राजनीति

संयासवाद नहीं है साम्यवाद

-जगदीश्‍वर चतुर्वेदी

भारत में एक तबका है जिसका मानना है कि कम्युनिस्टों को दुनिया की किसी चीज की जरूरत नहीं है। उन्हें फटे कपड़े पहनने चाहिए। सादा चप्पल पहननी चाहिए। रिक्शा-साइकिल से चलना चाहिए।कार,हवाई जहाज का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। मोटा खाना और मोटा पहनना चाहिए। इस वेशभूषा में थोड़ी तरक्की हुई तो पाया कि नक्सलों ने जींस का फटा और गंदा पैंट और खद्दर का कुर्त्ता पहन लिया। इस तरह के पहनावे और विचारों का मार्क्सवाद से कोई लेना देना नहीं है।

साम्यवाद या मार्क्सवाद को मानने वाले संत नहीं होते। मार्क्सवाद का मतलब संयासवाद नहीं है। वे भौतिक मनुष्य हैं और दुनिया की समस्त भौतिक वस्तुओं को प्यार करते हैं और उसका पाना भी चाहते हैं। उनका इस पृथ्वी पर जन्म मानव निर्मित प्रत्येक वस्तु को भोगने और उत्पन्न करने के लिए हुआ है।

मार्क्सवादी परजीवी नहीं होते बल्कि उत्पादक होते हैं। यही वजह है कि मजदूरो-किसानों का बड़ी संख्या में उनकी ओर झुकाव रहता है। वे हमेशा उत्पादक शक्तियों के साथ होते हैं और परजीवियों का विरोध करते हैं। जो लोग कम्युनिस्टों का विरोध करते हैं वे जाने-अनजाने परजीवियों की हिमायत करते हैं।

मार्क्सवादी का मतलब दाढ़ी वाला व्यक्ति नहीं है,ऐसा भी व्यक्ति मार्क्सवादी हो सकता है जो प्रतिदिन शेविंग करता हो। कम्युनिस्ट गंदे,मैले फटे कपड़े नहीं पहनते। बल्कि सुंदर,साफ-सुथरे कपड़े पहनते हैं। कम्युनिस्ट सुंदर कोट-पैंट भी पहनते हैं। शूट भी पहनते हैं। ऐसे भी कम्युनिस्ट हैं जो सादा कपड़े पहनते हैं। कहने का अर्थ यह है कि मार्क्सवाद कोई ड्रेस नहीं है। मार्क्सवाद कोई दाढ़ी नहीं है। मार्क्सवाद एक विश्व दृष्टिकोण है दुनिया को बदलने का नजरिया है। आप दुनिया कैसे बदलते हैं और किस तरह बदलते हैं,यह व्यक्ति स्वयं तय करे। इसके लिए कोई सार्वभौम फार्मूला नहीं है।

मार्क्सवाद कोई किताबी ज्ञान नहीं है। दर्शन नहीं है। बदमाशी नहीं है,गुंडई नहीं है, कत्लेआम का मंजर नहीं है। मार्क्सवाद राष्ट्र नहीं है,राष्ट्रवाद नहीं है,राष्ट्रीयता नहीं है, धर्म नहीं है, यह तो दुनिया को बदलने का विश्वदृष्टिकोण है। मार्क्सवादी सारी मानवता का होता है और सारी मानवता उसकी होती है। वह किसी एक देश का भक्त नहीं होता। वह किसी भी रंगत के राष्ट्रवाद का भक्त नहीं होता। वह देश,राष्ट्रवाद,राष्ट्रीयता आदि से परे समूची विश्व मानवता का होता है यही वजह है कि वह विश्वदृष्टिकोण के आधार पर सोचता है।

मार्क्सवादी की बुनियादी मान्यता है कि यह संसार शाश्वत नहीं है। यह संसार परिवर्तनीय है। इस संसार में कोई भी चीज शाश्वत नहीं है यदि कोई चीज शाश्वत है तो वह है परिवर्तन का नियम।

कम्युनिस्टों की एक चीज में दिलचस्पी है कि यह दुनिया कैसे बदली जाए। जो लोग कहते हैं कि यह दुनिया अपरिवर्तनीय है,वे इतिहास में बार-बार गलत साबित हुए है। जो यह सोचते हैं कि मार्क्सवाद के बिना शोषण से मुक्त हो सकते हैं ,वे भी गलत साबित हुए हैं। शोषण से मुक्ति के मामले में अभी तक कोई भी गैर मार्क्सवादी विकल्प कारगर साबित नहीं हुआ है। वास्तव अर्थों में सामाजिक तरक्की, समानता और भाईचारे का कोई भी गैर-मार्क्सवादी रास्ता सफल नहीं रहा है।

