
~कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल
भारतीय राजनीति के इतिहास में यह पहली बार हुआ जब किसी प्रधानमन्त्री के काफिले को किसी राज्य सरकार ने सभी प्रोटोकॉल को तोड़ते हुए उन्हें भीड़ के हवाले कर दिया हो। राजनीति में दल,मत ,विचार,अभिव्यक्ति में अन्तर हो सकता है लेकिन क्या वह राष्ट्रीयता के विरुद्ध होना चाहिए? पंजाब के बठिंडा में प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के काफिले को प्रदर्शनकारियों की भीड़ ने लगभग बीस मिनट तक फ्लाईओवर में रोके रखा। राज्य की पुलिस का सुरक्षा के लिए कहीं अता-पता नहीं था! ऐसा क्यों? यह सब कैसे संभव हुआ? नरेन्द्र मोदी से राजनैतिक खुन्नस, ईर्ष्या हो सकती है,लेकिन राष्ट्र के प्रधानमन्त्री की सुरक्षा व्यवस्था को ताक पर रख देना क्या यह साजिश नहीं है? वे भारत के प्रधानमन्त्री हैं। और उनकी सुरक्षा से हाय-तौबा करके मदान्ध रहना यह राष्ट्रघात है। न्यूज एजेंसी एएनआई के अनुसार प्रधानमन्त्री ने जब यह कहा – “अपने मुख्यमन्त्री को थैंक्स कहना कि मैं बठिंडा एयरपोर्ट तक वापस जिन्दा लौट आया”
क्या प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी का यह बयान अपने आप में कँपा देने वाला नहीं है। अपने विभिन्न दौरों में प्रोटोकॉल को तोड़कर सभी लोगों से मिलने वाले नरेन्द्र मोदी को अपने कार्यकाल में पहली बार इस प्रकार का बयान देना पड़ा।जब उन्हें अपनी जान खतरे में महसूस हुई। यह बेहद गम्भीर ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा में सुनियोजित ढँग से की गई सेंधमारी है। सोचिए! यदि प्रधानमन्त्री को कुछ हो गया होता,तब क्या हुआ होता? किसी भी राज्य सरकार के पास क्या इतनी शक्ति होती है कि वह भारत के प्रधानमन्त्री की सुरक्षा व्यवस्था को ताक पर रख दे?
लेकिन सवाल यह है कि ऐसा करने वाले कौन और किस विचारधारा के लोग हैं? आखिरकार! उनकी मंशा क्या है? वे कौन लोग हैं? जब वे राजनीति में हार गए तब षड्यन्त्र रचने लगे। उन्हें लगता था कि वे प्रधानमन्त्री की हत्या करवाकर सत्ता की गद्दी पा! लेंगे। मगर,उन्हें यह नहीं पता कि जिसके साथ समूचा राष्ट्र खड़ा हो,उसका कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। इन नपुंसकों को क्या यह नहीं पता था कि – प्रधानमन्त्री राष्ट्र की आन-बान- शान हैं। सत्ता की गद्दी ऐसे नहीं पाई जाती है। उसके लिए स्वयं को खपाकर राष्ट्र की रगों में घुल मिल जाना पड़ता है। और उसी शक्ति का नाम श्री नरेन्द्र मोदी है।
लेकिन अब सवाल बेहद गम्भीर हैं। दोषियों को क्षमा करना न्यायोचित नहीं है। पंजाब में राष्ट्रपति शासन लगाना व उसे केन्द्र शासित राज्य के रुप में परिवर्तित करना समय की माँग है। पंजाब के घटनाक्रम बड़ी चुनौती बनकर सामने आ रहे हैं। राज्य सरकार कठपुतली बनकर रह गई है। ये सत्ता के लिए किसी भी स्तर की सीमा लाँघ सकते हैं।
