टल गया नीतीश कुमार के पाला बदलने का खतरा 

0
228

कुमार कृष्णन 

क़रीब तीन दशकों से दिल्ली में चुनावी जीत का इंतज़ार कर रही भारतीय जनता पार्टी का वनवास खत्म हुआ और दिल्ली  की सत्ता हासिल हो  गई है। भारतीय जनता पार्टी ने इससे पहले दिल्ली में आख़िरी चुनाव 1993 में जीता था। पिछले कुछ चुनावों में भी दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी ने प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे को आगे रखकर चुनाव लड़ा था लेकिन जीत उससे दूर ही रही। एनडीए की जीत से नेताओं के हौसले बुलंद हैं। अब बिहार की बारी है। दिल्ली के चुनाव परिणाम का असर बिहार की राजनीति पर  भी पड़ेगा।  यहाँ  इस साल की अंतिम तिमाही में बिहार में चुनाव होने हैं हालांकि दिल्ली में भाजपा की जीत के बाद बिहार में समय से पहले ही चुनाव की चर्चा फिर शुरू हो गई है। अगले  माह चुनाव आयोग की टीम के बिहार आने की चर्चा है। इसे बिहार में समय से पहले चुनावी आहट के रूप में महसूस किया जा रहा है।

दिल्ली में हुई जीत के बाद बिहार में भारतीय जनता पार्टी की स्थिति और प्रभाव पहले की अपेक्षा ज्यादा मजबूत होंगे। चुनाव परिणाम से एनडीए नेताओं में खासा जोश है। महाराष्ट्र की तरह भाजपा बिहार में  स्थिति मजबूत कर सकती है। बिहार में बिना नीतीश कुमार के चेहरे  भाजपा चुनाव मैदान में नहीं उतर सकती है। उत्साह में  भाजपा  अपने सहयोगियों को दरकिनार  आगे बढ़ने की गलती नहीं करेगी। इसका कारण नीतीश कुमार के चेहरे के साथ साथ  मोदी का मैजिक भी होगा। जद यू के नेता चाहते हैं कि नीतीश कुमार चेहरे से ही चुनाव लड़ा जाय। भाजपा इसे लेकर कोई जोखिम मोल लेने के  पक्ष में नहीं है।  नीतीश कुमार को लेकर भाजपा त्याग ही कर रही है।  भाजपा के समर्थन से बिहार में एनडीए की सरकार बनने की उम्मीद है। मुख्य मंत्री के रूप में नीतीश कुमार  एनडीए के नेतृत्व में  चुनाव लड़ेंगें। बिहार एनडीए में जद यू, भाजपा, हम, लोजपा रामविलास  राष्ट्रीय लोकतांत्रिक मोर्चा शामिल है। 

 दूसरी ओर तेजस्वी को इस बार महागठबंधन की सरकार बनने की पूरी उम्मीद है हालांकि दिल्ली चुनाव परिणाम देख कर उनका उत्साह कमजोर पड़ने से इनकार नहीं किया जा सकता।

राष्ट्रीय जनता दल के  मुख्यमंत्री चेहरा  तेजस्वी यादव पहले से ही बिहार के जिलों का दौरा कर रहे हैं। वे पार्टी कार्यकर्ताओं से मुलाकात कर रहे हैं। उम्मीदवारों के बारे में संवाद कर रहे हैं। महागठबंधन की सरकार बनने पर जनता के लिए वे क्या-क्या करेंगे, इसकी भी जानकारी देते रहे हैं। माई-बहिन सम्मान योजना, 200 यूनिट फ्री बिजली देने और सामाजिक सुरक्षा पेंशन की राशि बढ़ाने की वे घोषणा कर चुके हैं। 

बिहार में गठबंधन का नेतृत्व राष्ट्रीय जनता दल ही कर रही है। गठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद यादव और उनके पुत्र तेजस्वी यादव न सिर्फ़ सीटों का बंटवारा करते हैं बल्कि साथी दलों  के उम्मीदवार का टिकट तक वितरण करते हैं। इसमें कई बार कांग्रेस को भी झुकना पड़ा है। दिल्ली के  नतीजे के बाद लालू प्रसाद को यह लगने लगा है  यदि गठबंधन टूट गय तो सत्ता हासिल करना ज्यादा मुश्किल होगा। यह कयास लगाया जा रहा है कि इस चुनाव परिणाम के बाद  इंडिया गठबंधन के सभी दल कांग्रेस से किनारा कर सकते हैं। दिल्ली के चुनाव से  पहले ममता बनर्जी ने इंडिया गठबंधन का नेतृत्व करने की  इच्छा जताई थी। लालू प्रसाद यादव, उमर अब्दुला , शरद पवार, अरविंद केजरीवाल आदि नेताओं ने समर्थन किया था।

