आर्थिकी राजनीति नेक्स्टजेन जीएसटी सुधार केवल कर सुधार नहीं बल्कि राष्ट्र-निर्माण को तेज रफ्तार देने का परिचायक September 9, 2025 / September 9, 2025 by कमलेश पांडेय | Leave a Comment कमलेश पांडेय मौजूदा नेक्स्टजेन जीएसटी सुधार केवल कर सुधार नहीं बल्कि राष्ट्र-निर्माण को तेज रफ्तार देने का परिचायक है। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थ भारत के सपनों को पंख लगाने वाला वह निर्णायक उपाय है जिसका सकारात्मक असर बहुत जल्द ही देश-दुनिया पर दिखाई पड़ेगा। बता दें कि 56वीं जीएसटी परिषद की बैठक, जो […] Read more » NextGen GST reform
आर्थिकी राजनीति जीएसटी 2.0 : आत्मनिर्भर भारत की तरफ एक और कदम September 8, 2025 / September 8, 2025 by प्रो. महेश चंद गुप्ता | Leave a Comment प्रो. महेश चंद गुप्ता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर किए वादे को पूरा करते हुए दिवाली से पहले सरकार ने जनता को जीएसटी सुधार के रूप में ऐसा तोहफा दिया है, जो न सिर्फ आम जन के जीवन को सरल बनाएगा बल्कि 2047 तक विकसित भारत के सपने को और मजबूती से धरातल पर उतारेगा। जीएसटी 2.0 केवल टैक्स सुधार नहीं बल्कि भारत की अगली आर्थिक यात्रा का मानचित्र है। जहां देशवासी खुश हैं, वहीं इस सुधार में गहरा अंतरराष्ट्रीय संदेश भी निहित है। यह सुधार अमेरिका द्वारा लगाए 50 प्रतिशत टैरिफ का उत्तर भारत ने अपनी आर्थिक मजबूती और आत्म निर्भरता के रूप में दिया है। जीएसटी सुधार से किसान, महिला, युवा, मिडिल क्लास, छोटे व्यापारी और उपभोक्ता सभी लाभान्वित होंगे। यह कदम केवल टैक्स प्रणाली को सरल बनाने का प्रयास मात्र नहीं है बल्कि भारत को एक तेज, सशक्त और आत्म निर्भर अर्थव्यवस्था में बदलने की दिशा में एक निर्णायक मोड़ है। यह सुधार जितना घरेलू स्तर पर आम लोगों को राहत देगा, उतना ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की सशक्त छवि को भी मजबूत करेगा। बदलावों की जरूरत को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी रेखांकित किया है। मोदी ने कहा है कि अगर भारत को वैश्विक परिदृश्य में उचित स्थान दिलाना है तो समय-समय पर बदलाव बेहद जरूरी हैं। यह सुधार देश को सपोर्ट और ग्रोथ की डबल डोज देंगे। गरीब, मध्यम वर्ग, महिलाओं, छात्रों, किसानों और नौजवानों को इसका सीधा फायदा होगा। प्रधानमंत्री ने यह भी दोहराया है कि यह सुधार सिर्फ टैक्स में बदलाव नहीं है, बल्कि आत्म निर्भर भारत के लिए अगली पीढ़ी का सुधार है। सरकार ने आनन-फानन में यह फैसला नहीं किया है बल्कि उसने इस सुधार में सामाजिक संतुलन का विशेष ध्यान रखा है। तम्बाकू उत्पादों, सिगरेट, शराब, महंगी कारों, विमान आदि पर 40 प्रतिशत टैक्स लगाया गया है पर इसका सीधा असर अमीर वर्ग पर पड़ेगा जबकि गरीब और मध्यम वर्ग को सस्ती आवश्यक वस्तुएं मिलेंगी। जीएसटी 2.0 का सबसे बड़ा असर यह होगा कि उपभोक्ताओं को सस्ता सामान मिलेगा और घरेलू खपत में इजाफा होगा। आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि जब खपत बढ़ेगी तो उत्पादन और व्यापार का दायरा भी बढ़ेगा। कंपनियां अधिक कर्मचारियों को नियुक्त करने की स्थिति में होंगी जिससे रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। इस प्रकार जीएसटी सुधार और प्रधानमंत्री विकसित भारत रोजगार योजना मिलकर अर्थव्यवस्था को गति देंगे। उपभोक्ता को सस्ता सामान मिलेगा और युवा पीढ़ी को रोजगार के अवसर मिलेंगे। यह संतुलन अल्पकालिक राहत और दीर्घकालिक विकास दोनों को साथ लेकर चलेगा। ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो 1 जुलाई 2017 को लागू किया गया वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) स्वतंत्रता के बाद सबसे बड़ा अप्रत्यक्ष कर सुधार था। इसने 17 केंद्रीय और राज्य करों को हटा कर ‘एक राष्ट्र एक कर’ लागू कर देश में सामान्य राष्ट्रीय बाजार का निर्माण किया। आठ वर्षों में जीएसटी लगातार विकसित हुआ है और अब डिजिटलीकरण तथा दर युक्तिकरण के जरिये यह भारतीय कर व्यवस्था की रीढ़ बन चुका है। अर्थव्यवस्था के तेजी से बदलते स्वरूप को देखते हुए टैक्स प्रणाली को सरल और व्यवहारिक बनाना आवश्यक हो गया था। सरकार ने इसी जरूरत को समझते हुए जीएसटी 2.0 के रूप में एक ऐसा सुधार सामने रखा है जो व्यापक दृष्टिकोण से सोचा-समझा और जन हितैषी है। जीएसटी 2.0 में सबसे बड़ा परिवर्तन टैक्स स्लैब की संख्या घटाना है। पहले चार प्रमुख दरें थीं यानी 5 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत और 28 प्रतिशत। अब इन्हें घटाकर सिर्फ दो कर दिया गया है। जरूरी सामानों पर 5 प्रतिशत और सामान्य वस्तुओं पर 18 प्रतिशत टैक्स लगेगा। इससे उपभोक्ताओं को सीधी राहत मिलेगी। किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को विशेष ध्यान में रखते हुए ट्रैक्टर, खेती के औजार, हस्तशिल्प और मार्बल पर टैक्स 12 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया गया है। इसका असर दूरगामी होगा क्योंकि कृषि की लागत कम होगी जिससे ग्रामीण बाजारों में रौनक बढ़ेगी। सरकार ने कुछ वस्तुओं को टैक्स के दायरे से बाहर ही रखा है। इसका उद्देश्य है कि आम आदमी की जिंदगी से जुड़ी बुनियादी जरूरत वाली चीजें और सस्ती हों और उनका बोझ आम आदमी की जेब पर न बढ़े। जीएसटी 2.0 का सबसे बड़ा फायदा उपभोक्ताओं को होगा। जब जरूरी सामान सस्ते होंगे तो आम परिवारों की मासिक बचत बढ़ेगी। किसान को कम लागत में उपकरण मिलेंगे तो उत्पादन बढ़ेगा। छोटे व्यापारी और दुकानदारों को टैक्स की जटिलता से मुक्ति मिलेगी जिससे उनका कारोबार सहज होगा। जीवन एवं स्वास्थ्य बीमा को टैक्स फ्री करना बड़ा कदम है। कैंसर सहित 33 जीवन रक्षक दवाइयों पर टैक्स घटाना भी सराहनीय है। महिलाओं को घरेलू जरूरतों की चीजें कम कीमत पर उपलब्ध होंगी। युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे, क्योंकि बढ़ती खपत उद्योगों को उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रेरित करेगी। इस तरह यह सुधार केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि हर वर्ग के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाएगा। यह सुधार उस समय आया है जब अमेरिका ने भारत पर 50 प्रतिशत तक का टैरिफ लगा रखा है। डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने इन टैरिफों को अपने राष्ट्रीय हित में सही ठहराया है परंतु भारत ने इसका जवाब किसी राजनीतिक बयानबाजी से नहीं बल्कि ठोस आर्थिक सुधार से दिया है। जीएसटी 2.0 इस बात का प्रतीक है कि भारत अपनी अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर और मजबूत बनाने की राह पर है। यह कदम वैश्विक समुदाय के लिए एक स्पष्ट संदेश है कि भारत चुनौतियों से घबराने वाला नहीं बल्कि उन्हें अवसर में बदलने वाला देश है। अमेरिकी टैरिफ से होने वाले संभावित नुकसान की भरपाई घरेलू खपत को मजबूत बनाकर की जा सकती है। यही रणनीति भारत को आर्थिक रूप से और सुदृढ़ बनाएगी। भारत 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने का सपना देख रहा है। उस दिशा में जीएसटी 2.0 एक अहम कड़ी है। यह सुधार केवल टैक्स दरों का नहीं बल्कि सोच का बदलाव है। यह ऐसी सोच है जो आम आदमी को केंद्र में रखती है और साथ ही वैश्विक प्रतिस्पर्धा