बस,बहुत हुआ। अब राष्ट्ररक्षा- आन्तरिक सुरक्षा के संकल्प के लिए पतित राजनीति का समूलनाश करना ही होगा। हमनें कुन्नूर हादसे में ही सीडीएस विपिन रावत सहित बहुत कुछ गवाँ दिया है। अब हम और कुछ गवाँने का सोच भी नहीं सकते।
चीन,पाकिस्तान और आतंकवादियों के प्रश्रय में राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ समझौता करने वालों के साथ ‘शठे शाठ्यं समाचरेत्’ का व्यवहार करना ही उचित होगा। ये सब केवल प्रधानमन्त्री की हत्या की साजिश ही नहीं रच रहे थे। बल्कि वे भारत की सम्प्रभुता को खण्डित करने का षड्यन्त्र रच रहे थे। सत्ता के लोभी – पापी दंगा,गृहयुद्ध, हत्याएँ और न जाने क्या कुछ करवा सकते हैं। इसीलिए सतर्कता के साथ राष्ट्र के लिए सबको एक साथ खड़े होना होगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के काफिले को लगभग बीस मिनट तक भीड़ के हवाले करना यह संयोग नहीं था। यह प्रयोग था। वे षड्यन्त्र के तहत उतरे थे। सोचिए! उन बीस मिनटों में षड्यन्त्रकारी क्या कुछ नहीं कर सकते थे? यह कोई चूक या बहानेबाजी नहीं थी। यह उनकी ओर से तय कार्वाई थी। लेकिन हमारे वीर सुरक्षाबलों ने अपने शौर्य के साथ प्रधानमन्त्री की सुरक्षा में कोई आँच नहीं आने दी। ऐसे वीरों को राष्ट्र का कोटि- कोटि प्रणाम।
यदि हम एक हैं तो हमें एक दिखना और होना पड़ेगा। राजनीति अपनी जगह पर होती है। राजनीति की लड़ाई को राष्ट्रद्रोह तक ले आने वालों अब सावधान हो जाओ। ध्यान रखो! प्रभु श्री राम ने सागर से प्रारम्भ में विनयशीलता ही दिखलाई थी,किन्तु जब उसने प्रभु की विनयशीलता का अनादर किया तब भगवान राम के कोप से उसे स्वयं राम ही बचा पाए अन्य कोई दूसरा नहीं।
दिनकर की यह चेतावनी याद रक्खो –
तीन दिवस तक पन्थ माँगते
रघुपति सिन्धु किनारे,
बैठे पढ़ते रहे छन्द
अनुनय के प्यारे-प्यारे।
उत्तर में जब एक नाद भी
उठा नहीं सागर से
उठी अधीर धधक पौरुष की
आग राम के शर से।
सिन्धु देह धर त्राहि-त्राहि
करता आ गिरा शरण में
चरण पूज दासता ग्रहण की
बँधा मूढ़ बन्धन में।
पंजाब में जो कुछ हुआ वह शर्मनाक ही नहीं बल्कि घ्रणित, कायरतापूर्ण ,सुनियोजित षड्यन्त्र ही समझ आता है,जिसे हमारे सुरक्षाबलों ने विफल कर राष्ट्र के ‘प्रधानसेवक’ को सुरक्षित ले आए। यह अक्षम्य अपराध है। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी और गृहमन्त्री अमितशाह इसका दण्ड तय करें । आन्तरिक सुरक्षा व्यवस्था को चाक चौबन्द करते हुए राष्ट्रद्रोहियों को पहचान कर उनके ताबूत में अन्तिम कील ठोंकनी ही पड़ेगी। इस पर इतनी कठोर कार्वाई की जानी चाहिए ताकि भविष्य के लिए यह नजीर बने और भविष्य में कोई भी इस प्रकार का घ्रणित कृत्य करने का दुस्साहस न जुटा सके। भारत की राष्ट्रीय एकता,अखण्डता व सम्प्रभुता के साथ समझौता करने वालों को क्या हश्र होना चाहिए यह तय करने में बिल्कुल भी देरी नहीं होनी चाहिए।
~कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल