सचिन पायलट ने भी नपे तुले शब्दों में अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा – आज पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जी से मुलाकात की। मेरे पिता स्व. राजेश पायलट जी की 25वीं पुण्यतिथि पर 11 जून को दौसा में आयोजित श्रद्धांजलि समारोह में उन्हें शामिल होने के लिए निवेदन किया।

सियासी हलकों में इस मुलाकात के गहरे राजनीतिक निहितार्थ देखे जा रहे हैं। नई दिल्ली में कांग्रेस की राजनीतिक गतिविधियों पर गहरी नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार आदेश रावल को पायलट का करीबी माना जाता है, उन्होंने ‘एक्स’ पर केवल इतना ही लिखा कि समय ही बलवान होता है। राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार, भारत सरकार के नागरिक विमानन राज्य मंत्री रहे गहलोत से पायलट की इस मुलाकात पर उड्डयन सिद्धांतों का हवाला देते हुए कहते हैं कि विमान को जब नई उड़ान भरनी हो, तो पायलट को अपना विमान रन वे पर लाना ही पड़ता है। परिहार कहते हैं कि गहलोत और पायलट की मुलाकात का प्रभाव तभी स्पष्ट होगा, जब दोनों कांग्रेस को फिर से सत्ता में लाने के लिए काम करेंगे। वरिष्ठ पत्रकार शरत कुमार अपने एक वीडियो में कहते हैं कि पायलट ने गहलोत से मिलने की जो पहल की है, उसके बाद अब गहलोत पर बड़ी जिम्मेदारी है कि वे भी अपना बड़ा दिल दिखाएं। पायलट के कट्टर समर्थक शरत कहते हैं कि दोनों नेताओं के बीच की ये विश्वास बहाली आगे क्या गुल खिलाती है, यह तो पता नहीं, लेकिन कांग्रेसी इससे खुश हैं। कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार संदीप सोनवलकर इसे पायलट का राजनीतिक समर्पण मानते हैं। सोनवलकर कहते हैं कि गहलोत के प्रति आलाकमान के अब तक के राजनीतिक रवैये से सचिन को समझ में आ गया है कि उनसे टकराव छोड़कर सामंजस्य किए बिना राजस्थान में उभरना आसान नहीं है। राजस्थान के प्रमुख न्यूज चैनल ‘फर्स्ट इंडिया’ के सहयोगी संपादक नरेश शर्मा कहते हैं कि इस मुलाकात में गहलोत ने भी बड़ा मन दिखाकर पुराने विवादों को भुलाया और राजेश पायलट की पुण्यतिथि के समारोह में जाने का मन बनाया है।

उल्लेखनीय है कि सन 2018 में अशोक गहलोत जब तीसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, तो सत्ता पाने में नाकामयाब रहे पायलट लगातार नाराज रहे। उप मुख्यमंत्री तथा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पदों पर रहते हुए पायलट की पार्टी विरोधी गतिविधियां देखी गईं और दोनों पदों से जून 2020 में उनको बर्खास्त किया गया। उसके बाद से ही राजस्थान कांग्रेस में गुटबाजी की खाई पहले से कुछ ज्यादा बढ़ गई, और दुराव का दौर भी लगातार जारी रही। कुछ लोग गहलोत और पायलट की इस मुलाकात को कांग्रेस में गुटबाजी समाप्त करने और एकता के नए प्रयास सहित भविष्य की रणनीति के मजबूत संकेत के रूप में देख रहे हैं। तो कुछ का कहना है कि बहुत संभव है कि राजेश पायलट की पुण्यतिथि के बहाने गहलोत को पटखनी देने के लिए पायलट का दांव हो, या यह भी संभव है कि अपने आप को विनम्रता की मूरत के रूप में स्थापित करने के साथ ही सदाशयता से सबको साथ लेकर चलने वाला साबित करने की भी पायलट की कोशिश हो।

वैसे, माना जा रहा है कि यह मुलाकात कांग्रेस की आंतरिक एकता को मजबूत करने का संदेश है। क्योंकि गहलोत और पायलट के बीच की खटास ज्यादा बढ़ने का कारण सन 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार को माना गया। लगभग जीती हुई बाजी कांग्रेस हार गई थी। कांग्रेस नेता पूर्व राज्यपाल सतपाल मलिक ने खुलकर कहा था कि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार न बनने देने में पायलट का ही सबसे बड़ा हाथ रहा। क्योंकि पायलट को लग रहा था कि कांग्रेस की सरकार फिर बन गई, तो अशोक गहलोत ही मुख्यमंत्री बनेंगे, इसी कारण उन्हीं ने कांग्रेस के उम्मीदवारों का हराया और अपनी जाति के गुर्जर लोगों को कांग्रेस को वोट न देने के लिए प्रेरित किया। मलिक के इस बयान को कांग्रेस नेतृत्व ने भी गंभीरता से लिया था। लेकिन, अब उसी तस्वीर में देखें, तो पायलट का गहलोत के घर जाना और उनसे मुलाकात करना, दोनों नेताओं के बीच सुलह के प्रयास के रूप में देखा जा सकता है। खासकर तब, जब 2028 के राजस्थान विधानसभा चुनाव पर कांग्रेस की नजर हैं।

राजनीतिक ताकत देखें, तो कांग्रेस में गहलोत और पायलट दोनों की अपनी-अपनी क्षेत्रीय और सामाजिक पकड़ है। मुख्यमंत्री रहते हुए गहलोत ने जो जनहित के जो लोकप्रिय योजनाएं चलाईं, उनको प्रदेश की जनता आज भी याद करती है। अतः यह मुलाकात राजस्थान में कांग्रेस की जमीनी स्तर पर मजबूती के लिए रणनीतिक कदम हो सकती है। गहलोत का राजनीतिक प्रभाव, उनके अनुभवी नेतृत्व और ग्रामीण क्षेत्रों में मजबूत आधार पर टिका है, जबकि पायलट युवा नेतृत्व और गुर्जर समुदाय में अपनी लोकप्रियता के लिए जाने जाते हैं। पार्टी आलाकमान इस बात को समझता है, लेकिन दोनों नेताओं के बीच नेतृत्व की ओर से सुलह के प्रयास अब तक नहीं हुए, इसे नेतृत्व की कमजोरी भी माना जा रहा है। वैसे, कोई कुछ भी कहे, लेकिन इस मुलाकात के बावजूद, पायलट और गहलोत के बीच पूर्ण सुलह होने में समय लग सकता है। क्योंकि लंबे समय से चली आ रही तनातनी के बीच ये मुलाकात ङले ही राजेश पायलट के पुण्यतिथि समारोह में निमंत्रण के लिए ही हो, मगर यह कोई मानने को तैयार नहीं है। क्योंकि दो नेता पूरे दो घंटे तक केवल राजेश पायलट की 25वीं पुण्यतिथि पर ही बात कर रहे होंगे, यह संभव ही नहीं है। इसी कारण सियासी हलकों में इसीलिए इस मुलाकात के मतलब तलाशे जा रहे हैं। मगर, यह सही है कि गहलोत बेहद मजबूत नेता हैं और विमान को उड़ाने के लिए पायलट को रन वे पर भी आना ही पड़ता है!

-राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार)

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