का सामना करने के लिए भारत को तैयार भी करती है। दुनिया की तेजी से बदलती आर्थिक परिस्थितियों में भारत को अपनी नीति और दृष्टि दोनों को अपडेट रखना होगा। जीएसटी 2.0 इस दिशा में एक ठोस शुरुआत है जिसका परिणाम आने वाले सालों में भारत को सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बनाए रखने में अहम भूमिका निभाएगा। जीएसटी सुधारों से सरकार ने साफ कर दिया है कि अब लक्ष्य केवल नीति बनाना नहीं बल्कि उसे जमीन पर उतारकर परिणाम दिखाना है। यह सुधार किसानों से लेकर शहरी उपभोक्ताओं तक, छोटे दुकानदार से लेकर बड़े उद्योगों तक, हर किसी के लिए मायने रखता है। यह केवल टैक्स सुधार नहीं, बल्कि भारत की आर्थिक आत्मनिर्भरता का नया अध्याय है। हालांकि इन सुधारों से सरकार को 47,700 करोड़ रुपये का सालाना राजस्व नुकसान होगा मगर बाजारों में बूम आने की संभावना से इसकी भरपाई के प्रति हर कोई आश्वस्त है। माना जा रहा है कि टैक्स दरें संतुलित होने से जहां टैक्स ज्यादा आएगा, वहीं टैक्स चोरी रुकेगी। एसबीआई रिसर्च का अनुमान है कि टैक्स कटौती की वजह से खरीदारी बढ़ेगी और इकॉनमी में 1.98 लाख करोड़ रुपये तक की खपत का इजाफा होगा। देश के प्रमुख उद्योगपतियों और अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यह सुधार भारत की आर्थिक रफ्तार को और तेज करेगा। इससे भारत की जीडीपी वृद्धि दर 8 प्रतिशत से ऊपर जा सकती है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि मांग को बढ़ाने और घरेलू उत्पादन को मजबूत करने के लिए एकदम सही पॉलिसी है। भारत अब दिखाएगा कि डेड इकॉनमी कैसी दिखती है। ट्रंप ने भारत को डेड इकॉनमी बताया था। सरकार का भी यही दावा है कि सरल टैक्स प्रणाली से लोग ज्यादा टैक्स देंगे जिससे राजस्व बढ़ेगा। जब राजस्व बढ़ेगा तो सरकार के पास विकास परियोजनाओं पर खर्च करने के लिए अधिक संसाधन होंगे। स्वदेशी की मांग बढऩे का भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। मोदी ने भी स्वदेशी अपनाने का आह्वान किया है हालांकि, यह मान लेना जल्दबाजी होगी कि जीएसटी सुधारों की घोषणा मात्र से ही सारी समस्याएं खत्म हो जाएंगी। असली चुनौती इसके प्रभावी क्रियान्वयन की है। राज्य सरकारों की सहमति, प्रशासनिक तंत्र की दक्षता और टैक्स चोरी रोकने पर नियंत्रण से ही पता चलेगा कि यह सुधार कितना सफल होता है। अपेक्षित नतीजे आने में कम से कम छह महीने तो लगेंगे ही। Read more » जीएसटी 2.0
आर्थिकी राजनीति जीएसटी का नया दौर: कराधान व्यवस्था क्रांति की ओर September 5, 2025 / September 6, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment – ललित गर्ग – भारतीय कराधान व्यवस्था में जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) का आगमन एक ऐतिहासिक एवं क्रांतिकारी कदम था। इसने अप्रत्यक्ष करों के जटिल और उलझे जाल को जहां सरल बनाने का प्रयास किया, वहीं शासन एवं प्रशासन में पसरे भ्रष्टाचार एवं अफसरशाही को भी काफी सीमा तक नियंत्रित किया। सुधार, सुविधा एवं […] Read more » New era of GST New era of GST: Towards revolution in taxation system Towards revolution in taxation system जीएसटी
आर्थिकी राजनीति जीएसटी दरों में बदलाव:आत्मनिर्भर, सशक्त और न्यायपूर्ण व्यवस्था की ओर कदम ! August 25, 2025 / August 25, 2025 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment सरकार द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से जीएसटी में बड़े बदलाव कर आम जनता को राहत देने की घोषणा की गई थी और अब इस क्रम में केंद्र सरकार को जीएसटी में 12 प्रतिशत और 28 प्रतिशत स्लैब को हटाने की राज्यों के मंत्रियों की समिति (जीओएम) से भी मंजूरी मिल गई […] Read more » Change in GST rates: A step towards a self-reliant जीएसटी दरों में बदलाव
आर्थिकी राजनीति वर्तमान वैश्विक नेतृत्व में विश्व कल्याण के भाव का अभाव है July 31, 2025 / July 31, 2025 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment आज विश्व के कुछ देशों में सत्ता उस विचारधारा के दलों के पास आ गई है जो शक्ति के मद में चूर हैं एवं अपने लिए प्रशंसा प्राप्त करना चाहते हैं। उनके विचारों में विश्व कल्याण की भावना का पूर्णत: अभाव है। इन देशों के नेतृत्व की कार्यप्रणाली से कुछ देशों के बीच आपस में […] Read more » The current global leadership lacks a sense of world welfare
आर्थिकी राजनीति टैरिफ आर्थिक युद्ध नहीं, आत्मनिर्भर शांति का रास्ता बने July 31, 2025 / July 31, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment ललित गर्ग जब किसी वैश्विक ताक़त के शिखर पर बैठा नेता ‘व्यापार’ को भी ‘सौदेबाज़ी’ और ‘दबाव नीति’ का औज़ार बना ले, तब यह न केवल वैश्विक अर्थव्यवस्था को झकझोर देता है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों के आधारभूत सिद्धांतों को भी चुनौती देता है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 25 […] Read more » not economic war Tariffs should become the path to self-reliant peace
आर्थिकी राजनीति भारत-ब्रिटेन व्यापार समझौताः एक क्रांतिकारी कदम July 25, 2025 / July 25, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ललित गर्ग- भारत और ब्रिटेन के बीच ऐतिहासिक मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) की अंतिम स्वीकृति ने न केवल वैश्विक व्यापार जगत में हलचल मचा दी है, बल्कि भारत के आर्थिक भविष्य को भी एक नई दिशा दी है। दोनों देशों के बीच आखिरकार फ्री ट्रेड एग्रीमेंट होने का फायदा दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं को मिलेगा। […] Read more » India-UK Trade Agreement भारत-ब्रिटेन व्यापार समझौता
आर्थिकी राजनीति भारत एवं यूके के बीच मुक्त व्यापार समझौते से बढ़ेगा विदेशी व्यापार July 25, 2025 / July 25, 2025 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment दिनांक 24 जुलाई 2025 को भारत एवं यूनाइटेड किंगडम (यूके) के बीच द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौता भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी एवं यूके के प्रधानमंत्री श्री कीर स्टारमर की उपस्थिति में सम्पन्न हो गया। यूके के यूरोपीयन यूनियन से अलग होने के बाद यूके का भारत के साथ यह द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौता यूके […] Read more » भारत एवं यूके के बीच मुक्त व्यापार समझौते से बढ़ेगा विदेशी व्यापार
आर्थिकी राजनीति ऑनलाइन भुगतान के मामले में भारत के यूपीआई ने अमेरिका के वीजा को पीछे छोड़ा July 21, 2025 / July 25, 2025 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment हाल ही के समय में भारत, विभिन्न क्षेत्रों में, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नित नए रिकार्ड बना रहा है। कुछ क्षेत्रों में तो अब भारत पूरे विश्व का नेतृत्व करता हुआ दिखाई दे रहा है। भारत ने बैंकिंग व्यवहारों के मामले में तो जैसे क्रांति ही ला दी है। अभी हाल ही में आर्थिक क्षेत्र में बैंकिंग व्यवहारों के मामले में भारत के यूनफाईड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआई) ने अमेरिका के 67 वर्ष पुराने वीजा एवं मास्टर