इस प्रसंग में हमें समाजवादी क्यूबा के सामाजिक परिवर्तनों से बहुत कुछ सीखने को मिल सकता है। फिदेल कास्त्रो ने लिखा है- ‘‘हम शिक्षा के बारे में यूनेस्को के अध्ययन से संबंधित आंकड़ों को देख रहे थे। हमने पाया कि हमारे देश में ग्रामर स्कूलों की चौथी और पांचवीं कक्षा के छात्रों का भाषा और गणित ज्ञान लैटिन अमरीका के शेष देशों के इस उम्र के बच्चों के ज्ञान से दुगुना है। लैटिन अमरीका ही नहीं बल्कि अमरीका से भी अधिक है।’’

‘‘लेकिन हमें इस बात से बहुत खुशी हुई कि भाषा और गणित पर हमारे ग्रामर स्कूलों के छात्रों का अधिकार दुनिया के सर्वाधिक विकसित देशों के मुकाबले कहीं अधिक अच्छा है।’’

फिदेल कास्त्रो ने लिखा है हमारे देश में जीवन के पहले वर्ष शिशु मृत्यु दर प्रति हजार प्रसव 7 से कम है। पिछले साल यह 6.5 थी और उससे पहले साल 6.2 थी। हम इसे और नीचे लाने की कोशिश कर रहे हैं। हम यह भी नहीं जानते कि उष्णकटिबंधी देश में इसे कम किया जा सकता है क्योंकि कई तत्व काम करते हैं। जलवायु का प्रभाव होता है। आनुवंशिक तत्व होते हैं। और भी कई तत्व हैं जैसे कि स्वास्थ्य सुविधा, पोषण आदि। हमें इसे 10 से कम लाने की उम्मीद नहीं थी। इसके इतने नीचे आने से हम बहुत प्रोत्साहित हुए हैं।सबसे अच्छी दरें केवल राजधानी में नहीं है। पूरे प्रांतों में शिशु मृत्यु दरें पांच से कम है। पूरे देश में न्यूनाधिक ये ही दरें हैं। यहां हमारे उत्तरी पड़ोसी जैसी स्थिति नहीं है। वहां तो जिन इलाकों में लोगों के पास अधिक संसाधन, बेहतर स्वास्थ्य सुविधा और बेहतर पोषक तत्व आदि हैं वहां यह दर चार या पांच है, लेकिन अमरीका की राजधानी सहित जिन इलाकों में बहुत गरीब लोग और अमरीकी अफ्रीकी जैसे प्रजाति समूह रहते हैं, जिन्हें पर्याप्त चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं है, वहां यह दर आवश्यक सेवाओं से संपन्न इलाकों के मुकाबले तीन गुना, चार गुना, यहां तक कि पांच गुना अधिक है।

हम हिस्पानिक अमरीकियों, अफ्रीकी अमरीकियों तथा यहां आए दुनिया के दूसरे हिस्सों के लोगों की स्थिति से वाकिफ हैं, उनकी शिशु मृत्यु दरें, उनकी जीवन प्रत्याशा दरें, उनके स्वास्थ्य संकेतक। हम यह भी जानते हैं कि अमरीका में चार करोड़ लोगों का चिकित्सा बीमा नहीं है।

अमरीकी अवाम के प्रति मेरे मन में कोई घृणा नहीं है क्योंकि हमारी क्रांति ने हमें घृणा नहीं सिखाई है। हमारी क्रांति विचारों पर आधारित है कट्टरपन या उग्र राष्ट्रीयता पर नहीं। हमें यह शिक्षा मिली है कि हम सब भाई बहन हैं। हमारे लोगों को दोस्ती और भाईचारे की भावनाओं की शिक्षा मिली है। हमारे विचार से यही अंतर्राष्ट्रीय भावनाएं होनी चाहिए

हमारे लाखों क्यूबाई साथी इसी विचारधारा से गुजरे हैं। इसीलिए मैं कहता हूं कि क्रांति को समाप्त करना इतना आसान नहीं है। हमारे लोगों की इच्छाशक्ति को कुचलना इतना आसान नहीं है क्योंकि उसके पीछे विचारों, अवधारणाओं और भावनाओं की ताकत है। विचारों और भावनाओं को आगे बढ़ाया जाना चाहिए। हमारे हर कर्म के पीछे यही सच्चाई होती है। जिस अवाम ने ज्ञान के कुछ निश्चित स्तर प्राप्त कर लिए हैं, मुद्दों को समझने की एक निश्चित क्षमता अर्जित कर ली है और जिसमें एकता और अनुशासन की क्षमता है उसे धरती से मिटाना इतना आसान नहीं है।’’

