
—विनय कुमार विनायक
तुमघृणा के पात्र हो,क्योंकि तुम धृतराष्ट्रहो!
तुमने समग्र मानवता ही नहीं
समग्रसृष्टि जगत के हिस्सों के
स्नेह, प्यार, सहकार को समेटकर
अपने लाड़ले दुर्योधन की झोली में देडाला!
तुम्हारी कृपा का मोहताज वहचींटा भी था
जिसे तुमने लाड़ले की एक मुस्कान के लिए
अंगूठे से दाबकरपिचक डाला था!
उस चिड़े को भी जोअपनीचिड़ीकेसाथ
तुम्हारे आंगन मेंफुदक रहा था
जिसे तुमने लाडले के बाल हठ पर
दुर्योधन के हाथों थमाया था
और उसने खेल-खेल में
नोचघिसट कर चिड़े को मार डालाथा!
यद्यपि तुम चाहते तो उसे दुर्योधन नहीं बनाते
बल्कि राम,कृष्ण,गौतम,महावीर, गांधी बना सकते थे!
किंतु इसके लिए तुम्हें चाहिए था
उसे सही वक्त पर सही हिदायत देना
जब तुम्हारा नटखट लाड़लासंगखेलती
बालाके साथ अश्लीलहरकत करने लगा था
तब तुमडांटनेकेबजायमुस्कुरा रहे थे
उस की बाल लीला पर!
ऐसे अभ्यास के बूते पर ही तो
द्रोपदी चीर हरण के अवसर पर
धृतराष्ट्रअंधाबना बैठा रहाथा!
वैसे तुम समर्थवानथे
धृतराष्ट्रके सिवा कुछ भी बन सकते थे!