कार्ड के पेमेंट सिस्टम को प्रतिदिन होने वाले आर्थिक व्यवहारों की संख्या के मामले में वैश्विक स्तर पर पीछे छोड़ दिया है। वैश्विक स्तर पर अब भारत विश्व का सबसे बड़ा रियल टाइम पेमेंट नेटवर्क बन गया है। भारत में वर्ष 2016 के पहिले ऑनलाइन पेमेंट का मतलब होता था केवल वीजा और मास्टर कार्ड। वीजा और मास्टर कार्ड को चलाने वाली अमेरिका की ये दोनों कंपनिया पूरी दुनिया में ऑनलाइन पेमेंट का एकाधिकार रखती थीं। वीजा की शुरुआत, अमेरिका में वर्ष 1958 में हुई थी और धीमे धीमे यह कंपनी 200 से अधिक देशों में फैल गई और ऑनलाइन भुगतान के मामले में पूरे विश्व पर अपना एकाधिकार जमा लिया। वैश्विक स्तर पर इस कम्पनी को चुनौती देने के उद्देश्य से भारत ने वर्ष 2016 में अपना पेमेंट सिस्टम, यूपीआई के रूप में, विकसित किया और वर्ष 2025 आते आते भारत का यूपीआई सिस्टम आज पूरे विश्व में प्रथम स्थान पर आ गया है। यूपीआई पेमेंट सिस्टम के माध्यम से ओनलाइन बैकिंग व्यवहार चुटकी बजाते ही हो जाते है। आज सब्जी वाले, चाय वाले, सहायता प्राप्त करने वाले नागरिक एवं छोटी छोटी राशि के आर्थिक व्यवहार करने वाले नागरिकों के लिए यूपीआई सिस्टम ने ऑनलाइन बैंकिंग व्यवहार करने को बहुत आसान बना दिया है। आज भारत के यूपीआई सिस्टम के माध्यम से प्रतिदिन 65 करोड़ से अधिक व्यवहार (1800 करोड़ से अधिक व्यवहार प्रति माह) हो रहे हैं जबकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वीजा कार्ड से माध्यम से प्रतिदिन 63.9 करोड़ व्यवहार हो रहे हैं। इस प्रकार, भारत के यूपीआई ने दैनिक व्यवहारों के मामले में 67 वर्ष पुराने अमेरिका के वीजा को पीछे छोड़ दिया है। भारत में केंद्र सरकार की यह सबसे उल्लेखनीय उपलब्धियों में से एक है। भारत अब इस मामले में पूरी दुनिया का लीडर बन गया है। भारत ने यह उपलब्धि केवल 9 वर्षों में ही प्राप्त की है। विश्व बैंक एवं अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भी भारत के यूपीआई सिस्टम की अत्यधिक प्रशंसा करते हुए कहा है कि यह नई तकनीकी का चमत्कार है एवं यह सिस्टम अत्यधिक प्रभावशाली है। भारत का यूपीआई सिस्टम भारत को वैश्विक बैंकिंग नक्शे पर एक बहुत बड़ी शक्ति बना सकता है। भारत में यूपीआई की सफलता की नींव दरअसल केंद्र सरकार द्वारा चलाई गई कई आर्थिक योजनाओं के माध्यम से पड़ी है। समस्त नागरिकों के आधार कार्ड बनाने के पश्चात जब आधार कार्ड को नागरिकों के बैंक खातों से जोड़ा गया और केंद्र सरकार द्वारा देश के गरीब वर्ग की सहायता के लिए चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत सहायता राशि को सीधे ही नागरिकों के बैंक खातों में जमा किया जाने लगा तब एक सुदृद्ध पेमेंट सिस्टम की आवश्यकता महसूस हुई और ऑनलाइन पेमेंट सिस्टम के रूप में यूपीआई का जन्म वर्ष 2016 में हुआ। यूपीआई को आधार कार्ड एवं प्रधानमंत्री जनधन योजना के अंतर्गत बैंकों में खोले गए खातों से जोड़ दिया गया। नागरिकों के मोबाइल क्रमांक और आधार कार्ड को बैंक खातों से जोड़कर यूपीआई सिस्टम के माध्यम से आर्थिक एवं लेन-देन व्यवहारों को आसान बना दिया गया। भारत में आज लगभग 80 प्रतिशत युवा एवं बुजुर्ग जनसंख्या का विभिन्न बैकों के खाता खोला जा चुका है। यूपीआई के माध्यम से केवल कुछ ही मिनटों में एक बैंक खाते से दूसरे बैंक खाते में राशि का अंतरण किया जा सकता है। ऑनलाइन पेमेंट सिस्टम के रूप में यूपीआई के आने के बाद तो अब भारत के नागरिक एटीएम कार्ड, डेबिट कार्ड एवं क्रेडिट कार्ड को भी भूलने लगे हैं। भारत से बाहर अन्य देशों में रहने वाले भारतीय मूल के नागरिक भी अपनी बचत को यूपीआई के माध्यम से