फिदेल ने कहा कि ‘‘मैं अपने देश के बारे में कुछ और छोटी-छोटी बातें मैं आपको बताना चाहता हूं। पिछले तीन सालों में विश्वविद्यालयों की संख्या काफी बढ़ी है।…पहले केवल एक मेडिकल स्कूल हुआ करता था अब 22 मेडिकल स्कूल हैं। इनमें से एक का नाम लैटिन अमरीकन मेडिकल स्कूल है जिसमें लैटिन अमरीका के सब देशों से लगभग 7000 छात्र हैं। बाद में इनकी संख्या बढ़ाकर 10000 कर दी जाएगी। हम जानते हैं कि

अमरीका में विश्वविद्यालय शिक्षा विशेषकर मेडिकल स्कूल में शिक्षा के लिए एक व्यक्ति को 2 लाख डालर अदा करने पड़ते हैं। कई साल पहले बने इस स्कूल से जब 10000 छात्र अपनी शिक्षा पूरी कर लेंगे तो केवल इसी क्षेत्र में तीसरी दुनिया के देशों को हमारा योगदान दो अरब डालर के बराबर हो जाएगा। यह इस बात का प्रमाण है कि यदि कोई देश अच्छे विचारों के मार्ग पर चलता है तो भले ही वह गरीब हो, बहुत चीजों को कर सकता है।

इस देश की 44 साल से नाकाबंदी चल रही है। समाजवादी खेमा, जो खरीद और वाणिज्य के जरिए हमारा प्राथमिक व्यापार साझीदार और आपूर्तिकर्ता था, के पतन हो जाने के बाद साम्राज्यवाद ने अपने आर्थिक उपाय शुरू कर दिए जिन्हें टोरिसेली और हेम्सबर्टन एक्टों द्वारा और कड़ा कर दिया गया।

इसके अलावा एक और आपराधिक कानून है जिसे हम कातिल क्यूबन एडजस्टमेंट एक्ट कहते हैं। यह दुनिया के केवल एक देश पर लागू होता है और वह है क्यूबा। यदि कोई अपने आपराधिक रिकार्ड या अन्य किसी कारण से वीजा पाने का हकदार नहीं है तो वह यदि किसी नाव को चुराकर या जहाज का अपहरण करके या अन्य किसी माध्यम से अमरीका पहुंच जाता है तो उसे स्वत: ही अमरीका में निवास मिल जाता है और उसे अगले दिन से ही काम करने का प्राधिकार मिल जाता है।यह बात ध्यान से सुनें। मैक्सिको और अमरीका की सीमा पर हर साल 500 आदमी मरते हैं और उनकी मौत बड़ी भयानक होती है। मैक्सिको के साथ एक संधि की गई है या उस पर लादी गई जिसका नाम है नार्थ अमरीकन फ्री ट्रेड एग्रीमेंट या नाफ्टा। इस करार में पूंजी और वस्तुओं की मुक्त आवाजाही की तो अनुमति है लेकिन मानवों की नहीं। इस बीच उन्होंने हमारे देश पर यह एडजस्टमेंट एक्ट लागू कर दिया है। यह कातिल कानून है और हम नहीं चाहते कि यह दूसरों पर लागू हो। लेकिन हम इस बात पर कायम हैं कि जो हरेक किसी पर मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाते हैं और क्यूबा पर तो यह आरोप घृणित बदनामी और शर्मनाक तथा हास्यास्पद झूठों के जरिए लगाया जाता है, वे सभी मानवों को यह अधिकार दें। इस सीमा पर सैकड़ों मैक्सिकोवासी और लैटिन अमरीकी मारे जाते हैं। यहां हर साल इतने व्यक्ति मरते हैं जितने बर्लिन की दीवार के 29 साल के अस्तित्व में भी नहीं मरे। उन्होंने लाखों बार बर्लिन की दीवार की बात की है लेकिन इस सीमा को पार करने की चेष्टा करने वाले मैक्सिकोवासियों की मौत के बारे में कोई भी समाचार नहीं दिया जाता और दिया भी जाता है तो छिटपुट। यदि आप लैटिन अमरीकी हैं या एशियन हैं या किसी और देश से हैं और आप गैरकानूनी तरीके से अमरीका पहुंच जाते हैं और आपको वहां ठहरने दिया जाता है तो आपको शरणार्थी या आप्रवासी कहा जाएगा और यदि आप क्यूबाई हैं तो आपको निर्वासित पुकारा जाएगा।’’