परिचर्चा

परिचर्चा : क्या जाति आधारित जनगणना होनी चाहिए?

देश में ‘2011 की जनगणना’ का कार्य चल रहा है। पिछले दिनों विपक्ष सहित सत्तारूढ संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के कई घटक दलों ने जनगणना में जाति को आधार बनाने की मांग की। केंद्र सरकार ने दवाब में आकर उनकी मांग को स्वीकार कर लिया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लोकसभा में घोषणा की कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल इस मामले में सदन की भावना को ध्यान में रखते हुए जल्दी ही सकारात्मक फ़ैसला करेगी।

इस जातीय जनगणना को लेकर देश में उबाल है। इसके पक्ष और विपक्ष में तर्क प्रस्‍तुत किए जा रहे हैं।

गौरतलब है कि 1857 की क्रांति से भारत में राष्‍ट्रवाद की जो लहर चली थी, उसे रोकने के लिए अंग्रेजों ने जातीय जनगणना का सहारा लिया और इसकी शुरुआत 1871 में हुई। कांग्रेस के विरोध के कारण 1931 के बाद से जाति के आधार पर गिनती नहीं की गई। इसके पीछे कारण था कि इससे देश में जाति विभेद बढेगा।

स्वतंत्र भारत के इतिहास में अब तक सात बार दस-दस वर्षो के कालखंड में जनगणना कार्य संपन्‍न हो चुका है।

सर्वोच्‍च न्‍यायालय

सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने इस मुद्दे पर सरकार को कोई निर्देश देने से इनकार कर दिया है कि वह जनगणना जाति के आधार पर कराए या नहीं कराए। न्‍यायालय ने कहा कि यह नीति संबंधी मामला है। इस पर सरकार ही कोई फैसला कर सकती है।

यूपीए

जहां एक ओर ज़्यादातर दल जाति आधारित जनगणना के पक्ष में हैं, वहीं दूसरी ओर यूपीए में इस मसले पर मतभेद हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में कई वरिष्ठ मंत्रियों की राय अलग-अलग होने के चलते कोई फ़ैसला नहीं हो पाया।

केंद्रीय कानून मंत्री एम वीरप्पा मोइली ने जाति आधारित जनगणना की वकालत की वहीं कांग्रेस के युवा सांसद एवं केंद्रीय गृह राज्यमंत्री श्री अजय माकन ने आम जनगणना में जाति को शामिल करने के खिलाफ अलख जगाते हुए इसे विकास के एजेंडे के रास्ते का रोड़ा बताया है। श्री माकन ने सभी युवा सांसदों को इस संबंध में एक खुला पत्र लिख कर भविष्य की राजनीति का एजेंडा क्या होना चाहिए, इस पर विचार करने को कहा है। उन्होंने कहा कि देश बड़ी मुश्किल से जाति और धर्म की राजनीति से बाहर निकला है और लोगों ने विकास को सबसे ऊपर रखा है। अगर जाति और धर्म की राजनीति फिर से हावी हुई तो देश एक बार फिर 20-25 साल पीछे चला जाएगा।

भाजपा

इस मुद्दे पर भाजपा नेताओं के सुर अलग-अलग सुनाई दे रहे हैं। संसद में जनगणना पर हुई चर्चा के दौरान लोकसभा में भाजपा के उपनेता श्री गोपीनाथ मुंडे ने जाति आधारित जनगणना की जोरदार वकालत करते हुए कहा कि जाति के आधार पर ओबीसी की जनगणना कराने पर ही उनके प्रति सामाजिक न्याय संभव हो सकेगा। अगर ओबीसी की जनगणना नहीं होगी तो उन्हें सामाजिक न्याय नहीं मिलेगा। वहीं, पार्टी के वरिष्ठ नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने जातीय जनगणना का विरोध करते हुए आशंका जताई है कि इससे भारतीय समाज का बंटवारा हो जाएगा।

जदयू

जनता दल (युनाइटेड) के अध्यक्ष श्री शरद यादव ने जनगणना के दौरान अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के साथ ही हर जाति की गिनती किए जाने की मांग की है। यादव ने कहा है कि जब तक देश में प्रत्येक जाति की स्थिति के बारे में जानकारी नहीं होगी, तब तक समाज के कमजोर तबके के लिए नीति नहीं बनाई जा सकेगी। श्री यादव ने कहा कि वह ओबीसी ही नहीं, जनगणना में हर जाति की गिनती किए जाने की मांग कर रहे हैं, ताकि समाज के कमजोर तबकों के लिए समुचित नीतियां बनाई जा सकें।

इसके साथ ही राजद प्रमुख श्री लालू प्रसाद यादव, सपा प्रमुख श्री मुलायम सिंह यादव और बसपा सुप्रीमो सुश्री मायावती ने जाति के आधार पर जनगणना की जोरदार वकालत की है।

माकपा

माकपा नेता सीताराम येचुरी का कहना है, ‘’हम जाति आधारित जनगणना के पक्षधर नहीं हैं लेकिन देश के लिए यह जानना जरूरी है कि अन्य पिछडे वर्ग के लोगों की वास्तविक संख्या क्या है। उनकी वास्तविक संख्या पता चलने पर आरक्षण के कई फायदे उन्हें मिल सकेंगे।‘’

शिव सेना

शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने यह कहते हुए जाति आधारित जनगणना का विरोध किया है कि ऐसा किया जाना देश के लिए नुकसानदेह होगा और इससे देश में दरार पड़ेगी।’

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के महासचिव भैयाजी जोशी ने कहा कि जनगणना में संघ अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की श्रेणियों के जिक्र के खिलाफ नहीं है पर वैयक्तिक जातियों के जिक्र के खिलाफ है क्योंकि यह संविधान की भावना और राष्ट्रीय एकता के खिलाफ है।

श्री जोशी के अनुसार संघ का मानना है कि जनगणना में जाति पर जोर देना सीधे जातपात मुक्त समाज के खिलाफ होगा, जिसकी कल्पना संविधान रचयिता डॉ. बाबासाहब अंबेडकर ने की थी। श्री जोशी के अनुसार संघ अपने जन्म से ही जाति विभाजन से परे राष्ट्रीय एकता की दिशा में काम कर रहा है।

वहीं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने हिन्दुओं को दिए अपने संदेश में कहा है कि वह जाति व्यवस्था की दीवारों को ढहा दें। इसके लिए किसी और की ओर न देखकर स्वयं कदम आगे बढ़ा दें। उन्होंने जनगणना में जाति के कालम की व्यवस्था पर सवाल उठाया।

श्री भागवत ने कहा कि संविधान में जाति व्यवस्था को खत्म करने की बात कही गयी है लेकिन जब जनगणना होती है तो जाति का कालम भरना पड़ता है। इसी तरह कई सरकारी फार्मों में भी अपनी जाति भरनी पड़ती है। यह कैसा विरोधाभास है। उन्होंने कहा कि रोज जातिगत विषमता पर समाचार पत्रों में खबरें पढ़ने को मिल जाती हैं। मानव निर्मित भेदों का कोई स्थान नहीं है।

जातीय जनगणना के पक्ष में दलील

भारत में जातिगत आधार पर आरक्षण की व्‍यवस्‍था है। सही आंकड़े के अभाव में सरकार कैसे न्‍यायसंगत जाति आधारित आरक्षण नीति लागू कर सकेगी? इसके लिए वास्‍तविक आंकड़ों की नितांत जरूरत है। जातीय जनगणना से सभी जातियों की सही संख्या का पता चल जाएगा। इससे भारत की असली तस्वीर सामने आएगी और पिछड़ी जातियों के लिए अलग-अलग तरह से कल्याणकारी योजनाएं बनाई जा सकेंगी।

प्रवक्‍ता डॉट कॉम का मानना है

जातिवाद का जहर सामाजिक एकता की राह में सबसे बडी बाधा है।

अजीब विडंबना है कि जातीय जनगणना के प्रबल पैरोकार समाजवादी हैं, जो अपने को ‘लोहिया के लोग’ मानते हैं। जबकि लोहिया कहते थे, जाति तोड़ो। सवाल यह है कि जातीय जनगणना से जाति टूटेगी या जातिवाद बढेगा?

जाति आधारित जनगणना से लोगों के मन में जातिगत भावना काफ़ी तेजी से बढ़ेगी। इससे देश जातीयता के बादल में फंस जाएगा और देश में एक बार फिर नब्‍बे के दशक की तरह जाति के आधार पर वोट की राजनीति को हवा दी जाएगी।

जातीय जनगणना से देश में जातियों की घट-बढ रही जनसंख्‍या का पता लगना शुरू हो जाएगा, जिसके चलते सामाजिक संरचना को खतरा उत्‍पन्‍न होगा।

जनगणना में जाति के बजाय आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी हासिल करनी चाहिए, जिससे देश व समाज का वास्‍तविक विकास हो सके।

निवेदन : स्वस्थ बहस ही लोकतंत्र का प्राण होती है। आपसे आग्रह है कि अश्लील, असंसदीय, अपमानजनक संदेश लिखने से बचें और विचारशील बहस को आगे बढाएं।