अपने परिवार के सदस्यों के बैंक खातों में ऑनलाइन राशि का अंतरण चंद मिनटों में कर सकते हैं। पूर्व में, बैंकिंग चेनल के माध्यम से एक देश के बैंक खाते से दूसरे देश के बैंक खाते में राशि का अंतरण करने में 2 से 3 दिन का समय लग जाता था तथा विदेशी बैकों द्वारा इस प्रकार के अंतरण राशि पर खर्च भी वसूला जाता है। अब यूपीआई के माध्यम से कुछ ही मिनटों में राशि एक देश के बैंक खाते से दूसरे देश के बैंक खाते में अंतरित हो जाती है। इससे भारतीय रुपए का अंतरराष्ट्रीयकरण भी हो रहा है। विश्व के अन्य देशों में पढ़ाई के लिए गए छात्रों को अपने खर्च चलाने एवं विश्वविद्यालयों/महाविद्यालयों में फीस की राशि यूपीआई सिस्टम से जमा कराने में बहुत आसानी होगी। जिस भी देश में भारतीय मूल में नागरिकों की संख्या अधिक है उन देशों में भारत के यूपीआई सिस्टम को लागू करने के प्रयास किए जा रहे हैं। आज 13,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक की राशि इन देशों में निवास कर रहे भारतीय मूल के नागरिकों द्वारा प्रतिवर्ष भारत में भेजी जा रही हैं। वैश्विक स्तर पर भारत के यूपीआई सिस्टम की स्वीकार्यता बढ़ने से अमेरिकी डॉलर पर भारत की निर्भरता भी कम होगी, इससे भारतीय रुपए की मांग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ेगी और डीडोलराईजेशन की प्रक्रिया तेज होगी। भारत ने यूपीआई के प्रतिदिन होने वाले व्यवहारों की संख्या के मामले में आज अमेरिका, चीन एवं पूरे यूरोप को पीछे छोड़ दिया है। वर्तमान में भारत के यूपीआई सिस्टम का विश्व के 7 देशों यथा यूनाइटेड अरब अमीरात, फ्रान्स, ओमान, मारीशस, श्रीलंका, भूटान एवं नेपाल में उपयोग हो रहा है। इन देशों में रहने वाले भारतीय मूल के नागरिक यूपीआई के माध्यम से सीधे ही भारत के साथ आर्थिक व्यवहार कर रहे हैं। दक्षिणपूर्वीय देशों यथा मलेशिया, थाइलैंड, फिलिपींस, वियतमान, सिंगापुर, कम्बोडिया, दक्षिण कोरिया, जापान, ताईवान एवं हांगकांग आदि भी भारत के यूपीआई सिस्टम के उपयोग को बढ़ावा देने के प्रयास कर रहे हैं। यूनाइटेड किंगडम, आस्ट्रेलिया एवं यूरोपीयन देशों ने भी भारत के यूपीआई सिस्टम को अपने देश में लागू करने की इच्छा जताई है। हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की साइप्रस एवं नामीबिया यात्रा के दौरान इन दोनों देशों ने भारत के यूपीआई सिस्टम को अपने देश में शुरू करने के लिए भारत से निवेदन किया है। पूरे विश्व में अब कई देशों का विश्वास भारत के यूपीआई सिस्टम पर बढ़ रहा है और यदि ये देश भारत के यूपीआई सिस्टम को अपने देश में लागू कर देते हैं तो इससे भारत में विदेशी निवेश की राशि में भी तेज गति से वृद्धि होने की सम्भावना बढ़ जाएगी। प्रहलाद सबनानी Read more » India's UPI surpasses US Visa India's UPI surpasses US Visa in online payments भारत के यूपीआई ने अमेरिका के वीजा को पीछे छोड़ा
आर्थिकी लेख डेटा की दलाली और ऋण की रेलमपेल : निजी बैंकों का नया लोकतंत्र July 20, 2025 / July 25, 2025 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment – प्रियंका सौरभ “नमस्ते महोदय/महोदया, क्या आप व्यक्तिगत ऋण लेना चाहेंगे?” कभी दोपहर की झपकी के बीच, कभी सभा के समय, कभी मंदिर के बाहर, तो कभी वाहन चलाते समय — यह स्वर अब हमारे जीवन की अनिवार्य पृष्ठभूमि बन चुका है। यह मात्र एक स्वर नहीं, बल्कि एक कृत्रिम उत्पीड़न है — जो यह […] Read more » Data brokerage and loan rush: The new democracy of private banks डेटा की दलाली और ऋण की रेलमपेल
