किवाड़ खिड़कियाँ से होते है लड़के लड़कियां

आत्माराम यादव पीव

जरा सोचिए जब मानव ने पहली झुग्गी- झोपड़ी, मकान या भवन की कल्पना की होगी तब उसके मस्तिष्क में कितना भूचाल आया होगा ओर तब जिसने भी पहला आवास बनाया होगा तब उसमें लगने वाला दरवाजा/द्वार दुनिया का पहला दरवाजा होगा जिसमें उसके द्वारा किवाड़ की कल्पना ओर उस आवास की दीवालों पर पहली खिड़की बनाई होगी दुनिया कितनी आश्चर्यचकित रही होगी ओर इसे बनाने वाले के चर्चा दुनिया के कौने कौने में पहुची होगी तब बनाने वाले कितना खुश हुआ होगा, यह उसके सुख का आंकलन कर पाना संभव नहीं है। वह भी इतिहास के पन्ने में दफन होकर रह गया जब आदिमानव या मानव के दिमाग की खोज द्वार/दरवाजा के साथ किवाड़ ओर खिडकियों बनी होगी तब उस पहले प्रवेश द्वार की कीर्ति आसमान छूती होगी। जगत में सभी का कुछ न कुछ इतिहास है, फिर दरवाजे/किवाड़ ओर खिड्कियो के इतिहास की चर्चा न हो यह उनके साथ अन्याय ही होगा। दुनिया बनने के साथ गुफाओं में निवास करने वाले आदिमानव से मानव तक झुग्गियों का इतिहास हो या खपरैल मकानों, बिल्डिंगों ओर आधुनिक निर्माणों के निरंतर हुये विकास का इतिहास, आप भूल सकते है किन्तु उस प्रथम मस्तिष्क के आविष्कारक को भूलना उसका अपमान ही होगा जिसका नाम इतिहास में दर्ज नहीं है। कहना न होगा की उस प्रथम उपलब्धि के बाद ही दुनिया में जैसे जैसे हम आधुनिक ओर विकसित होते गए वैसे वैसे सभी आवासों-घरों के अलावा जो भी हमारे उपयोग के साधन कार, बस, हवाईजहाज आदि है उनमें प्रवेश के लिए दरवाजे ओर हवा पानी के लिए खिड़की होने का एक उन्नत इतिहास हमारे समक्ष है।

आप सभी जानते है कि दरवाजे खिड्कियों का जोड़ होता है, बिना जोड़ी के ये अधूरे होते है, इस लिए हमारे पूर्वज अपने मकान को जिस भी आकार प्रकार में बनाते तब उसमें दरवाजे ओर खिड्कियों को जोड़ी के रूप में स्थान देते आए है। हमारे पूर्वज अपने आवास में दरवाजे ओर खिड्कियो को जोड़ी में रखते जिसे सामान्य भाषा में सभी इन जोड़ी को पल्ला भी कहते आए है ओर उनका मानना रहा है कि किवाड़ या खिड़की का एक पल्ला पुरुष और, दूसरा पल्ला स्त्री रूप होता है। हर आवास/मकान में ये दरवाजे घर की चौखट से जुड़े-जड़े रहते हैं। घर कि चौखट हर घर के लिए इसलिए महत्वपूर्ण होती है कि यह चौखट उस घर की मान ओर प्रतिष्टा होती है, इसलिए उस चौखट को लाँघना उस घर की मान मर्यादा को लांघना होता है। हर घर-आवास के ये द्वार/दरवाजे आने वाले हर मेहमान के स्वागत में खड़े रहते हैं, उनके आते ही चौखट के ये द्वार उन्हे आवास में प्रवेश के लिए प्रसन्नता से खुल जाते है। सच में देखा जाये तो ये दरवाजे ओर खिड़कियाँ खुद को उस घर का सदस्य मानते हैं। आखिर वे दरवाजे ओर खिड़कियाँ खुद को सदस्य क्यो न माने, जब से वे द्वार पर दीवालों में होते है वे उस मकान में रहने वाले हर सदस्य के सुख दुख के साक्षी हो जाते है, घर के भीतर ओर बाहर के हर रहस्य इन दरवाजों ओर खिड्कियों से छिपा नहीं रहता है, उनके समक्ष परिवार का हर सदस्य एक शिशु ही होता है ओर वे उसके मर्म को जानते हैं, पर उनके दिल में भी हम जैसे भाव, हम जैसी पीड़ा ओर हम जैसे संवाद हो तो उसे जानने समझने का उत्साह या उत्सुकता से हम अनभिज्ञ बने होते है, या कहिए भावनाशून्य होने से हम उनके दिल तक नहीं पहुच पाते है।