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन में तकरार होती  है या खटास बढ़ती है, इसका असर महागठबंधन पर पड़ेगा । वह टूट भी सकता है। इसका कारण यह है कि लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव  इंडिया गठबंधन का नेतृत्व ममता बनर्जी को देने का समर्थन किया है।  राज्य मे इंडिया गठबंधन में राजद, कांग्रेस के अलावा वीआईपी पार्टी भी है। बिहार में भी राहुल गांधी ने अपने दो दौरों में जिस तरह जातिगत जनगणना  पर सवाल उठाए, उससे राष्ट्रीय जनता दल  के भी कान खड़े हो गए हैं। कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल आधार वोटों में मुस्लिम मतदाता  कॉमन हैं। असदुद्दीन ओवैसी पहले से ही मुस्लिम वोटों के बंटवारे का ट्रेलर दिखा चुके हैं।राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष कांग्रेस को किनारे कर सकता है। गुजरात, पंजाब के बाद हरियाणा और दिल्ली में कांग्रेस ने जिस तरह विपक्षी एकता को तार-तार किया है, उसका खामियाजा तो उसे भोगना ही पड़ा, इंडिया ब्लॉक के साथी दलों से उसका तालमेल भी टूट गया।  कांग्रेस ने भी हरियाणा और दिल्ली जैसा रुख अपनाया तो मुस्लिम वोटों का बंटवारा तय है। यह राष्ट्रीय जनता दल के सपनों पर पानी फेर सकता है, जो तेजस्वी को मुख्य मंत्री बनाने  का सपना देख रहा है। दिल्ली के चुनाव परिणाम के बाद  राजग गठबंधन में शामिल हम ज्यादा ही उत्साहित है।  केन्द्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने कहा कि दिल्ली तो झांकी है, बिहार अभी बाकी है।  तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाना दिवास्वप्न है। 225 सीटों के साथ बिहार में  नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनेगी।उप मुख्य मंत्री विजय कुमार सिन्हा नीतीश कुमार को एडीए का सर्वमान्य नेता बताते हैं। 

मुख्य मंत्री  नीतीश कुमार भी अपनी प्रगति यात्रा इस माह पूरी कर लेंगे। नीतीश जिस भी जिले में जाते हैं, वहां चल रही सरकारी योजनाओं की समीक्षा करते हैं। नई योजनाओं की घोषणा करते हैं। उद्घाटन-शिलान्यास के काम भी संग-संग कर रहे  हैं। इससे लगता है कि सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष दोनों चुनाव के लिए तैयार हैं। दिल्ली चुनाव परिणाम का  असर यह हो सकता है कि समय से पहले चुनाव हो जाएं। भाजपा इस उत्साह को बेकार नहीं जाने देगी। बिहार में इसे भुनाने का वह भरपूर प्रयास करेगी। संभव है कि भाजपा को पहले से बेहतर परिणाम इस बार मिले। इसकी दो वजहें हैं। पहली यह कि नीतीश कुमार भी अब भाजपा से रार मोल लेने से बचेंगे। जिद कर नीतीश कुमार और चिराग पासवान ने दिल्ली में एक-एक सीट ले ली थी पर, उनके उम्मीदवार जीत नहीं पाए। इसलिए भी दोनों नैतिक रूप से भाजपा का दबाव महसूस करेंगे।  सीटों के बंटवारे में वे अब सख्त तेवर अपनाने से  बचेंगें। नीतीश कुमार के बार-बार के इनकार के बावजूद यह खतरा बना हुआ था कि वे फिर कहीं पाला न बदल लें। अब वे भाजपा की स्थिति सुधरता देख कर शायद ही पाला बदल की बात सोचेंगे। शिवसेना (यूबीटी) के छह सांसदों के शिंदे की शिवसेना में शामिल होने की चर्चा से भी नीतीश कुमार यकीनन भय महसूस कर रहे होंगे। ऐसे में उनके पाला बदलने का खतरा कम हो गया है।

कुमार कृष्णन 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here