आर्थिकी राजनीति ब्रिक्स में भारत का बढ़ता वर्चस्व संतुलित दुनिया का आधार July 7, 2025 / July 7, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ललित गर्ग –ब्राजील के रियो डी जनेरियो में रविवार को हुए 17वें ब्रिक्स सम्मेलन में सदस्य देशों ने 31 पेज और 126 पॉइंट वाला एक जॉइंट घोषणा पत्र जारी किया। इसमें पहलगाम आतंकी हमले और ईरान पर इजराइली हमले की निंदा की गई। इससे पहले 1 जुलाई को भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया की मेंबरशिप […] Read more »
आर्थिकी लेख समाज सार्थक पहल मध्यमवर्गीय परिवार नहीं फंसे ऋण के जाल में July 1, 2025 / July 1, 2025 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो दर में 50 आधार बिंदुओं की कमी की है। इसके साथ ही, निजी क्षेत्र के बैंकों, सरकारी क्षेत्र के बैंकों एवं क्रेडिट कार्ड कम्पनियों सहित अन्य वित्तीय संस्थानों ने भी अपने ग्राहकों को प्रदान की जा रही ऋणराशि पर लागू ब्याज दरों में कमी की घोषणा करना प्रारम्भ कर दिया है ताकि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा रेपो दर में की गई कमी का लाभ शीघ्र ही भारत में ऋणदाताओं तक पहुंच सके एवं इससे अंततः देश की अर्थव्यवस्था को बल मिल सके। भारत में चूंकि अब मुद्रा स्फीति की दर नियंत्रण में आ गई है, अतः आगे आने वाले समय में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा रेपो दर में और अधिक कमी की जा सकती है। इस प्रकार, बहुत सम्भव है ऋणराशि पर लागू ब्याज दरों में कमी के बाद कई नागरिक जिन्होंने पूर्व में कभी बैंकों से ऋण नहीं लिया है, वे भी ऋण लेने का प्रयास करें। बैंक से ऋण लेने से पूर्व इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि इस ऋण को चुकता करने की क्षमता भी ऋणदाता में होनी चाहिए अर्थात ऋणदाता की पर्याप्त मासिक आय होनी चाहिए ताकि बैकों द्वारा प्रदत्त ऋण की किश्त एवं ब्याज का भुगतान पूर्व निर्धारित समय सीमा के अंदर किया जा सके। इस संदर्भ में विशेष रूप से युवा ऋणदाताओं द्वारा क्रेडिट कार्ड के उपयोग पश्चात संबंधित राशि का भुगतान समय सीमा के अंदर अवश्य करना चाहिए क्योंकि अन्यथा क्रेडिट कार्ड एजेंसी द्वारा चूक की गई राशि पर भारी मात्रा में ब्याज वसूला जाता है, जिससे युवा ऋणदाता ऋण के जाल में फंस जाते हैं। बैकों से लिए गए ऋण की मासिक किश्त एवं इस ऋणराशि पर ब्याज का भुगतान यदि निर्धारित समय सीमा के अंदर नहीं किया जाता है तो चूककर्ता ऋणदाता से बैकों द्वारा दंडात्मक ब्याज की वसूली की जाती है। इसी प्रकार, कई नागरिक जो क्रेडिट कार्ड का उपयोग करते हैं एवं इस क्रेडिट कार्ड के विरुद्ध उपयोग की गई राशि का भुगतान यदि वे निर्धारित समय सीमा के अंदर नहीं कर पाते हैं तो इस राशि पर चूक किए गए क्रेडिट कार्ड धारकों से भारी भरकम ब्याज की दर से दंड वसूला जाता है। कभी कभी तो दंड की यह दर 18 प्रतिशत से 24 प्रतिशत के बीच रहती है। क्रेडिट कार्ड का उपयोग करने वाले नागरिक कई बार इस उच्च ब्याज दर पर वसूली जाने वाली दंड की राशि से अनभिज्ञ रहते हैं। अतः बैंकों से ली जाने वाली ऋणराशि एवं क्रेडिट कार्ड के विरुद्ध उपयोग की जाने वाली राशि का समय पर भुगतान करने के प्रति ऋणदाताओं को सजग रहने की आवश्यकता है। कुल मिलाकर यह ऋणदाताओं के हित में है कि वे बैंक से लिए जाने वाले ऋण की राशि तथा ब्याज की राशि एवं क्रेडिट कार्ड के विरुद्ध उपयोग की जाने वाली राशि का पूर्व निर्धारित एवं उचित समय सीमा के अंदर भुगतान करें क्योंकि अन्यथा की स्थिति में उस चूककर्ता नागरिक की क्रेडिट रेटिंग पर विपरीत प्रभाव पड़ता है एवं आगे आने वाले समय में उसे किसी भी वित्तीय संस्थान से ऋण प्राप्त करने