समाज में एक वर्ग है जिसे हम चोर कह सकते है ओर चोर के लिए कोई जटिल या समस्या है तो वह सर्वप्रथम दरवाजे खिड़की है। चोर जहां भी दिन या रात में जब भी अवसर मिलने पर चोरी के लिए जाएगा तो उसको उस मकान के खिड़की दरवाजे का सामना करना होगा जो उसके लिए बाधक है जिसे लांघे बिना चोर को चोरी के काम में सफलता मिलना मुश्किल होगा। दुनिया के हर चोर के दिमाग में दरवाजे खिड़की बनाने वाले का ख्याल आता होगा तो वह उन्हे कोसता जरूर होगा? खिड़की दरवाजे हमेशा मिले हुये होते है, कोई भी घर का मालिक नहीं चाहता की खिड़की दरवाजे खुले रखे जाये अर्थात इनके पल्ले चौखट से जुड़े होने पर उन्हे अलग अलग न रखा जाये, इन्हे जोड़कर रखने पर ही वे आपस में जुड़े होते है। घर के लोग कभी भी दरवाजे ओर खिड़की की, एक भी चलने नहीं देते इसलिए वे दरवाजे खिड़की को आपस में मिलवा कर कुंडी, सटक्नी लगाने के साथ अब अंडरलाक भी लगा देते है, ताकि दरवाजे ओर खिड़की के पल्ले अलग अलग न रह सके। इसका अर्थ है की घर के मालिक जानते है की अगर दरवाजे ओर खिड्कियों को अलग कर देंगे तो इससे उनकी ओर घर की सुरक्षा नहीं हो सकेगी? घर की सुरक्षा की जिम्मेदारी का अर्थ है घर का मान सम्मान ,इज्जत की सुरक्षा। घर की चौखट से दरवाजे जुड़े हैं, अगर ये दरवाजे ओर खिड़कियाँ के पल्ले आपस में जुड़े नहीं होते तो किसी दिन तेज आंधी-तूफान आता, तो एक खिड़की का पल्ला कहीं पड़ा होता, तो दरवाजे का पल्ला कही पड़ा होता। यानि दरवाजे खिड़की कहीं और पड़े होते, यह तब होता जब ये चौखट से जो भी एकबार उखड़े होते ओर वे वापस कभी भी नहीं जुड़े हो सकते।

आपके घरों में जो दरवाजे है खिड़कियाँ है असल में वे आपके घर के झरोखे है जो आपको सुख चैन शीतलता ओर शांति देते है। जो दरवाजे है, खिड़की है वे सब आपके हमारे घरों के लड़के, और लड़कियाँ हैं, तभी आप इन्हें बिल्कुल खुला छोड़ देते हैं। घर इन लड़के लड़कियों की चौखट है ओर घर में आपका हमारा ओर इन बच्चों का जीवन रचा बसा है। ये लड़के लड़कियां शीतल मधुर सुगंधमय वायु को खुली हवा को घरो में लाती है ओर बाहर ले जाती है। घर की चौखट त्यागकर जब ये लड़के लड़कियां स्व्छंद हवा को, खेल ही खेल में, घर की तरफ मोड़ देते हैं तब हम घर की सच्चाई छिपाते हैं तब घर की शोभा बदरंग हो जाती है ओर घर का मान सम्मान भी कलुषित हो जाए तो उस घर का सब कुछ छिन जाता है। दूसरे जब ये ही लड़के लड़कियां संस्कारों की त्रिवेणी से घर को प्रयागराज बना दे तो उस घर के जीवन मूल्यों में गंगा यमुना ओर सरस्वती की संस्कृति की बयार उस घर परिवार के लिए किसी रिद्धी सिद्धि के आनंद से भर देगी। मुझे याद है बचपन में अपने घर रोज शाम को पिताजी दिन भर के थके मांदे घर लौटकर दरवाजे की सांकल बजाते तब तुरंत ही उनकी प्रतीक्षा में बैठी माँ, दादी माँ सभी काम छोड दौड़कर दरवाजा खोलते तो सभी पिताजी को देख खुश होते ओर माँ की जान में जान आ जाती। बहुयें अपने हाथ का, हर काम छोड़ देती थी। उनके आने की आहट पा, आदर में घूँघट ओढ़ लेती थी।

अब तो कॉलोनी के किसी भी घर में, दो पल्ले वाले किवाड़ बचे ही नहीं है ओर लोग घर को घर नहीं अब फ्लैट कहने लगे हैं, जिनमें एक पल्ले का दरवाजा लगाना एक फैशन सा बन गया है जो एक ही झटके के खुलते है ओर जो दरवाजे पर खड़ा होता है उसे दरवाजा खुलते ही पूरे घर का नजारा दिखाई देता है। जबकि पहले दो पल्ले वाले दरवाजे पर किवाड़ खोलते समय एक पल्ले की आड़ में, घर की बेटी या नव वधु, किसी भी आगन्तुक को, जो वो पूछता बता देती थीं ओर अपना पूरा चेहरा व शरीर छिपा लेती थीं किन्तु अब एक पल्ले के दरवाजे के धड़ल्ले से खुलते ही सभी पर्दे हट गए है ओर घर की महिला, बेटी, या बहू को एक पल्ले वाले दरवाजे के होने के कारण छिप पाना मुश्किल होने से वह गंदी नजर ,बुरी नीयत, बुरे संस्कार से खुद को बचा नहीं पाती ओर वे सब एक पल्ले वाले दरवाजे से घर के भीतर प्रवेश कर जाते है। दरवाजे पर आने वाले के अंदर अच्छे भाव या भावना से भरा है या बुरी भावना से इसका कुप्रभाव बाद में परिवार को भुगतना होता है। घर के दो पल्ले वाले दरवाजे ओर खिड़कियाँ का जब से अभाव हुआ है तभी से हमारे घरों में परिवारों में भले घर की शोभा दिखाई देती हो किन्तु इससे इन एक पल्लेवाले दरवाजे ओर खिड़कियाँ न होने से अपनों में ही अपनापन गायब हो गया है ओर एक पल्ली दरवाजे से व्यक्ति एकाँकी होकर रह गया है। इस एकपल्ली दरवाजे ने दो पल्ली दरवाजों के मिलने ओर साथ रहने का सुख जाना नहीं इसलिए एकाकी मन मे सीमित रहकर एकाकी सोच के व्यक्ति स्वार्थी बन गया है ओर माँ बाप ओर भाई बहिन भी उसके लिए उसकी स्वच्छंदता छीनने वाले प्रलय के दावानल से दिखाई देने लगे है। यदि एक ही पल्ला, एक ही लल्ला की एकाकी सोच से मुक्त होना है तो दो पल्ले वाले किवाड़ ओर खिड्कियों की ओर लौटना होगा ताकि घरों के दो पल्ली दरवाजे ओर खिड़कियाँ भी अपनी चौखट की सीमा में संबंधो ओर भावनाओं के पल्ले बंद रख सके।

आत्माराम यादव पीव

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