में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है एवं बहुत सम्भव है कि भविष्य में उसे किसी भी वित्तीय संस्थान से ऋण प्राप्त ही न हो सके। ऋणदाता यदि किसी प्रामाणिक कारणवश अपनी किश्त एवं ब्याज का बैंकों अथवा क्रेडिट कार्ड कम्पनी को समय पर भुगतान नहीं कर पाता है और उसका ऋण खाता यदि गैर निष्पादनकारी आस्ति में परिवर्तित हो जाता है तो इस संदर्भ में चूककर्ता ऋणदाता द्वारा बैकों को समझौता प्रस्ताव दिए जाने का प्रावधान भी है। इस समझौता प्रस्ताव के माध्यम से चूककर्ता ऋणदाता द्वारा सम्बंधित बैंक अथवा क्रेडिट कार्ड कम्पनी को मासिक किश्त एवं ब्याज की राशि को पुनर्निर्धारित किए जाने के सम्बंध में निवेदन किया जा सकता है। परंतु, यदि ऋणदाता ऋण की पूरी राशि, ब्याज सहित, अदा करने में सक्षम नहीं है तो चूक की गई राशि में से कुछ राशि की छूट प्राप्त करने एवं शेष राशि को एकमुश्त अथवा किश्तों में अदा करने के सम्बंध में भी समझौता प्रस्ताव दे सकता है। ऋण की राशि अथवा ब्याज की राशि के सम्बंध के प्राप्त की गई छूट की राशि का रिकार्ड बनता है एवं समझौता प्रस्ताव के अंतर्गत प्राप्त छूट के चलते भविष्य में उस ऋणदाता को बैकों से ऋण प्राप्त करने में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है, इस बात का ध्यान चूककर्ता ऋणदाता को रखना चाहिए। अतः जहां तक सम्भव को ऋणदाता द्वारा समझौता प्रस्ताव से भी बचा जाना चाहिए एवं अपनी ऋण की निर्धारित किश्तों एवं ब्याज का निर्धारित समय सीमा के अंतर्गत भुगतान करना ही सबसे अच्छा रास्ता अथवा विकल्प है। भारत में तेज गति से हो रही आर्थिक प्रगति के चलते मध्यमवर्गीय नागरिकों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है, जिनके द्वारा चार पहिया वाहनों, स्कूटर, फ्रिज, टीवी, वॉशिंग मशीन एवं मकान आदि आस्तियों को खरीदने हेतु बैकों अथवा अन्य वित्तीय संस्थानों से ऋण लिया जा रहा है। कई बार मध्यमवर्गीय परिवार एक दूसरे की देखा देखी आपस में होड़ करते हुए भी कई उत्पादों को खरीदने का प्रयास करते हुए दिखाई देते हैं, चाहे उस उत्पाद विशेष की आवश्यकता हो अथवा नहीं। उदाहरण के लिए एक पड़ौसी ने यदि अपने चार पहिया वाहन का एकदम नया मॉडल खरीदा है तो जिस पड़ौसी के पास पूर्व में ही चार पहिया वाहन उपलब्ध है वह पुराने मॉडल के वाहन को बेचकर पड़ौसी द्वारा खरीदे गए नए मॉडल के चार पहिया वाहन को खरीदने का प्रयास करता है और बैंक के ऋण के जाल में फंस जाता है। यह नव धनाडय वर्ग यदि बैक से लिए गए ऋण की किश्त एवं ब्याज की राशि का निर्धारित समय सीमा के अंदर भुगतान नहीं कर पाता है तो उस नागरिक विशेष के वित्तीय रिकार्ड पर धब्बा लग सकता है जिससे उसके लिए उसके शेष जीवन में बैकों एवं अन्य वित्तीय संस्थानों से पुनः ऋण लेने में कठिनाई आ सकती है। अतः बैकों से ऋण प्राप्त करने वाले नागरिकों को ऋण की किश्त का समय पर भुगतना करना स्वयं उनके हित में हैं, ताकि भारत में तेज हो रही आर्थिक प्रगति का लाभ आगे आने वाले समय में भी समस्त नागरिक ले सकें। भारत में तो यह कहा भी जाता है कि जिसके पास जितनी चादर हो, उतने ही पैर पसारने चाहिए। अर्थात, नागरिकों को बैंकों से ऋण लेते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि ऋण की किश्त एवं ब्याज की राशि का भुगतान करने लायक उनकी अतिरिक्त आय होनी चाहिए, ताकि ऋण की किश्तों एवं ब्याज की राशि का भुगतान निर्धारित समय सीमा के अंदर किया जा सके एवं उनका ऋण खाता गैर निष्पादनकारी आस्ति में परिवर्तित नहीं हो। प्रहलाद सबनानी Read more » Middle class families are not trapped in the debt trap नहीं फंसे ऋण के जाल में